Thursday, 26 April 2012

तो क्‍या सचिन कांग्रेसी हो गये ?


खुश तो बहुत होगे तुम आंय, अरे भई तुम्हारे भगवान उच्च सदन के सदस्य जो बन गये, राष्ट्रपति ने उन्हें राज्‍य सभा के लिए मनोनीत जो कर लिया है, अब आप पूछेंगे कि मैंने ऐसा क्‍यों पूछा ? क्या मैं खुश नहीं हूं ? अरे भाई मैं खुश होने वाला कौन होता है, भई जब तमाम लेखक, खिलाड़ी, म्‍यूजीशियन, चित्रकार, पत्रकार और फिल्‍मकार राज्‍य सभा जा सकते हैं, तो भला सचिन क्‍यों नहीं, जरूर जरूर, जाना ही चाहिए,

परन्‍तु मेरे मन में कुछ प्रश्‍न अनायास ही उठते हैं, मान लीजिए संसद में किसी महत्‍वपूर्ण बिल पर चर्चा हो रही है, जिसमें वोटिंग के जरिए बिल के भविष्‍य का फैसला होना हो, एक एक वोट स्‍लाग ओवर के एक एक रन की तरह महत्‍वपूर्ण हो, और दूसरी ओर उसी दौरान उनका दक्षिण अफ्रीका में कोई महत्‍वपूर्ण मैच चल रहा हो,  तो ऐसी दशा में क्‍या सचिन दोनों जगहों पर अपनी भूमिका के साथ न्‍याय कर सकेंगे ??? शायद नहीं !!! तो फिर कोई भी कारण क्‍यों न हो, ऐसी जिम्‍मेदारी ओढ़ने का लाभ ही क्‍या जिसका निर्वहन वह न कर सकें ? अब देश्‍ा में योग्‍य लोगों का अकाल तो पड़ नहीं गया, कि तुरत फुरत से सचिन को राज्‍य सभा का सदस्‍य बनाये बगैर काम नहीं चलता, अरे भई उनके सन्‍यास लेने तक की प्रतीक्षा भी कर सकते थे, और यदि 100 शतक व्‍यक्ति को इतनी ही अधिक राजनीतिक योग्‍यता प्रदान करता है, तो फिर उनका नाम राष्‍ट्रपति पद के लिए आगे बढाना चाहिए था, मुझे यकीन है कि इस मसले पर आम-सहमति बनाने में राजनीतिक दलों को तनिक भी माथापच्‍ची नहीं करनी पड़ती,


परन्‍तु फिर आप प्रश्‍न करेंगे कि क्‍या सचिन को यह सम्‍मान स्‍वीकार नहीं करना चाहिए ? यदि राष्‍ट्रपति उन्‍हें राज्‍यसभा के लिए नामित करें तो उन्‍हें इन्‍कार कर देना चाहिए ? नहीं भाई नहीं, मेरे लिहाज से पहले तो राष्‍ट्रपति को स्‍वयं ही उन्‍हें राजनीतिक दलदल में आमंत्रित नहीं करना चाहिए था, परन्‍तु यदि कर भी लिया था, तो सचिन के सम्‍मुख दो विकल्‍प थे, या तो वह विनम्रतापूर्वक इस हेतु मना कर देते, अथवा वह क्रिकेट से सन्‍यास की घोषणा कर देते, ताकि वह अपनी किसी भी एक भूमिका के साथ सम्‍पूर्ण न्‍याय कर सकते,

परन्‍तु नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे, क्‍योंकि उन्‍हें पता है कि देर सवेर उन्‍हें सन्‍यास तो लेना ही है, और कोई भी बुद्विमान व्‍यक्ति वर्तमान में रहते हुए ही अपने भविष्‍य के सुगम मार्ग सुनिश्चित कर लेता है, सो सचिन ने भी ऐसा ही किया, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपनी तरफ से एक मास्‍टर स्‍ट्रोक खेला है, जिस देश में मरी हुई लाशों का भी उपयोग वोट बटोरने के लिए किया जाता रहा हो, जिस देश में जाति, मजहब, बिरादरी के नाम पर वोट पड़ने आम हों, जिस देश में धर्म वोट हासिल करने का जरिया बन गया हो, वहां क्रिकेट रूपी धर्म और उसके भगवान का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया जाएगा, भला ये कैसे सोच लिया था आपने !!!

आपको तो पता ही है कि नामित होने के बाद सचिन किसी भी पार्टी की सदस्‍यता लेने हेतु स्‍वतंत्र हैं, तो आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए यदि वह कुछ दिन बाद कांग्रेस की सदस्‍यता ग्रहण कर लें और 2014 के चुनावों में कांग्रेस का प्रचार करते नजर आंयें, तो प्रश्‍न उठता है कि क्‍या सचिन कांग्रेसी हो गये, क्‍या उन्‍होंने कांग्रेस अध्‍यक्षा की अधीनता स्‍वीकार कर ली, क्‍या क्रिकेट के प्रति अपने समर्पण को उन्‍होंने अपनी राजनीतिक महात्‍वाकांक्षा के साथ विभाजित कर लिया, इन सभी प्रश्‍नों के उत्‍तर भविष्‍य के गर्भ में छुपे हैं, तो मित्रों एक नए अध्‍याय की प्रतीक्षा कीजिए, राजनीति के पटल पर एक नई पारी शुरू हो चुकी है, परन्‍तु इस बार पिच बदली हुई है और बल्‍लेबाज इस पर पर खेलने के अभ्‍यस्‍त नहीं, फिर क्‍या रिकार्डधारी इस बदली हुई परिस्थिति में भी शतक लगा सकेंगे, यकीन करने का दिल तो नहीं करता पर देखते जाइये, 


मनोज कुमार श्रीवास्तव  

3 comments:

  1. जिंदगी मिलेगी ना दोबारा फिल्म का शीर्षक है ,किन्तु कटु सत्य आज के कलयुगी भगवान अपने स्वार्थ के लिए अपने भक्तों के साथ छलावा भी करने से नहीं चुकते है ! ताज़ा उदाहरण आपके समक्ष पेश है ! हर कोई सत्ता का लोभी है ! क्रिकेट से धन मिलता है ! और सत्ता से धन और सत्ता सुख दोनों और फ्री में मिले तो कोई "ये ले वो ना ले" ऐसा हो सकता है क्या?

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  2. Sachin is undoubtedly loved & respected as a person & world class cricket players. He is still in the team. Putting a present team member in Rajya Sabha does not seem justified as he spends over 200 days on play ground playing cricket.

    Will he have time to attend Rajya Sabha session where future of millions of Indian is decided by taking futuristic policy decision ?
    Can he contribute with his cricket experience in policy formation?
    With dues respect to Sachin, I feel it is premature for Govt to nominate him when he is active sports person of national team that too of crazy sports liked by millions. He should not accept this responsibility at this point of time or atleast he leaves the game.
    Parbodh C Sood

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  3. हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है ... इसलिए चुप रहना ही अच्छा है ,, जितना लिखा है स्वाभाविक ही है । असहमति का कोई सवाल नहीं । भविष्य बतायेगा कि अपनी उपलब्धियों पर कितने कीचड़ मलते हैं । पिछले अनुभव तो यही बताते है:):)

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