Tuesday 25 December 2012

हत्‍यारी है यह भीड़


अचानक से सारा देश संवेदनशील हो गया, कुशल अभिनेत्रियों के गले संसद में भी अवरूद्ध हुए, समाजसेवी महिलासंगठन अचानक से सक्रिय नजर आने लगे, टी.वी.मीडिया चैनलों को बहस का एक मुद्दा मिल गया, फेसबुक और ब्‍लाग जगत जागरूक हो उठा, फिल्‍मों के जरिए अश्‍लीलता परोसने वाले हमारे फिल्‍मकार संजीदा हो गए, इंडिया गेट के मजमें में आम आदमी (राजनीतिक पार्टी) वालों ने और बाबा जी ने भी शिरकत कर समझाने की कोशिश की कि वह आम है, कहने का मतलब यह कि सभी में होड़ लगी हुई है, यह दर्शाने की कि वही सबसे ज्‍यादा जागरूक, महिला हितैषी और भावनाएं  रखता है, 

अचानक से ही इंडिया गेट और जंतर मंतर न्‍याय के मंदिर नजर आने लगे, युवा वर्ग अपने हाथों मे तख्तियां लेकर समाज को संवारने की मांग करता दिखा, लगातार "WE WANT JUSTICE" के अंग्रेजी नारों के माध्‍यम से वह तालिबानी शासन के 17 वीं सदी की न्‍याय की मांग कर रहे थे, और अफसोस कि उनकी इस बर्बर मांग के समर्थन में सम्‍पूर्ण मीडिया जगत एक हो उनका साथ दे रहा था,

अब आगे बढ़ते हैं, जब इस भीड़ ने इंडिया गेट और जंतर मंतर पर उत्‍पात मचाना शुरू किया तो पुलिस को कार्यवाही करनी पड़ी (और क्‍या करती सरकार, इन्‍हें अराजकता फैलाने के लिए खुला छोड़ देती), और इन्‍होंने क्‍या किया, एक सिपाही की पीट पीट कर निर्मम हत्‍या कर दी, आज ये  मोमबत्‍ती ब्रिगेड वाले उस सिपाही के घर नहीं जाएंगे, उसके लिए आंसू नहीं बहायेंगे, यह मीडिया उस सिपाही के लिए चीत्‍कार नहीं करेगी जो अपने कर्तव्‍य का निर्वहन करते हुए वीरगति को प्राप्‍त हुआ, ठीक  उसकी प्रकार जैसे यह कथित युवा तब जाग्रत नहीं होता जब नक्‍सली हमारे सैकड़ो सैनिकों की हत्‍या निर्ममतापूर्वक करते हैं, मैं किन्‍हीं दो घटनाओं की तुलना नहीं कर रहा वरन यह बताने का प्रयास कर रहा हूं कि कैसा दोमुंहा समाज है यह, आज सुबह का समाचार पत्र पढ़ा, दिल्‍ली में ही बलात्‍कार के तीन मामले दिखे, एक सामूहिक बलात्‍कार और हत्‍या का, एक बच्‍ची के साथ और एक अन्‍य, मुझे समझ नहीं आया कि ये मामले टी.वी.पर किसी ने क्‍यूं नहीं उठाए, सोशल मीडिया ने इनका संज्ञान क्‍यों नहीं लिया, मोमबत्‍ती ब्रिगेड आखिर इन मामलों के लिए कहां है,

पीडि़ता के साथ पूर्ण सहानुभूति व्‍यक्‍त करते हुए मैं कहना चाहता हूं मित्रों कि आखिर क्‍या करती सरकार, भई एक घटना घटित हुई, बिल्‍कुल शर्मनाक है, किसी भी सभ्‍य समाज के मुख पर काला धब्‍बा है, परन्‍तु फिर भी आरोपी गिरफतार कर लिए गए, पुलिसिया और न्‍यायिक कार्यवाही हो रही है, पीडि़ता को बेहतरीन इलाज भी चल रहा है, और क्‍या करेगी सरकार, क्‍या चाहते हैं ये प्रदर्शनकारी यह कि बिना किसी गवाह, सबूत, सुनवाई के वे उन सभी आरोपियों को लैंप पोस्‍ट से लटका कर फांसी दे दी जाए, मित्रों, सरकार को जी भर कर कोसना तो मानो फैशन ही बनता जा रहा है, सो इस फैशन का प्रदर्शन भी खूब हुआ, परन्‍तु यदि यह विरोध वास्‍तव में सार्थकता लिए होता, तो क्‍या यह अच्‍छा नहीं होता कि ये कथित आंदोलनकारी रास्‍तों पर गुजरने वाले उन सभी वाहनों जिनके शीशों पर काली फिल्‍म चढ़ी हो या परदे लगे हो, को नोंच कर हटाने का काम करते बावजूद इसके कि इंडिया गेट और जंतर मंतर पर हाय हाय करने के, 

हां परन्‍तु इतना अवश्‍य है देश की कच्‍छप से भी मंद गति न्‍यायिक व्‍यवस्‍था में सुधार की निश्चित रूप से आवश्‍यक्‍ता है, न्‍याय में देरी, न्‍याय देने की मनाहीं के समान है, सिर्फ ऐसे मामलों के लिए ही क्‍यों, सभी मामलों के निपटान के लिए एक समय सीमा तभी तय हो जानी चाहिए, जब ये मामने प्रथम सुनवाई के लिए अदालत में  पेश हों, न्‍याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए वरन न्‍याय होते हुए दिखना भी चाहिए, इस तरह के मामलों के लिए आज को सामाजिक ताना बाना भी काफी हद तक जिम्‍मेदार है, जिसकी पूर्ण पड़ताल होनी चाहिए और शिक्षा व्‍यवस्‍था में सुधार कर आधारभूत ढांचे को व्‍यवस्थित भी किया जाना चाहिए, यह ऐसा कुछ नहीं जिसे रातों रात ठीक किया जा सके,    

परन्‍तु फिर भी अंत में आज के इस वातावरण को देखकर यही कहूंगा आज का समाज एक एक भीड़ तंत्र बनकर रह गया है और हम इस भीड़ के साथ चलना चाहते हैं, यदि ऐसा नहीं तो हमारी संवेदनाएं सेलेक्‍टिव न होकर समाज के समग्र सुधार हेतु गुंजायमान होती, भीड़ का कोई विवेक नहीं होता, यह किसी भी हद तक जा सकती है और गई भी, आज तो इस भीड़ ने एक हत्‍या की है, एक सिपाही की हत्‍या, हत्‍यारी है यह भीड़ जिसका समर्थन किसी भी सभ्‍य समाज में नहीं किया जा सकता,


मनोज   

Thursday 13 December 2012

......और अगर मोदी हार गए तो ?


मित्रों, देश में आज एक अजब ही माहौल बना हुआ है, खासतौर से गुजरात में, जहां पर फिलहाल चुनाव जारी हैं, सारा देश और सारा मीडिया इस प्रकार से दर्शा रहा है मानों नरेंद्र भाई मोदी पुनः सत्ता में आ ही गए हों, परन्तु मुझे एक आशंका होती है, और वह यह ​कि ​कुछ इसी तरह का माहौल चंद वर्षों पूर्व 2004 में भी बना था जब चारो तरफ एक खुशनुमा माहौल बनने की बात की जा रही थी और जिसका अंग्रेजी अर्थ "फील गुड" बताया जा रहा था, उस वक्त भी कांग्रेस के भीतर निराशा व्याप्त थी, किसी कांग्रेसी नेता के शरीर से ऊर्जा प्रस्फुटित नहीं हो रही थी, परन्तु जब परिणाम घोषित हुए तो सारी खुशनुमा हवा गायब हो गई, कांग्रेस के लुंज पुंज पड़ चुके चेहरे भी कांतिमय हो गए जब​कि भाजपा का आभामंडल अचानक ही शनि देव की वक्रदृ​ष्टि पड़ने के कारण निस्तेज नज़र आने लगा, मित्रों, जितनी सत्य भाजपा की तब की हार है, उतनी ही सही यह बात भी ही है ​कि उस काल में भी भाजपा ने अत्यधिक जनकल्याणकारी कार्य किए थे, प्रजा खुश थी, देश परमाणु सम्पन्न बन चुका था, सामान्य प्रशासन व्यवस्था भी कमोबेश चुस्त दुरूस्त ही थी,  परन्तु फिर भी य​दि भाजपा की हार हुई ​थी तो उसके कुछ कारण तो अवश्य ही रहे होंगे, क्या आपको ऐसा ही कुछ फील गुड गुजरात में आज नहीं दिख रहा, माफ़ कीजिये परन्तु यदि ऐसा ही परिणाम आज यदि गुजरात में भी दृष्टिगोचर हो तो, तो क्या होगा ?

मित्रों यह सच ​कि एंटी इंकम्बेंसी एक फैक्टर सदैव ही होता है, जो आमतौर पर चुनावों को प्रभावित करता है, प्रजा कितनी भी खुशहाल क्यूं न हो, उसकी अधिक की चाह सदैव ही बनी रहती है, वह सदैव ही किसी बदलाव को आजमा कर देखना चाहता है, इस आस मे ​कि शायद बदलाव एक नई हवा, नई उर्जा लेकर आये जो की उसके घर आंगन में नई तरह की खुशबू ​बिखेर सके, और यही वह कारण है जो​कि एंटी इंकम्बेंसी कहा जाता है और वही नरेंद्र भाई की राह में रोड़े अटका सकता है ।

अच्छा सोचिए, पल भर के ही लिए, अरे बाबा अब सोच भी लीजिए, मानो मोदी गुजरात चुनाव हार जाते हैं, फिर, फिर क्या होगा, दिमाग शून्य हो रहा है , जी हां ऐसा ही कुछ शून्य भाजपा के भीतर भी उभर कर आएगा, पूरी भाजपा में ही उथल पुथल मच जाएगी, विपक्षी दल ताने कसेंगे, प्रधानमंत्री पद की मोदी की दावेदारी ठंडे बस्ते में चली जाएगी, शायद सुषमा नई प्राइम-मिनिस्टर-इन-वेटिंग (!) होंगी, कांग्रेस की नई गुजरात सरकार अवश्य ही उस जिन्न को बोतल से निकालने का पूरा प्रयास करेगी, ​जिसने आज तक मोदी का पीछा नहीं छोड़ा है, जी हां दुरूस्त समझे आप मैं गोधरा का ही जिक्र कर रहा हूं, फिर मोदी सीबीआई दफतर के चक्कर काटते  नजर आएंगे, तो क्या मोदी का हाल बाबा रामदेव सरीखा हो जाएगा, पता नहीं बाबा कौन इतनी माथापच्ची करे, सोच सोच के ही पसीने आते हैं, 

अरे गुस्सा मत हो भाई, मैं तो महज एक आशंका व्यक्त कर रहा हूं, ईश्वर करेकि मोदी जीत जाएं और पुनः गुजरात की सत्ता हासिल करें, प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश करें, उन्होंने गुजरात के विकास के अथक प्रयास किये हैं, विजय श्री पर उनका और सिर्फ उनका हक़ बनता है, परन्तु हार जीत लोकतंत्र केअभिन्न हिस्से हैं, चुनाव से पूर्व ही इतना हाइप उचित नहींकि परिणाम विपरीत होने पर पैरों के नीचे की जमीन खिसक जाए और सदमें से उबरने में सदियां छोटी लगने लगें,

मनोज

Friday 7 December 2012

एफ डी आई लागू करने में बुराई नहीं


   मित्रों मेरा स्‍पष्‍ट मानना रहा है कि खुदरा व्‍यापार में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश राष्‍ट्र के लिए विनाशकारी है, मेरी ऐसी धारणा के अनेकानेक कारण रहे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्‍न प्रकार से हैं, 

 1. मेरी सबसे बड़ी आशंका यह है कि बड़े विदेशी व्‍यापारी आकर हमारी अर्थव्‍यवस्‍था को तहस नहस कर सकते हैं, इसका कारण यह कि 51 फीसदी विदेशी निवेश के कारण आधिपत्‍य विदेशी कम्‍पनियों का ही रहेगा, जाहिर है विदेशी कम्‍पनियां यहां जनकल्‍याण हेतु नहीं वरन मुनाफाखोरी के लिए ही आ रही हैं, वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाली, देश की ये नई दुकाने देश को विदेशी सामान से शीघ्र ही भर देंगी, जिससे उपभोक्‍ता आंशिक रूप से अवश्‍य लाभान्वित हो सकता है, परन्‍तु देश के लघु और कुटीर उद्योग का वही हाल होना तय है जोकि देश में खिलौना उद्योग का हुआ है, आप भी स्‍वीकार करेंगे कि आज बाजार में देशी खिलौने ढूंढे नहीं मिलते,

 2.  सरकार का कहना है कि व्यापार में बिचौलिए समाप्‍त हो जाएंगे और इससे जहां एक तरफ किसान को उसकी उपज का सही मूल्‍य मिलेगा वहीं उपभोक्‍ता को भी वह सामान सस्‍ते मूल्‍य पर उपलब्‍ध हो सकेगा, जी हां मुझे भी लगता है कि यह बात सत्‍य है परन्‍तु आंशिक, आइये इसे एक उदाहरण से समझते हैं, 
   मान लीजिए आज कोई किसान किसी वस्‍तु को 100 रूपये में बेचता है और उपभोक्‍ता को वही सामान बाज़ार में 140 रूपये में मिलता है, क्‍योंकि बीच में थोकविक्रेता, फुटकर विक्रता, सेल्‍स एजेंट इत्‍यादि के मार्जिन और ट्रांसपोर्टेशन इत्‍यादि के खर्चे हो जाते हैं, अब विदेशी व्‍यापारी के आने से क्‍या होगा? आपको क्‍या लगता है कि किसान को अब 138 रूपये मिलने लगेंगे या उपभोक्‍ता को वह सामान 105 का मिलने लगेगा? जी नहीं बिल्‍कुल नहीं ! ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा, विदेशी व्‍यापारी किसान से वही सामान 102-105 रूपये का खरीदेगा और उपभोक्‍ता को 135-138 में विक्रय करेगा, आप कहेंगे अच्‍छा ही तो है, दोनों को लाभ हुआ ! परन्‍तु मित्रों सोचने की बात यह है कि जिस 40 रूपये के मार्जिन पर आज पांच सात परिवार पलते थे, वे बेरोजगार हो गए, ध्यान से देखिये, विदेशी व्‍यापारी ने किसान और उपभोक्‍ता दोनों को आंशिक लाभ देकर 30 रूपये का लाभ कमाया है जोकि सिर्फ और सिर्फ उसके ही खाते में गया और उसके खाते का जाने का मतलब विदेश गया, मतलब साफ, देश का धन विदेशी कमाएंगे और देशी व्‍यापारी जिन्‍हें हम मिडलमैन कहकर गरियाने का प्रयास करते हैं, बीन बजाते रह जाएंगे,

  3-    एक तीसरी बात कही गई है कि देश में 40 लाख रोजगार का सृजन होगा, निश्चित ही होगा, विदेशी दुकाने खुलेंगी तो रोज़गार का सृजन होना तय है, बात सत्‍य है परन्‍तु किस मूल्‍य पर यह भी विचार किए जाने की आवश्‍यक्‍ता है, एक बार पुनः प्‍वाइंट नम्‍बर 2 पर गौर करें, मित्रों देश में कथित बिचौलियों (मिडलमैन) की कुल संख्‍या 5 करोड़ से भी अधिक है, इनमें से यदि 20 फीसदी भी इस नई व्‍यवस्‍था के तहत बेरोजगार हो गए तो यह संख्‍या अनुमानित एक करोड़ की बैठती है, क्‍या हम एक करोड़ की बेरोजगारी के मूल्‍य पर 40 लाख रोजगार सृजन को मुनाफे का सौदा मान सकते हैं, शायद नहीं, ध्यान रखिये ये आंकड़ा घटेगा नहीं बल्कि बढेगा ही
 
  4. एक चौथी आशंका यह भी कि किसी भी आपात काल में क्‍या ये विदेशी अपनी दुकाने बंद कर अपने वतन वापस लौटने में तनिक भी देर लगाएंगे ? संभवतः नहीं !! कल्‍पना कीजिए कि भारत का किसी अन्‍य देश से युद्ध आरंभ हो जाता है, फिर ऐसी दशा में क्‍या होगा, इन देशों की सरकारें स्‍वतः अपील कर इन दुकानों को बंद करवा देंगी, फलतः देश में कभी भी अफरातफरी का माहौल फैल सकता है और अराजकता व्‍याप्‍त हो सकती है,

  5-   अधिक प्रभावशाली होने की दशा में क्‍या यह देश की राजनीति और व्‍यवस्‍था तंत्र को प्रभावित नहीं करेंगी, सोचिये, तब क्‍या होगा जब वह नीतियों को प्रभावित करने लायक शक्ति अर्जित कर लेगी तो,

उपर्युक्‍त की भांति ही मेरी अन्‍य आशंकाएं भी है, परन्‍तु उन्‍हें मैं फिलहाल के लिए छोड़ देता हूं, और सरकार की देश में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश के निर्णय को अपना समर्थन देता हूं, आप कहेंगे कि मैं पागल हो गया हूं, खुद ही कहता हूं कि राष्‍ट्र संकट में घिर सकता है फिर खुद ही समर्थन देने की बात भी करता हूं, 

मित्रों आज समर्थन करने की मुझे एक वजह दिखती है और वह वजह यह कि देश की दोनों संसदों ने एफ डी आई लागू न करने सम्‍बंधी विपक्ष के प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया है, देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र की खूबसूरती ही यह है कि वह अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को यह शक्ति देता है कि वह लोककल्‍याण की नीतियां बनाए और लागू करे, हो सकता है कि मेरे जैसे अल्‍पज्ञानी को वह बात समझ न आ रही हो जो देश के महान अर्थशस्त्रियों को ज्ञात है, संसद में पक्ष-विपक्ष दोनों ने अपने-अपने तर्क रखे, मतदान किया और फिर एक निर्णय पर पहुंचे, लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्‍चता है और जब उस सर्वोच्‍च संसद ने ही अपनी सहमति प्रदान कर दी है तो हम घर में बैठ कर सरकार पर क्‍यों और कैसे उंगली उठा सकते हैं, गनीमत यह है कि अभी यह एफ डी आई चुनिन्‍दा शहरों में और राज्‍य सरकारों की इच्‍छा के आधार पर लाया जाएगा, मुझे लगता है कि यह प्रयोग आशंकाओं के पर्दे को हटा वास्‍तविकता दिखाने का कार्य कर सकता है, सत्य असत्य का ज्ञान करा सकता है, 

मित्रों अंत में यही कहूँगा कि इस महान राष्‍ट्र ने अनेकानेक विदेशी आक्रंताओं को झेला है, आत्‍मसात् किया है और सदैव ही विजयी होकर बाहर आया है, आज भी यदि एक विदेशी आक्रांता का प्रहार राष्‍ट्र पर हो रहा है तो राष्‍ट्र उससे निपटने का रास्‍ता अवश्‍य तलाश कर लेगा और पुनः विजयी ही होगा, अपनी शक्ति पर भरोसा रखिए - 

मनोज