Sunday, 9 August 2015

सुषमा स्वराज ने गलती तो की है ....


मित्रों, कल से पुनः संसद का सत्र आरम्‍भ होने जा रहा है, ऐसे में आवश्‍यक हो जाता है कि  सत्र में हो रहे व्‍यवधान पर थोडी चर्चा कर ली जाए, बात करते हैं, भारतीय विदेश मंत्री श्रीमति सुषमा स्‍वराज की, जिनपर आरोप है कि उन्‍होंने श्री ललित मोदी की, जोकि भारत में वांछित है को पुर्तगाल जाने हेतु वीजा दिलवाने में मदद की,

मित्रों, हम एक समाज में रहते हैं, समाज में परिवार भी होता है, मित्र भी होते हैं, संवेदनाएं भी होती है तथा एक दूसरे के प्रति आदर, सहयोग तथा परस्‍पर सामंजस्‍य का , तो फिर कहिए क्‍या यह पता चलने पर कि हमारा सम्‍बंधी अथवा हमारा मित्र किसी गलत राह पभाव भी होता है, ऐसे में कई बार ऐसा भी समय भी आ जाता है जबकि हमारे परिवार अथवा मित्रमंडली में से कोई मार्ग भटक जाए, तथा कोई ऐसा अपराध कर बैठे जिससे कि वह मुजरिम बन जाएर चला गया है अथवा उसने कोई अपराध कर दिया है, क्‍या हमारा उससे सम्‍बंध समाप्‍त हो जाना चाहिए, क्‍या उसके प्रति हमारा पूर्णतः दुराव हो जाना चाहिए, उदाहरणतः मान लीजिए आपका कोई भाई अथवा बचपन का मित्र चोरी करते हुए पकडा जाता है, ऐसे में क्‍या आपकी मित्रता समाप्‍त हो जाती है, अथवा भ्रातृत्‍व खंडित हो जाता है, कदापि नहीं ना, हम यह जानते हुए भी कि उसने अपराध किया है, उससे मिलने जाते है, उसके लिए वकील का इंतजाम करते हैं और तो और उसके छूट जाने के लिए हृदय से प्रार्थना भी करते हैं, इतना ही नहीं यदि उसका अपराध सिद्ध भी हो जाए और वह कानून द्वारा दंडित भी कर दिया जाए, तब भी हमारी संवेदना उसके साथ बनी रहती है, हम तत्‍पश्‍चात भी उसकी कुशलता की कामना करते हैं, उसके उत्‍तम स्‍वास्‍थ्‍य की कामना करते हैं, उसके परिवार की हर संभव मदद करते हैं और यदा कदा उससे मिलने भी आते जाते रहते हैं, परन्‍तु जब हम ऐसा कर रहे होते हैं, तब क्‍या हम स्‍वयं भी अपराधी हो जाते हैं, क्‍या ऐसी दशा में ऐसा करना, एक चोर के साथ सहानुभूति दर्शाना, उसके परिवार की मदद करना हमें भी अपराधियों की श्रेणी में ला खडा करता है, मेरा स्‍वयं का मत है नहीं, ऐसी दशा में उस अपराधी की मदद, उससे सहानुभूति हमारा अपराध नहीं वरन हमारा कर्तव्‍य बन जाता क्‍योंकि मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है, उसकी अपनी संवेदनाएं है, अपने भाव हैं, अपने विचार हैं तथा अपने अपने सामाजिक कर्तव्‍य व दायित्‍व  हैं, अतः ऐसी दशा में मददकर्ता स्‍वयं निरपराध रहता है, बावजूद इसके कि वह एक अपराधी की मदद कर रहा होता है,

अतः मित्रों, यदि इस प्रकार से देखा जाए, तो श्रीमती सुषमा स्‍वराज का कृत्‍य किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता, क्‍योंकि उन्‍होंने तो महज अपने एक पारिवारिक मित्र की मदद की थी, परन्‍तु इसके साथ साथ यहां एक बात और भी विचारणीय हो जाती है, जरा सोचिए कोई वकील किसी अपराधी की मदद क्‍यों करता है जबकि उसका तो अपराधी / आरोपी से कोई सहज, समधुर सम्‍बंध नहीं होता है, और कोई जज किसी अपराधी की मदद क्‍यों नहीं करता है जबकि वह तो उसका शत्रु नहीं होता,

तो मित्रों, कोई वकील किसी अपराधी की मदद इसलिए करता है कि एक उसकी व्‍यवसाय प्रतिबद्धता होती है, अतः यह जानते हुए भी कि जिसके लिए वह पैरवी कर रहा है वह अपराधी है, उसका पक्ष लेने से वह अपराधी नहीं बन जाता वरन अपनी व्‍यावसायिक प्रतिबद्धताओं की पूर्ति मात्र करता है, इसी प्रकार से जज का कार्य न्‍याय करना है अतः उसे निष्‍पक्ष रह कर ही न्‍याय करना है अतः जब वह किसी अपराधी का पक्ष नहीं लेता तब वह अपने शपथ का पालन करता है तथा अपनी कर्तव्‍यनिष्‍ठा का भी पालन करता है, और यदि न्‍यायाधीश अपराधी का जानबूझकर पक्ष लेता है तो वह स्‍वयं को भी कहीं न कहीं उसी की श्रेणी में खडा कर लेता है,
  
अतः यदि प्रथम स्थिति में यदि श्रीमति स्‍वराज ने ललित मोदी जी का पक्ष लिया होता, तो सम्‍भवतः वह उचित ही होता, अपनी पारिवारिक मित्र की मदद करना, उससे सहानुभूति रखना किसी भी प्रकार से अनुचित नहीं माना जा सकता, परन्‍तु यहां यह ध्‍यान रखना होगा कि श्रीमति सुषमा स्‍वराज आज देश की विदेश मंत्री हैं, और ऐसी दशा में जब वह ललित मोदी जी का पक्ष लेती हैं, न केवल पक्ष लेती हैं वरन उन्‍हें पुर्तगाल का वीजा दिलवाने में मदद भी करती है तो यह मात्र एक पारिवारिक मित्रता का निर्वहन मात्र नहीं होता, विदेश मंत्री देश के कानून का पालन करने हेतु उसी प्रकार से शपथबद्ध है जिस प्रकार से वह जज था, आपने मुंशी प्रेमचंद की पंच परमेश्‍वर की कथा तो अवश्‍य पढी ही होगी, जरा स्‍मरण कीजिए, अलगू चौधरी न्‍याय करते समय अपने मित्र जुम्‍मन शेख का पक्ष न ले सके थे, ठीक उसी प्रकार मिंया जुम्‍मन भी सरपंच के आसन पर विराजमान होते ही कर्तव्‍यनिष्‍ठ हो उठे थे,

अतः जिस प्रकार इस प्रकार से न्‍यायाधीश चाह कर भी अपने प्रियजनों का पक्ष नहीं ले सकता, ठीक उसी प्रकार से श्रीमति स्‍वराज की चाहे श्री ललित मोदी से कितनी भी घनिष्‍टता हो, यहां तक कि यदि वह उनके सगे भाई भी होते तो भी वह चाह कर भी उनका पक्ष नहीं ले सकती थी, क्‍योंकि यहां पर पद की गरिमा तथा राष्‍ट्र का सम्‍मान उन्‍हें अपने आत्‍मीय जनों का भी पक्ष लेने से भी रोकता है, यहां पर यह तर्क देना तो हास्‍यास्‍पद सा हो जाता है कि उन्‍होंने श्री ललित मोदी की पत्‍नी के स्‍वास्‍थ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए कोई संस्‍तुति की थी, क्‍योंकि विचार कीजिए कि  यदि कोई न्‍यायाधीश आरोपी की पारिवारिक परिस्थिति देखकर न्‍याय करना आरम्‍भ कर दें तो स्‍वतः कल्‍पना कीजिए कि किस प्रकार की परिस्‍थतियां उत्‍पन्‍न होगी,

अतः मित्रों उक्‍त विवेचना से ऐसा स्‍पष्‍ट लगता है कि श्रीमती स्‍वराज से चूक तो हुई है, गलती सम्‍भवतः क्षणिक तौर पर प्रेम तथा कर्तव्‍य के मध्‍य खिंची पतली परन्‍तु मजबूत सीमा रेखा के न पढ पाने की वजह से हुई लगती है, परन्‍तु फिर भी मुझे यह लगता है कि चूंकि यह गलती सम्‍भवतः अनजाने में हुई, साथ ही साथ परिस्‍थति में किसी प्रकार का भी बदलाव नहीं हुआ, श्री ललित मोदी तब भी लंदन में थे अभी भी लंदन में ही हैं, अतः श्रीमति स्‍वराज द्वारा संसद को यह विश्‍वास दिलाने के पश्‍चात की भविष्‍य में वे ऐसा कुछ नहीं करेंगी तथा चूक अनजाने में हुई, संसद को पुनः सुचारू रूप से चलाया और चलने दिया जाना चाहिए,
  

मनोज कुमार श्रीवास्‍तव, 

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