Tuesday 22 November 2011

डर लगता है.



जो नर खुद को कहते ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है !


धर्म आवरण ओढ़ के बैठे, ना जाने क्या क्या कर जाएँ ?
दुःख सागर में डूबी दुनिया, सुख खातिर सबको भरमायें !!
अंध आस की आँख पे पट्टी
मधुरिम उनका छल लगता है.
जो नर खुद को कहते हैं ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है...



उनके कितने ही अनुयायी, हाथ जोड़ के खड़े हैं रहते !!
ना जाने किस खोज में हैं सब, धारा एक में सभी तो बहते !!
वो शास्वत कहते  हैं खुद को,
हमें बेगाना घर लगता है :)
जो नर खुद को कहते हैं ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है....


मुझसे मेरे मित्र ने कहा, दुःख आएगा तब जानोगे !!
धरती के इन सब प्रभुओं को, उस दिन ही तुम मानोगे !!
मैंने कहा मुझे ये जीवन,
दुःख का ही तो सफ़र लगता है :)
जो नर खुद को कहते हैं ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है...


मनोज 

8 comments:

  1. adbhut.... ab iske agey kya kahu mujhe samajh nahi aa rha

    m speechless

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  2. जो खुद को कहते ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है

    Bahut Badhiya...Bemisal Rachna

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  3. Beautiful worded and good thoughts.

    The main issue is people who represent themselves as God man but their deeds are different from their appearance and people are really scared. One should not get scared of such people and face them head-on.

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  4. बहुत खूबसूरत और सार्थक प्रस्तुति …………शानदार्।

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  5. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-708:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  6. शायद जनाब शेख सादी का कथन है जो याद आ गया...
    “एक तो मैं इश्वर से डरता हूँ उसके बाद उससे डरता हूँ जो इश्वर से नहीं डरता”
    बहुत सुन्दर रचना...
    सादर....

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  7. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ....

    धन्यवाद,... नेहा, मोनिका जी, वंदना जी,

    विर्क साहेब मेरी रचना को चर्चा मंच लायक समझने के लिए धन्यवाद....

    हबीब साहेब बहुत सही बात लिखी आपने..... इनके रूप अब डरावने हो गए हैं..... ईश्वर इन ईश्वरों से बचाए....

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  8. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
    आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
    --
    बुधवारीय चर्चा मंच

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