Monday, 23 April 2012

बाबा तुम ही कहो – ठग हो या देशद्रोही


भारत देश विविधताओ से भरा देश हैं, इस पुण्‍य पावन धरा पर अनेक महापुरूषों, साधू-सन्‍तों ने जन्‍म लिया है, वेद, शास्‍त्र, पुराण, उपनिषद, ये सभी उनकी गौरवशाली गाथाओं से भरे पड़े हैं, और यह क्रम रूका नहीं बल्कि जारी है, मित्रों मुझे लगता है कि हम सौभाग्‍यशाली हैं कि हम उस युग में जन्‍में जो अनेक महान आत्‍माओं का भी कर्मकाल रहा है, मैं किसी एक का नाम तो नहीं लूंगा परन्‍तु उनमें से कुछ तो निश्चित ही नमन योग्‍य हैं,

परन्‍तु दूसरी ओर, आजकल, एक कथित त्रिकालदर्शी महापुरूष लोगों को दर्शन दे कृपा बरसा रहे हैं, मित्रों ये साहब भी धन्‍य हैं, इन्‍होंने हमारे जीवन काल में धरती पर अवतरित हो हमें कृतार्थ अथवा लज्जित किया है, यह निर्धारण किया जाना अभी शेष है, कहते हैं कि उनके पास वह अलौकिक नेत्र है जो कि महादेव के पास हुआ करती थी, और उसी दिव्‍य नेत्र के कारण अनेकानेक उत्‍सुक-जन, भक्‍त, शंकालु, ईर्ष्‍यालु और झगडालु लोग इस कृपालु की ओर जाने-अनजाने स्‍वतः ही आकृष्‍ट हो रहे हैं,   

यहॉं मेरे मन में छोटी सी बात आती है वह यह कि यदि मुझे यह ज्ञात हो जाए कि कल एक रेल दुर्घटना होने वाली है, जिसमें 100 निर्दोष लोग मर जाएंगे, अथवा यह कि कल किसी असहाय व्‍यक्ति की हत्‍या हो जाएगी और अमुक जगह अमुक तरीके से होगी, तो देश के एक सजग और जिम्‍मेदार नागरिक होने के कारण मुझे क्‍या करना चाहिए ? क्‍या मुझे इस प्रकार की दुर्घटना को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए !!! और यदि मैं ऐसा नहीं करता हूं तो फिर क्‍या यह अपराध नही होगा, क्‍या मेरा जानबूझकर चुप रहना सजा के योग्‍य कार्य नहीं कहा जाएगा ? इससे भी अलग यह कि यदि मौन ही रहना है ऐसी फिर ऐसी अदृश्‍य ऑंख का लाभ ही क्‍या ?? तो इस प्रकार जब राष्‍ट्र के विरूद्व, जन के विरूद्व होने वाले उस अपराध पर भी मैं चुप रहूं जिसका मुझे पूर्वज्ञान हो,  तो मेरी इस चुप्‍पी को क्‍या कहा जाना चाहिए ? क्‍या इसे देशद्रोह की संज्ञा नहीं दी जानी चाहिए !!! इस दशा में भी अदृष्‍य नेत्र से सुसज्जित ये त्रिकालदर्शी महापुरूष यह अवश्‍य ही जान लेते होंगे (जैसा की उनका दावा है) कि भविष्‍य में क्‍या घटित होने वाला है, फिर क्‍या उनका धर्म, उनकी नैतिकता, उनका कर्तव्‍य यह नहीं बनता कि वह राष्‍ट्र को होने वाले अपराधों के बारे में सचेत करें, पूर्व सूचना दें, होने वाले अपराधों को रोकें, और राष्‍ट्रहित में अपना योगदान दें, फिर यदि वे ऐसा नहीं करते, तो उनके मौन को राष्‍ट्रद्रोह क्‍यों नहीं माना जाना चाहिए ?

दूसरी ओर यदि मेरे पास शून्‍य में झांकने जैसी अदृश्‍य शक्ति न हो, परन्‍तु फिर भी मैं यह दावा करूं कि मेरे पास अदृश्‍य अलौकिक शक्तियॉं हैं, इसी दावे के आधार पर लोग मुझे धन दें और उसका मैं स्‍वेच्‍छापूर्वक उपयोग करूं, तो इसे क्‍या कहा जाना चाहिए ? क्‍या आप इसे इसे ठगी नहीं कहेंगे !!!

तो बात स्‍पष्‍ट हुई, उक्‍त अदृश्‍य आंख को या तो ज्ञान है अथवा नहीं, यदि है और वे राष्‍ट्र को भविष्‍य के अपराधों के प्रति सचेत नहीं कर रहे तो उनका मौन राष्ट्रद्रोह होगा, और यदि अदृश्‍य नेत्र नहीं है और फिर भी वह इसका दावा कर लोगों को मूर्ख बना धन संचय करते हैं तो ठगी,

तो अदृश्‍य ऑंख का दावा करने वाले महापुरूष के समक्ष दो ही विकल्‍प मौजूद हैं, या तो वह ठग है या फिर देशद्रोही …….तो क्‍यों न उन्‍हीं से यह सीधा प्रश्‍न किया जाए, बाबा तुम ही कहो ठग हो या देशद्रोही ………..सोचिए तो, बाबा क्‍या जवाब देंगे इसका ? वैसे आप क्‍या सोचते हैं इस बारे में …..



मनोज कुमार श्रीवास्‍तव

2 comments:

  1. आज कल बाज़ार का युग है..हर चीज का निर्माण अनुसंधान सिर्फ व्यापार के ही उद्देश्य से किया जाता है....ये अदृश्य आँख का उद्देश्य नही सिर्फ माया एकत्रण ही रह गया है....ये सतयुग नही ,कलयुग है... ये वो वक़्त नही रहा जब अलौकिक शक्तियों का इस्तेमाल लोक परोपकारी प्रयोजन के लिए होता था ,अब तो शायद महादेव शंकर के तीसरे नेत्र को हम मानव बाज़ार में उपभोग की वास्तु बना कर विक्रय कर देंगे ....
    हम ठग हैं या देशद्रोही ,,
    बस जो भी हैं....
    हैं मानवता के विद्रोही

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  2. यक़ीनन ठगी है.... आमजन सतर्क रहें ...

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