Sunday, 9 October 2011

ताजा समाचार !!!


मत दें वोट कांग्रेस को ........... अन्ना का आह्वान...
नहीं ये सच्ची पार्टी ............... .उन्हें मिला है ज्ञान...
उन्हें मिला है ज्ञान..................प्रचार उनके विरुद्ध है....
बार बार खाकर धोखा..............ये वृद्ध क्रुद्ध है......
तुलसी ने सच कहा है..............भय बिनु होय ना प्रीत...
भ्रस्टाचार के शत्रु से.................अब भय से होगी जीत......





  घर में कलह अशांति................लेती है सुख छीन...
  नारी पर आरोप ये....................लगते हैं संगीन...
  लगते हैं संगीन.........................यही घर तोड़ने वाली..
  जर जमीन के संग....................जंग को जन्मने वाली...
  कह मनोज सच जान लो...........मित्रों खोल के कान...
  शांति की खातिर तीन नारियों.... को नोबेल सम्मान...




धर्म नाम ले गुट बना.............रहे इक दूजे को चढ़ाय...
जाति पाति के नाम पर.........झंडा लियो उठाय.....
झंडा लियो उठाय .................नाम को हिन्दुस्तानी......
पर कर्मों से निंदाजनक.........निपट अज्ञानी......
कह मनोज मानव यही..........मानवता का काल.....
इक दूजे को फांसते...............खुद फंसता है जाल......



           
           सुना है अन्ना राष्ट्रपति.............हों ऐसा प्रस्ताव......
           कहती है कांग्रेस कि.................इसीलिए है ताव.....
           इसीलिए है ताव......................विरोध भी कांग्रेस का...
           सत्ता का है जाल......................नहीं बस ख्याल देश का...
           कह मनोज पद का नहीं...........है अन्ना को रोग.....
           बनते हैं तो राष्ट्रहित ................का उत्तम संयोग....

                                                                                मनोज 



Thursday, 29 September 2011

छोटी छोटी बातें !!





बैठे बिठाये हो रहा .............जन गण का अपमान.......
चिंतित मन कैसे बचे..........अब सबका सम्मान.....
अब सबका सम्मान...........बड़ा मुश्किल सच कहना.....
चाबुक चलता चपल............चाशनी जब ना पहना....
कह मनोज आलोचना.........का न पचना आसान.....
लुटता है लुटता रहे.............अभिव्यक्ति सम्मान.......






                    रूपये बत्तीस बहुत हैं............कहती ये सरकार......
                    अर्थशास्त्री राज में...............ज्यादा है धिक्कार ......
                    ज्यादा है धिक्कार .............गाँव में छब्बीस ज्यादा...
                    मित्रों मत तुम भूलना.........अब अपनी मर्यादा.....
                    कह मनोज सरकार का ......नहीं है कोई दोष....
                    सत्ता मद में गौड़ है...............जनता का आक्रोश........







बैठे दो मंत्री मिले.................धुले सभी के कलंक.....
दोनों ने मुस्कान से ............जनता को दिए डंक....
जनता को दिए डंक......... ..नकारे सभी घोटाले....
कहा कि बस थे ...................नीति पुराने हमने डाले...
कह मनोज कलि काल में.....नैतिकता अभिशाप....
रूढ़ीवादी लोग ही..................करते इसका जाप....




मनोज  

Wednesday, 21 September 2011

वाह ! हम अमीर हो गए !!


दोस्तों जीवन के कई दशक बीत जाने के बाद आज जाकर ज्ञान की प्राप्ति हुई.........आज जाके पता चला की हम तो मूर्ख हैं.......महामूर्ख !!! ....... मैं ही क्यों आप  भी मूर्ख हैं........हम सभी मूर्ख हैं........मूर्ख होने के साथ साथ  फिजूलखर्च भी........अरे जब हमारा गुजारा मात्र ३२ रूपये में हो सकता है......फिर हम इससे अधिक क्यों खर्च करते हैं..........हम क्यों अनाप शनाप खर्च करते जाते हैं.......और इसके बाद भी गरीबी का रोना रोते रहते हैं........कम वेतन का रोना रोते हैं.......सरकार को कोसते हैं.........पेट्रोल, डीज़ल, फल, शब्जियों के बढ़ते दामों  को कोसते हैं........परन्तु आज सरकार ने हमें बता ही दिया......कि कितने पैसो की जरुरत होती है........जीवन यापन के लिए.......और वह सच यह है कि ३२ रूपये शहर में और २६ रूपये गाँव में पर्याप्त होते हैं ........ 


आज सरकार ने बताया की शहरों में यदि किसी की खर्च करने की क्षमता ३२ रूपये और गाँव में २६ रूपये है तो वह व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे नहीं आता......मतलब साफ़ है की ऐसा व्यक्ति गरीब नहीं है ........दूसरा मतलब यह कि वह गरीबी से दूर और ऊपर उठ चुका है........आज अनायास ही मुझे बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आ गई......जिसमे एक राजकुमारी जंगल में घूमने गई थी.......और ठण्ड से बचने के लिए वह एक गरीब की  झोपडी जलवा देती है....... परन्तु तब उसके पिता जोकि राजा भी थे, ने उसे सत्यता और श्रम के महत्व का एहसास करवाने के लिए राज्य से तब तक के लिए बाहर निकाल दिया था, जब तक की वह अपने श्रम से एक झोपडी ना बनवा दे....... 

परन्तु तब की बात और थी और अब की और.......अब ना तो आदर्शवादिता बची है और ना ही नैतिकता जैसी कोई चिड़िया......वर्ना आज भी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने के बाद योजना आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष डंके की चोट पर कहते की हाँ ऐसा संभव है..........३२ रूपये में पौष्टिक आहार मिल सकता है.......नहीं मानते तो  कम से कम आगामी एक माह तक हम ३२ रूपये प्रतिदिन की दर पर अपने भोजन की व्यवस्था करके दिखाते हैं........साथ ही वह यह भी कह सकते थे की जब ९६० रूपये प्रतिमाह से जीवन यापन हो सकता है तो हम भविष्य में इससे अधिक वेतन नहीं लेंगे........वैसे तो ये भी हमारे लिए अधिक ही होगा क्योंकि......यात्रा तो हम सरकारी गाड़ियों में करते हैं........और मकान की कोई किश्त  हमें देनी नहीं है....... परन्तु ऐसे विचार मन में लाना भी मूढ़ता है.......और सरकार से मूर्खता के अपेक्षा करना इसकी परकाष्ठा ............

परन्तु मेरे मन एक और विचार आता है......की आखिर क्या बात है कि सरकार को ऐसा दुराग्रहपूर्ण हलफनामा देना पड़ा........ ज्यादा सोचने की शायद जरुरत नहीं...........मुझे तो यही समझ आया कि सरकार की कोई गलती है ही नहीं .......सच तो यह है की सरकार को सत्यता और वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं है.......अरे गरीबी का दर्द तो वह समझे जिसने गरीबी देखी हो.........भूख की छटपटाहट तो वो समझे जिसे एक वक्त भूखा सोना पड़ा हो.......कहते हैं न........"जाके पैर ना फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई".........यानी की जिन लोगों ने सदैव चाँदी के चम्मच से दुग्धपान  किया हो......उन्हें क्या पता कि २.३३ रूपये में कितना दूध आता है.......और १.०२ रूपये में कितनी दाल ...... अब आप कहेंगे की तो क्या गरीबों को ही देश चलाने का कार्य दे दिया जाए क्योंकि आटे दाल का भाव तो उन्हें ही सर्वाधिक पता होता है........तो मै कहूँगा की मेरे कहने का मतलब ये कदापि नहीं है...... 

एक अमीर का बच्चा 

मुझे फिर एक कथा की याद आती है....... वह यह की एक बार एक व्यक्ति व्यापार करने देश से बाहर गया.......अपने पीछे वह अपनी दो साल की पुत्री और अपनी पत्नी को छोड़ कर गया था......वह व्यक्ति किन्ही कारणों से १५-१६ साल तक अपने देश वापस नहीं लौट पाया........परन्तु जब वह लौटा तो बहुत खुश था......उसने सभी के लिए कुछ ना कुछ लिया था.......अपने सुन्दर उपहारों को देख कर वह फूला नहीं समां रहा था.......परन्तु जब वह घर लौटा तो अपनी पुत्री को पहचान ही नहीं सका.......कारण स्पष्ट था........कि उसकी पुत्री अब सयानी हो चुकी थी.......और उसके लिए वह जो फ्राक बड़े प्यार से खरीद के लाया था वह उसके किसी काम के ना थे.......

मित्रों इस कथा की भांति आज भी दशा कुछ अधिक नहीं बदली है ........आज के देश के कर्णधार भी उस व्यापारी की भांति हैं जो इस गलफहमी में हैं कि कदाचित आज भी वस्तुए उन्ही दामों में मिल रही हैं........जिन दामों में उनके बचपन में मिला करती थी....... उन बेचारों को ये पता ही नहीं की मंहगाई रुपी राक्षसी तो कब की सयानी हो चुकी है........अतः गलती उनकी है ही नहीं.......यथार्थ के धरातल पर आने की उन्हें फुर्सत ही कहाँ है, की वे कुछ समझें..........अब भला सोचिये की सड़को की दशा उस नेता को भला कैसे चल सकती है, जो अपनी साड़ी यात्राएँ हेलिकोप्टर से करता हो......कथन का तात्पर्य यह है प्रधान (मंत्री) जी की आप जनता के पास नहीं जा सकते ......मत जाइये ........नहीं जाते हैं .... उसकी भी जरुरत नहीं .........परन्तु उनकी मुसीबतों का आंकलन करने के लिए तो कम से कम किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त कर देते जिसका जन्म अर्थशास्त्र की किताबों से ना हुआ हो.......

बहरहाल चलिए छोड़ते हैं.......आपको आपकी हालत और हालात पर.......आपकी बातों से भी कुछ सार्थक जरुर ही निकलेगा.......हो सकता है की अब भूखे पेट सो रहा गरीब इस एहसास के साथ सोये कि सरकारी कागजों में ही सही परन्तु वह अमीर हो गया है.......और आप जैसे वोटों के दरिद्र शायद इस चिंता में जागें कि कहीं आपके द्वारा गढ़ी इस नई परिभाषा ने आपकी अमीरी में सेंध तो नहीं लगा दी........


मनोज  

Sunday, 21 August 2011

भ्रस्टाचार

कौन है कहता यारों कि ये होता भ्रस्टाचार
श्रम बिना धन अर्जित करने का है मात्र विचार
फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
जब घर घर में है करप्शन 

                                                    एक थे साहेब मिले थे जिनके बिस्तर में से नोट
                                                    बने थे मंत्री ये तो प्यारे पा पब्लिक का वोट
                                                    बनी  अदालत पर ना पाई उसने इसमें खोट
                                                    गधा ज्यों लोटे मिट्टी में वो धन मे रहे थे लोट
                                                    सुख देता है राम तो भैया क्यू करते हो वार
                                                    श्रम बिना धन अर्जित करने का है मात्र विचार
                                                    फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
                                                    जब घर घर में है करप्शन 




सबसे बड़े साहेब ने  बचाई शर्माकुल सरकार
वोट कम पड़े तो कर डाला उसका भी व्यापार 
छोटे छोटे दलों को धन दे खूब समेटा प्यार
पर चींटी जैसे गुड ना छोडती छोड़ी ना सरकार
जब नरसिंह भगवान् प्रसन्न तो सबकी टपके लार
श्रम बिना धन अर्जित करने का है मात्र विचार
फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
जब घर घर में है करप्शन 

                                                 कोमनवेल्थ को समझ के अपना पैसे खूब उड़ाये 
                                                 गलती ये की मौका देख के भाग नहीं ये पाए
                                                 सोचा तो सरकार है अपनी अभी और भी कमायें 
                                                 पर जजों की बैठी टीम तो लोहे के कंगन बनवाये
                                                 सुर के ईश ने यही पर माना हुआ है अत्याचार            
                                                 श्रम बिना धन अर्जित करने का था मात्र विचार
                                                 फिर क्यू हो किसी पे एक्शन 
                                                 जब घर घर में है करप्शन 



किसका कितना लिखें पड़ेगा कागज छोटा
अच्छे अच्छों ने है माल बनाया मोटा 
पर उसको कहाँ सुहाता जिसको पड़ा है टोटा
इक बुड्ढा पीछे पड़ा है देखो ले के सोटा
आ ना, आ ना कहकर भूखा लड़ने को तैयार 
श्रम करो फिर मन में लाना धन संचय का विचार
अब होगा सभी पर एक्शन 
चाहे जिस घर में हो करप्शन 


जय हिंद


मनोज 

Saturday, 13 August 2011

भारत की हार


गीदड़ क्यों बन बैठे, भारत माता के प्यारे तुम शेरों
अरि के सम्मुख शीश नवाते, लज्जा क्या आई थी बोलो
उनके चुभते शस्त्रों से स्तब्ध न हो बल अपना तोलो 
तेरे पास है शक्ति असीमित, अपना शस्त्रागार टटोलो 






करो याद कब कब तुमने शत्रु का शीश झुकाया है
करो याद हम सबके लिए कैसे अमृत भी जुटाया है
करो याद कैसे जन जननी ने तुमको सम्मान दिया 
करो याद उस ध्वज को जिसके सम्मुख है अभिमान किया 



और नहीं बस शिथिल पड़ो कह दो विजयी बन आयेंगे 
जग जीता था, जग जीतेंगे नहीं पराजय पायेंगे 
कसम हमें है मातृभूमि कि दर्प शत्रु का चूर्ण करेंगे
देशवासियों धैर्य धरो हम स्वप्न सभी के पूर्ण करेंगे



मनोज

Sunday, 17 July 2011

भगवान् बनाम इंसान

आज का समाचार सुनते हुए पता चला की शिर्डी के साईं के दरबार में रूपये ७ करोड़ का चढ़ावा पिछले कुछ दिन में ही आ गया है........अभी अधिक दिन नहीं हुए जब पद्मनाभ मंदिर के पांच तहखानो से ही लगभग १ लाख  करोड़ रूपये की संपत्ति मिली थी........छठे तहखाने से क्या मिलेगा, इसके तो सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं.....इस एक मंदिर का ये हाल है.....तो बाकी मंदिरों की तो बात ही क्या.....कुछ ज्ञात तो कुछ अज्ञात ......जगह जगह खजाना छुपा हुआ है.......अब समझ आया की हमारे देश को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था.......परन्तु अफ़सोस आज देश की सोने की सारी चिड़ियाएँ बड़े बड़े मगरमच्छों के पेट में समां चुकी हैं.......

परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है की इस बीच सरकार कहाँ है........देश की हालत क्या  है किसी से छुपी नहीं.....अर्जुन सेन गुप्ता की कमेटी के आंकड़ो को सही माने तो देश की ७७% जनसँख्या की दैनिक आय रूपये २० प्रतिदिन से कम है......जबकि इसके उलट सरकारी आंकड़े बताते है की २००१ में मात्र ३६ प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रह गए थे......और फिलहाल लगभग २६%, यानी की गरीबी दिन-ब-दिन कम  होती जा रही है......अब गरीब कौन और गरीबी के रेखा कैसी है .....इसका निर्धारण इन विसंगतियों को देख कर आप स्वयं कर लीजिये....

आंकड़ो पर मत जाइये .....सच तो  यह है की हमारे देश की ७५ से ८० फीसदी जनसँख्या आज भी गरीब है......उसके पास जीने लायक आवश्यक संसाधन नहीं हैं.....लेकिन सरकार है की एक लकीर खींच कर बैठी  है और उसे पीट रही है........इस गरीबी की रेखा बारे में तो भगवान् ही बेहतर बता सकता है........या फिर इस देश के जानकार नेता....जिन्होंने लक्ष्मण रेखा की तरह इस रेखा की संरचना की है........जिन्होंने हिंदुस्तान की गरीबी नापने के लिए उनके भोजन में उपलब्ध कैलोरी जैसे गूढ़ चीज़ों का खास अध्ययन किया है......


लकड़वाला समिति के अनुसार गाँव में अगर एक व्यक्ति को २४०० किलो कैलोरी से कम और शहर में २१०० किलो कैलोरी से कम का भोजन मिलता है तो वह गरीबी रेखा के नीचे माना जायेगा.......और सरकार के हलफनामे के अनुसार गाँव में १७ रूपये में और शहरो में २० रूपये में इतना भोजन मिल जाता है.................मान गए लकड़वाला जी........क्या फार्मूला लाये हैं आप..........अब आपको कौन बताये कि कौन आदमी इस फार्मूले के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे है और कौन नहीं............इसका पता तो आपके बाबूजी (बाप लिखना थोडा चीप लगा मुझे).......भी नहीं लगा पाएंगे......खैर माफ़ कीजिये.............बुद्धिजीवियों पर इस तरह कि टिप्पड़ियां ठीक नहीं.....उनकी भावनावों को ठेस पहुँचती है भाई....... और गरीब जिए या मरे....बुद्धिजीवी का सम्मान जरुरी है.......है न....

अरे हम कहाँ से कहाँ चले गए......आइये फिर से मुद्दे पर चलते हैं........प्रश्न यह है की भगवान् इतनी संपत्ति का करेगा क्या ???......जबकि दूसरी ओर गरीब की हालत खस्ता है !!!.........क्या वास्तव में भगवान् को इतनी संपत्ति की जरुरत है.......नहीं ना........सही समझे......जरुरत किसे है........ये भी सही समझे आप......तो फिर इन मगरमच्छों के बारे में भला सोचेगा कौन.......कौन इन मगरमच्छों के पेट से हमारी सोने की चिड़िया को बाहर  निकलेगा......किसी को तो साहस करना ही पड़ेगा........हम आप नहीं बाबा....सरकार की बात कर रहा हूँ मैं......याद कीजिये........उसे ही तो हमने चुना है हमारी देखबाल करने और हमारी सुरक्षा करने के लिए.....देश को सही दिशा देने के लिए......और देश को सम्रद्ध बनाने के लिए........

अब आप पूछियेगा की तो क्या इन सभी संपत्तियों का अधिग्रहण कर लेना चाहिए.... बिलकुल नहीं.....मैं भला ऐसा कहने वाला कौन होता हूँ......मैं भला ऐसा कहने वाला कौन होता हूँ......हम तो मात्र इतना कहेंगे कि महज १५००० से २०००० तक कमाने वाले का तो सरकार शोषण करती है......टैक्स के नाम पर साल में एक महीने के तनख्वाह झट से झपट लेती है......परन्तु कुछ रोज़ में करोडो का चंदा या दान जुटाने वालो पर सरकार की दृष्टी नहीं जाती.....ट्रस्ट के नाम पर बिना टैक्स के अर्जित इस धन को आप क्या कहेंगे........क्या ये काला धन नहीं.......जो लोग करोडो के मुकुट और हार चढाते हैं क्या उसकी जांच नहीं होनी चाहिए......और फिर क्या उसके स्रोत की जांच नहीं होनी चाहिए.......और कब तक .....चैरीटेबल ट्रस्ट के नाम पर संपत्ति बिना टैक्स दिए अर्जित की जाती रहेगी......वो भी तब जबकि देश को दिशा देने के लिए धन की कमी आड़े आ रही हो........गावो में अस्पताल न हो.......स्कूल और यूनीवरसिटिज़ ना हों.....सड़के न हों, बिजली ना हों.......पानी ना हों........भोजन ना हो.......खेतो के लिए खाद ना हो......बीज ना हो.....भगवान् भरोसे पैदावार हो और फिर भगवान् भरोसे उसकी बिक्री......जहाँ सरकार न्यूनतम से आगे बढ़ने का साहस ना जुटा पाती हो.....न्यूनतम समर्थन मूल्य......न्यूनतम साझा कार्यक्रम......कोई पूछे की भला अधिकतम क्यों नहीं.......कुछ तो अधिकतम करो......कब तक देश न्यून से काम चलाता रहेगा......जवाब मिला .....सोलिड मिला .....बहुमत ही पूर्ण नहीं........फिर पूर्ण काम कैसे होगा......सारा ध्यान और सारा धन तो बहुमत बचा के रखने में चला जाता है......बाकी के बारे में सोचने का टाइम मिले तब न.......बढ़िया है.......बहुत बढ़िया......परन्तु एक बात याद रखिये.......ये जवाब अधिक दिनों तक जनता को मूर्ख बनाने के लिए पर्याप्त नहीं.....कुछ और भी जुमले सोच के रखियेगा.....

भगवान् को निश्चित रूप से धन की कोई आवश्यकता नहीं......शिर्डी के साईं के पास तो कोई संपत्ति थी ही नहीं.....इधर उधर मांग कर जो मिल गया उसी को खा लिया......फिर भला इतने चढ़ावे का वो क्या करेंगे......और तहखानो की बाते मुझे उस बुढ़िया की याद दिलाते हैं जो भूखी मर गई.......परन्तु बाद में उसकी झोपडी में सोने और चांदी के सिक्के जमीन में गड़े मिले........शायद उस दुखियारी को ये पता रहा हो की यहाँ पर धन है.......परन्तु उसने इस डर से किसी को ना बताया हो की कोई उससे ये सब छीन लेगा.....परन्तु इस तरह की विवशता सरकार के सम्मुख तो नहीं फिर वह उस वृद्धा की तरह व्यवहार क्यों कर रही है......

परन्तु कुछ इसी तरह की बात मुझे भगवान् के धन को लेकर दिखाई दे रही है.........धन है......वो भी भगवान् का........परन्तु वो गरीबो के कल्याण में नहीं लगाई जा सकती ........भला क्यों ???......क्या इससे भगवान् की दौलत कम हो जायेगी......ये अंदेशा है.......अगर नहीं........तो फिर निश्चित रूप से इस धन का सदुपयोग जन कल्याण में होना चाहिए........भगवान् तो सबके हैं.......फिर ये धन कुछ लोगों का होके कैसे रह सकता है........ये धन सभी का है और सभी को इसका लाभ मिलना चाहिए....सबसे पहले उन्हें जिसे इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है.......

और फिर इसके आगे ट्रस्टों पर टैक्स तुरंत लगाया जाना चाहिए........एक सीमा से अधिक धन संचय पर भी रोक लगाया जाना जरुरी है.........चढ़ावा चढाने वालों के आय के स्रोत की भी जाँच होनी चाहिए...........कहीं वे अपना काला धन भगवान् के यहाँ तो नहीं खपा रहे........जरुरत है एक समग्र सोच कि, एक दूर दृष्टी क़ी .......एक रूपरेखा तैयार करने की.......जो मगरमच्छों का पेट फाड़ कर सोने की चिड़िया को बाहर निकल सके और फिर जिसका उपयोग करके देश  एक बार फिर से समृधि की राह पर आगे बढ़ सके.......



मनोज 

Saturday, 9 July 2011

My thoughts.......

1. Yadi koi prem se ek kadam aage badhaye.......to uski taraf do kadam aage badhao........ Parantu......Agar koi tumse ek kadam peeche kheenche.........to usse do kadam peeche kheench lo......(If someone step forward one step towards you.....you move two steps towards him.......but if someone takes back one step.....you should take two steps backwards.)

2. Jeevan sukh aur dukh ka prayay hai......parantu kabhi bhi apne dukh ko apne chehre par mat aane do......logo ko tumhare chehre se tumhare hirday k bheetar ki  bhavnon ka pata nahi chalna chahiye.....(Life is made from happiness and sorrows.....but you never let your sorrows come on your face.......People around you must not know what is happening in your heart) 
Reason - We should not make others sad due to our problems, but we should always search a reason to make people happy due to us.

3. Jab bhi tum jeevan se tang aa jao.....atyadhik dukhi raho........jeevan me nirasha hi nirasha dikhai de.....aur tumhe koi rasta na sujhe........to meri maano, pichli baaton ko pichle jeevan ki tarah bhula kar shunya se jeevan ki dobara shuruvaat karo.... (Whenever you fed up from your life.......remain very very sad and found no way in life to come out from you deep unrest and sorrows.......Take my advise ......and just forget the everything, like earlier life......and start the life from point Zero.....All your grieve will be vanished)
Tonic - I know it's tough and people say that it is easy to deliver lectures......but remember life is only one......we can't spend it in thinking past......so its advisable to make your heart like rock and take tough steps to lead the life in a better way.

4. Life is most important.......everything like happiness, sorrow, religion, non-religion, morality and immorality is only upto the time of life......No body  knows what happens after death......That's why......in any case saving one's life should be one of the most important aims of one's life.... (Jeevan sarvadhik mahatvapoorna hai......Sukh Dukh, Dharma Adharm, Neeti Aneeti sab Jeevan rahne tak hi hai......Jeevan nast hone ke paschaat kya hoga aur kya nahi koi nahi jaanta........isiliye...Kisi bhi dasha me apne jeevan ki raksha karna jeevan ke pramukh uddeshyo me se ek hai..)
Reason - Jeevan ke paschaat swarg aur nark.....dharm, deshbhakti, balidaan aur yash jaise shabd samaj ne apni suvidha ke anusaar gadh liye hain........aur in shabdjaalo me ulajh kar jeevan nast karna mere vichaar se moorkhata k atirict kuch nahin....

5. Money is not important.......Its Time, which is the most important.......Having money is not so essential......But having money on time is Crucial.....(Dhan mahatvaheen hai.......Samay mahatvapoorna hai..........Dhan ka hona aavashyak nahi........parantu.....Dhan ka Samay par hona aavashyak hai.)
Reason - I seen a person, whose child died only because he could not deposit initial money in  hospital.......and the hospital authorities refuse to admit him in hospital before getting the minimum deposit........That person was so tensed that he could not tell his identity in the hospital and wasted time in arranging money.....Do you know that person.....He was a high rank official and having Lacs of Rupees in his saving account........He was having lots of money.....but not on time.....His money was nothing more than some pieces of papers....)

6. In your life, your words should be important......never say any word, sentence or make promise......which you can't keep or the value of which can diminish in future due to your act up .......(Jeevan me aapke shabd mahatvapoorna hone chahiye.....Koi bhi aise vakya ya shabd kabhi nahi bolne chahiye ya aise vachan kabhi nahi dene chahiye...........Jise aap nibha na sake aur bhavisya me aapke vyavhaar athva kiryakalaap se jinka mahhatva kam hone ki sambhavana ho....)
Tonic - Promises should be made after proper thinking.......Don't make any promise which you can't keep.....because it definitely tarnish your image.......moreover it deeply hurts the other person......and we should always take care of others feeling.



Manoj 

Thursday, 16 June 2011

सच्चा कौन ???

शाम का समय था. मुझे पटना से दिल्ली आना था.......प्रोग्राम अचानक से बना सो टिकट  भी नहीं था....मैं क्या करता, ज्यादा सोच विचार करने की बजे मैं सीधे एक्सप्रेस ट्रेन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में जा के बैठ गया.....परन्तु ये क्या थोड़ी ही देर में ही ट्रेन का टी.टी. किसी यमदूत की तरह प्रकट हुआ ...
टिकेट टिकेट....वह चिल्लाया
टिकेट तो नहीं है मेरे पास......अचानक से जाना पड़ गया.....सो प्लीज मैनेज कीजिये...मैंने विनती की...
क्या ? बिना टिकेट, यहाँ कोई सीट नहीं है.....टी.टी. साहेब ने कडकी दिखाई.
सर प्लीज... 
कोई फालतू बात नहीं.......बिना टिकेट ए.सी. में चढ़ने का और टिकट का कुल २७८० रूपये पेनाल्टी सहित दीजिये...और रसीद कटवाइए....टी.टी. सख्त था......

अब क्या था.....टी.टी. आगे और मैं पीछे.....थोड़ी ही देर में टी.टी. साहेब से सेटिंग हो गई और १५०० में सौदा तय हो गया.....जी हाँ बिना किसी रसीद या टिकट के मैं बड़े आराम से दिल्ली पहुँच गया... और अगले दिन अन्ना हजारे जी के भ्रस्टाचार के विरुद्ध अनशन में पूरे उत्साह से भाग लिया.....सरकार को जी भर के गाली दी....मंत्रियों को खूब भला बुरा कहा.....और लौटते हुए भी टिकट कटाने की बजाय  अपनी व्यवहार कुशलता का ही उपयोग किया...

प्रश्न छोटे से हैं...... क्या सिर्फ मंत्री और नेता भ्रस्ट हैं.......या कुछ और भी हैं.....चलिए सोच के देखते हैं.......मेरे घर के सामने वाली दूकान वाला एक किलो चावल में महज ५० ग्राम कंकड़ मिलाता है.....ताकि बाकी लोगों को शक न हो.......और बिक्री भी कम न हो जाये....हाँ यह बात और है की उसने हर बाट के नीचे से खुरचन की है और ५० ग्राम की बचत वहां से भी की है.........मेरा दूध वाला इत्मीनान से पानी में दूध .......माफ़ कीजिये दूध में पानी मिलाता है.......उसका सोचना है की दूध में पानी नहीं मिलाने से गाय का थन सूख जाता है...... परन्तु दाम कम लेना......मूर्खता......थोड़ी ही दूर पर शब्जी की ठेली लगाने वाला मेरा दोस्त शब्जियो को केमिकल से हरा करता है......उसका साफ़ कहना है की शब्जियाँ हरी नहीं होंगी तो उन्हें खरीदेगा कौन........कभी कभी वो फल भी बेचता है.....और उन्हें कार्बाइड से पकाना उसकी मजबूरी है.......फल पके होने भी तो जरुरी हैं ना......तभी तो अच्छे दाम मिलेंगे.....

मेरा एक सहकर्मी......जब भी कहीं ऑफिस टूर पर जाता है तो हमेशा ही बस से जाता है........परन्तु जब बिल बनाने की बात आती है......तो सिर्फ टैक्सी का बिल.......उसकी क्या गलती....टैक्सी तो उसका इनटाइटलमेंट है, फिर बस में कस्ट भी तो उसी ने सहे हैं......तो इस तरह से कुछ पैसे बनाने में गलत क्या है.......इसी तरह से ऑफिस टाइम में वह काम कभी पूरा नहीं करता क्योंकि लेट बैठने से ही ओवरटाइम  मिलता है........धन महत्त्वपूर्ण है.....और उसका अर्जन एक कला......निश्चित ही......ऐसा है......

चलिए आगे बढ़ते हैं.......अगर गलती से किसी केस में फंस गए तो आपकी जिंदगी तबाह......दो वकील.......एक दूसरे के विरुद्ध तर्क देंगे......एक दूसरे को गलत साबित करने का प्रयास करेंगे......और फिर शाम को एक साथ बैठ के जाम टकरायेंगे........दो लोगो के झगडे में दो बुद्धिमानों की कमाई जो हो रही है..........और मजे की बात यह कि दोनों वकीलों को पता  है की कौन सही है और कौन गलत.........परन्तु फिर भी उनमे से एक जानबूझ के गलत की पैरवी करता है और फिर तारीख  पे तारीख........... किसी से झगडा हो जाए तो ऍफ़.आई.आर. कैसे लिखी जाती है और फिर जमानत कैसे होती है..........बताने कि  जरुरत है क्या ????

एक साधू के ११०० करोड़ की संपत्ति पर सबने आपत्ति की........परन्तु एक अन्य ४०००० करोड़ संपत्ति के मालिक दिवंगत साधू के सामने सरकार सर झुकाती नजर आई........किसका धनार्जन वैध है और किसका अवैध......वही ईश्वर जाने .......जो सबका मालिक है.......और जो साधू और शैतान के बीच का अंतर जानता है.....

मेरे गुरुदेव ने एक मुझे अपनी आपबीती सुनाई.........बोले कि एक आदमी उनके पास लोन लेने आया.......मैंने उसे जरूरी कागजों कि एक लिस्ट पकड़ा दी......बोला कि ये कागज ले आओ और जिस दिन आप आएंगे उसी दिन आपका लोन स्वीकृत हो जाएगा.........इस पर पर वह आदमी लिस्ट वापस पकडाते हुए बोला.......साहब दो चार हज़ार ले लीजये और काम कर दीजिये.......ये समझाने पर कि ये कागज जरुरी हैं और इसके बिना लोन नहीं हो सकता.....और पैसे देने की कोई जरुरत ही नहीं है............वह आदमी दोबारा फिर कभी नहीं आया .......शायद इसलिए कि उसे यकीन ही नहीं था की बिना पैसे दिए भी कोई काम हो सकता है........

 तो विचारयोग्य  यह है की सच्चा कौन है........और भ्रस्ट कौन नहीं है.............क्लास में जाने कि बजाय टूशन पढ़ाने वाला शिक्षक या फिर डोनेशन लेकर एडमिसन देने वाला कॉलेज ..... चालान काटने कि बजाय ५० का नोट लेकर छोड़ देने वाला ट्रैफिक पुलिस या फिर ऑफिस में काम ना करने वाला  कर्मचारी........सरकारी हॉस्पिटल में सेवारत होने पर भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाला डॉक्टर या फिर फर्जी डिग्री के दम नौकरी पाने वाला कर्मचारी.......दहेज़ के लिए लड़की को मार देने वाला परिवार या फिर जमानत के लिए रिश्वत कि मांग करता जज ........ आखिर कौन ????


 सच सुनना चाहते हैं तो सुनिए.......जनाब हम सभी भ्रस्ट हैं........भ्रस्टाचार तो हमारे खून में व्याप्त है........हमारे जिस्म से नैतिकता जैसे चीज गायब हो चुकी है............हम धोखाधड़ी में विश्वास करते  हैं........सुबह उठने से लेकर शाम सोने तक हम अनजाने ही ना जाने कितने गलत काम करते हैं .....और यह कब हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया, हमें खुद नहीं पता...........अब हम इसे मिटा नहीं सकते.....शायद चाह कर भी नहीं..........तो साहब फिर औरों को गाली देना छोडिये और अपना अंतःकरण शुद्ध कीजिये........अगर अपने आप को स्वस्थ कर लिया तो समझिए सारा समाज स्वस्थ हो गया.............मुझे रोटी फिल्म के एक गाने कि कुछ लाइने याद आती है........

इस पापी को आज सजा देंगे मिलकर हम सारे ......
लेकिन जो पापी ना हो वो पहला पत्थर मारे.....
पहले अपना घर साफ़ करो 
फिर औरो का इन्साफ करो.......

मैंने ऐसा ही सोचा कि अपने आप को साफ़ करूँगा.......परन्तु मेरे मन ने साथ नहीं दिया.....बोला जब सभी भ्रस्ट हैं........और जब लोकतंत्र बहुमत के आधार पर चलता है.......तो भला तुम साफ़ सुथरे कैसे हो सकते हो.......सो भ्रस्ट होना तो तुम्हारी मजबूरी है.........और मैं इसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाया......



मनोज          

Monday, 6 June 2011

स्वामी और सरकार

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है. भारत में सभी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है. भारत में सभी धर्मो, मजहबों और उनके अनुयायियों का सम्मान किया जाता है. सच कहूँ तो अभी तक मुझे अपने देश के बारे में यही पता था.....तो क्या मैं गलत था ! .......शायद हाँ,  कम से कम ४ जून की रात को हुई घटनाएं तो कुछ ऐसा ही बयां करती है.....मैंने अंग्रेजों का शासन नहीं देखा, क्योंकि तब तक मैंने जन्म ही नहीं लिया था........मैंने आपातकाल भी नहीं देखा, क्योंकि शायद तब मैं उसे समझने लायक ही नहीं था.....हाँ मैंने मुगलों और नादिरशाही जुल्मों के बारे में पढ़ा और सुना जरुर है............४ जून की रात टी.वी. पर मुझे कुछ ऐसा ही दिखाई दिया.....अब मैं कह सकता हूँ कि मैंने देश की एक दमन देखा है......... देश कि चुनी हुई सरकार पर एक शांतिपूर्ण आन्दोलन को कुचलते हुए देखा है......महिलाओं, बच्चों का दमन देखा है..........परन्तु क्या ये मेरे लिए हर्ष का विषय हो सकता है......कदापि नहीं.......

प्रश्न यह है कि आखिर क्या हो गया था उस रात को......एक सन्यासी, एक साधू कुछ मांगे लेकर अनशन कर रहा था.......उसके साथ उसके कुछ अनुयायी भी थे........उसकी मांगे कम से कम ऐसी जरुर थी जिन पर विचार किया जा सकता था.....क्योंकि सरकार ने ऐसा  माना है .......सरकार ने साधू से बातें भी की.......कुछ समझौतों तक भी पहुंचे.......परन्तु ये क्या.....सम्पूर्ण समझौता ना होने अधवा सरकार के अनुकूल न होने कि दशा में.........रात के एक बजे उन लोगो पर जो दिन भर से भूखे बैठे थे !!!.......सो रहे थे !!!........अचानक से ही सरकार के सिपाही.....कम नहीं लगभग ५ से ७ हज़ार तक !!!.......पंडाल में आते हैं.......और उन बेचारो पर जिन्हें अपने अपराध का पता ही नहीं !!!........टूट पड़ते हैं........लाठियों और आंसू गैस के गोले छोड़ते है !!!.......लोगो के हाथ पैर तोड़ते हैं और उन्हें अस्पताल पहुंचा देते हैं !!!.........

स्वामी को महिला वेश में भागने पर विवश होना पड़ता है !!!........शायद इसलिए कि उनके कपडे फट चुके थे.......वो निर्वस्त्र तो नहीं रह सकते थे ना.....सो नारी वस्त्र !!!.......ग्लानि क्यों ........नारी वस्त्रो से यदि देश का भला होता हो.......तो जीवन पर्यंत उसे पहनने में भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए........फिर जीवन रक्षा हेतु कोई उपाय अनुचित नहीं........जीवन है तो संघर्ष है........सुख कि इच्छा है........रास्ट्र हेतु कुछ कर देने कि चुनौती है........सो जीवन आवश्यक है.................सरकार गिरफ्तार कर उन्हें हरिद्वार पहुंचा देती है !!!

प्रश्न अधिक नहीं है मेरे पास......परन्तु कुछ जरुर हैं.......मुझे पता है की शायद ही कोई जवाब दे, परन्तु खड़े करने आवश्यक है.....

१.  एक सन्यासी योग सिखाता है......क्या इस नाते उसके सामान्य नागरिक के सारे अधिकार समाप्त हो जाते हैं.......क्या इस नाते उसका एक आम नागरिक के सामान कोई सत्याग्रह करने या आन्दोलन करने का व्यक्तिगत अधिकार समाप्त हो जाता है........और अगर वह ऐसा करता है तो उस पर अत्याचार होगा, उसका उत्पीडन होगा......(मान लो मैं किसी कार्यालय में काम करता हु अगर शाम को मैं बच्चो को पढ़ाना भी चाहूँ .....तो क्या यह अपराध होगा........और मेरा दमन किया  जायेगा.........सत्य तो यह है कि किस व्यक्ति का क्या कार्य है......इसे चुनने का अधिकार उसका निजी है......और वह एकाधिक कार्य निश्चित रूप से कर सकता है )

२. क्या सन्यासी की मांगे गलत थी.......अगर हाँ तो सरकार ने उससे बात ही क्यों शुरू की........अगर नहीं तो उन पर विचार करने की  बजाय उसे दण्डित क्यों किया गया.????

३. सरकार कहती है की सन्यासी के मंच पर साम्प्रदायिक लोग थे.......जिन्हें नहीं होना चाहिए था........तो क्या अदालत ने कुछ लोगो को साम्प्रदायिक और अछूत घोषित कर उनके आन्दोलन करने पर रोक लगा रखी है.........क्या सरकार यह निर्णय लेगी कि उसके विरुद्ध आन्दोलन कौन कर सकता है और कौन नहीं..........अगर ऐसा नहीं है तो फिर सिर्फ सरकार के सोच लेने मात्र से कुछ लोगों के सत्याग्रह या आन्दोलन करने पर कैसे रोक लगाई जा सकती है......और फिर अगर सरकार वास्तव में उन्हें अपराधी मानती है तो फिर वो जेल से बाहर ही  क्यों हैं ????

४. सरकार कहती है की सन्यासी किसी अन्य संगठन को फायदा पहुँचाना चाहता है.......वो उनका मुखौटा है.......उसका छुपा अजेंडा है और वह राजनीती भी करना चाहता है...........मान लिया ऐसा ही है........तो क्या इससे उसके द्वारा उठाये गए मुद्दे गौड़ हो जाते हैं........क्या मात्र इस कारण से देश में काला धन वापस नहीं आना चाहिए ????......क्या साधू कि राजनीति के इस कारण से भ्रस्टाचारियों  को कठोर दंड नहीं मिलना चाहिए ???.......क्या इसी कारण से विदेशो में जमा काला धन रास्ट्र की संपत्ति घोषित नहीं होने चाहिए ????............वास्तव में प्रश्न यह है ही नहीं की साधू का अपना उद्देश्य क्या है......वास्तविक प्रश्न यह है की क्या उसने जो मुद्दे उठाये वह उचित है या नहीं.........
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५. और अंतिम प्रश्न क्या देश में किसी ऐसे व्यक्ति को शांतिपूर्ण आन्दोलन करने की आजादी नहीं है जिसे सरकार पसंद नहीं करती..........

हां मुझे दुःख है की मुझे सरकार की ऐसी बर्बरता देखने को मिली...जो किसी कलंक से कम  नहीं.......हाँ मुझे दुःख है की सरकार ने सोते हुए भूखे लोगो पर आक्रमण किया........हां मुझे इस बात का दुःख है की सरकार ने महिलाओं का अपमान किया और बच्चों पर भी रहम नहीं किया.........हाँ मुझे इस बात का दुःख है की देश में अपनी बात कहने पर दंड मिलता है...........हाँ मुझे दुःख है कि देश सहनशीलता खो चुका है........परन्तु क्यों है ........... 

देश के उस तथाकथित मुखिया से हम क्यों अपेक्षा करें कि वह उस जनता के प्रति जवाबदेह होगा........जिसने उसे चुना ही नहीं......वह तो उसके प्रति जवाबदेह है......जिसने उसे चुना है...........तो स्वामिभक्ति भी तो कोई चीज होती हैं न भाई .......बस वही निर्वहन किया जा रहा है.........सरकार स्वामिभक्त लोगो से भरी पड़ी है.........चरणवंदना उनका लक्ष्य हो गया है........फिर देश, साधू , समाज, लोकतंत्र, काला धन, भ्रस्टाचार .......किसे फुर्सत है उस बारे में सोचने की............और फिर सोचें भी तो कैसे और क्यों .......देश को जिसने लूटा उन्हीं के तो धन  है विदेशों में........और वो ही तो अब भी लूट रहे हैं.........फिर अपने ही धन को कौन सरकारी करना चाहेगा......ये सरकार है दोस्तों ..........कोई मूर्खों की जमात थोड़े ही न है........ चलिए जाते जाते कुछ लाइनें कहता हूँ.....

ओसामा जी प्यारे तुमको साधू पर प्रहार 
क्षत्रप सारे भ्रस्ट हैं दिखते .....भ्रस्ट है ये सरकार......

राजनीति ही करते बाबा तो क्या ये अपराध...
बात जो कहते उससे जालिम भाग सके तो भाग.....

धन काला हो जाए रास्ट्र का क्यों नहीं अध्यादेश....
क्यों धरती पुत्रों पर टूटा इटली का आदेश.....

मौका अभी भी सत्तासीनों कर लो खुद में सुधार...
अधिक दिनों तक जनता सहती नहीं है अत्याचार.....


मनोज  

Tuesday, 10 May 2011

Economics of Inflation !!!

Hi Friends,

Well the inflation in the country is rising like a fire in the forest.......and if soon it is not controlled it is going to burn the entire country....but some times I think, whether the government is really serious to control the price rice ?.....I don' think so......Okay let me tell you the reasons.

There is simple rule of economics, which is based on DEMAND and SUPPLY.....when supply is less than demand, the price increases.....and when supply is equal to or more than demand the prices decrease........I don't know why the government is not understanding this simple fact and acting accordingly.....Do you know what our Government is doing for price control.

The Government is of view that the purchasing power of people has increased. That's why they have raised demand and prices have increased.....So for price control......they increased the interest rate in a view that by increasing the interest rate on debt they will reduce the purchasing power of the people.....(as they will borrow less and demand will be reduced)…..Ha Ha Ha......What a Rubbish thinking......You also laugh at this thought.....They just increase percentage of CRR (Money kept with the Government by the banks) to squeeze the lendable money from the banks....because due to that the bank's are forced to increase their lending rates as well as deposit rates......So, Government also think that by increased deposit rates the people will come into habit of saving and won't spend much.......therefore the demand will decrease and the prices will be controlled.

But due to this strategy of the government, what is happening ? The rates of things are not coming down rather these are going up because the government has not done anything to control the prices, it has simply reduced people's purchasing power. Now what will the innocent poor do ? He had already less purchasing power, the situation has not turned for him due to steps taken by the government, resultantly he will suffer the most and have to pay more for his daily needs. That's the reason why the poor is getting poorer day by day.

Now, just think what should have been done to control the price rise. There are two causes of price rise. One is less supply of goods and another is holding of goods. Both things are required to control to effective price control. Let's see it one by one..…

Supply of Goods – The production of food items / grains has become stable at approx 200-220 million Ton from last many years, while the population has not stopped growing. So the demand is increasing and we could not increase the production in the same proportionate as regard as fooding items. But what we have done to increase the production? We have got a poor minister to look after the portfolio. The things are not moving at all to increase the food production because of NO POLICY. The agriculture land is being decreasing for urbanization and industrialization. Then how the production will be increased. Why not technology is being emphasized in this area ? A small country like Israel produce all kind of food grains and is self-sufficient. Then why can't we ? Having such a vast fertile land. The requirement is excellent policy, great leadership and honest willpower.

But on the other end the position is also not so worse. Tones of food grains is getting soiled in the godowns, but the government is unable/not willing to distribute it amongst the poor or sell it on reduced price and this can be termed as Holding by the Government, which ultimately cause increase in prices. 


Secondly, apart from foodgrains, the prices of petroleum products and Cooking Gas is also increasing day by day. The government says that they are giving subsidy on these products and petroleum companies are suffering loss. I couldn't understand up to now, as to which petroleum company is running in loss. The increasing prices of petrol hit the prices of all sort of products and if the government is giving subsidy on this, they are not doing any mercy on the people. They are duty bound to do so as they are running the government and subsidy is being provided from the money of taxpayers only. The Petroleum companies are no where bearing the burden and they are very well earning their profit either from the consumer or from the Government.

Holding – One example I have given the holding by the Government as in the case of food grains. Secondly the holding by the people and companies. Just think whenever you apply for a gas cylinder, you will have to wait for 10-15 days for getting delivery and if you are in urgency you have to pay extra money, I mean to purchase the gas through black market. The gap of this 10-15 days is always maintained. I would just urge, that why this gap is not being meet out by extra production…. I am not saying to meet out it in a single day but do it in phased manner, reduce this gap within a period of 5-6 months. But the government will never do it, why ? Because if it do so, the black market in this sector will stop immediately. So the will power is necessary to control the holding of products. It is just one aspect, similar pattern is happening in case of all other products, causing the price hike.

So my dear friends, I would just submit that the government is not keen to move the things in right direction, they have nothing to do with the poor. He is dying, Let him die. Who cares? The government is busy in taking care of petroleum companies, it is busy with holding of food grains for tough time on the cost of today's death toll…So let it be.

But, my humble request is to the government that still there is time. Don't make it Somalia and Heithi for a portion of the people of this country. They are our own people, we need to be a little emotionally attached with them…..So just open your eyes and let the people live gracefully on this beautiful earth and enjoy him the moments of glittering sky…..Otherwise, he is also holding two hands…..which are capable enough to burn fire any day.   


Manoj K. Srivastava