Monday, 6 June 2011

स्वामी और सरकार

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है. भारत में सभी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है. भारत में सभी धर्मो, मजहबों और उनके अनुयायियों का सम्मान किया जाता है. सच कहूँ तो अभी तक मुझे अपने देश के बारे में यही पता था.....तो क्या मैं गलत था ! .......शायद हाँ,  कम से कम ४ जून की रात को हुई घटनाएं तो कुछ ऐसा ही बयां करती है.....मैंने अंग्रेजों का शासन नहीं देखा, क्योंकि तब तक मैंने जन्म ही नहीं लिया था........मैंने आपातकाल भी नहीं देखा, क्योंकि शायद तब मैं उसे समझने लायक ही नहीं था.....हाँ मैंने मुगलों और नादिरशाही जुल्मों के बारे में पढ़ा और सुना जरुर है............४ जून की रात टी.वी. पर मुझे कुछ ऐसा ही दिखाई दिया.....अब मैं कह सकता हूँ कि मैंने देश की एक दमन देखा है......... देश कि चुनी हुई सरकार पर एक शांतिपूर्ण आन्दोलन को कुचलते हुए देखा है......महिलाओं, बच्चों का दमन देखा है..........परन्तु क्या ये मेरे लिए हर्ष का विषय हो सकता है......कदापि नहीं.......

प्रश्न यह है कि आखिर क्या हो गया था उस रात को......एक सन्यासी, एक साधू कुछ मांगे लेकर अनशन कर रहा था.......उसके साथ उसके कुछ अनुयायी भी थे........उसकी मांगे कम से कम ऐसी जरुर थी जिन पर विचार किया जा सकता था.....क्योंकि सरकार ने ऐसा  माना है .......सरकार ने साधू से बातें भी की.......कुछ समझौतों तक भी पहुंचे.......परन्तु ये क्या.....सम्पूर्ण समझौता ना होने अधवा सरकार के अनुकूल न होने कि दशा में.........रात के एक बजे उन लोगो पर जो दिन भर से भूखे बैठे थे !!!.......सो रहे थे !!!........अचानक से ही सरकार के सिपाही.....कम नहीं लगभग ५ से ७ हज़ार तक !!!.......पंडाल में आते हैं.......और उन बेचारो पर जिन्हें अपने अपराध का पता ही नहीं !!!........टूट पड़ते हैं........लाठियों और आंसू गैस के गोले छोड़ते है !!!.......लोगो के हाथ पैर तोड़ते हैं और उन्हें अस्पताल पहुंचा देते हैं !!!.........

स्वामी को महिला वेश में भागने पर विवश होना पड़ता है !!!........शायद इसलिए कि उनके कपडे फट चुके थे.......वो निर्वस्त्र तो नहीं रह सकते थे ना.....सो नारी वस्त्र !!!.......ग्लानि क्यों ........नारी वस्त्रो से यदि देश का भला होता हो.......तो जीवन पर्यंत उसे पहनने में भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए........फिर जीवन रक्षा हेतु कोई उपाय अनुचित नहीं........जीवन है तो संघर्ष है........सुख कि इच्छा है........रास्ट्र हेतु कुछ कर देने कि चुनौती है........सो जीवन आवश्यक है.................सरकार गिरफ्तार कर उन्हें हरिद्वार पहुंचा देती है !!!

प्रश्न अधिक नहीं है मेरे पास......परन्तु कुछ जरुर हैं.......मुझे पता है की शायद ही कोई जवाब दे, परन्तु खड़े करने आवश्यक है.....

१.  एक सन्यासी योग सिखाता है......क्या इस नाते उसके सामान्य नागरिक के सारे अधिकार समाप्त हो जाते हैं.......क्या इस नाते उसका एक आम नागरिक के सामान कोई सत्याग्रह करने या आन्दोलन करने का व्यक्तिगत अधिकार समाप्त हो जाता है........और अगर वह ऐसा करता है तो उस पर अत्याचार होगा, उसका उत्पीडन होगा......(मान लो मैं किसी कार्यालय में काम करता हु अगर शाम को मैं बच्चो को पढ़ाना भी चाहूँ .....तो क्या यह अपराध होगा........और मेरा दमन किया  जायेगा.........सत्य तो यह है कि किस व्यक्ति का क्या कार्य है......इसे चुनने का अधिकार उसका निजी है......और वह एकाधिक कार्य निश्चित रूप से कर सकता है )

२. क्या सन्यासी की मांगे गलत थी.......अगर हाँ तो सरकार ने उससे बात ही क्यों शुरू की........अगर नहीं तो उन पर विचार करने की  बजाय उसे दण्डित क्यों किया गया.????

३. सरकार कहती है की सन्यासी के मंच पर साम्प्रदायिक लोग थे.......जिन्हें नहीं होना चाहिए था........तो क्या अदालत ने कुछ लोगो को साम्प्रदायिक और अछूत घोषित कर उनके आन्दोलन करने पर रोक लगा रखी है.........क्या सरकार यह निर्णय लेगी कि उसके विरुद्ध आन्दोलन कौन कर सकता है और कौन नहीं..........अगर ऐसा नहीं है तो फिर सिर्फ सरकार के सोच लेने मात्र से कुछ लोगों के सत्याग्रह या आन्दोलन करने पर कैसे रोक लगाई जा सकती है......और फिर अगर सरकार वास्तव में उन्हें अपराधी मानती है तो फिर वो जेल से बाहर ही  क्यों हैं ????

४. सरकार कहती है की सन्यासी किसी अन्य संगठन को फायदा पहुँचाना चाहता है.......वो उनका मुखौटा है.......उसका छुपा अजेंडा है और वह राजनीती भी करना चाहता है...........मान लिया ऐसा ही है........तो क्या इससे उसके द्वारा उठाये गए मुद्दे गौड़ हो जाते हैं........क्या मात्र इस कारण से देश में काला धन वापस नहीं आना चाहिए ????......क्या साधू कि राजनीति के इस कारण से भ्रस्टाचारियों  को कठोर दंड नहीं मिलना चाहिए ???.......क्या इसी कारण से विदेशो में जमा काला धन रास्ट्र की संपत्ति घोषित नहीं होने चाहिए ????............वास्तव में प्रश्न यह है ही नहीं की साधू का अपना उद्देश्य क्या है......वास्तविक प्रश्न यह है की क्या उसने जो मुद्दे उठाये वह उचित है या नहीं.........
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५. और अंतिम प्रश्न क्या देश में किसी ऐसे व्यक्ति को शांतिपूर्ण आन्दोलन करने की आजादी नहीं है जिसे सरकार पसंद नहीं करती..........

हां मुझे दुःख है की मुझे सरकार की ऐसी बर्बरता देखने को मिली...जो किसी कलंक से कम  नहीं.......हाँ मुझे दुःख है की सरकार ने सोते हुए भूखे लोगो पर आक्रमण किया........हां मुझे इस बात का दुःख है की सरकार ने महिलाओं का अपमान किया और बच्चों पर भी रहम नहीं किया.........हाँ मुझे इस बात का दुःख है की देश में अपनी बात कहने पर दंड मिलता है...........हाँ मुझे दुःख है कि देश सहनशीलता खो चुका है........परन्तु क्यों है ........... 

देश के उस तथाकथित मुखिया से हम क्यों अपेक्षा करें कि वह उस जनता के प्रति जवाबदेह होगा........जिसने उसे चुना ही नहीं......वह तो उसके प्रति जवाबदेह है......जिसने उसे चुना है...........तो स्वामिभक्ति भी तो कोई चीज होती हैं न भाई .......बस वही निर्वहन किया जा रहा है.........सरकार स्वामिभक्त लोगो से भरी पड़ी है.........चरणवंदना उनका लक्ष्य हो गया है........फिर देश, साधू , समाज, लोकतंत्र, काला धन, भ्रस्टाचार .......किसे फुर्सत है उस बारे में सोचने की............और फिर सोचें भी तो कैसे और क्यों .......देश को जिसने लूटा उन्हीं के तो धन  है विदेशों में........और वो ही तो अब भी लूट रहे हैं.........फिर अपने ही धन को कौन सरकारी करना चाहेगा......ये सरकार है दोस्तों ..........कोई मूर्खों की जमात थोड़े ही न है........ चलिए जाते जाते कुछ लाइनें कहता हूँ.....

ओसामा जी प्यारे तुमको साधू पर प्रहार 
क्षत्रप सारे भ्रस्ट हैं दिखते .....भ्रस्ट है ये सरकार......

राजनीति ही करते बाबा तो क्या ये अपराध...
बात जो कहते उससे जालिम भाग सके तो भाग.....

धन काला हो जाए रास्ट्र का क्यों नहीं अध्यादेश....
क्यों धरती पुत्रों पर टूटा इटली का आदेश.....

मौका अभी भी सत्तासीनों कर लो खुद में सुधार...
अधिक दिनों तक जनता सहती नहीं है अत्याचार.....


मनोज  

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