Thursday 16 June 2011

सच्चा कौन ???

शाम का समय था. मुझे पटना से दिल्ली आना था.......प्रोग्राम अचानक से बना सो टिकट  भी नहीं था....मैं क्या करता, ज्यादा सोच विचार करने की बजे मैं सीधे एक्सप्रेस ट्रेन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में जा के बैठ गया.....परन्तु ये क्या थोड़ी ही देर में ही ट्रेन का टी.टी. किसी यमदूत की तरह प्रकट हुआ ...
टिकेट टिकेट....वह चिल्लाया
टिकेट तो नहीं है मेरे पास......अचानक से जाना पड़ गया.....सो प्लीज मैनेज कीजिये...मैंने विनती की...
क्या ? बिना टिकेट, यहाँ कोई सीट नहीं है.....टी.टी. साहेब ने कडकी दिखाई.
सर प्लीज... 
कोई फालतू बात नहीं.......बिना टिकेट ए.सी. में चढ़ने का और टिकट का कुल २७८० रूपये पेनाल्टी सहित दीजिये...और रसीद कटवाइए....टी.टी. सख्त था......

अब क्या था.....टी.टी. आगे और मैं पीछे.....थोड़ी ही देर में टी.टी. साहेब से सेटिंग हो गई और १५०० में सौदा तय हो गया.....जी हाँ बिना किसी रसीद या टिकट के मैं बड़े आराम से दिल्ली पहुँच गया... और अगले दिन अन्ना हजारे जी के भ्रस्टाचार के विरुद्ध अनशन में पूरे उत्साह से भाग लिया.....सरकार को जी भर के गाली दी....मंत्रियों को खूब भला बुरा कहा.....और लौटते हुए भी टिकट कटाने की बजाय  अपनी व्यवहार कुशलता का ही उपयोग किया...

प्रश्न छोटे से हैं...... क्या सिर्फ मंत्री और नेता भ्रस्ट हैं.......या कुछ और भी हैं.....चलिए सोच के देखते हैं.......मेरे घर के सामने वाली दूकान वाला एक किलो चावल में महज ५० ग्राम कंकड़ मिलाता है.....ताकि बाकी लोगों को शक न हो.......और बिक्री भी कम न हो जाये....हाँ यह बात और है की उसने हर बाट के नीचे से खुरचन की है और ५० ग्राम की बचत वहां से भी की है.........मेरा दूध वाला इत्मीनान से पानी में दूध .......माफ़ कीजिये दूध में पानी मिलाता है.......उसका सोचना है की दूध में पानी नहीं मिलाने से गाय का थन सूख जाता है...... परन्तु दाम कम लेना......मूर्खता......थोड़ी ही दूर पर शब्जी की ठेली लगाने वाला मेरा दोस्त शब्जियो को केमिकल से हरा करता है......उसका साफ़ कहना है की शब्जियाँ हरी नहीं होंगी तो उन्हें खरीदेगा कौन........कभी कभी वो फल भी बेचता है.....और उन्हें कार्बाइड से पकाना उसकी मजबूरी है.......फल पके होने भी तो जरुरी हैं ना......तभी तो अच्छे दाम मिलेंगे.....

मेरा एक सहकर्मी......जब भी कहीं ऑफिस टूर पर जाता है तो हमेशा ही बस से जाता है........परन्तु जब बिल बनाने की बात आती है......तो सिर्फ टैक्सी का बिल.......उसकी क्या गलती....टैक्सी तो उसका इनटाइटलमेंट है, फिर बस में कस्ट भी तो उसी ने सहे हैं......तो इस तरह से कुछ पैसे बनाने में गलत क्या है.......इसी तरह से ऑफिस टाइम में वह काम कभी पूरा नहीं करता क्योंकि लेट बैठने से ही ओवरटाइम  मिलता है........धन महत्त्वपूर्ण है.....और उसका अर्जन एक कला......निश्चित ही......ऐसा है......

चलिए आगे बढ़ते हैं.......अगर गलती से किसी केस में फंस गए तो आपकी जिंदगी तबाह......दो वकील.......एक दूसरे के विरुद्ध तर्क देंगे......एक दूसरे को गलत साबित करने का प्रयास करेंगे......और फिर शाम को एक साथ बैठ के जाम टकरायेंगे........दो लोगो के झगडे में दो बुद्धिमानों की कमाई जो हो रही है..........और मजे की बात यह कि दोनों वकीलों को पता  है की कौन सही है और कौन गलत.........परन्तु फिर भी उनमे से एक जानबूझ के गलत की पैरवी करता है और फिर तारीख  पे तारीख........... किसी से झगडा हो जाए तो ऍफ़.आई.आर. कैसे लिखी जाती है और फिर जमानत कैसे होती है..........बताने कि  जरुरत है क्या ????

एक साधू के ११०० करोड़ की संपत्ति पर सबने आपत्ति की........परन्तु एक अन्य ४०००० करोड़ संपत्ति के मालिक दिवंगत साधू के सामने सरकार सर झुकाती नजर आई........किसका धनार्जन वैध है और किसका अवैध......वही ईश्वर जाने .......जो सबका मालिक है.......और जो साधू और शैतान के बीच का अंतर जानता है.....

मेरे गुरुदेव ने एक मुझे अपनी आपबीती सुनाई.........बोले कि एक आदमी उनके पास लोन लेने आया.......मैंने उसे जरूरी कागजों कि एक लिस्ट पकड़ा दी......बोला कि ये कागज ले आओ और जिस दिन आप आएंगे उसी दिन आपका लोन स्वीकृत हो जाएगा.........इस पर पर वह आदमी लिस्ट वापस पकडाते हुए बोला.......साहब दो चार हज़ार ले लीजये और काम कर दीजिये.......ये समझाने पर कि ये कागज जरुरी हैं और इसके बिना लोन नहीं हो सकता.....और पैसे देने की कोई जरुरत ही नहीं है............वह आदमी दोबारा फिर कभी नहीं आया .......शायद इसलिए कि उसे यकीन ही नहीं था की बिना पैसे दिए भी कोई काम हो सकता है........

 तो विचारयोग्य  यह है की सच्चा कौन है........और भ्रस्ट कौन नहीं है.............क्लास में जाने कि बजाय टूशन पढ़ाने वाला शिक्षक या फिर डोनेशन लेकर एडमिसन देने वाला कॉलेज ..... चालान काटने कि बजाय ५० का नोट लेकर छोड़ देने वाला ट्रैफिक पुलिस या फिर ऑफिस में काम ना करने वाला  कर्मचारी........सरकारी हॉस्पिटल में सेवारत होने पर भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाला डॉक्टर या फिर फर्जी डिग्री के दम नौकरी पाने वाला कर्मचारी.......दहेज़ के लिए लड़की को मार देने वाला परिवार या फिर जमानत के लिए रिश्वत कि मांग करता जज ........ आखिर कौन ????


 सच सुनना चाहते हैं तो सुनिए.......जनाब हम सभी भ्रस्ट हैं........भ्रस्टाचार तो हमारे खून में व्याप्त है........हमारे जिस्म से नैतिकता जैसे चीज गायब हो चुकी है............हम धोखाधड़ी में विश्वास करते  हैं........सुबह उठने से लेकर शाम सोने तक हम अनजाने ही ना जाने कितने गलत काम करते हैं .....और यह कब हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया, हमें खुद नहीं पता...........अब हम इसे मिटा नहीं सकते.....शायद चाह कर भी नहीं..........तो साहब फिर औरों को गाली देना छोडिये और अपना अंतःकरण शुद्ध कीजिये........अगर अपने आप को स्वस्थ कर लिया तो समझिए सारा समाज स्वस्थ हो गया.............मुझे रोटी फिल्म के एक गाने कि कुछ लाइने याद आती है........

इस पापी को आज सजा देंगे मिलकर हम सारे ......
लेकिन जो पापी ना हो वो पहला पत्थर मारे.....
पहले अपना घर साफ़ करो 
फिर औरो का इन्साफ करो.......

मैंने ऐसा ही सोचा कि अपने आप को साफ़ करूँगा.......परन्तु मेरे मन ने साथ नहीं दिया.....बोला जब सभी भ्रस्ट हैं........और जब लोकतंत्र बहुमत के आधार पर चलता है.......तो भला तुम साफ़ सुथरे कैसे हो सकते हो.......सो भ्रस्ट होना तो तुम्हारी मजबूरी है.........और मैं इसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाया......



मनोज          

Monday 6 June 2011

स्वामी और सरकार

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है. भारत में सभी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है. भारत में सभी धर्मो, मजहबों और उनके अनुयायियों का सम्मान किया जाता है. सच कहूँ तो अभी तक मुझे अपने देश के बारे में यही पता था.....तो क्या मैं गलत था ! .......शायद हाँ,  कम से कम ४ जून की रात को हुई घटनाएं तो कुछ ऐसा ही बयां करती है.....मैंने अंग्रेजों का शासन नहीं देखा, क्योंकि तब तक मैंने जन्म ही नहीं लिया था........मैंने आपातकाल भी नहीं देखा, क्योंकि शायद तब मैं उसे समझने लायक ही नहीं था.....हाँ मैंने मुगलों और नादिरशाही जुल्मों के बारे में पढ़ा और सुना जरुर है............४ जून की रात टी.वी. पर मुझे कुछ ऐसा ही दिखाई दिया.....अब मैं कह सकता हूँ कि मैंने देश की एक दमन देखा है......... देश कि चुनी हुई सरकार पर एक शांतिपूर्ण आन्दोलन को कुचलते हुए देखा है......महिलाओं, बच्चों का दमन देखा है..........परन्तु क्या ये मेरे लिए हर्ष का विषय हो सकता है......कदापि नहीं.......

प्रश्न यह है कि आखिर क्या हो गया था उस रात को......एक सन्यासी, एक साधू कुछ मांगे लेकर अनशन कर रहा था.......उसके साथ उसके कुछ अनुयायी भी थे........उसकी मांगे कम से कम ऐसी जरुर थी जिन पर विचार किया जा सकता था.....क्योंकि सरकार ने ऐसा  माना है .......सरकार ने साधू से बातें भी की.......कुछ समझौतों तक भी पहुंचे.......परन्तु ये क्या.....सम्पूर्ण समझौता ना होने अधवा सरकार के अनुकूल न होने कि दशा में.........रात के एक बजे उन लोगो पर जो दिन भर से भूखे बैठे थे !!!.......सो रहे थे !!!........अचानक से ही सरकार के सिपाही.....कम नहीं लगभग ५ से ७ हज़ार तक !!!.......पंडाल में आते हैं.......और उन बेचारो पर जिन्हें अपने अपराध का पता ही नहीं !!!........टूट पड़ते हैं........लाठियों और आंसू गैस के गोले छोड़ते है !!!.......लोगो के हाथ पैर तोड़ते हैं और उन्हें अस्पताल पहुंचा देते हैं !!!.........

स्वामी को महिला वेश में भागने पर विवश होना पड़ता है !!!........शायद इसलिए कि उनके कपडे फट चुके थे.......वो निर्वस्त्र तो नहीं रह सकते थे ना.....सो नारी वस्त्र !!!.......ग्लानि क्यों ........नारी वस्त्रो से यदि देश का भला होता हो.......तो जीवन पर्यंत उसे पहनने में भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए........फिर जीवन रक्षा हेतु कोई उपाय अनुचित नहीं........जीवन है तो संघर्ष है........सुख कि इच्छा है........रास्ट्र हेतु कुछ कर देने कि चुनौती है........सो जीवन आवश्यक है.................सरकार गिरफ्तार कर उन्हें हरिद्वार पहुंचा देती है !!!

प्रश्न अधिक नहीं है मेरे पास......परन्तु कुछ जरुर हैं.......मुझे पता है की शायद ही कोई जवाब दे, परन्तु खड़े करने आवश्यक है.....

१.  एक सन्यासी योग सिखाता है......क्या इस नाते उसके सामान्य नागरिक के सारे अधिकार समाप्त हो जाते हैं.......क्या इस नाते उसका एक आम नागरिक के सामान कोई सत्याग्रह करने या आन्दोलन करने का व्यक्तिगत अधिकार समाप्त हो जाता है........और अगर वह ऐसा करता है तो उस पर अत्याचार होगा, उसका उत्पीडन होगा......(मान लो मैं किसी कार्यालय में काम करता हु अगर शाम को मैं बच्चो को पढ़ाना भी चाहूँ .....तो क्या यह अपराध होगा........और मेरा दमन किया  जायेगा.........सत्य तो यह है कि किस व्यक्ति का क्या कार्य है......इसे चुनने का अधिकार उसका निजी है......और वह एकाधिक कार्य निश्चित रूप से कर सकता है )

२. क्या सन्यासी की मांगे गलत थी.......अगर हाँ तो सरकार ने उससे बात ही क्यों शुरू की........अगर नहीं तो उन पर विचार करने की  बजाय उसे दण्डित क्यों किया गया.????

३. सरकार कहती है की सन्यासी के मंच पर साम्प्रदायिक लोग थे.......जिन्हें नहीं होना चाहिए था........तो क्या अदालत ने कुछ लोगो को साम्प्रदायिक और अछूत घोषित कर उनके आन्दोलन करने पर रोक लगा रखी है.........क्या सरकार यह निर्णय लेगी कि उसके विरुद्ध आन्दोलन कौन कर सकता है और कौन नहीं..........अगर ऐसा नहीं है तो फिर सिर्फ सरकार के सोच लेने मात्र से कुछ लोगों के सत्याग्रह या आन्दोलन करने पर कैसे रोक लगाई जा सकती है......और फिर अगर सरकार वास्तव में उन्हें अपराधी मानती है तो फिर वो जेल से बाहर ही  क्यों हैं ????

४. सरकार कहती है की सन्यासी किसी अन्य संगठन को फायदा पहुँचाना चाहता है.......वो उनका मुखौटा है.......उसका छुपा अजेंडा है और वह राजनीती भी करना चाहता है...........मान लिया ऐसा ही है........तो क्या इससे उसके द्वारा उठाये गए मुद्दे गौड़ हो जाते हैं........क्या मात्र इस कारण से देश में काला धन वापस नहीं आना चाहिए ????......क्या साधू कि राजनीति के इस कारण से भ्रस्टाचारियों  को कठोर दंड नहीं मिलना चाहिए ???.......क्या इसी कारण से विदेशो में जमा काला धन रास्ट्र की संपत्ति घोषित नहीं होने चाहिए ????............वास्तव में प्रश्न यह है ही नहीं की साधू का अपना उद्देश्य क्या है......वास्तविक प्रश्न यह है की क्या उसने जो मुद्दे उठाये वह उचित है या नहीं.........
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५. और अंतिम प्रश्न क्या देश में किसी ऐसे व्यक्ति को शांतिपूर्ण आन्दोलन करने की आजादी नहीं है जिसे सरकार पसंद नहीं करती..........

हां मुझे दुःख है की मुझे सरकार की ऐसी बर्बरता देखने को मिली...जो किसी कलंक से कम  नहीं.......हाँ मुझे दुःख है की सरकार ने सोते हुए भूखे लोगो पर आक्रमण किया........हां मुझे इस बात का दुःख है की सरकार ने महिलाओं का अपमान किया और बच्चों पर भी रहम नहीं किया.........हाँ मुझे इस बात का दुःख है की देश में अपनी बात कहने पर दंड मिलता है...........हाँ मुझे दुःख है कि देश सहनशीलता खो चुका है........परन्तु क्यों है ........... 

देश के उस तथाकथित मुखिया से हम क्यों अपेक्षा करें कि वह उस जनता के प्रति जवाबदेह होगा........जिसने उसे चुना ही नहीं......वह तो उसके प्रति जवाबदेह है......जिसने उसे चुना है...........तो स्वामिभक्ति भी तो कोई चीज होती हैं न भाई .......बस वही निर्वहन किया जा रहा है.........सरकार स्वामिभक्त लोगो से भरी पड़ी है.........चरणवंदना उनका लक्ष्य हो गया है........फिर देश, साधू , समाज, लोकतंत्र, काला धन, भ्रस्टाचार .......किसे फुर्सत है उस बारे में सोचने की............और फिर सोचें भी तो कैसे और क्यों .......देश को जिसने लूटा उन्हीं के तो धन  है विदेशों में........और वो ही तो अब भी लूट रहे हैं.........फिर अपने ही धन को कौन सरकारी करना चाहेगा......ये सरकार है दोस्तों ..........कोई मूर्खों की जमात थोड़े ही न है........ चलिए जाते जाते कुछ लाइनें कहता हूँ.....

ओसामा जी प्यारे तुमको साधू पर प्रहार 
क्षत्रप सारे भ्रस्ट हैं दिखते .....भ्रस्ट है ये सरकार......

राजनीति ही करते बाबा तो क्या ये अपराध...
बात जो कहते उससे जालिम भाग सके तो भाग.....

धन काला हो जाए रास्ट्र का क्यों नहीं अध्यादेश....
क्यों धरती पुत्रों पर टूटा इटली का आदेश.....

मौका अभी भी सत्तासीनों कर लो खुद में सुधार...
अधिक दिनों तक जनता सहती नहीं है अत्याचार.....


मनोज