शाम का समय था. मुझे पटना से दिल्ली आना था.......प्रोग्राम अचानक से बना सो टिकट भी नहीं था....मैं क्या करता, ज्यादा सोच विचार करने की बजे मैं सीधे एक्सप्रेस ट्रेन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में जा के बैठ गया.....परन्तु ये क्या थोड़ी ही देर में ही ट्रेन का टी.टी. किसी यमदूत की तरह प्रकट हुआ ...
टिकेट टिकेट....वह चिल्लाया
टिकेट तो नहीं है मेरे पास......अचानक से जाना पड़ गया.....सो प्लीज मैनेज कीजिये...मैंने विनती की...
क्या ? बिना टिकेट, यहाँ कोई सीट नहीं है.....टी.टी. साहेब ने कडकी दिखाई.
सर प्लीज...
कोई फालतू बात नहीं.......बिना टिकेट ए.सी. में चढ़ने का और टिकट का कुल २७८० रूपये पेनाल्टी सहित दीजिये...और रसीद कटवाइए....टी.टी. सख्त था......
अब क्या था.....टी.टी. आगे और मैं पीछे.....थोड़ी ही देर में टी.टी. साहेब से सेटिंग हो गई और १५०० में सौदा तय हो गया.....जी हाँ बिना किसी रसीद या टिकट के मैं बड़े आराम से दिल्ली पहुँच गया... और अगले दिन अन्ना हजारे जी के भ्रस्टाचार के विरुद्ध अनशन में पूरे उत्साह से भाग लिया.....सरकार को जी भर के गाली दी....मंत्रियों को खूब भला बुरा कहा.....और लौटते हुए भी टिकट कटाने की बजाय अपनी व्यवहार कुशलता का ही उपयोग किया...
प्रश्न छोटे से हैं...... क्या सिर्फ मंत्री और नेता भ्रस्ट हैं.......या कुछ और भी हैं.....चलिए सोच के देखते हैं.......मेरे घर के सामने वाली दूकान वाला एक किलो चावल में महज ५० ग्राम कंकड़ मिलाता है.....ताकि बाकी लोगों को शक न हो.......और बिक्री भी कम न हो जाये....हाँ यह बात और है की उसने हर बाट के नीचे से खुरचन की है और ५० ग्राम की बचत वहां से भी की है.........मेरा दूध वाला इत्मीनान से पानी में दूध .......माफ़ कीजिये दूध में पानी मिलाता है.......उसका सोचना है की दूध में पानी नहीं मिलाने से गाय का थन सूख जाता है...... परन्तु दाम कम लेना......मूर्खता......थोड़ी ही दूर पर शब्जी की ठेली लगाने वाला मेरा दोस्त शब्जियो को केमिकल से हरा करता है......उसका साफ़ कहना है की शब्जियाँ हरी नहीं होंगी तो उन्हें खरीदेगा कौन........कभी कभी वो फल भी बेचता है.....और उन्हें कार्बाइड से पकाना उसकी मजबूरी है.......फल पके होने भी तो जरुरी हैं ना......तभी तो अच्छे दाम मिलेंगे.....
मेरा एक सहकर्मी......जब भी कहीं ऑफिस टूर पर जाता है तो हमेशा ही बस से जाता है........परन्तु जब बिल बनाने की बात आती है......तो सिर्फ टैक्सी का बिल.......उसकी क्या गलती....टैक्सी तो उसका इनटाइटलमेंट है, फिर बस में कस्ट भी तो उसी ने सहे हैं......तो इस तरह से कुछ पैसे बनाने में गलत क्या है.......इसी तरह से ऑफिस टाइम में वह काम कभी पूरा नहीं करता क्योंकि लेट बैठने से ही ओवरटाइम मिलता है........धन महत्त्वपूर्ण है.....और उसका अर्जन एक कला......निश्चित ही......ऐसा है......
चलिए आगे बढ़ते हैं.......अगर गलती से किसी केस में फंस गए तो आपकी जिंदगी तबाह......दो वकील.......एक दूसरे के विरुद्ध तर्क देंगे......एक दूसरे को गलत साबित करने का प्रयास करेंगे......और फिर शाम को एक साथ बैठ के जाम टकरायेंगे........दो लोगो के झगडे में दो बुद्धिमानों की कमाई जो हो रही है..........और मजे की बात यह कि दोनों वकीलों को पता है की कौन सही है और कौन गलत.........परन्तु फिर भी उनमे से एक जानबूझ के गलत की पैरवी करता है और फिर तारीख पे तारीख........... किसी से झगडा हो जाए तो ऍफ़.आई.आर. कैसे लिखी जाती है और फिर जमानत कैसे होती है..........बताने कि जरुरत है क्या ????
एक साधू के ११०० करोड़ की संपत्ति पर सबने आपत्ति की........परन्तु एक अन्य ४०००० करोड़ संपत्ति के मालिक दिवंगत साधू के सामने सरकार सर झुकाती नजर आई........किसका धनार्जन वैध है और किसका अवैध......वही ईश्वर जाने .......जो सबका मालिक है.......और जो साधू और शैतान के बीच का अंतर जानता है.....
मेरे गुरुदेव ने एक मुझे अपनी आपबीती सुनाई.........बोले कि एक आदमी उनके पास लोन लेने आया.......मैंने उसे जरूरी कागजों कि एक लिस्ट पकड़ा दी......बोला कि ये कागज ले आओ और जिस दिन आप आएंगे उसी दिन आपका लोन स्वीकृत हो जाएगा.........इस पर पर वह आदमी लिस्ट वापस पकडाते हुए बोला.......साहब दो चार हज़ार ले लीजये और काम कर दीजिये.......ये समझाने पर कि ये कागज जरुरी हैं और इसके बिना लोन नहीं हो सकता.....और पैसे देने की कोई जरुरत ही नहीं है............वह आदमी दोबारा फिर कभी नहीं आया .......शायद इसलिए कि उसे यकीन ही नहीं था की बिना पैसे दिए भी कोई काम हो सकता है........
तो विचारयोग्य यह है की सच्चा कौन है........और भ्रस्ट कौन नहीं है.............क्लास में जाने कि बजाय टूशन पढ़ाने वाला शिक्षक या फिर डोनेशन लेकर एडमिसन देने वाला कॉलेज ..... चालान काटने कि बजाय ५० का नोट लेकर छोड़ देने वाला ट्रैफिक पुलिस या फिर ऑफिस में काम ना करने वाला कर्मचारी........सरकारी हॉस्पिटल में सेवारत होने पर भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाला डॉक्टर या फिर फर्जी डिग्री के दम नौकरी पाने वाला कर्मचारी.......दहेज़ के लिए लड़की को मार देने वाला परिवार या फिर जमानत के लिए रिश्वत कि मांग करता जज ........ आखिर कौन ????
सच सुनना चाहते हैं तो सुनिए.......जनाब हम सभी भ्रस्ट हैं........भ्रस्टाचार तो हमारे खून में व्याप्त है........हमारे जिस्म से नैतिकता जैसे चीज गायब हो चुकी है............हम धोखाधड़ी में विश्वास करते हैं........सुबह उठने से लेकर शाम सोने तक हम अनजाने ही ना जाने कितने गलत काम करते हैं .....और यह कब हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया, हमें खुद नहीं पता...........अब हम इसे मिटा नहीं सकते.....शायद चाह कर भी नहीं..........तो साहब फिर औरों को गाली देना छोडिये और अपना अंतःकरण शुद्ध कीजिये........अगर अपने आप को स्वस्थ कर लिया तो समझिए सारा समाज स्वस्थ हो गया.............मुझे रोटी फिल्म के एक गाने कि कुछ लाइने याद आती है........
इस पापी को आज सजा देंगे मिलकर हम सारे ......
लेकिन जो पापी ना हो वो पहला पत्थर मारे.....
पहले अपना घर साफ़ करो
फिर औरो का इन्साफ करो.......
मैंने ऐसा ही सोचा कि अपने आप को साफ़ करूँगा.......परन्तु मेरे मन ने साथ नहीं दिया.....बोला जब सभी भ्रस्ट हैं........और जब लोकतंत्र बहुमत के आधार पर चलता है.......तो भला तुम साफ़ सुथरे कैसे हो सकते हो.......सो भ्रस्ट होना तो तुम्हारी मजबूरी है.........और मैं इसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाया......
मनोज
badiya likha hai bhaiyya
ReplyDeletelast 3 paragraphs bahut hi jyada mazedaar hai
padkar kuchh sochne ko majboor hona padta hai
soch rahi hu main b kuchh likhna shuru karu
Thanks Neha.....
ReplyDeleteAur bilkul likho.....Mujhe achhe se yaad hai ki tum to poems likhti hi ho.....so create your blog aur apne man ki likho.....tumhe khud ko bahut achha lagega.....
bahut khoob manoj bhai
ReplyDeleteबहुत बढियां कटाक्ष किया आपने...दरअसल हम तंत्र बदलाव की बात में ये भूल जाते हैं की हर कम की शुरुआत स्वयम से हो तो वो आदि से अंत तक परिवर्तन ला सकता है..हम बदलेंगे युग बदलेगा का विचार अनुकरणीय है..पर इसका अनुकरण न करके सभी को ढिढोरा पीटना और आडम्बर रचना उचित लगता है
ReplyDeleteबहुत बढियां कटाक्ष किया आपने...दरअसल हम तंत्र बदलाव की बात में ये भूल जाते हैं की हर कम की शुरुआत स्वयम से हो तो वो आदि से अंत तक परिवर्तन ला सकता है..हम बदलेंगे युग बदलेगा का विचार अनुकरणीय है..पर इसका अनुकरण न करके सभी को ढिढोरा पीटना और आडम्बर रचना उचित लगता है
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