बैठे बिठाये हो रहा .............जन गण का अपमान.......
चिंतित मन कैसे बचे..........अब सबका सम्मान.....
अब सबका सम्मान...........बड़ा मुश्किल सच कहना.....
चाबुक चलता चपल............चाशनी जब ना पहना....
कह मनोज आलोचना.........का न पचना आसान.....
लुटता है लुटता रहे.............अभिव्यक्ति सम्मान.......
अर्थशास्त्री राज में...............ज्यादा है धिक्कार ......
ज्यादा है धिक्कार .............गाँव में छब्बीस ज्यादा...
मित्रों मत तुम भूलना.........अब अपनी मर्यादा.....
कह मनोज सरकार का ......नहीं है कोई दोष....
सत्ता मद में गौड़ है...............जनता का आक्रोश........
दोनों ने मुस्कान से ............जनता को दिए डंक....
जनता को दिए डंक......... ..नकारे सभी घोटाले....
कहा कि बस थे ...................नीति पुराने हमने डाले...
कह मनोज कलि काल में.....नैतिकता अभिशाप....
रूढ़ीवादी लोग ही..................करते इसका जाप....
मनोज
bahut khub sir
ReplyDeleteबहुत ही खबसूरत से जन समस्याओं को अपने शब्दों में पिरोया है.....
ReplyDeleteडायेरेक्ट.
ReplyDeleteखरी-खरी!
आशीष
--
लाईफ?!?
कल 05/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
wah wah wah wah
ReplyDeletebahut saarthak aur gahan chintan prastuti..
ReplyDeleteजन समस्याओं को उजागर करने का अभिनव प्रयोग है आपकी रचना में..आभार
ReplyDeleteगहरा विश्लेषण... सार्थक पंक्तियाँ...
ReplyDeleteसादर...
सटीक और सार्थक ..
ReplyDeleteye tamaache padate bhee hain kisi neta ke gaalon par , ya sirf pathhakon ke liye hi likhe jaate hain ?
ReplyDeletep.d. bajpai
bahut bahdia........ bus ese hi likhte rahe..... ek din hamen ye khane mein kabhi garv hoga ki ye mere badi bhai hai.... oriental bank ka naam bhi roshan hoga.. kya khub likhe........
ReplyDeleteBAHUT KHUB LIKHI......... AAJ MEIN KABHI GARV MAHSUS KAR RAHA HUN KI MANOJ MERE BADI BHAI HAI... AUR MEIN UNHE JANTA HUN. EK DIN AAP SAHITYA AUR KAVITA KE DUNIYA MEIN EK PAHCHAN BANENGE. AURE SAHITYA JISKE PARTI LOGO KA RUCHI KAM HOTA JA RAHA HAI UMMEIN RUCHI LENE KE LIYE MAJBOOR KAR DENGE. BUS AAP ESI TARAH BADTE RAHE........... BEST OF LUCK
ReplyDelete