अधिक दिन नहीं हुए जब वालमार्ट का समर्थन करने के क्रम में अनेक उत्साही युवक अर्थशास्त्री बन बैठे थे......जिसे देखो उसे यही लगता था मानो की वह किसानों का समर्थक हो और उपभोक्ताओं का परम हितैषी .......परन्तु आज जब बाबा ने रिटेल क्षेत्र में उतरने की घोषणा की तो अनेक चिंतकों को इसमें षड़यंत्र नज़र आने लगा.....उन्हें बाबा का व्यवसाय छलावा दिख्नने लगा.....बाबा की यह बात की वह कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पाद को भी बाज़ार उपलब्ध करवाएंगे.........उनकी भौतिकवादी सोच दिखने लगी......और मतदाताओं में पैठ बनाने हेतु रची गई एक नई चाल समझ आने लगी ........साबुन तेल बेचने के नाम पर उनका मज़ाक बनाया जाने लगा......और कार्टूनों कि फेहरिश्त जारी कर दी जाने लगी...... .
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अतः यहाँ पर जरूरत थी कि कोई ऐसा होता जो आगे बढ़ कर आता और कहता कि नहीं तुम उत्पादन जारी रखो.....बाज़ार तुम्हें मैं उपलब्ध करवाऊंगा......अथवा ये कि चलो तुम्हारा लागत मूल्य कम करने के लिए मैं मदद करता हूँ......... ताकि तुम बाज़ार में टिककर खड़े रह सको......मूलतः यह काम सरकार को करना चाहिए था.........परन्तु नहीं कोई नहीं आया..... आज बाबा ने जब लघु और कुटीर उद्योगों को बाज़ार उपलब्ध कराने कि बात कि तो मुझे व्यक्तिगत रूप से काफी अच्छा लगा..... उन्हें महज साबुन तेल तक ही सीमित न रहकर आगे बढ़कर असंगठित मजदूर वर्ग के उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए....... यदि उनकी मंशा साफ़ है और वह ऐसा करने में सफल हो सके तो निश्चित ही वह न केवल रिटेल बाज़ार में एक प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करायेंगे, वरन देश कि अर्थव्यवस्था में निचले स्तर के यथोचित योगदान को भी सुनिश्चित करेंगे.....इससे एक और जहाँ छोटे उद्योग धंधे पुनः पनप सकेंगे......तो दूसरी ओर रोज़गार के साधनों में आशातीत बढ़ोत्तरी होगी......
परन्तु विरोधों और विरोधियों का क्या.....कुछ लोग तो महज़ विरोध के नाम पर ही विरोध करते हैं..... उन्हें बाबा के हर रूप में छल नज़र आता है......राजनीति नज़र आती है..... मैंने पहले भी कहा था.......राजनीती कोई बुरी चीज़ नहीं बशर्ते उसे सही मंशा के साथ कि जाए...... परन्तु वाह रे देश के महान कालिदासों........आपको तो विरोध का एक बहाना चाहिए...... ...क्या कहने आपके.........परन्तु आपको भी मैं दोष क्यों दूँ ...... जब अपने देश की बासमती भी तभी अच्छी लगती है जब वह विदेशों से पोलिश होकर आती है..... तो देशी बाबा की स्वदेशी भला कहाँ भाएगी आपको .....आप अपना राग अलापना जारी रखें.....परन्तु चंद पलों के लिए ही सही .......सोचियेगा जरूर ........क्या इस बार विरोध करके आप वास्तव में राष्ट्रहित में ही सोच रहे हैं...... ....
(मनोज)
सहमत हूँ..... सार्थक विवेचन
ReplyDeleteबढ़िया एवं सार्थक लेख .
ReplyDeleteVicharniya & sarthak lekh keliye badhai
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत। स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए तो देश में पहले भी महापुरुषों ने बलिदान दिया है। विरोध सिर्फ ऐसे लोग कर रहे हैं जिनकी आस्था विदेशों में है और राजनीतिक रोटियां सेंकना है।
ReplyDeleteबढ़िया एवं सार्थक प्रस्तुति ..
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