उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री ने राज्य का कार्य भार सँभालते ही युवाओं को तोहफे में भीख दी !!!........ बेरोजगारी भत्ते के रूप में...... उनसे इसकी अपेक्षा थी, क्योंकि उन्होंने ऐसा ही वादा किया था........और उन्होंने अपना वादा पूरा भी किया........ जय हो दानवीर कर्ण की....... .परन्तु मेरे मन में एक प्रश्न उठता है, कि क्या यही उचित है ? ........ एक अन्य युवा राजकुमार ने प्रश्न किया था की.... "कब तक जाकर अन्य प्रदेशों में भीख मांगोगे ?" ......तो क्या उसके प्रत्युत्तर में, नए मुख्यमंत्री द्वारा राज्य में ही भीख उपलब्ध करवाने का यह एक जतन किया गया है ??.......नहीं ऐसा नहीं है.......यह भीख तो इस पार्टी की सरकार अपने पिछले कार्यकाल में भी दे ही रही थी.....लिहाजा यह तोहमत वाजिब नहीं......
दोस्तों, अब यह उन बेरोजगारों के लिए तो उचित ही है जो की काम ना मिलने से हताश थे...........अब शायद यह राशि उन्हें भूखों मरने से तो बचा ही लेगी........ परन्तु जरा सोचिये, क्या यह अधिक उचित नहीं होता की सरकार बेरोजगारी भत्ता देने की बजाय उन्हें कोई ऐसा काम देती जिससे उन्हें आंशिक रूप से ही सही, परन्तु रोजगार मिल सकता......... कोई ऐसी योजना लेकर आती जो उन्हें स्वाभिमान के साथ जीवन यापन करने के अवसर प्रदान करती......कुछ ऐसा सोचती, जिससे सभी वाह वाह कर उठते की एक युवा मुख्यमंत्री एक नई सोच लेकर आया है...... क्या ऐसा करना बिलकुल भी संभव नहीं था अथवा इस दिशा में सोचा ही नहीं गया........मेरे समझ से तो सोचा ही नहीं गया........ पर क्यों ??
बिहार के मुख्यमंत्री ने यहाँ की लड़कियों के लिए सीधे धन मुहैया नहीं करवाया, उन्होंने उन्हें साइकिल दी......उन्हें पोशाक प्रदान की........ .उन्होंने इस बात को समझा की शायद धन देकर वह उनकी रोजमर्रा की उस समस्या का समाधान नहीं कर सकते थे......जो उन्हें स्कूल जाने में होती थी....... साइकिल उनकी इस समस्या का सकारात्मक हल निकालती थी.......जबकि दूसरी तरफ पोशाक उन्हें सभी के समकक्ष होने का एहसास दिलाती थी....और सामाजिक समरसता का मार्ग तलाशती थी....
मुझे एक जापानी कहावत याद आती है की "किसी को रोज एक मछली देने से अच्छा है की उसे मछली पकड़ना सिखा दो".........मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं की उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री का यह कदम लोक लुभावन तो हो सकता है........तार्किक नहीं....... कहने का सरल तात्पर्य यह की हर माह बेरोजगारी भत्ते को देने से कहीं अच्छा होता अगर सरकार उन्हें पैसे कमाने के अवसर प्रदान करती.....और मुख्यमंत्री ऐसा करने में पर्याप्त रूप से सक्षम भी थे..... परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया......
परन्तु, चलिए भाई जाने दीजिये .... ...जिस देश में गरीबी की रेखा ३२ रूपये प्रतिदिन पर आकर ठहरती हो......उसी देश के एक राज्य में पढ़े लिखे बेरोजगारों के लिए ३३.३३ रूपये प्रतिदिन की दर से देकर वहां के मुख्यमंत्री ने यह तो सुनिश्चित कर ही लिया की वहां के पढ़े लिखे गरीबी रेखा से नीचे ना रह जाएँ .....नहीं तो हो सकता था की वह गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालों के समकक्ष अन्य रियायतों की मांग करता......इसी तरह से उन्होंने एक तरह से यह भी इंगित कर दिया की मियां पढ़ लिख तो गए, शादी मत करना......नहीं तो गरीबी रेखा के नीचे चले जाओगे..... और करने की सोचना भी, तो ऐसी लड़की/ लड़के से करना जिसे भी बेरोजगारी भत्ता मिलता हो........ ताकि रोटी चलती रहे.......लेकिन फिर प्रश्न उठता है कि बच्चा हुआ तो ???
मनोज
बँढ़िया है मनोज बाबू !बस ये बीच बीच में ....... का ज्यादे इस्तेमाल ना करें तो अच्छा लगेगा !
ReplyDeleteजी भविष्य में ख्याल रखूँगा..
Deleteha ha ha ha , bahut khub :)
ReplyDeleteशुक्रिया कमल भाई..
Deleteधन्यवाद सर जी....
ReplyDeleteachcha likhe......
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