Thursday 8 December 2011

चुप रहने में ही भलाई है....



वो कहें कुछ भी करें, तो व्यक्त अभिव्यक्ति हुई,
हम कहें जो सच, सशक्त अंकुश लगाना चाहिए....

मूढमति को मूढ़ कहना, है बड़ी ये ध्रस्टता,
क्या कहें उनको ये उनसे, पूछ आना चाहिए....

देखने को मूल्य-वृद्धि, अर्थ के मर्मज्ञ हैं,
तब तलक अब अपने मुंह, ताला लगाना चाहिए...

अब विदेशी ही करेंगे, पेट का भी फैसला,
जीना हो तो आपको, मल अपना खाना चाहिए...  

जनता की लूटी कमाई, रक्षकों ने शान से,
नादिरशाही भी हुई, लज्जित लजाना चाहिए....

वे तेरी अस्मत से पर्दा, खींचने को व्यग्र हैं,
कौरवों को मन मुताबिक, इक बहाना चाहिए...

रक्त है सस्ती हुई, अब जिंदगी के मोल से,
मौन रहना राष्ट्रभक्ति, है निभाना चाहिए....


मनोज


Sunday 27 November 2011

सरकार का अनर्थशास्त्र

सरकार का अनर्थकारी अर्थशास्त्र जारी है ...... जारी है मंहगाई बढाने वाली सरकारी नीतियां, और जारी है सरकार का अहंकार....... वह अहंकार जिसके अधीन होकर सरकार को लोगों के कष्ट, उनके दुःख और उनकी पीडाएं न तो समझ आती हैं और न ही दिखाई देती हैं ...... देश में चौतरफा चीज़ों के दाम बढ़ रहे हैं........और यदि सरकार के जिम्मेदार लोगों से पूछो तो वो या तो ये कहते हैं की उनके पास जादुई छड़ी नहीं है ......अथवा ये की लोगो की आमदनी बढ़ रही है....... लिहाजा वे खर्च ज्यादा कर रहे हैं..... हंसी आती है आपको..... मत हंसिये क्योंकि सरकार को यही ज्ञात सच्चाई है......परन्तु सत्य क्या है ?? सत्य यह है की सरकार दिशाहीन हो चुकी है .......और उसकी नीतियाँ विफल........ मंहगाई को रोकने के उसके सभी प्रयास निरर्थक और निष्परिणाम रहे........ क्योंकि संभवतः उसे लगता ही नहीं की मूल्य वृद्धि है भी......और यदि है तो उसे रोका कैसे जाए.......आइये देखते हैं.......



१.  मूल्य वृद्धि को कम करने के नाम पर सरकार रिज़र्व बैंक के माध्यम से आये दिन ब्याज दरें बढ़ा रही है...... दरअसल सरकार की नीति है कि ब्याज दर बढ़ने से, ऋणों पर भी ब्याज दर बढ़ेगी, फलतः लोगों के ऋण की किश्त भी बढ़ जाएगी..... जैसा की मैंने पहले ही कहा की सरकार मानती है की लोगों के पास खर्च करने के लिए अधिक धन है और मंहगाई इसीलिए बढ़ रही है क्योंकि वे अधिक क्रय कर रहे हैं,  मतलब उनके द्वारा वस्तुओं कि मांग अधिक है........... ऋणों की किश्त बढ़ने से उसके पास खर्च करने के लिए धन में कमी आएगी और वह कम खरीदेगा, परिणाम मंहगाई कम होगी....... हंसियेगा मत..... 

२. सरकार ने बचत खातों में भी बैंकों को स्वायतत्ता दी है की वह ब्याज दर स्वतः तय कर सके...... परिणाम यह कि सरकार कि सोच के अनुसार बचत खातों पर भी ब्याज दर बढ़ेगी, और इसके आगे सरकार की सोच है कि लोगों के पास जो अधिक धन है उसे वह खर्च करने की बजाय अधिक ब्याज दर के लालच में बैंकों में रखना अधिक पसंद करेंगे रखेंगे और फिर वस्तुओ की मांग कम होगी......अर्थात मंहगाई घटेगी..... 

३. सरकार ने अभी हाल में खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति दे है .... उनका कहना है की उच्च कोटि के विविध सामान एक ही छत के नीचे कम मूल्य पर उपलब्ध होंगे ...... विदेशी कम्पनियाँ एक निश्चित प्रतिशत कच्चा माल सीधे किसानों से खरीदेंगी...... सरकार के अनुसार इससे किसानो को लाभ पहुंचेगा और उपभोक्ता को भी कम मूल्य पर सामान उपलब्ध हो सकेगा ....

४. सरकार ने पेट्रोल का मूल्य बाजार के अनुसार तय करने की छूट पेट्रोलियम कंपनियों को  दे दी है..... डीजल  और गैस के दाम भी इसी के अनुसार तय करने के छूट देने पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है.... सरकार का कहना है की पेट्रोलियम कंपनियां घाटे में चल रही हैं...... और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे पेट्रोलियम के मूल्य के अनुरूप, मूल्य वृद्धि उनकी मजबूरी....

मित्रों गंभीरता से विचार करे तो सरकार की ये नीतियां देश के लिए अल्पकालिक ही नहीं वरन दीर्घकालिक रूप से भी घातक हैं.....कैसे जरा सोचिये .....

१. जब सरकार ब्याज दर बढ़ाती है तो बैंकों के पास ऋण वितरण योग्य धन में कमी आती है, फलतः ऋणों पर ब्याज दर भी बढ़ जाती है......... छोटे और मध्यम व्यापारी, जोकि बैंकों से ऋण लेकर अपना व्ययसाय चलाते हैं, इस ब्याज वृद्धि को अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं कर सकते ..... वस्तुओं के मूल्य वे तुलनात्मक रूप से बढ़ा नहीं सकते क्योंकि उन्हें बड़ी कंपनियों के साथ भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है...... इसका परिणाम यह होगा कि छोटे, मझौले और कुटीर उद्योग अधिक समय तक खड़े नहीं रह पाएंगे और धीरे धीरे समाप्त हो जायेंगे..... सत्य तो यह है कि सरकार को ब्याज दर बढाने की जगह उसे कम करने की आवश्यकता है ताकि लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण मिल सके, छोटे छोटे उद्योग धंधे पनप सकें और रोजगार के अवसर विकसित हो सकें......  

२. सरकार की नीतियाँ, लोगों के जेब पर प्रहार कर रही हैं....... वे मांग को कम करना चाहते हैं, परन्तु आपूर्ति बढाने की दिशा में कोई भी कदम उठाने में विफल रहे है..... सरकार को ये समझना होगा की जब तक आपूर्ति नहीं बढ़ेगी, मंहगाई किसी भी दशा में कम हो ही नहीं सकती.......... सरकार के पास कोई स्पस्ट और घोषित खाद्य नीति नहीं है....... किसान ऋण जाल में फंसे हुए है और कई तो उसे ना चुका पाने के कारण आत्मघाती कदम तक उठा रहे हैं..... परन्तु सरकार निष्क्रिय है....... अभी तक सरकार किसानो की मदद के नाम पर समर्थन मूल्य बढ़ा दिया करती थी..... परन्तु खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश और सीधे किसानो से खरीद सम्बन्धी प्रस्ताव, सरकार द्वारा समर्थन मूल्य प्रणाली समाप्त करने की दिशा में ही उठाया गया सोचा समझा कदम है...... सरकार को धरा की उर्वरा शक्ति विकसित करने, उत्तम बीजों हेतु अनुसंधान करने तथा सिंचाई सुविधा हेतु नदियों को जोड़ने जैसी दीर्घकालिक योजनाओं को अपनाने की आवश्यकता है....

३. खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति से निश्चित रूप से एक छत के नीचे समस्त वस्तुए उपलब्ध हो सकेंगी, मूल्य भी अपेक्षाकृत कम होने की सम्भावना है..... परन्तु बदले में स्थानीय व्यवसाय को गहरा धक्का पहुंचेगा....... उनका व्यापार समाप्त होना तय है .......और वे छोटे व्यापारी जो अभी अपने व्यवसाय के मालिक हुआ करते हैं...... कुछ काल उपरांत इन विदेशी कंपनियों हेतु काम करते नजर आयेंगे....... ये खुदरा व्यावसायिक कंपनियां अंतरास्ट्रीय स्तर पर कार्य करती हैं, वे कच्चा माल वहां से उठाती हैं, जहा वो सस्ता हो और अपने कारखाने वहां लगाती हैं जहाँ उन्हें टैक्स इत्यादि में राहत हो अर्थात वो सुगम हो...... फलतः पुनः वही प्रणाली स्थापित हो जायेगी कि विदेशी कंपनियां कच्चा माल हिन्दुस्तान से लेंगी......उन्हें प्रोसेस बाहर करेंगी और फिर अपना उत्पाद ऊँचे दाम पर पुनः हमारे देश में बेचने का काम करेंगी...... क्या हम इसके लिए तैयार हैं...... शायद नहीं.....क्या यह गुलामी कि दिशा में उठाया गया कदम नहीं लगता ? .......शायद हाँ ..

४. सरकार पेट्रोलियम कंपनियों के घाटे के नाम पर डीजल और रसोई गैस के मूल्य को भी विनियंत्रित करना चाह रही है....... एक तो कोई भी पेट्रोलियम कंपनी घाटे में चल नहीं रही......सभी अच्छा खासा मुनाफा कमा रही हैं..... दूसरे, कहने की आवश्यकता नहीं की पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने से चहुँ ओर मंहगाई स्वतः ही बढती है........ सभी उत्पादों, वस्तुओं और कच्चे माल की ढुलाई लागत बढ़ जाती, यातायात मंहगा हो जाता है.......जो अंततोगत्वा मंहगाई बढाने का ही काम करता है.........सरकार को चाहिए की पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य को सरकारी नियंत्रण में रखे....... यदि सरकार सब्सिडी दे भी रही है तो यह कोई एहसान नहीं...... टैक्स द्वारा अर्जित धन से ही सब्सिडी दिया जा रहा है...... फिर इतनी हाय तोबा क्यों....... 

५. सरकार का ना तो भ्रस्टाचार पर नियंत्रण है और ना ही जमाखोरी और कालाबाजारी जैसे रोग पर...... भ्रस्टाचार एक कोढ़ कि तरह है, जो देश को किसी दीमक कि तरह चट कर जाने पर आमादा है ......क्योंकि टैक्स द्वारा अर्जित धन का पर्याप्त दुरूपयोग हो रहा है......वह धन जोकि देश के ढांचागत विकास, गरीबो के उत्त्थान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों और गरीबों को सब्सिडी देने में किया जा सकता था, वह विदेशी बैंकों कि शोभा बढ़ा रहा है..........अतः एक ओर जहाँ खासतौर से उच्च स्तर पर भ्रस्टाचार रोकने के लिए कठोर कदम उठाये जाने कि आवश्यकता है ........ तो दूसरी ओर उत्पादन बढाने हेतु विशेष प्रयास किये जाने की भी... क्योंकि यदि आपूर्ति पर्याप्त होगी तो जमाखोरी और कालाबाजारी जैसी बुराइयां अपने आप दूर हो जाएँगी.....और मंहगाई कम हो सकेगी.....  

परन्तु सरकार को उपर्युक्त बातों से कोई सरोकार नहीं....... उसे तो वही करना है जो उसका मन करेगा....... ३२ रूपये और २६ रूपये गरीबी का मापदंड रखने वाली सरकार अभी भी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में ८१ देशों में ६७ वे नंबर पर है......... तो क्या हुआ अगर पाकिस्तान, नेपाल, सूडान और रवांडा जैसे देशों में खाद्य आपूर्ति अथवा यू कहें की भूख और भूखों की स्थिति हमारे देश से बेहतर  है.......परन्तु सरकार को चलाने वाले तथाकथित अर्थशास्त्री अपनी नीतियों की परख करते रहेंगे...... वे इतनी उंचाई पर पहुँच चुके हैं, जहाँ से ना तो जमीन नजर आती है और न ही जमीन पर खड़ा गरीब, फिर उसकी चिंता वे करेंगे, इसकी अपेक्षा ही मूढ़ता है....... परन्तु वे भूल चुके हैं........की व्यक्ति जितनी ऊंचाई पर होता है........गिरने पर उसे क्षति पहुँचने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है.......कुछ आवाजें तो सुनाई देनी शुरू हो गई हैं.......परन्तु ना जाने कितने अनुगूँज अभी भविष्य हेतु करवटे ले रहे हैं..........चेत जाइये ......समय थोड़ा ही बचा है....


मनोज     
                

Tuesday 22 November 2011

डर लगता है.



जो नर खुद को कहते ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है !


धर्म आवरण ओढ़ के बैठे, ना जाने क्या क्या कर जाएँ ?
दुःख सागर में डूबी दुनिया, सुख खातिर सबको भरमायें !!
अंध आस की आँख पे पट्टी
मधुरिम उनका छल लगता है.
जो नर खुद को कहते हैं ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है...



उनके कितने ही अनुयायी, हाथ जोड़ के खड़े हैं रहते !!
ना जाने किस खोज में हैं सब, धारा एक में सभी तो बहते !!
वो शास्वत कहते  हैं खुद को,
हमें बेगाना घर लगता है :)
जो नर खुद को कहते हैं ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है....


मुझसे मेरे मित्र ने कहा, दुःख आएगा तब जानोगे !!
धरती के इन सब प्रभुओं को, उस दिन ही तुम मानोगे !!
मैंने कहा मुझे ये जीवन,
दुःख का ही तो सफ़र लगता है :)
जो नर खुद को कहते हैं ईश्वर, उनसे मुझको डर लगता है...


मनोज 

Sunday 30 October 2011

सब बढ़िया है....


आधुनिकता के दौर में,
टूटा हर सुख सपना,
हुए स्वार्थी रिश्ते नाते,
मीत बचा न कोई अपना,
खींच खांच के चलती गाड़ी लढ़िया है...
सब बढ़िया है......

टूटी फूटी खटिया पर, 
बैठा अध्यापक,
जनगणना, मतगणना का
हर काम है व्यापक,
बच्चों हित ना बोर्ड चटाई खड़िया है... 
सब बढ़िया है...

भई दूर रोटी चटनी,
सत्तू पिआज मरचा चोखा,
निर्धन की टूटती साँसों से,
वे ढूँढते वोटों का मौका,
टूट रही सत्ता समाज की कड़ियाँ हैं...
सब बढ़िया है.....

देखी नार टपकती लार, 
ढूंढ रहे सज्जन ये प्यार,
घर में बीवी बच्चों को छोड़
है बाहर में मुंह रहे मार,
टूटे दांत, पोंपला चेहरा पेट हो गया हड़िया है .
सब बढ़िया है....






गाँव छोड़ छोड़ा सुकून,
सब भागम-भाग का रेला है,
उलझा मन ऊँचे भवन देख,
हर काम में यहाँ झमेला है,
मन को तो देती सुकून मेरे गाँव की टूटी माड़िया है..
सब बढ़िया है...




मनोज 

Wednesday 12 October 2011

वाह री अभिव्यक्ति !!!

आज घर आया तो पता चला कि भाई प्रशांत भूषण पिट गए.....कारण जाना तो पता चला कि साहेब चाहते थे कि कश्मीर में जनमत संग्रह करवा लिया जाए....... और उसके जरिये कश्मीर के भविष्य का फैसला हो जाए....... वाह वाह क्या बात है........ लेकिन इसमें नई बात क्या है ??? संयुक्त रास्ट्र संघ ने तो १९४८ में हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा मामला ले जाने पर यही प्रस्ताव पारित किया है........  लेकिन हमने नहीं माना........ तब भी ...... और उसके बाद आज तक ........फिर आज भला उस प्रसंग को पुनः कुरेदने क़ी आवश्यकता ??? ...... शायद नहीं थी..... 


परन्तु कोई बात नहीं......... प्रशांत भूषण ठहरे बड़े वकील हैं ...... प्रसिद्धी का नवीनतम   भूत उनके सर पर सवार है.......तभी तो इस बात का भी ख्याल नहीं रखा......कि देश क़ी संसद अनेकानेक बार ये प्रस्ताव संसद में पारित कर चुकी है कि ......कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है......... और संसद तो देश का प्रतिनिधित्व करती है.......  और उसमे पारित प्रस्ताव स्वतः कानून है.......... फिर वकील साहेब ने कानून क़ी अवहेलना क्यों क़ी ??? ...... इसमें दो राय नहीं .......कि उन्हें भली भांति ज्ञात था कि उनकी बात का समर्थन तो कम से कम देश में नहीं होगा....... और विरोध होना स्वाभाविक है ......... और फिर इसके जरिये चर्चा........ और चर्चा है तो प्रसिद्धी में चार चाँद....... वाह भाई वाह ...... बस सुरक्षा व्यवस्था करना  भूल गए आप अपनी ........ खैर कोई बात नहीं....... आइन्दा ख्याल रखियेगा......... वैसे आप तो वकील हैं.........अपना मुकदमा अच्छे से रख कर उन युवकों को काफी समय के लिए अन्दर तो करवा ही दीजियेगा ...... बढ़िया है ....... 


अब आते है उनकी बात के प्रभाव पर ....... चलिए मान लिया कश्मीर में जनमत संग्रह करवा दिया जाए ...... सर्वविदित है, की उस दशा में इस पर दो ही फैसले आ सकते हैं...... लेकिन फिर उसके बाद तेलंगाना राज्य बनाने के लिए, गोरखालैंड बनाने के लिए, नक्सलवाद को मान्यता देने के लिए, रामजन्म भूमि पर मंदिर बनाने के लिए और  यही क्यों हर विवादित मामले को सुलझाने के लिए जनमत संग्रह क़ी मांग कैसे गलत होगी ? ..........यही क्यों इतिहास को पुनर्जीवित कीजिये....... हैदराबाद और जूनागढ़ भी भारत में स्वेच्छा से सम्मिलित नहीं हुए थे.......वहां के लोगों को न्याय दिलाने के लिए वहां भी करवा लीजिये जनमत संग्रह .......यही चाहते हैं ना आप......

परन्तु मित्रों बात इतनी सी नहीं है........... आज कुछ लोगों ने अभिव्यक्ति के नाम पर देश को गाली देने क़ी परिपाटी शुरू कर दी है....... वो कुछ भी करें........ उसका विरोध नहीं होना चाहिए ..........उसका विरोध करने वाले उनकी आजादी के दुश्मन हैं ...... अभिव्यक्ति का सम्मान न करने वाले लोग हैं .........उन्हें शांति पूर्ण तरीके से अपनी बात भी रखनी चाहिए थी ........ ऐसे बयान तुरंत आने लगेंगे....... 

लेकिन प्रश्न है ये अधिक आजाद लोग ऐसी बाते करते ही क्यों हैं जो दूसरो क़ी भावनाओं को ठेस पहुचाये ?........ उन्हें क्यों नहीं लगता क़ी देश को अखंड मानने वाले लोग, देश के बिखराव क़ी बात सुनके बिखर जायेंगे....... उन्हें गुस्सा आएगा और उससे भी अधिक उन्हें दुःख  होगा ...... ऐसे बहुत सारे लोग हैं  .... घर के भीतर, बाज़ार में, सड़क पर हर कहीं .........जिनके ह्रदय में असहनीय पीड़ा होती है ऐसी बातो को सुनने से.........परन्तु वो चाह के भी उसका विरोध नहीं कर सकते ........ वे विवश होते हैं ......... उतने ही जितने किसी चौराहे पर लगे अश्लील पोस्टर को बर्दाश्त लिए.........क्या उनकी मौन अभिव्यक्ति कोई  कभी नहीं सुनेगा........ लेकिन आखिर कब तक....... एक नग्न चित्र बनाने वाले को अपने देश क़ी मिटटी तक नसीब नहीं हुई........ लोगों को समझाना चाहिए कि वे ऐसा कुछ ना करे या कहें जो उनके लिए घातक साबित हो ........और देश के लिए लज्जाजनक .....

मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी..... बात सन ४७ कि थी, उसमे एक व्यक्ति अपने हाथ में डंडा लेकर चारो और लहरा रहा था..... जो आने जाने वाले लोगों को लग रही थी ........और वो इधर उधर भाग रहे थे........ एक व्यक्ति जो काफी देर से उस घटनाक्रम को देख रहा था उसके पास आया और उससे पूछा .....

"भाई साहेब आप इस तरह से डंडा क्यों घुमा रहे हैं देख नहीं रहे इससे लोग परेशान हो रहे है"....... 
"आपको पता नहीं कि देश आजाद हो गया है ..........और मैं भी......मैं तो मात्र अपनी ख़ुशी का इज़हार कर रहा हूँ." वह युवक चहकते हुए बोला.......
"सत्य है, देश आजाद है और आप भी......परन्तु आपकी आजादी वहीँ तक है जहाँ तक आपकी नाक........उसके आगे तो दूसरे कि आजादी शुरू हो जाती है." कहते हुए उस व्यक्ति ने उसके हाथ के डंडे को लेकर तोड़ दिया......

कथन का अर्थ सरल है ...........इस बात पर भी चिंतन होना चाहिए कि वकील साहेब ने अपनी आजादी का जश्न मनाते हुए कहीं दूसरे कि आजादी भंग तो नहीं की.........



मनोज

Sunday 9 October 2011

ताजा समाचार !!!


मत दें वोट कांग्रेस को ........... अन्ना का आह्वान...
नहीं ये सच्ची पार्टी ............... .उन्हें मिला है ज्ञान...
उन्हें मिला है ज्ञान..................प्रचार उनके विरुद्ध है....
बार बार खाकर धोखा..............ये वृद्ध क्रुद्ध है......
तुलसी ने सच कहा है..............भय बिनु होय ना प्रीत...
भ्रस्टाचार के शत्रु से.................अब भय से होगी जीत......





  घर में कलह अशांति................लेती है सुख छीन...
  नारी पर आरोप ये....................लगते हैं संगीन...
  लगते हैं संगीन.........................यही घर तोड़ने वाली..
  जर जमीन के संग....................जंग को जन्मने वाली...
  कह मनोज सच जान लो...........मित्रों खोल के कान...
  शांति की खातिर तीन नारियों.... को नोबेल सम्मान...




धर्म नाम ले गुट बना.............रहे इक दूजे को चढ़ाय...
जाति पाति के नाम पर.........झंडा लियो उठाय.....
झंडा लियो उठाय .................नाम को हिन्दुस्तानी......
पर कर्मों से निंदाजनक.........निपट अज्ञानी......
कह मनोज मानव यही..........मानवता का काल.....
इक दूजे को फांसते...............खुद फंसता है जाल......



           
           सुना है अन्ना राष्ट्रपति.............हों ऐसा प्रस्ताव......
           कहती है कांग्रेस कि.................इसीलिए है ताव.....
           इसीलिए है ताव......................विरोध भी कांग्रेस का...
           सत्ता का है जाल......................नहीं बस ख्याल देश का...
           कह मनोज पद का नहीं...........है अन्ना को रोग.....
           बनते हैं तो राष्ट्रहित ................का उत्तम संयोग....

                                                                                मनोज 



Thursday 29 September 2011

छोटी छोटी बातें !!





बैठे बिठाये हो रहा .............जन गण का अपमान.......
चिंतित मन कैसे बचे..........अब सबका सम्मान.....
अब सबका सम्मान...........बड़ा मुश्किल सच कहना.....
चाबुक चलता चपल............चाशनी जब ना पहना....
कह मनोज आलोचना.........का न पचना आसान.....
लुटता है लुटता रहे.............अभिव्यक्ति सम्मान.......






                    रूपये बत्तीस बहुत हैं............कहती ये सरकार......
                    अर्थशास्त्री राज में...............ज्यादा है धिक्कार ......
                    ज्यादा है धिक्कार .............गाँव में छब्बीस ज्यादा...
                    मित्रों मत तुम भूलना.........अब अपनी मर्यादा.....
                    कह मनोज सरकार का ......नहीं है कोई दोष....
                    सत्ता मद में गौड़ है...............जनता का आक्रोश........







बैठे दो मंत्री मिले.................धुले सभी के कलंक.....
दोनों ने मुस्कान से ............जनता को दिए डंक....
जनता को दिए डंक......... ..नकारे सभी घोटाले....
कहा कि बस थे ...................नीति पुराने हमने डाले...
कह मनोज कलि काल में.....नैतिकता अभिशाप....
रूढ़ीवादी लोग ही..................करते इसका जाप....




मनोज  

Wednesday 21 September 2011

वाह ! हम अमीर हो गए !!


दोस्तों जीवन के कई दशक बीत जाने के बाद आज जाकर ज्ञान की प्राप्ति हुई.........आज जाके पता चला की हम तो मूर्ख हैं.......महामूर्ख !!! ....... मैं ही क्यों आप  भी मूर्ख हैं........हम सभी मूर्ख हैं........मूर्ख होने के साथ साथ  फिजूलखर्च भी........अरे जब हमारा गुजारा मात्र ३२ रूपये में हो सकता है......फिर हम इससे अधिक क्यों खर्च करते हैं..........हम क्यों अनाप शनाप खर्च करते जाते हैं.......और इसके बाद भी गरीबी का रोना रोते रहते हैं........कम वेतन का रोना रोते हैं.......सरकार को कोसते हैं.........पेट्रोल, डीज़ल, फल, शब्जियों के बढ़ते दामों  को कोसते हैं........परन्तु आज सरकार ने हमें बता ही दिया......कि कितने पैसो की जरुरत होती है........जीवन यापन के लिए.......और वह सच यह है कि ३२ रूपये शहर में और २६ रूपये गाँव में पर्याप्त होते हैं ........ 


आज सरकार ने बताया की शहरों में यदि किसी की खर्च करने की क्षमता ३२ रूपये और गाँव में २६ रूपये है तो वह व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे नहीं आता......मतलब साफ़ है की ऐसा व्यक्ति गरीब नहीं है ........दूसरा मतलब यह कि वह गरीबी से दूर और ऊपर उठ चुका है........आज अनायास ही मुझे बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आ गई......जिसमे एक राजकुमारी जंगल में घूमने गई थी.......और ठण्ड से बचने के लिए वह एक गरीब की  झोपडी जलवा देती है....... परन्तु तब उसके पिता जोकि राजा भी थे, ने उसे सत्यता और श्रम के महत्व का एहसास करवाने के लिए राज्य से तब तक के लिए बाहर निकाल दिया था, जब तक की वह अपने श्रम से एक झोपडी ना बनवा दे....... 

परन्तु तब की बात और थी और अब की और.......अब ना तो आदर्शवादिता बची है और ना ही नैतिकता जैसी कोई चिड़िया......वर्ना आज भी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने के बाद योजना आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष डंके की चोट पर कहते की हाँ ऐसा संभव है..........३२ रूपये में पौष्टिक आहार मिल सकता है.......नहीं मानते तो  कम से कम आगामी एक माह तक हम ३२ रूपये प्रतिदिन की दर पर अपने भोजन की व्यवस्था करके दिखाते हैं........साथ ही वह यह भी कह सकते थे की जब ९६० रूपये प्रतिमाह से जीवन यापन हो सकता है तो हम भविष्य में इससे अधिक वेतन नहीं लेंगे........वैसे तो ये भी हमारे लिए अधिक ही होगा क्योंकि......यात्रा तो हम सरकारी गाड़ियों में करते हैं........और मकान की कोई किश्त  हमें देनी नहीं है....... परन्तु ऐसे विचार मन में लाना भी मूढ़ता है.......और सरकार से मूर्खता के अपेक्षा करना इसकी परकाष्ठा ............

परन्तु मेरे मन एक और विचार आता है......की आखिर क्या बात है कि सरकार को ऐसा दुराग्रहपूर्ण हलफनामा देना पड़ा........ ज्यादा सोचने की शायद जरुरत नहीं...........मुझे तो यही समझ आया कि सरकार की कोई गलती है ही नहीं .......सच तो यह है की सरकार को सत्यता और वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं है.......अरे गरीबी का दर्द तो वह समझे जिसने गरीबी देखी हो.........भूख की छटपटाहट तो वो समझे जिसे एक वक्त भूखा सोना पड़ा हो.......कहते हैं न........"जाके पैर ना फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई".........यानी की जिन लोगों ने सदैव चाँदी के चम्मच से दुग्धपान  किया हो......उन्हें क्या पता कि २.३३ रूपये में कितना दूध आता है.......और १.०२ रूपये में कितनी दाल ...... अब आप कहेंगे की तो क्या गरीबों को ही देश चलाने का कार्य दे दिया जाए क्योंकि आटे दाल का भाव तो उन्हें ही सर्वाधिक पता होता है........तो मै कहूँगा की मेरे कहने का मतलब ये कदापि नहीं है...... 

एक अमीर का बच्चा 

मुझे फिर एक कथा की याद आती है....... वह यह की एक बार एक व्यक्ति व्यापार करने देश से बाहर गया.......अपने पीछे वह अपनी दो साल की पुत्री और अपनी पत्नी को छोड़ कर गया था......वह व्यक्ति किन्ही कारणों से १५-१६ साल तक अपने देश वापस नहीं लौट पाया........परन्तु जब वह लौटा तो बहुत खुश था......उसने सभी के लिए कुछ ना कुछ लिया था.......अपने सुन्दर उपहारों को देख कर वह फूला नहीं समां रहा था.......परन्तु जब वह घर लौटा तो अपनी पुत्री को पहचान ही नहीं सका.......कारण स्पष्ट था........कि उसकी पुत्री अब सयानी हो चुकी थी.......और उसके लिए वह जो फ्राक बड़े प्यार से खरीद के लाया था वह उसके किसी काम के ना थे.......

मित्रों इस कथा की भांति आज भी दशा कुछ अधिक नहीं बदली है ........आज के देश के कर्णधार भी उस व्यापारी की भांति हैं जो इस गलफहमी में हैं कि कदाचित आज भी वस्तुए उन्ही दामों में मिल रही हैं........जिन दामों में उनके बचपन में मिला करती थी....... उन बेचारों को ये पता ही नहीं की मंहगाई रुपी राक्षसी तो कब की सयानी हो चुकी है........अतः गलती उनकी है ही नहीं.......यथार्थ के धरातल पर आने की उन्हें फुर्सत ही कहाँ है, की वे कुछ समझें..........अब भला सोचिये की सड़को की दशा उस नेता को भला कैसे चल सकती है, जो अपनी साड़ी यात्राएँ हेलिकोप्टर से करता हो......कथन का तात्पर्य यह है प्रधान (मंत्री) जी की आप जनता के पास नहीं जा सकते ......मत जाइये ........नहीं जाते हैं .... उसकी भी जरुरत नहीं .........परन्तु उनकी मुसीबतों का आंकलन करने के लिए तो कम से कम किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त कर देते जिसका जन्म अर्थशास्त्र की किताबों से ना हुआ हो.......

बहरहाल चलिए छोड़ते हैं.......आपको आपकी हालत और हालात पर.......आपकी बातों से भी कुछ सार्थक जरुर ही निकलेगा.......हो सकता है की अब भूखे पेट सो रहा गरीब इस एहसास के साथ सोये कि सरकारी कागजों में ही सही परन्तु वह अमीर हो गया है.......और आप जैसे वोटों के दरिद्र शायद इस चिंता में जागें कि कहीं आपके द्वारा गढ़ी इस नई परिभाषा ने आपकी अमीरी में सेंध तो नहीं लगा दी........


मनोज  

Sunday 21 August 2011

भ्रस्टाचार

कौन है कहता यारों कि ये होता भ्रस्टाचार
श्रम बिना धन अर्जित करने का है मात्र विचार
फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
जब घर घर में है करप्शन 

                                                    एक थे साहेब मिले थे जिनके बिस्तर में से नोट
                                                    बने थे मंत्री ये तो प्यारे पा पब्लिक का वोट
                                                    बनी  अदालत पर ना पाई उसने इसमें खोट
                                                    गधा ज्यों लोटे मिट्टी में वो धन मे रहे थे लोट
                                                    सुख देता है राम तो भैया क्यू करते हो वार
                                                    श्रम बिना धन अर्जित करने का है मात्र विचार
                                                    फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
                                                    जब घर घर में है करप्शन 




सबसे बड़े साहेब ने  बचाई शर्माकुल सरकार
वोट कम पड़े तो कर डाला उसका भी व्यापार 
छोटे छोटे दलों को धन दे खूब समेटा प्यार
पर चींटी जैसे गुड ना छोडती छोड़ी ना सरकार
जब नरसिंह भगवान् प्रसन्न तो सबकी टपके लार
श्रम बिना धन अर्जित करने का है मात्र विचार
फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
जब घर घर में है करप्शन 

                                                 कोमनवेल्थ को समझ के अपना पैसे खूब उड़ाये 
                                                 गलती ये की मौका देख के भाग नहीं ये पाए
                                                 सोचा तो सरकार है अपनी अभी और भी कमायें 
                                                 पर जजों की बैठी टीम तो लोहे के कंगन बनवाये
                                                 सुर के ईश ने यही पर माना हुआ है अत्याचार            
                                                 श्रम बिना धन अर्जित करने का था मात्र विचार
                                                 फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
                                                 जब घर घर में है करप्शन 



किसका कितना लिखें पड़ेगा कागज छोटा
अच्छे अच्छों ने है माल बनाया मोटा 
पर उसको कहाँ सुहाता जिसको पड़ा है टोटा
इक बुड्ढा पीछे पड़ा है देखो ले के सोटा
आ ना, आ ना कहकर भूखा लड़ने को तैयार 
श्रम करो फिर मन में लाना धन संचय का विचार
अब होगा सभी पर एक्शन 
चाहे जिस घर में हो करप्शन 


जय हिंद


मनोज 

Saturday 13 August 2011

भारत की हार


गीदड़ क्यों बन बैठे, भारत माता के प्यारे तुम शेरों
अरि के सम्मुख शीश नवाते, लज्जा क्या आई थी बोलो
उनके चुभते शस्त्रों से स्तब्ध न हो बल अपना तोलो 
तेरे पास है शक्ति असीमित, अपना शस्त्रागार टटोलो 






करो याद कब कब तुमने शत्रु का शीश झुकाया है
करो याद हम सबके लिए कैसे अमृत भी जुटाया है
करो याद कैसे जन जननी ने तुमको सम्मान दिया 
करो याद उस ध्वज को जिसके सम्मुख है अभिमान किया 



और नहीं बस शिथिल पड़ो कह दो विजयी बन आयेंगे 
जग जीता था, जग जीतेंगे नहीं पराजय पायेंगे 
कसम हमें है मातृभूमि कि दर्प शत्रु का चूर्ण करेंगे
देशवासियों धैर्य धरो हम स्वप्न सभी के पूर्ण करेंगे



मनोज

Sunday 17 July 2011

भगवान् बनाम इंसान

आज का समाचार सुनते हुए पता चला की शिर्डी के साईं के दरबार में रूपये ७ करोड़ का चढ़ावा पिछले कुछ दिन में ही आ गया है........अभी अधिक दिन नहीं हुए जब पद्मनाभ मंदिर के पांच तहखानो से ही लगभग १ लाख  करोड़ रूपये की संपत्ति मिली थी........छठे तहखाने से क्या मिलेगा, इसके तो सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं.....इस एक मंदिर का ये हाल है.....तो बाकी मंदिरों की तो बात ही क्या.....कुछ ज्ञात तो कुछ अज्ञात ......जगह जगह खजाना छुपा हुआ है.......अब समझ आया की हमारे देश को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था.......परन्तु अफ़सोस आज देश की सोने की सारी चिड़ियाएँ बड़े बड़े मगरमच्छों के पेट में समां चुकी हैं.......

परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है की इस बीच सरकार कहाँ है........देश की हालत क्या  है किसी से छुपी नहीं.....अर्जुन सेन गुप्ता की कमेटी के आंकड़ो को सही माने तो देश की ७७% जनसँख्या की दैनिक आय रूपये २० प्रतिदिन से कम है......जबकि इसके उलट सरकारी आंकड़े बताते है की २००१ में मात्र ३६ प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रह गए थे......और फिलहाल लगभग २६%, यानी की गरीबी दिन-ब-दिन कम  होती जा रही है......अब गरीब कौन और गरीबी के रेखा कैसी है .....इसका निर्धारण इन विसंगतियों को देख कर आप स्वयं कर लीजिये....

आंकड़ो पर मत जाइये .....सच तो  यह है की हमारे देश की ७५ से ८० फीसदी जनसँख्या आज भी गरीब है......उसके पास जीने लायक आवश्यक संसाधन नहीं हैं.....लेकिन सरकार है की एक लकीर खींच कर बैठी  है और उसे पीट रही है........इस गरीबी की रेखा बारे में तो भगवान् ही बेहतर बता सकता है........या फिर इस देश के जानकार नेता....जिन्होंने लक्ष्मण रेखा की तरह इस रेखा की संरचना की है........जिन्होंने हिंदुस्तान की गरीबी नापने के लिए उनके भोजन में उपलब्ध कैलोरी जैसे गूढ़ चीज़ों का खास अध्ययन किया है......


लकड़वाला समिति के अनुसार गाँव में अगर एक व्यक्ति को २४०० किलो कैलोरी से कम और शहर में २१०० किलो कैलोरी से कम का भोजन मिलता है तो वह गरीबी रेखा के नीचे माना जायेगा.......और सरकार के हलफनामे के अनुसार गाँव में १७ रूपये में और शहरो में २० रूपये में इतना भोजन मिल जाता है.................मान गए लकड़वाला जी........क्या फार्मूला लाये हैं आप..........अब आपको कौन बताये कि कौन आदमी इस फार्मूले के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे है और कौन नहीं............इसका पता तो आपके बाबूजी (बाप लिखना थोडा चीप लगा मुझे).......भी नहीं लगा पाएंगे......खैर माफ़ कीजिये.............बुद्धिजीवियों पर इस तरह कि टिप्पड़ियां ठीक नहीं.....उनकी भावनावों को ठेस पहुँचती है भाई....... और गरीब जिए या मरे....बुद्धिजीवी का सम्मान जरुरी है.......है न....

अरे हम कहाँ से कहाँ चले गए......आइये फिर से मुद्दे पर चलते हैं........प्रश्न यह है की भगवान् इतनी संपत्ति का करेगा क्या ???......जबकि दूसरी ओर गरीब की हालत खस्ता है !!!.........क्या वास्तव में भगवान् को इतनी संपत्ति की जरुरत है.......नहीं ना........सही समझे......जरुरत किसे है........ये भी सही समझे आप......तो फिर इन मगरमच्छों के बारे में भला सोचेगा कौन.......कौन इन मगरमच्छों के पेट से हमारी सोने की चिड़िया को बाहर  निकलेगा......किसी को तो साहस करना ही पड़ेगा........हम आप नहीं बाबा....सरकार की बात कर रहा हूँ मैं......याद कीजिये........उसे ही तो हमने चुना है हमारी देखबाल करने और हमारी सुरक्षा करने के लिए.....देश को सही दिशा देने के लिए......और देश को सम्रद्ध बनाने के लिए........

अब आप पूछियेगा की तो क्या इन सभी संपत्तियों का अधिग्रहण कर लेना चाहिए.... बिलकुल नहीं.....मैं भला ऐसा कहने वाला कौन होता हूँ......मैं भला ऐसा कहने वाला कौन होता हूँ......हम तो मात्र इतना कहेंगे कि महज १५००० से २०००० तक कमाने वाले का तो सरकार शोषण करती है......टैक्स के नाम पर साल में एक महीने के तनख्वाह झट से झपट लेती है......परन्तु कुछ रोज़ में करोडो का चंदा या दान जुटाने वालो पर सरकार की दृष्टी नहीं जाती.....ट्रस्ट के नाम पर बिना टैक्स के अर्जित इस धन को आप क्या कहेंगे........क्या ये काला धन नहीं.......जो लोग करोडो के मुकुट और हार चढाते हैं क्या उसकी जांच नहीं होनी चाहिए......और फिर क्या उसके स्रोत की जांच नहीं होनी चाहिए.......और कब तक .....चैरीटेबल ट्रस्ट के नाम पर संपत्ति बिना टैक्स दिए अर्जित की जाती रहेगी......वो भी तब जबकि देश को दिशा देने के लिए धन की कमी आड़े आ रही हो........गावो में अस्पताल न हो.......स्कूल और यूनीवरसिटिज़ ना हों.....सड़के न हों, बिजली ना हों.......पानी ना हों........भोजन ना हो.......खेतो के लिए खाद ना हो......बीज ना हो.....भगवान् भरोसे पैदावार हो और फिर भगवान् भरोसे उसकी बिक्री......जहाँ सरकार न्यूनतम से आगे बढ़ने का साहस ना जुटा पाती हो.....न्यूनतम समर्थन मूल्य......न्यूनतम साझा कार्यक्रम......कोई पूछे की भला अधिकतम क्यों नहीं.......कुछ तो अधिकतम करो......कब तक देश न्यून से काम चलाता रहेगा......जवाब मिला .....सोलिड मिला .....बहुमत ही पूर्ण नहीं........फिर पूर्ण काम कैसे होगा......सारा ध्यान और सारा धन तो बहुमत बचा के रखने में चला जाता है......बाकी के बारे में सोचने का टाइम मिले तब न.......बढ़िया है.......बहुत बढ़िया......परन्तु एक बात याद रखिये.......ये जवाब अधिक दिनों तक जनता को मूर्ख बनाने के लिए पर्याप्त नहीं.....कुछ और भी जुमले सोच के रखियेगा.....

भगवान् को निश्चित रूप से धन की कोई आवश्यकता नहीं......शिर्डी के साईं के पास तो कोई संपत्ति थी ही नहीं.....इधर उधर मांग कर जो मिल गया उसी को खा लिया......फिर भला इतने चढ़ावे का वो क्या करेंगे......और तहखानो की बाते मुझे उस बुढ़िया की याद दिलाते हैं जो भूखी मर गई.......परन्तु बाद में उसकी झोपडी में सोने और चांदी के सिक्के जमीन में गड़े मिले........शायद उस दुखियारी को ये पता रहा हो की यहाँ पर धन है.......परन्तु उसने इस डर से किसी को ना बताया हो की कोई उससे ये सब छीन लेगा.....परन्तु इस तरह की विवशता सरकार के सम्मुख तो नहीं फिर वह उस वृद्धा की तरह व्यवहार क्यों कर रही है......

परन्तु कुछ इसी तरह की बात मुझे भगवान् के धन को लेकर दिखाई दे रही है.........धन है......वो भी भगवान् का........परन्तु वो गरीबो के कल्याण में नहीं लगाई जा सकती ........भला क्यों ???......क्या इससे भगवान् की दौलत कम हो जायेगी......ये अंदेशा है.......अगर नहीं........तो फिर निश्चित रूप से इस धन का सदुपयोग जन कल्याण में होना चाहिए........भगवान् तो सबके हैं.......फिर ये धन कुछ लोगों का होके कैसे रह सकता है........ये धन सभी का है और सभी को इसका लाभ मिलना चाहिए....सबसे पहले उन्हें जिसे इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है.......

और फिर इसके आगे ट्रस्टों पर टैक्स तुरंत लगाया जाना चाहिए........एक सीमा से अधिक धन संचय पर भी रोक लगाया जाना जरुरी है.........चढ़ावा चढाने वालों के आय के स्रोत की भी जाँच होनी चाहिए...........कहीं वे अपना काला धन भगवान् के यहाँ तो नहीं खपा रहे........जरुरत है एक समग्र सोच कि, एक दूर दृष्टी क़ी .......एक रूपरेखा तैयार करने की.......जो मगरमच्छों का पेट फाड़ कर सोने की चिड़िया को बाहर निकल सके और फिर जिसका उपयोग करके देश  एक बार फिर से समृधि की राह पर आगे बढ़ सके.......



मनोज 

Saturday 9 July 2011

My thoughts.......

1. Yadi koi prem se ek kadam aage badhaye.......to uski taraf do kadam aage badhao........ Parantu......Agar koi tumse ek kadam peeche kheenche.........to usse do kadam peeche kheench lo......(If someone step forward one step towards you.....you move two steps towards him.......but if someone takes back one step.....you should take two steps backwards.)

2. Jeevan sukh aur dukh ka prayay hai......parantu kabhi bhi apne dukh ko apne chehre par mat aane do......logo ko tumhare chehre se tumhare hirday k bheetar ki  bhavnon ka pata nahi chalna chahiye.....(Life is made from happiness and sorrows.....but you never let your sorrows come on your face.......People around you must not know what is happening in your heart) 
Reason - We should not make others sad due to our problems, but we should always search a reason to make people happy due to us.

3. Jab bhi tum jeevan se tang aa jao.....atyadhik dukhi raho........jeevan me nirasha hi nirasha dikhai de.....aur tumhe koi rasta na sujhe........to meri maano, pichli baaton ko pichle jeevan ki tarah bhula kar shunya se jeevan ki dobara shuruvaat karo.... (Whenever you fed up from your life.......remain very very sad and found no way in life to come out from you deep unrest and sorrows.......Take my advise ......and just forget the everything, like earlier life......and start the life from point Zero.....All your grieve will be vanished)
Tonic - I know it's tough and people say that it is easy to deliver lectures......but remember life is only one......we can't spend it in thinking past......so its advisable to make your heart like rock and take tough steps to lead the life in a better way.

4. Life is most important.......everything like happiness, sorrow, religion, non-religion, morality and immorality is only upto the time of life......No body  knows what happens after death......That's why......in any case saving one's life should be one of the most important aims of one's life.... (Jeevan sarvadhik mahatvapoorna hai......Sukh Dukh, Dharma Adharm, Neeti Aneeti sab Jeevan rahne tak hi hai......Jeevan nast hone ke paschaat kya hoga aur kya nahi koi nahi jaanta........isiliye...Kisi bhi dasha me apne jeevan ki raksha karna jeevan ke pramukh uddeshyo me se ek hai..)
Reason - Jeevan ke paschaat swarg aur nark.....dharm, deshbhakti, balidaan aur yash jaise shabd samaj ne apni suvidha ke anusaar gadh liye hain........aur in shabdjaalo me ulajh kar jeevan nast karna mere vichaar se moorkhata k atirict kuch nahin....

5. Money is not important.......Its Time, which is the most important.......Having money is not so essential......But having money on time is Crucial.....(Dhan mahatvaheen hai.......Samay mahatvapoorna hai..........Dhan ka hona aavashyak nahi........parantu.....Dhan ka Samay par hona aavashyak hai.)
Reason - I seen a person, whose child died only because he could not deposit initial money in  hospital.......and the hospital authorities refuse to admit him in hospital before getting the minimum deposit........That person was so tensed that he could not tell his identity in the hospital and wasted time in arranging money.....Do you know that person.....He was a high rank official and having Lacs of Rupees in his saving account........He was having lots of money.....but not on time.....His money was nothing more than some pieces of papers....)

6. In your life, your words should be important......never say any word, sentence or make promise......which you can't keep or the value of which can diminish in future due to your act up .......(Jeevan me aapke shabd mahatvapoorna hone chahiye.....Koi bhi aise vakya ya shabd kabhi nahi bolne chahiye ya aise vachan kabhi nahi dene chahiye...........Jise aap nibha na sake aur bhavisya me aapke vyavhaar athva kiryakalaap se jinka mahhatva kam hone ki sambhavana ho....)
Tonic - Promises should be made after proper thinking.......Don't make any promise which you can't keep.....because it definitely tarnish your image.......moreover it deeply hurts the other person......and we should always take care of others feeling.



Manoj 

Thursday 16 June 2011

सच्चा कौन ???

शाम का समय था. मुझे पटना से दिल्ली आना था.......प्रोग्राम अचानक से बना सो टिकट  भी नहीं था....मैं क्या करता, ज्यादा सोच विचार करने की बजे मैं सीधे एक्सप्रेस ट्रेन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में जा के बैठ गया.....परन्तु ये क्या थोड़ी ही देर में ही ट्रेन का टी.टी. किसी यमदूत की तरह प्रकट हुआ ...
टिकेट टिकेट....वह चिल्लाया
टिकेट तो नहीं है मेरे पास......अचानक से जाना पड़ गया.....सो प्लीज मैनेज कीजिये...मैंने विनती की...
क्या ? बिना टिकेट, यहाँ कोई सीट नहीं है.....टी.टी. साहेब ने कडकी दिखाई.
सर प्लीज... 
कोई फालतू बात नहीं.......बिना टिकेट ए.सी. में चढ़ने का और टिकट का कुल २७८० रूपये पेनाल्टी सहित दीजिये...और रसीद कटवाइए....टी.टी. सख्त था......

अब क्या था.....टी.टी. आगे और मैं पीछे.....थोड़ी ही देर में टी.टी. साहेब से सेटिंग हो गई और १५०० में सौदा तय हो गया.....जी हाँ बिना किसी रसीद या टिकट के मैं बड़े आराम से दिल्ली पहुँच गया... और अगले दिन अन्ना हजारे जी के भ्रस्टाचार के विरुद्ध अनशन में पूरे उत्साह से भाग लिया.....सरकार को जी भर के गाली दी....मंत्रियों को खूब भला बुरा कहा.....और लौटते हुए भी टिकट कटाने की बजाय  अपनी व्यवहार कुशलता का ही उपयोग किया...

प्रश्न छोटे से हैं...... क्या सिर्फ मंत्री और नेता भ्रस्ट हैं.......या कुछ और भी हैं.....चलिए सोच के देखते हैं.......मेरे घर के सामने वाली दूकान वाला एक किलो चावल में महज ५० ग्राम कंकड़ मिलाता है.....ताकि बाकी लोगों को शक न हो.......और बिक्री भी कम न हो जाये....हाँ यह बात और है की उसने हर बाट के नीचे से खुरचन की है और ५० ग्राम की बचत वहां से भी की है.........मेरा दूध वाला इत्मीनान से पानी में दूध .......माफ़ कीजिये दूध में पानी मिलाता है.......उसका सोचना है की दूध में पानी नहीं मिलाने से गाय का थन सूख जाता है...... परन्तु दाम कम लेना......मूर्खता......थोड़ी ही दूर पर शब्जी की ठेली लगाने वाला मेरा दोस्त शब्जियो को केमिकल से हरा करता है......उसका साफ़ कहना है की शब्जियाँ हरी नहीं होंगी तो उन्हें खरीदेगा कौन........कभी कभी वो फल भी बेचता है.....और उन्हें कार्बाइड से पकाना उसकी मजबूरी है.......फल पके होने भी तो जरुरी हैं ना......तभी तो अच्छे दाम मिलेंगे.....

मेरा एक सहकर्मी......जब भी कहीं ऑफिस टूर पर जाता है तो हमेशा ही बस से जाता है........परन्तु जब बिल बनाने की बात आती है......तो सिर्फ टैक्सी का बिल.......उसकी क्या गलती....टैक्सी तो उसका इनटाइटलमेंट है, फिर बस में कस्ट भी तो उसी ने सहे हैं......तो इस तरह से कुछ पैसे बनाने में गलत क्या है.......इसी तरह से ऑफिस टाइम में वह काम कभी पूरा नहीं करता क्योंकि लेट बैठने से ही ओवरटाइम  मिलता है........धन महत्त्वपूर्ण है.....और उसका अर्जन एक कला......निश्चित ही......ऐसा है......

चलिए आगे बढ़ते हैं.......अगर गलती से किसी केस में फंस गए तो आपकी जिंदगी तबाह......दो वकील.......एक दूसरे के विरुद्ध तर्क देंगे......एक दूसरे को गलत साबित करने का प्रयास करेंगे......और फिर शाम को एक साथ बैठ के जाम टकरायेंगे........दो लोगो के झगडे में दो बुद्धिमानों की कमाई जो हो रही है..........और मजे की बात यह कि दोनों वकीलों को पता  है की कौन सही है और कौन गलत.........परन्तु फिर भी उनमे से एक जानबूझ के गलत की पैरवी करता है और फिर तारीख  पे तारीख........... किसी से झगडा हो जाए तो ऍफ़.आई.आर. कैसे लिखी जाती है और फिर जमानत कैसे होती है..........बताने कि  जरुरत है क्या ????

एक साधू के ११०० करोड़ की संपत्ति पर सबने आपत्ति की........परन्तु एक अन्य ४०००० करोड़ संपत्ति के मालिक दिवंगत साधू के सामने सरकार सर झुकाती नजर आई........किसका धनार्जन वैध है और किसका अवैध......वही ईश्वर जाने .......जो सबका मालिक है.......और जो साधू और शैतान के बीच का अंतर जानता है.....

मेरे गुरुदेव ने एक मुझे अपनी आपबीती सुनाई.........बोले कि एक आदमी उनके पास लोन लेने आया.......मैंने उसे जरूरी कागजों कि एक लिस्ट पकड़ा दी......बोला कि ये कागज ले आओ और जिस दिन आप आएंगे उसी दिन आपका लोन स्वीकृत हो जाएगा.........इस पर पर वह आदमी लिस्ट वापस पकडाते हुए बोला.......साहब दो चार हज़ार ले लीजये और काम कर दीजिये.......ये समझाने पर कि ये कागज जरुरी हैं और इसके बिना लोन नहीं हो सकता.....और पैसे देने की कोई जरुरत ही नहीं है............वह आदमी दोबारा फिर कभी नहीं आया .......शायद इसलिए कि उसे यकीन ही नहीं था की बिना पैसे दिए भी कोई काम हो सकता है........

 तो विचारयोग्य  यह है की सच्चा कौन है........और भ्रस्ट कौन नहीं है.............क्लास में जाने कि बजाय टूशन पढ़ाने वाला शिक्षक या फिर डोनेशन लेकर एडमिसन देने वाला कॉलेज ..... चालान काटने कि बजाय ५० का नोट लेकर छोड़ देने वाला ट्रैफिक पुलिस या फिर ऑफिस में काम ना करने वाला  कर्मचारी........सरकारी हॉस्पिटल में सेवारत होने पर भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाला डॉक्टर या फिर फर्जी डिग्री के दम नौकरी पाने वाला कर्मचारी.......दहेज़ के लिए लड़की को मार देने वाला परिवार या फिर जमानत के लिए रिश्वत कि मांग करता जज ........ आखिर कौन ????


 सच सुनना चाहते हैं तो सुनिए.......जनाब हम सभी भ्रस्ट हैं........भ्रस्टाचार तो हमारे खून में व्याप्त है........हमारे जिस्म से नैतिकता जैसे चीज गायब हो चुकी है............हम धोखाधड़ी में विश्वास करते  हैं........सुबह उठने से लेकर शाम सोने तक हम अनजाने ही ना जाने कितने गलत काम करते हैं .....और यह कब हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया, हमें खुद नहीं पता...........अब हम इसे मिटा नहीं सकते.....शायद चाह कर भी नहीं..........तो साहब फिर औरों को गाली देना छोडिये और अपना अंतःकरण शुद्ध कीजिये........अगर अपने आप को स्वस्थ कर लिया तो समझिए सारा समाज स्वस्थ हो गया.............मुझे रोटी फिल्म के एक गाने कि कुछ लाइने याद आती है........

इस पापी को आज सजा देंगे मिलकर हम सारे ......
लेकिन जो पापी ना हो वो पहला पत्थर मारे.....
पहले अपना घर साफ़ करो 
फिर औरो का इन्साफ करो.......

मैंने ऐसा ही सोचा कि अपने आप को साफ़ करूँगा.......परन्तु मेरे मन ने साथ नहीं दिया.....बोला जब सभी भ्रस्ट हैं........और जब लोकतंत्र बहुमत के आधार पर चलता है.......तो भला तुम साफ़ सुथरे कैसे हो सकते हो.......सो भ्रस्ट होना तो तुम्हारी मजबूरी है.........और मैं इसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाया......



मनोज