Friday, 13 April 2012

जाएँ तो जाएँ कहाँ

आजकल एक भ्रष्‍ट और ठग ने जो खुद को बाबा कहता है, ने दिमाग खराब कर रखा है, लोगो को ठगना ही इसका परम धर्म है, परन्‍तु लोग हैं कि अंधानुगमन जारी है .......मित्रों मुझे विज्ञापन के दम पर प्रसिद्धि प्राप्त इस कथित बाबा के ऊपर गुस्‍सा कम और कमअक्‍ल अवाम् की अन्‍धविश्‍वासी सोच पर गुस्‍सा अधिक आता है, जो किसी भी ऐरे, गैरे, लाखैरे को ईश्‍वर के समकक्ष रखने में तनिक भी देर नहीं लगाती, परन्‍तु क्यों ? यदि र्धर्यपूर्वक सोचा जाए तो वह करे भी तो क्या, सत्य तो यह है कि दुःखों में डूबी हुई प्रजा को जब शासक न्‍याय देने में सक्षम न हो, वह उनके घावों पर मरहम लगाने की बजाय उस पर प्रतिदिन एक नये प्रकार का वह तीक्ष्‍ण रसायन मलने का कार्य करता हो, जो उसे प्रतिपल चीखने पर मजबूर करती हो........ और दूसरी ओर जब देवालयों में स्‍थापित देव और उनके कथित प्रतिनिधि धनसंचय के नए कीर्तिमान बनाने में व्‍यस्‍त हों, तो वह गरीब आखिर जाये भी तो कहॉं, वह जहॉं भी जाता है, उसे मार्ग में मिलते हैं रंगे हुए सियार, जो शक्तिशाली और सामर्थ्‍यवान होने का भ्रम उत्‍पन्‍न करते हैं, वे उसे शरण, संरक्षण और सुरक्षा देने जैसी बातों में उलझाते हैं, और फिर जीवन के कष्‍टों से पहले से ही पीडि़त वह दुर्भाग्‍यशाली व्‍यक्ति अनचाहे, अनजाने ही उस चालाक सियार के चंगुल में स्‍वयं को फंस जाने से बचा नहीं पाता,

प्रश्‍न उठता है कि आखिर इन सियारों का किया क्‍या जाए, कैसे इनके ऊपर के छद्म रंग को हटा इनका वास्‍तविक रूप देखा जाए ? तो मेरी एक सलाह है, वह यह कि तीसरी, चौथी आंख का दावा करने वाले से, अपनी कथित ऑंख से देखकर कोई ऐसा चीज बताने को कहा जाए, जिसकी तत्‍काल पुष्टि हो सके, मसलन उन्‍हें किसी घर में लाया जाए और पूछा जाये कि बाबा अब बताइये कि घर के फ्रीज में कौन सी शब्‍जी पड़ी है ? अथवा ये कि बाबा जरा बताइये तो मैंने किस रंग की चड्ढी पहनी हुई है ? और फिर हाथ कंगन को आरसी क्‍या और पढ़े लिखे को ....... 

परन्‍तु इतना ही क्‍यों जिसके पास अदृश्‍य आंख हैं, वह सहजता से अति गूढ़ प्रश्‍नों के हल तलाशने में मदद भी कर सकता हैं, वह अनेक अपराधों जैसे आरूषि-हेमराज हत्‍या के बारे में सारे सत्‍य व तथ्‍य के साथ अपराधी के बारे में भी बता सकता हैं, साथ ही वह यह भी बता सकता हैं कि किन किन श्रीमानों के धन किन-किन विदेशी बैंकों में जमा हैं और उसके प्रमाण हमें कहां मिलेंगे........फिर न तो देश को अनशनकर्ता महारथियों की आवश्‍यक्‍ता होगी और न ही गैरसरकारी उन संगठनों की जो देश की चिन्‍ता में हलकान हुए जा रहे हैं......अतः मेरी सलाह है कि इससे पहले विदेशी ताकतें इस "कृपा" को पेटेंट कराएं, इस अदृश्‍य आंख का प्रयोग भारत सरकार को तत्काल और आवश्यक रूप से राष्ट्रहित में करना आरम्भ कर देना चाहिए, साथ ही सी.बी.आई जैसी संस्‍था को भी इसकी मदद ले अनेक मसले तुरत फुरत सुलझा लेने चाहिए ....... मुझे समझ नहीं आता की भला अभी तक ऐसा उत्‍तम विचार सरकार को सूझा क्‍यों नहीं, वह भी तब जब उनके पास योग्य (?) मंत्रियों की पूरी फौज मौजूद है..... अतः अब देर न कर भारत सरकार को तुरन्‍त ही इस तीसरी आँख की अलौकिक शक्तियों का प्रयोग देश-हित में करना आरम्भ कर देना चाहिए....

अब आप पूछेंगे कि भाई यदि तीसरी आंख असफल सिद्व हो जाए तो !!! यदि उनके दावे झूठे सिद्व हों तो !!! तो भैया मुझसे क्‍या पूछते हो ? फिर तो ऐसे लोगों का एक ही हल है, किसी बाबा से सलवार ले कर इन्‍हें पहनाओ और फिर उनके हवाले कर दो, जिन्‍होंने पेड़ों में बॉंधकर अनेक दुष्‍टात्‍माओं की शराब की लत छुड़वाई है ........वे अवश्‍य ही इस दुष्‍ट की भी रोग-व्‍याधि दूर करेंगे और लोगों को ठगने की उसकी लत छुड़वा सकेंगे ...... और यदि यह उपाय भी कारगर न सिद्व हो तो इन्‍हें उसी जनता के हवाले कर दो जिसने आज से पहले भी अनेक न्‍याय बिना न्‍यायपालिका के हस्‍तक्षेप के कर डाले हैं .....


© मनोज

20 comments:

  1. kya bachpana karte hai aap bhee, kam se kam aap se to is bachpane ki ummid nahe thee

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    1. आपका मेरे ब्‍लाग पर आने के लिए धन्‍यवाद


      मित्र कृपया दिल को निकाल कर मेज पर रख दें और सिर्फ दिमाग से पुनः पढ़े, आपको बचपना नहीं बल्कि परिवक्‍वता नजर आयेगी

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  2. बढ़िया है मगर सलवारी बाबा और ठण्डी बाबा के पास भेजोगे तो होगा कुछ नहीं एक और UPA बन जायेगा :):)

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    1. सारी मुसीबतें एक जगह ही रहें तो भी बुरा नहीं ,,,, वैसे भंडाफोड़ के बाद जनता के हवाले करने का सुझाव दिया है मैंने

      "और यदि यह उपाय भी कारगर न सिद्व हो तो इन्‍हें उसी जनता के हवाले कर दो जिसने आज से पहले भी अनेक न्‍याय बिना न्‍यायपालिका के हस्‍तक्षेप के कर डाले हैं"

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  3. ये और इनके जैसे अन्य बाबा सूचना के माध्यम से सम्मोहन / भ्रम फ़ैलाने के अचूक बाण के राज जान गये हैं। लेकिन निर्मल बाबा के कामकाज का तरीका वाटर प्रूफ़ है उसको कोई सजा नही हो सकती।

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    1. इन बाबा का तरीका तो और भी पिलपिला है, इन्‍हें सबके सामने अपनी थर्ड आई के प्रमाण देने को कहा जा सकता है, ऐसा न कर पाने की दशा में स्‍वतः ही भंडाफोड़ ,,, जैसा मैंने लिखा भी है

      "उन्‍हें किसी घर में लाया जाए और पूछा जाये कि बाबा अब बताइये कि घर के फ्रीज में कौन सी शब्‍जी पड़ी है ? अथवा ये कि बाबा जरा बताइये तो मैंने किस रंग की चड्ढी पहनी हुई है ?"

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  4. ye baba aajkal se nahi sadiyon se hain aur logo ko thag bhi rahen hai..... ek sadhu ne sita ko thaga tha...
    par tab bhi aaj ke jaise babao ko bhagvaan ka darja nahi diya jata tha par ab saare baba bhagvaan banne ki koshish karte fir rahe hai...........

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    1. आज बाबा विज्ञापन के जरिए बनते हैं दीपांशु बाबू ,,, वैसे ये मीडिया युग है जिसे जब चाहे चढ़ा दे और जब चाहे उसका सिंहासन खींच ले ,,,, कहीं न कहीं मीडिया के अतिवाद को भी नियंत्रित किए जाने की आवश्‍यक्‍ता है

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  5. शास्‍त्री जी,

    सादर धन्‍यवाद

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  6. धर्म पर जब तक अन्धविश्वास हावी रहेगा तब तक तीसरा आँख की संहारक प्रवृत्ति भी असर दिखाती रहेगी....ये हम मूढ़ बुद्धियों की मूर्खता ही है की सर्वशक्तिमान शक्ति पर विश्वास भी किसी ठग के माध्यम से दिखाते हैं...अगर वास्तव में हम इश्वर की कृपा को श्रद्धा से पाना चाहते हैं..तो उसमे किसी लोभी बिचौलिये का क्या काम...ये बात हम जब तक नही समझेंगे...यु ही ठगे जाएँगे ... इस लेख में बहुत सार्थक विचार रखे आपने ,साधुवाद

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    1. धन्‍यवाद मधुलिका जी,

      वास्‍तव में यह विडंबना ही है कि आये दिन तमाम बाबाओं के चरित्र और चेहरे सामने आने के बावजूद हम बिना सोचे समझे किसी का भी अनुगमन करने लगते हैं, मेरी अपनी समझ से हिन्‍दु धर्म के 33 करोड़ देवी देवता क्‍या कम पड़ गये जो हमें इन जीवित देवों की आवश्‍यक्‍ता है, आपने सत्‍य ही कहा भक्‍त और भगवान के बीच बिचौलियों का क्‍या कार्य, उन्‍हें कृपा करनी होगी तो स्‍वतः ही कर देंगे, उन्‍हें किसी बिचौलिये अथवा दलाल की अनुशंसा की आवश्‍यक्‍ता नहीं पड़ेगी

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  7. अफ़सोस तो तब होता है जब पढ़े लिखे लोग भी इन चक्करों में पड़ जाते है| गरीब अपनी गरीबी दूर करने के लिए २ घंटे अतिरिक्त म्हणत करने कि बजाय मंदिर में १० रुपैये का प्रसाद चढाना पसंद करता है...

    बात बहुत सरल लगी पर लोगो को सरल बाते कहा समझ में आती है| बेहतरीन...

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    1. धन्‍यवाद आनन्‍द भाई,


      आपने अत्‍यन्‍त सरल शब्‍दों में यथार्थ का चित्रण कर दिया

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  8. चलिए आपने अपरोक्ष रूप से जो कुछ लिखा पढ़ कर आत्मा शांत हो गयी. कल ही मेरे मित्र अरुण कुमार झा ने बताया कि उन्होंने अपनी पत्रिका "दृष्टिपात " पर सम्पादकीय में कुछ लिखा तो उन्हें कोसने और गालियों से नवाजा जाने लगा लिहाजा उन्होंने उसको हटा दिया.
    ये तीसरी आँख कुछ भी करे और बताये हम खुद कैसे पढ़े लिखे हें कि उन लोगों के चक्कर में आकर अपना ही विवेक खो देते हें. वैसे तो इनके बारे जानने का समय ही नहीं होता है लेकिन एक दिन एक परिचित के घर इनके बारे में पता चला तो फिर धीरे से पता चला कि सिर्फ काला पर्स जेब में रखने की सलाह दी जा रही है और वह भी जितना मंहगा होगा उतना ही अच्छा लिहाजा बाज़ार में काले पर्स का टोटा हो गया. ( पर्स बनाने वाली फार्म की मार्केटिंग तो नहीं है.) अगर प्रयोग ही करें तो महँगी वाली लिपस्टिक प्रयोग करें. अरे आज के दौर में महिलाएं घर चलाने के लिए तो रो रही हें फिर ये महँगी वाली लिपस्टिक कहाँ से लायें? अपनी आमदनी का दशांश उनके अकाउंट में डाल दें बड़ा भला होगा. समागम के नाम पर ड्राफ्ट और नकद पैसे भी भेजने की व्यवस्था है. धन संग्रह का इससे अच्छा और कोई भी जरिया नहीं होगा.
    अभी तक तो संत समागम का कोई पैसा नहीं लगता था , मैंने भी अपने शहर में देखा है कि संत आये खूब भीड़ जमा हुई और सब चले गए प्रवचन सुना और घर वापस. . ये अनोखा समागम लोगों की जेब ढीली करने के लिए हो रहा है और फिर क्यों न हो? जब हम ही अपने विवेक को त्याग कर अपने ही तरह से बने इंसान का अन्धानुकरण करने को तैयार है.
    कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है, सिर्फ अपनी आत्मा की आवाज सुनकर सत्कर्म करिए , वह ईश्वर जो हर इंसान में बसा है खुद ही आपको सरर्थ्ता देगा.

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    1. रेखा जी सत्‍य तो यह है कि लोग समस्‍याओं में इतने घिर चुके हैं कि पढ़े लिखे होने के बावजूद अपनी आंखो से अंधविश्‍वास का पर्दा हटा नहीं पाते, हम रोज अनेकानेक पाखंडियों को गलत आचरण करते और पकड़े जाते देखते हैं, परन्‍तु आश्‍चर्य लोगों पर फिर भी कोई असर नहीं होता, अतः आवश्‍यक यह है कि इस प्रकार के ढोंगियों का समय रहते पर्दाफाश हो, और उन्‍हें उनकी सही जगह पर पहुंचाया जाए, सरकार को भी इस दिशा में समय रहते पहल करनी चाहिए, यदि प्रजा किसी प्रकार के भ्रमजाल में फंस रही है तो शासक का भी धर्म बनता है कि वह उन्‍हे उससे मुक्‍त कराये, न कि यह कि वह मूक दर्शक बन आनन्‍द ले, अन्‍त में इतना ही कहूंगा

      मित्रों इस संसार में, है कष्टों का वास ....
      विवश प्रजा को चाहिए, सुख का कुछ आभास...
      सुख का कुछ आभास, उसी का लाभ उठाते..
      धर कर बाबा वेश, लुटेरे सम्मुख आते....
      कह मनोज जब न मिले, कष्टों से हमें चैन...
      तब तक ढोंगी ठगेंगे, हम सबको दिन रैन..... (मनोज)

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  9. ये भैया मनोज शिव का तीसरा नेत्र है इसे ड्रेगन को ठिकाने लगाने के लिए लो .वह बड़ा चिल्ल पौन मचाये रहता है अपना काग भगोड़ा अरुणांचल क्यों गया यहाँ क्यों गया वहां गया .ये त्रिनेत्री बाबा हैं इनके प्रकोप से बचके रहियो भैया .ममता से सीधा संपर्क है इनका .आलोचना करने वाले को ठिकाने लगा सकतें हैं ये लोग .

    बढ़िया प्रस्तुति ज़नाब की .ये चमत्कार दिखाने वाले तब भाग खड़े होतें हैं जब रेशनलिस्ट सोशायती इन्हें चुनौती देते हुए कहती है -आओ और अपने चमत्कार दिखाओ .भभूत से चम्मच निकालो .

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  10. सूरज जगमग हो सदा, कभी न हौवे अस्त।
    बढ़िया यह व्यापार है, बाबा बन हो मस्त॥

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  11. काश सब यह बातें समझ पाते तो ऐसे बाबाओं का आस्तित्व ही नहीं होता.

    सुंदर आलेख.

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  12. India !!! Super Market of Faith.
    Koi Dukan to lagaye. Customers r waitng.
    Ati Sundar.

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