नहीं ये सच्ची पार्टी ............... .उन्हें मिला है ज्ञान...
उन्हें मिला है ज्ञान..................प्रचार उनके विरुद्ध है....
बार बार खाकर धोखा..............ये वृद्ध क्रुद्ध है......
तुलसी ने सच कहा है..............भय बिनु होय ना प्रीत...
भ्रस्टाचार के शत्रु से.................अब भय से होगी जीत......
नारी पर आरोप ये....................लगते हैं संगीन...
लगते हैं संगीन.........................यही घर तोड़ने वाली..
जर जमीन के संग....................जंग को जन्मने वाली...
कह मनोज सच जान लो...........मित्रों खोल के कान...
शांति की खातिर तीन नारियों.... को नोबेल सम्मान...
धर्म नाम ले गुट बना.............रहे इक दूजे को चढ़ाय...
जाति पाति के नाम पर.........झंडा लियो उठाय.....
झंडा लियो उठाय .................नाम को हिन्दुस्तानी......
पर कर्मों से निंदाजनक.........निपट अज्ञानी......
कह मनोज मानव यही..........मानवता का काल.....
इक दूजे को फांसते...............खुद फंसता है जाल......
सुना है अन्ना राष्ट्रपति.............हों ऐसा प्रस्ताव......
कहती है कांग्रेस कि.................इसीलिए है ताव.....
इसीलिए है ताव......................विरोध भी कांग्रेस का...
सत्ता का है जाल......................नहीं बस ख्याल देश का...
कह मनोज पद का नहीं...........है अन्ना को रोग.....
बनते हैं तो राष्ट्रहित ................का उत्तम संयोग....
मनोज
Bahut Khub...........
ReplyDeletebahut badhiya :)
ReplyDeleteप्रस्तुतीकरण की दृष्टि से कविता बहुत अच्छी है सर!
ReplyDeleteसादर
वाह...वाह...वाह. सुन्दर और एकदम सटीक व्याख्या....बधाई ।
ReplyDeleteकल 11/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
khoobasoorat prastuti
ReplyDeleteKhoob...Badhiya Prastuti...
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