Friday, 7 December 2012

एफ डी आई लागू करने में बुराई नहीं


   मित्रों मेरा स्‍पष्‍ट मानना रहा है कि खुदरा व्‍यापार में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश राष्‍ट्र के लिए विनाशकारी है, मेरी ऐसी धारणा के अनेकानेक कारण रहे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्‍न प्रकार से हैं, 

 1. मेरी सबसे बड़ी आशंका यह है कि बड़े विदेशी व्‍यापारी आकर हमारी अर्थव्‍यवस्‍था को तहस नहस कर सकते हैं, इसका कारण यह कि 51 फीसदी विदेशी निवेश के कारण आधिपत्‍य विदेशी कम्‍पनियों का ही रहेगा, जाहिर है विदेशी कम्‍पनियां यहां जनकल्‍याण हेतु नहीं वरन मुनाफाखोरी के लिए ही आ रही हैं, वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाली, देश की ये नई दुकाने देश को विदेशी सामान से शीघ्र ही भर देंगी, जिससे उपभोक्‍ता आंशिक रूप से अवश्‍य लाभान्वित हो सकता है, परन्‍तु देश के लघु और कुटीर उद्योग का वही हाल होना तय है जोकि देश में खिलौना उद्योग का हुआ है, आप भी स्‍वीकार करेंगे कि आज बाजार में देशी खिलौने ढूंढे नहीं मिलते,

 2.  सरकार का कहना है कि व्यापार में बिचौलिए समाप्‍त हो जाएंगे और इससे जहां एक तरफ किसान को उसकी उपज का सही मूल्‍य मिलेगा वहीं उपभोक्‍ता को भी वह सामान सस्‍ते मूल्‍य पर उपलब्‍ध हो सकेगा, जी हां मुझे भी लगता है कि यह बात सत्‍य है परन्‍तु आंशिक, आइये इसे एक उदाहरण से समझते हैं, 
   मान लीजिए आज कोई किसान किसी वस्‍तु को 100 रूपये में बेचता है और उपभोक्‍ता को वही सामान बाज़ार में 140 रूपये में मिलता है, क्‍योंकि बीच में थोकविक्रेता, फुटकर विक्रता, सेल्‍स एजेंट इत्‍यादि के मार्जिन और ट्रांसपोर्टेशन इत्‍यादि के खर्चे हो जाते हैं, अब विदेशी व्‍यापारी के आने से क्‍या होगा? आपको क्‍या लगता है कि किसान को अब 138 रूपये मिलने लगेंगे या उपभोक्‍ता को वह सामान 105 का मिलने लगेगा? जी नहीं बिल्‍कुल नहीं ! ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा, विदेशी व्‍यापारी किसान से वही सामान 102-105 रूपये का खरीदेगा और उपभोक्‍ता को 135-138 में विक्रय करेगा, आप कहेंगे अच्‍छा ही तो है, दोनों को लाभ हुआ ! परन्‍तु मित्रों सोचने की बात यह है कि जिस 40 रूपये के मार्जिन पर आज पांच सात परिवार पलते थे, वे बेरोजगार हो गए, ध्यान से देखिये, विदेशी व्‍यापारी ने किसान और उपभोक्‍ता दोनों को आंशिक लाभ देकर 30 रूपये का लाभ कमाया है जोकि सिर्फ और सिर्फ उसके ही खाते में गया और उसके खाते का जाने का मतलब विदेश गया, मतलब साफ, देश का धन विदेशी कमाएंगे और देशी व्‍यापारी जिन्‍हें हम मिडलमैन कहकर गरियाने का प्रयास करते हैं, बीन बजाते रह जाएंगे,

  3-    एक तीसरी बात कही गई है कि देश में 40 लाख रोजगार का सृजन होगा, निश्चित ही होगा, विदेशी दुकाने खुलेंगी तो रोज़गार का सृजन होना तय है, बात सत्‍य है परन्‍तु किस मूल्‍य पर यह भी विचार किए जाने की आवश्‍यक्‍ता है, एक बार पुनः प्‍वाइंट नम्‍बर 2 पर गौर करें, मित्रों देश में कथित बिचौलियों (मिडलमैन) की कुल संख्‍या 5 करोड़ से भी अधिक है, इनमें से यदि 20 फीसदी भी इस नई व्‍यवस्‍था के तहत बेरोजगार हो गए तो यह संख्‍या अनुमानित एक करोड़ की बैठती है, क्‍या हम एक करोड़ की बेरोजगारी के मूल्‍य पर 40 लाख रोजगार सृजन को मुनाफे का सौदा मान सकते हैं, शायद नहीं, ध्यान रखिये ये आंकड़ा घटेगा नहीं बल्कि बढेगा ही
 
  4. एक चौथी आशंका यह भी कि किसी भी आपात काल में क्‍या ये विदेशी अपनी दुकाने बंद कर अपने वतन वापस लौटने में तनिक भी देर लगाएंगे ? संभवतः नहीं !! कल्‍पना कीजिए कि भारत का किसी अन्‍य देश से युद्ध आरंभ हो जाता है, फिर ऐसी दशा में क्‍या होगा, इन देशों की सरकारें स्‍वतः अपील कर इन दुकानों को बंद करवा देंगी, फलतः देश में कभी भी अफरातफरी का माहौल फैल सकता है और अराजकता व्‍याप्‍त हो सकती है,

  5-   अधिक प्रभावशाली होने की दशा में क्‍या यह देश की राजनीति और व्‍यवस्‍था तंत्र को प्रभावित नहीं करेंगी, सोचिये, तब क्‍या होगा जब वह नीतियों को प्रभावित करने लायक शक्ति अर्जित कर लेगी तो,

उपर्युक्‍त की भांति ही मेरी अन्‍य आशंकाएं भी है, परन्‍तु उन्‍हें मैं फिलहाल के लिए छोड़ देता हूं, और सरकार की देश में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश के निर्णय को अपना समर्थन देता हूं, आप कहेंगे कि मैं पागल हो गया हूं, खुद ही कहता हूं कि राष्‍ट्र संकट में घिर सकता है फिर खुद ही समर्थन देने की बात भी करता हूं, 

मित्रों आज समर्थन करने की मुझे एक वजह दिखती है और वह वजह यह कि देश की दोनों संसदों ने एफ डी आई लागू न करने सम्‍बंधी विपक्ष के प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया है, देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र की खूबसूरती ही यह है कि वह अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को यह शक्ति देता है कि वह लोककल्‍याण की नीतियां बनाए और लागू करे, हो सकता है कि मेरे जैसे अल्‍पज्ञानी को वह बात समझ न आ रही हो जो देश के महान अर्थशस्त्रियों को ज्ञात है, संसद में पक्ष-विपक्ष दोनों ने अपने-अपने तर्क रखे, मतदान किया और फिर एक निर्णय पर पहुंचे, लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्‍चता है और जब उस सर्वोच्‍च संसद ने ही अपनी सहमति प्रदान कर दी है तो हम घर में बैठ कर सरकार पर क्‍यों और कैसे उंगली उठा सकते हैं, गनीमत यह है कि अभी यह एफ डी आई चुनिन्‍दा शहरों में और राज्‍य सरकारों की इच्‍छा के आधार पर लाया जाएगा, मुझे लगता है कि यह प्रयोग आशंकाओं के पर्दे को हटा वास्‍तविकता दिखाने का कार्य कर सकता है, सत्य असत्य का ज्ञान करा सकता है, 

मित्रों अंत में यही कहूँगा कि इस महान राष्‍ट्र ने अनेकानेक विदेशी आक्रंताओं को झेला है, आत्‍मसात् किया है और सदैव ही विजयी होकर बाहर आया है, आज भी यदि एक विदेशी आक्रांता का प्रहार राष्‍ट्र पर हो रहा है तो राष्‍ट्र उससे निपटने का रास्‍ता अवश्‍य तलाश कर लेगा और पुनः विजयी ही होगा, अपनी शक्ति पर भरोसा रखिए - 

मनोज
    

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  2. अगर एक भारतवासी बनकर सोचा जाये तो एफडीआई से नुकशान ही नजर आता है मुझे तो फायदा दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा !!

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  3. मनोज भाई बहुत सटीक तर्क जुटाए हैं .अर्थ शास्त्र समझाया है जो अनर्थ करने जा रहा है सेल्स बोइज /गर्ल्ज़ गढ़ने जा रहा है दसवीं पास .कल को मुक्त होम सप्लाई का लालच भी दे सकतें हैं .

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  4. खुदरा कुछ समय तक बहुत परेशानी भरा रहेगा.

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  5. बहुत ही अच्छे कारण गिनाये हैं आपने

    मगर हम समस्त बुद्धिजीवियों का फ़र्ज़

    बनता है कि "कोउ नृप होय हमै का हानी"

    को अपनाते हुए न चलें .....शुक्रिया

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