मित्रों,
विगत कुछ दिनों से देश की राजनीति मे भूचाल सा आ गया है, मानो अचानक से
देश का सत्ता समीकरण अपनी करवटों को समायोजित कर रहा हो ! मामला है
तेलंगाना राज्य का, कांग्रेस ने तेलंगाना राज्य बनाने की घोषणा कि तो कुछ
लोगों ने अनुमान लगाया कि ऐसा राजनीतिक लाभ उठाने की जुगत से किया गया है !
तो दूसरी ओर कुछ लोगों की भावनाएं तत्काल आहत हो गई और उन्होंने इसका यह
कहकर पुरजोर विरोध किया कि वे राज्य के टुकड़े नहीं होने देंगे !!!
मेरी समझ में दो बातें नहीं आती हैं, एक यह कि यदि अभी देश में 28 राज्य हैं तो क्या देश के 28 टुकड़े हो चुके हैं, नहीं न, फिर कुछ और राज्यों के बन जाने से टुकड़े कैसे हो जाएंगे, और दूसरी यह कि यदि राजनीतिक लाभ लेने की नियत से भी कोई नेक कार्य किया जाता है तो इसमें हानि क्या है ?
जी हां मैं इस कार्य को एक नेक काम ही मानता हूं और तेलंगाना के गठन का
समर्थन करता हूं, यही क्यूं अन्य छोटे राज्य भी बनाए जाने चाहिए,
मायावती जी ने अपने शासन के अन्तिम समय में एक प्रस्ताव पारित करके भारत
सरकार को भेजा था, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटे
जाने का प्रस्ताव रखा था, कहने वाले कह सकते हैं कि क्या मायावती जी अपने
कार्यकाल के आरंभिक पांच सालों में सो रही थी, पहले ऐसा प्रस्ताव
उन्होंने क्यूं नहीं पारित करवाया और इस दिशा में ठोस प्रयास क्यूं नहीं
किया ? परन्तु
क्या किसी पहल को यह कहकर खारिज किया जाना उचित है कि उसे कार्यकाल के
अन्तिम समय में किया गया और पहले ऐसा क्यूं नहीं किया गया !!
मित्रों,
यदि मैं उत्तर प्रदेश की बात करूं, जहां से मैं आता हूं तो मुझे कहने में
जरा भी संकोच नहीं कि राज्य के सभी क्षेत्रों का समान रूप से विकास नहीं
हुआ है, एक ओर पूर्वांचल
का अविकसित क्षेत्र है, जहां किसी प्रकार का कोई आधारभूत ढांचा नहीं है,
सड़कों का बुरा हाल है, एक पुल को बनने में चार से पांच साल तक लग जाते
हैं, बिजली का तो पूछिए ही मत, दिन में पांच छः घंटे आ जाएं तो सरकार का
शुक्रिया अदा कीजिए, न तो रोजगार के साधन हैं, न ही विद्यालय,
विश्वविद्यालयों का बेहतर तंत्र, इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों की तो बात
भूल ही जाइए !!! कभी चीनी मिलों का केंद्र बनी रहने वाली
यह धरती, जिसे भगवान बुद्ध ने अपना कर्म क्षेत्र बनाया, और जिस धरा पर
भगवान राम अवतरित हुए, ऐसा भू भाग जिसने कबीर जैसे साहित्यकार को जन्म
दिया और स्वतंत्रता संग्राम में चौरी चौरा जैसा क्षेत्र जहां की धरोहर हो,
आज अपनी उपेक्षा पर ऑंसू बहाने को विवश है !!! तो वहीं दूसरी ओर नोएडा,
ग्रेटर नोएडा, इटावा, रायबरेली और अमेठी जैसे जिले हैं, जहां सभी प्रकार की
सुविधाएं हैं, वी.वी.आई.पी. के नाम पर यहां 24 घंटे विद्युत आपूर्ति भी की
जाती है, और सभी प्रकार से यह सरकार के कृपाक्षेत्र बना हुआ है !
कमोबेश पूर्वांचल जैसी स्थिति बुंदेलखंड इलाके की भी है, अपनी सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध बुंदेलखंड, आज अपने पिछड़ेपन पर रो रहा है,
किसान व बुनकर भुखमरी एवं आत्महत्या हेतु विवश हैं, यहॉं हो रहा विद्युत
उत्पादन पश्चिमी क्षेत्रों या वी.आई.पी क्षेत्रों में आपूर्ति हेतु उपयोग
में लाया जाता है और यहां का जीवन अंधकार के अभिशाप से मुक्त होने को
छटपटा रहा है, कुछ अन्य क्षेत्रों में भी इसी प्रकार की स्थिति है,
तो मित्रों, ऐसे में सोचने की बात यह है कि सिर्फ तेलंगाना ही क्यूं ? अन्य क्षेत्रों के मामलों में विचार क्यूं नहीं ? मायावती
जी ने एक अच्छा प्रस्ताव किया था, राज्य को चार प्रदेशों में विभाजित
करने का, ताकि सभी का समग्र विकास हो सके, समेवित विकास हो सके, जब किसी
मुख्यमंत्री को देखने ही 15 जिले होंगे, तो उनका काफी कुछ विकास तो स्वतः
ही होगा, एक राजधानी होगी, जोकि नैसर्गिक रूप से विकसित
होगी, सड़कें बेहतर होंगी, बिजली बेहतर होगी, फैक्ट्रियां लगेंगी और लोगों
को रोजगार मिल सकेगा, और यदि ऐसी संभावना है तो मुझे लगता है कि देश में
राज्यों के पुनर्गठन की आवश्यक्ता है, और उस पर गम्भीरता पूर्वक विचार
किया जाना चाहिए,
राज्यों
के पुनर्गठन का एक ही आधार हो सकता है और वह है विकास, राज्यों का गठन इस
आधार पर होना चाहिए कि वे विकासोन्मुखी हो सकें, रोजगार परक हो सकें,
राज्यों का आकार क्या हो ? (ऐसा तो नहीं हो सकता कि सभी जिलों को राज्य
बना दिया जाए, क्योंकि यह व्यावहारिक नहीं होगा, इस प्रकार से केंद्रीय
प्रशासन व नियंत्रण कठिन हो जाएगा), उसके साथ संसाधनों का क्या, कितना और
कैसे बंटवारा किया जाए ? और नया राज्य बनने पर कुछ समय पर उसे क्या
सहूलियतें दी जाएं ? इस पर गहनता से विचार किया जाना चाहिए, एक राज्य में 80 लोकसभा सीटें और दूसरे में सिर्फ एक !! ऐसी विसंगतियों को दूर किया ही जाना चाहिए,
फिर नए राज्य को बनाने के नाम पर एक तेलंगाना ही क्यूं ? अन्य राज्यों
की मांग पर भी, और जहां मांग नहीं है वहां की भौगोलिक स्थिति देख कर,
राज्यों के पुनर्गठन की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए, ताकि शासन को एक नए
सिरे में ढ़ाला जा सके और समेकित, सम्पूर्ण विकास संभव हो सके,
मनोज
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