“नाक कटा दी बाबू जी ने, सोसायटी में जो थोड़ी बहुत शान
और इज्जत बची थी, वह भी जाती रही”, झुमरी सुबह से ही अपने ससुर को कोसे जा रही थी.
“अरी
भागवान, काहे सुबह सुबह बाबू जी को कोस रही हो”, झुमरू अपनी पत्नी पर चिल्लाया.
“अब कोसने को बचा ही क्या है, बुढ़वू लाख टके के लिए जेल
भीतर हैं, क्या मुंह दिखाऊं दुनिया समाज को”
“अरी, जरा बाबू जी के बारे में भी सोच, इस बुढ़ौती में सश्रम
कारावास हो गया, सश्रम कारावास का मतलब बूझती हो कि बुझायें “
“अरे काहे का सश्रम, वही काम जो हम रोज घरे भित्तर करते
हैं, बावू जी कुछ रोज जेल में कर लेंगे तो का बिगड़ जावेगा, वैसे भी घर पर तो जिन्दगी
में कौनो काम किए नाहीं, पर इज्जत तो हमारी गई ना, का मुंह लेके निकले घर के
बाहर, और हॉं एक बात कहे देते हैं, कि ई जो सब हो रहा है, उनके अपने करमों का ही फल
है.”
“काहे का बुरा कर्म कर दिए, लाख रूपैया पार्टी के लिए ही तो
ले रहे थे, कौन अपने घरे लादे ला रहे थे .”
“यही यही, यही करम है, लिया भी तो फकत लाख रूपैया, ऊ भी अपने
खातिर नाहीं, पार्टी खातिर, अरे अब कहां मर गये ऊ पार्टी वाले, अरे हम पूछते हैं,
जब लिया ही था, तो तनी ज्यादा नाहीं ले सकते थे, औ अपने घरे खातिर काहे नाहीं ले
सकते थे, बाकी लोगन का देखो, उनके घर वाले हवेलियों में शान से रहते हैं.”
“ ई तू का अनाप शनाप बके जा रही है “ झुमरू भुनभुनाया,
“ का गलत कह रहे हैं जी, अब करोड़न करोड़ डकारने वाले भी वहीं
उनके साथ होंगे, उनके बीच ऊ का मुंह दिखायेंगे, जब ऊ कहेंगे कि लाख टका खातिर हिंया
आये है, तो सब उनका मजाक उड़ायेंगे की नाहीं, जैसे हिंया अब सब हमारा मजाक
उड़ायेंगे.”
“ तुम्हारा क्या मजाक उड़ेगा, अरी बाबू जी वहां जेल में
हैं, न जाने ऊ जेल वाले कौन सा काम करायें, सश्रम है तो हम तो सुने है कि चक्की
पिसवाते हैं, आटा गुंथवाते हैं, भगवान जाने कहीं बाथरूम वाथरूम में ड्यूटी न लगा
दें .”
“तो किसी की मदद मांगो, पार्टी वालों से मदद लो, नहीं तो जेल
वालों तक कुछ घूस घास पहुंचाओ, बाबू जी कितनौ अनरथ किए हों, हमसे उनकी ई दशा देखी
न जाएगी.” झुमरी चिन्तित स्वर
में बोली.
“ कहां से पहुंचायें, ऊ एक लाख रूपैया तो पुलिस वाले कब का ले
गये, घर में पैसा है ही कहां. तुम सही कहती हो, कुछ अधिक लिए होते तो आज साथ देने वालों
का भी टोटा नहीं पड़ता, सब लाइन लगा के दुआरे खड़े रहते.” इस बार झुंझलाने की
बारी झुमरू की थी,
“ और कुछ अऊर ज्यादा कर दिए होते तो कसाब की तरह अंडा सेल भी
मिल सकता था, फिर सुरक्षा के नाम पर वहां मजे से रहते, औ हियां हम भी उनके कमाये
धन से राजा बन गये होते.” झुमरी की ऑंखों में सोच के ही चमक आ गई थी,
“पर अब का करें, घर में कौड़ी नहीं, साथ देना तो दूर घर आने
वाले भी किनारा काट लिए, हाय बाबू जी के लिए हम कुछ नहीं कर सकते.” झुमरू की ऑंखों में
आंसू आ गये,
“ ऐसा काहे कहते हो जी, दहेज में बीस भर सोना लिए थे, ऊ किस
दिन काम आयेगा, आजहि बेच के बाबू जी का जमानत कराओ, ऐसे अकेला नाहीं छोड़ सकते हम उन्हें
उन कुख्यात डकैतों के बीच, हमारे बाबू जी तो मासूम से रिश्वतखोर भर हैं .”
“ तुम सही कहती हो जी, ऊ दहेज का धन भी तो रिश्वत ही था,
रिश्वत में ही चली जाएगी, तो गम नाहीं, हम आज ही हाई कोर्ट में अपील दायर कर देते
हैं, और बाबू जी का जमानत करवा लेते हैं .”
“ हां फिर हाई कोर्ट से ऊपर सुप्रीम कोर्ट भी है, जब तक वहां
मामला निपटेगा, बाबू जी खुद ही निपट लेंगे, फिर न रहेगा बांस न बजेगी बेसुरी.” झुमरी चहक के बोली
“ हां मैं अभी जाता हूं.” कहकर झुमरू जाने लगा.
“ ऐ जी, बाबू जी की एक अच्छी सी तस्वीर भी बनवा लीजिएगा,
समझ रहे हैं न, न जाने कब काम पड़ जाए.” झुमरी ने पीछे से चेताया.
परदा गिरता है.
मनोज कुमार श्रीवास्तव
और कुछ अऊर ज्यादा कर दिए होते तो कसाब की तरह अंडा सेल भी मिल सकता था, hahahaha
ReplyDeleteऔर फिर दामाद की तरह खातिरदारी होती, लजीज बिरयानी भी खाने को मिलती, ये लिखना भूल गया था
Deleteहा हा हा हा हा बाबूजी बेचारा नई ये भाई उस भारतीय राजनैतिक सिस्टम का कोढ़ भरा चेहरा है जिसमे एक सत्ताारी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी भी राह चलते आदमी से मिल उसके साथ रक्षा सौदे की चर्चा कर लाख रूपया नगद गिन के रख सकता है।
ReplyDeleteदेर सबेर यह व्यवस्था भी अवश्य बदलेगी, बाबू जी को जेल एक शुरूआत तो कही ही जा सकती है
Deleteबाबूजी को अपने लिए फाँसी की सजा मांगनी चाहिए ताकि करोरन करोर डकारने वालो को आजीवन फाँसी की सजा मिल सके.
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