सुबह सुबह उठने की किसकी इच्छा होती है, जो सुयश की होती, परन्तु परीक्षा थी और पिता जी ने डांट कर उठाया तो भुनभुनाते हुए उठने के अतिरिक्त कोई चारा भी न था, उठा तो पहले से ही काफी देर हो चुकी थी, अतः 10 मिनट के अन्दर फटाफट तैयार हो वह स्कूल की ओर भागा, रोज की तरह आज भी उसकी तैयारी शून्य थी और नम्बर भी उतने ही आने की सम्भावना, लिहाजा जाने से पहले अपने मोजों मे रात्रि में मेहनत कर बनाये गये पुर्जों को रखना नहीं भूला था वह,
सुयश उछलता कूदता तेजी से जा ही रहा था कि उसने देखा कि एक अर्धनग्न सा व्यक्ति कीचड़ मे गिरा पड़ा है, उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई और बाल अस्त व्यस्त थे, देखने में ही कोई पागल सा नजर आता था, सुयश को ऐसे दृश्य अत्यन्त सुहाते थे, उसने आव देखा न ताव ढ़ेले उठाये और दे दनादन उस व्यक्ति पर अपने निशाना लगाने की क्षमता की जांच करने लगा, उसे आश्चर्य नहीं हुआ कि उसके अधिकतर निशाने सटीक लगे थे, वह विक्षिप्त से व्यक्ति आंव बांव बक रहा था, उसने तमाम गालियों के बाद जो अन्तिम बात कही वह यह कि "जा तेरा कोई काम नहीं बनेगा", सुयश ने सर झटका, बहुत देखे ऐसे भविष्यवक्ता, और स्कूल की ओर बढ़ गया……
पहले ही अधिक देर हो चुकी थी लिहाजा सुयश ने और अधिक देर करना उचित नहीं समझा, वह शीघ्र ही स्कूल पहुंच गया, परीक्षा शुरू हो चुकी थी, सुयश भी अपने स्थान पर बैठ गया, प्रश्न पत्र अपेक्षा के अनुरूप उसकी समझ से परे ही था, उसने अपनी चिट निकालनी चाही, परन्तु यह क्या ? अभी उसने अपने मोजे से पुर्ची निकाली ही थी कि पीछे मास्टर खड़ा मिला, और इससे पहले की सुयश संभलता उसके चेहरे पर तड़ाक तड़ाक अनगिनत चांटे पड़ चुके थे, कापी पर टिप्पणी मिली, सो अलग, बेचारा सुयश, रूआंसा सा स्कूल से निकला, लौटते हुए रास्ते में पुनः उसे कीचड़ से सना हुआ वह विक्षिप्त दिखाई दिया, अचानक ही उनकी यह बात उसके कानों में गूंज गई कि "जा तेरा कोई काम नहीं बनेगा", सुयश को समझ आ गया था कि उसकी ये दशा अवश्य उस व्यक्ति के श्रापों का परिणाम है, सुयश का मन भावुक हो उठा, वह अत्यन्त श्रद्वा से उस व्यक्ति के पास पहुंचा, उसे सुझाई नहीं दे रहा था कि वह आखिर उन्हें किस नाम से सम्बोधित करे, परन्तु शीघ्र ही उसे इसकी भी एक उक्ति सूझ गई, कीचड़ अर्थात मल से सने होने के कारण उसने अपनी तरफ से ही उसका नाम रख दिया – "मल बाबा"
मल बाबा मुझे क्षमा कर दीजिए, मैंने आपको गलत समझा, आप तो अन्तर्यामी हैं, - परन्तु सुयश की इस बात पर विक्षिप्त ने कोई ध्यान न दिया, वह हुंह हुंह कहकर अपना सर झटक रहा था,
सुयश को लगा कि मल बाबा ने उसे माफ नहीं किया है, अतः उसने दौड़कर उनके पैर पकड़ लिए, बोला – बाबा क्षमा कीजिए, दोबारा ऐसी भूल न होगी,,,,,,
अबे पैर छोड़, मल बाबा पैर छुड़ाते हुए बोले
छोड़ दूंगा, पहले यह कहिए कि क्षमा कर दिया, सुयश गिड़गिड़ाया
हां हां कर दिया, पैर छोड़, मल बाबा ने झिटकारा
बाबा कल तो सफल रहूंगा न, सुयश ने याचक दृष्टि से उनकी ओर देखते हुए कहा
रहेगा रहेगा, अब भाग यहां से, कहकर इससे पहले कि सुयश जाता मल बाबा कीचड़ से निकल कर तेजी से भागे
सुयश ने भी आर्शीवाद मिला जान वहां से चले जाने में अपनी भलाई समझी
अगले दिन फिर वही स्कूल, वही सुयश, वही पुर्चियां, लेकिन आज किसी मास्टर ने उसके कार्य में हस्तक्षेप नहीं किया, सुयश ने खूब लिखा और जी भर कर लिखा, बाहर निकलने पर वह मन ही मन बुदबुदाया, जय मल बाबा की,,,,,,,
अब क्या था, पूरे गांव में यह बात फैलाने में सुयश ने जरा भी देर ना लगाई कि मल बाबा में अलौकिक शक्तियां विद्यमान हैं, लोगों ने बड़ी श्रद्वा से मल बाबा को पहनने के लिए वस्त्र एवं रहने के लिए गांव के उत्तरी कोने पर बने हनुमान जी के मंदिर के एक खाली कमरे को दे दिया, मल बाबा के क्या कहने, ठाठ हो चुके थे उनके, लोग उनका आर्शीवाद लेने उनके पास आने लगे, मल बाबा पहले तो झिड़कते थे, लेकिन शीघ्र ही उन्हे आत्मज्ञान हो ही गया, उन्हें पता चल चुका था कि लोग कष्टों से घिरे हुए हैं और उनके खुद के अन्दर हो न हो, कुछ तो है तभी तो लोग उनके पैर छूते हैं ओर उनसे आर्शीवाद की याचना करते हैं, सुयश ने भी अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़ मल बाबा की शरण ली, वह उन्हें मिले दान का हिसाब किताब रखने लगा था, आखिर इतना तो बनता ही था उसका, उसी ने तो मल बाबा को प्रसद्वि दिलवाई थी,
इसी प्रकार दिन पर दिन बीतने लगे, मल बाबा की प्रसिद्वि अब दूर दूर के गांवो तक फैल चुकी थी, मल बाबा ने घोषणा करवा दी थी कि जो पूर्ण श्रद्वा से उनके पास आयेगा, सिर्फ उसी की मनोकामना पूर्ण होगी, चूंकि आने वालों की संख्या अधिक थी अतः उनमें से स्वतः ही कुछ लोगों की समस्यायें दूर हो जाती थी, जिन लोगों की समस्या दूर नहीं होती थी, उनके लिए सीधा जवाब था, उनकी श्रद्वा में कमी है, अथवा अवश्य उन्होंने पिछले समय में कोई गहरा पाप किया है, तभी उसका कल्याण नहीं हो पा रहा है, अब दूध का धुला कौन है, लिहाजा हर वह व्यक्ति जिसकी मनोकामना पूर्ण नहीं होती थी, अपने पूर्व में किए गये किसी अपराध को याद कर संतोष कर लेता था,
साल भीतर ही मल बाबा के पास धन का अंबार लग चुका था, परन्तु मल बाबा का पेट इतने से न भरा, उन्होंने सुयश के साथ मिलकर अधिक धन कमाने की एक युक्ति निकाली, उन्होंने घोषणा करवा दी कि जिन लोगों ने किसी भी प्रकार के पाप कर्म से धन अर्जित किया है यदि वे उसका एक चौथाई मल बाबा के श्री चरणों में अर्पित कर देते हैं तो उसे उस पाप से उसे मुक्ति मिल जायेगी, इस कार्य हेतु एक बड़ा मुक्ति पात्र निर्मित करवाया गया, जिसमें धन अर्पित करने के पश्चात उस व्यक्ति को बाबा के श्री चरणों पर माथा लगाना था, और फिर वह पाप मुक्त,,,
अब क्या था, यह युक्ति काम कर गई, मल बाबा की आय दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ने लगी, समय बीतने लगा और अब मल बाबा एक स्वर्ण सिंहासन पर बैठ कर लोगों की व्यथा कथा सुनने लगे, नेता, अभिनेता सब उनकी चौखट पर चाकरी को आने लगे थे, अब तक उनके अनेक चेले चपाटे हो चुके थे, एक प्रमुख चेली भी थी, जो उसके सदैव समीप रहने लगी थी, वह चेली मल बाबा को किसी भी अवांछित व्यक्ति से दूर रखने का काम करती थी, लेकिन इस मध्य सुयश की प्रमुखता में जरा भी कमी नहीं आई थी,
अचानक से एक रात्रि पुलिस की पूरी टीम ने बाबा के आवास पर धावा बोला, उन्हें सूचना मिली थी कि उमरिया गांव में हुई डकैती में बाबा का भी हाथ है, उल्लेखनीय है, कि उमरिया गांव के एक सरकारी बैंक में चार रोज पहले डकैती पड़ी थी, जिसमें 26 लाख रूपये लूटे गये थे और गार्ड को गोली मार दी गई थी, मल बाबा, सुयश और उनके चेली, चेलों ने भागने का प्रयास तो किया पर धरे गये, चूंकि छापा रात में पड़ा था इसलिए बाबा के अंधभक्त जन भी मौजूद नहीं थे, जो कार्य में व्यवधान डालते, फिर क्या था, तलाशी अभियान शुरू हुआ, बाबा के घर की तलाशी में मिले धन ने सभी की आंखे चुंधिया दी, पूरा स्वर्ण भंडार था, रूपया तो इतना कि गिनने में पूरी रात बीत गई, इन्हीं रूपयों में बैंक लूट में से साढ़े छः लाख रूपये भी थे, जो कि चिन्हित हो गये, पुलिस समझा गई कि जरूर डकैतों ने पाप-मुक्ति के लिए वह धन बाबा के श्रीचरणों में अर्पित किया होगा,,,,
सुबह सुबह भक्त कम और कौतुहल व्यक्त करती भीड़ अधिक उमड़ी, बाबा की अकूत सम्पत्ति उन सबके सामने थी, पुलिस ने जानबूझ कर मल बाबा और उनकी टीम को सुबह गिरफतार करना चाहा था, ताकि लोग भी उसकी ठगी को देख समझा सकें, और उसका चेहरा लोगों के सामने बेनकाब हो सके, परन्तु भक्तों की बाबा के समर्थन में जोरदार नारेबाजी के सामने उनकी एक न चली और बाबा और उनके साथियों को पिछले दरवाजे से ही ले जाना पड़ा,,,,
पुलिस चौकी के बाहर भीड़ जमा थी तो थाने के भीतर मल बाबा की ठुकाई जारी थी, पुलिस ने उसे उन-उन जगहों पर चुन-चुन कर मारा, जहां का उल्लेख करते भी शर्म आती है, परन्तु बाबा न फूटे, सुयश के साथ भी यही व्यवहार हुआ, लेकिन जब पुलिस अधिकारी का हाथ बाबा की चेली तक पहुंचा तो बाबा टूट गये और उन्होंने रोते रोते अपनी कथा कह सुनाई,
बाबा बोले – हुजूर माई बाप मैं कोई बाबा वाबा नहीं हूं, न ही मुझे बाबागीरी जैसा कुछ आता जाता है, मैं तो अरडि़या गांव का मजदूर खदेरू हूं और ये जो हमारी चेली बनी है, ये मेरी पत्नी संदेशी है, हुजूर आपको तो पता ही है कि मजदूरी में कितना कम मिलता है, अंगूठा एक सौ दस पर लगवा के ठेकेदार महज सत्तर रूपये देता है, पर रोजाही पक्की होने के कारण मैं वहां जमा था,,, साहब मुझे दारू की बुरी आदत थी, जिसके कारण पत्नी से नहीं बनती थी और अक्सर ही मारपीट होती रहती थी, उस दिन भी मैं देशी ठर्रे के नशे में धुत्त होकर घर पहुंचा था, पैसा न होने के कारण घर में चूल्हा नहीं जला था, जिसे लेकर मेरी पत्नी पहले से ही खिन्न थी, ऊपर से मेरी गाली गलौच,,,, उसने आव देखा न ताव डंडा लेकर मेरे ऊपर पिल पड़ी, साहब, मैं कुत्ते की तरह भागा और कब तक भागा मुझे खुद होश नहीं, लेकिन हां होश तब आया जब मेरे शरीर पर इस कमीने सुयश के पत्थर पड़े, मुझे याद है, मैंने इसे खूब गाली दी, और फिर काम न बनने की बद्दुआ भी,,,,,, और साहब यही मेरी खता हो गई, न जाने क्यों थोड़ी देर बाद ही इसने आकर मेरे पैर पकड़ के माफी मांगी और फिर मुझे बाबा बना दिया,,,,, साहब कुछ दिन मुझे कुछ न समझ आया लेकिन बाद में मन में लालच आ गया,,,,, और इस प्रकार से धंधा चल निकला, हुजूर मेरी कोई खता नहीं, मेरी जान बख्शी जाए,,,,,
इसके बाद जब खदेरू से बैंक डकैती के बारे में पूछा गया तो उसने अनभिज्ञता जाहिर की, उसकी फिर से खातिर की गई, लेकिन खदेरू वास्तव में उससे अनजान था, लेकिन जब उनसे कुछ फोटो दिखा कर पहचनवाये गये तो उसने झट से अपने एक भक्त को पहचान लिया, इस तरह से मल बाबा की शिनाख्त पर शीघ्र ही उन भक्तों को पहचान कर उन्हें मल बाबा के साथ बंद कर दिया गया, जोकि बैंक डकैती में शामिल थे,,,
अदालत में हुई कार्यवाही में मल बाबा को सिर्फ तीन साल की सजा मिली, उन पर लूट के धन को रखने और छुपाने का आरोप लगा था,,,,,,, मल बाबा की पत्नी और सुयश को जनता के साथ धोखाधड़ी के लिए छः माह की साधारण कैद हुई, जो कि वह अदालत की कार्यवाही के दौरान ही पूरी हो चुकी थी,,,,,,
मित्रों, सुनने में आया है कि मल बाबा कुछ माह पूर्व जेल से छूट चुके हैं, अपने अगल बगल ध्यान से देखिएगा, कहीं वह किसी और नाम से आजकल आपको तो नहीं ठग रहे,,,,,,,,
मनोज कुमार श्रीवास्तव
बहुत खूब| सुना है आजकल टीवी पे आते है...
ReplyDeleteबच के रहना रे बाबा
Deleteबच के रहना रे
बच के रहना रे बाबा
तुझपे नजर है
अच्छा लिखा है
ReplyDeleteशुरू से अंत तक पाठक को बांधे रखती है आपकी कहानी
पढ़ने और पसन्द करने के लिए धन्यवाद नेहा
Deleteयथार्थ को कहानी के माधय्म से पहुचाने के लिए शुक्रिया मनोज जी!
ReplyDeleteयथार्थ को कहानी के माधय्म से पहुचाने के लिए शुक्रिया मनोज जी!
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