वो कहें कुछ भी करें, तो व्यक्त अभिव्यक्ति हुई,
हम कहें जो सच, सशक्त अंकुश लगाना चाहिए....
मूढमति को मूढ़ कहना, है बड़ी ये ध्रस्टता,
क्या कहें उनको ये उनसे, पूछ आना चाहिए....
देखने को मूल्य-वृद्धि, अर्थ के मर्मज्ञ हैं,
तब तलक अब अपने मुंह, ताला लगाना चाहिए...
अब विदेशी ही करेंगे, पेट का भी फैसला,
जीना हो तो आपको, मल अपना खाना चाहिए...
जनता की लूटी कमाई, रक्षकों ने शान से,
नादिरशाही भी हुई, लज्जित लजाना चाहिए....
वे तेरी अस्मत से पर्दा, खींचने को व्यग्र हैं,
कौरवों को मन मुताबिक, इक बहाना चाहिए...
रक्त है सस्ती हुई, अब जिंदगी के मोल से,
मौन रहना राष्ट्रभक्ति, है निभाना चाहिए....
मनोज