Tuesday, 27 August 2013

अंधश्रद्धा और अपराध

बाबा तुलसीदास तो कब का लिख गए है कि सामर्थ्‍यशाली को दोष नहीं होता, जी हां मैं भी यही मानता हूं नहीं होता है, समाज में उनका आदेश चलता, उनके कथन ही देववाक्‍य होते हैं, विधान होते हैं, और कभी कभी तो उनके अंधश्रद्धालु उनके अनुसार ही दिशा भी निर्धारित करते हैं, एक दृष्‍टांत सुनाता हूं, एक बार मैं एक बहुत बड़े  बाबा (देश विदेश में सम्‍मानित श्‍वेतवस्‍त्रधारी बाबा) के शिविर में प्रशिक्षण (एक योग क्रिया) हेतु गया था,  मुझे बाबाओं में कभी कोई रूचि नहीं रही, अतः मैं सिर्फ इस नियत से कि वहां गया था कि वहां के क्रिया कलाप जान सकूं,  मुझे बताया गया कि  उक्‍त क्रिया पूर्व दिशा की ओर मुख करके की जाती है, परन्‍तु यदि किसी कारण दिशा का बोध न हो पा रहा हो, तो जिस तरफ गुरू जी की फोटो लगी हो, वही दिशा पूर्व की मान कर क्रिया कर लेनी चाहिए, मुझे बहुत हंसी आई, उनकी मूर्खता पर, उनके अंधविश्‍वास पर, जो सूर्योदय की दिशा को भी धता बताने पर आमादा थे,... बहरहाल कथन का तात्‍पर्य यह कि अंधविश्‍वासी व्‍यक्ति के मानस पर एक ऐसा आवरण, ऐसा पर्दा चढ़ जाता है कि वह कुछ भी विपरीत सुनना ही नहीं चाहता, यहां तक कि उनका कुकर्म, कुकृत्‍य और दुराचार सब उसे उचित और शास्‍त्रसम्‍मत लगता है,

मित्रों, मेरी स्‍पष्‍ट मान्‍यता है कि सभी मानव अधिकतर मामलों में समकक्ष हैं, सभी एक ही प्रकार से जन्‍म लेते हैं, सभी को ऊर्जा हेतु एक ही प्रकार से भोजन की आवश्‍यक्‍ता होती है, सभी का एक प्रकार से क्रमिक शारीरिक विकास होता है और देर सबेर सभी मृत्‍यु को प्राप्‍त होते हैं, हां उनमें से कुछ बुद्धिमान हो सकते हैं, कुछ मूर्ख हो सकते हैं, कुछ का ज्ञान अधिक हो सकता है, कुछ का कमतर हो सकता है, कुछ अधिक धनी हो सकते हैं, कुछ निर्धन हो सकते हैं, परन्‍तु इस भौतिक विभेद के कारण कुछ लोगों को ईश्‍वर के समकक्ष मान लेना मूर्खता और अंधश्रद्धा के अतिरिक्‍त कुछ नहीं है,

हमें यह मान लेना चाहिए, कि ये व्‍यक्ति भी दुर्बल मनुष्‍य हैं, धन और धरा अर्जित करने की अभिलाषा इनमें भी बलवती होती है, शक्ति और प्रशंसा इन्‍हें भी लुभाती है, इनकी भी इंद्रियां किन्‍हीं भी सामान्‍य मनुष्‍य की भांति ही चंचल और चलायमान होती हैं, फिर इनमें दिव्‍य क्‍या और दिव्‍यता क्‍या, ये भी सामान्‍य मानव है जो सामान्‍य जनों की भांति ही अपनी दैनिक क्रियायें करते हैं, हां हो सकता है इनकी बौद्धिक क्षमता अधिक हो, परन्‍तु जरा चिंतन कीजिए, कहीं ये अपनी उसी बौद्धिक क्षमता का उपयोग आपको मूर्ख बनाने के लिए तो नहीं कर रहे,

तो, हे देव क्‍या 33 करोड़ देवी देवता कम पड़ गए थे, जो धरती पर ये कथित महामानव अवतरित कर दिए हैं, ऐसे महामानव जिनके दामन पर दाग दिखाई देते हैं, परन्‍तु धर्म की आड़ में पाप,  यदि कोई करता है तो फिर पापी जो कोई भी हो,  देर सबेर उसके पापों का घड़ा भरता अवश्‍य है,  बड़े बड़े नेताओं का पतन इस संसार ने देखा है, हमारे अपने जमाने में अनेक बड़े नेता नेस्‍तनाबूत हो गए, अतः हे कथित धर्म गुरूओं, इतना जुल्‍म मत करो, इतने निकृष्‍ट मत बनो, इतने रसातल में भी मत चले जाओ कि कल को आपकी भी यही दशा हो....

मनोज

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    सभी पाठकों को चर्चा मंच परिवार की ओर से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (28-08-2013) को रूपया छा-सठ में फँसा, उन-सठ से हैरान: चर्चा मंच 3051 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete