Friday, 15 November 2013

हुत्त ... हम नहीं जाएंगे वोट डारने ....




भैय्या अब हमारी तो किस्‍मत ही खराब है, सोचा था सरकार बनेगी, सरकार बदलेगी तो हमारी भी कुछ दशा बदलेगी, लेकिन अब तो ये हौसला भी जाता रहा, देश के प्रमुख विपक्षी दल ने अपने प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के बारे में घोषणा कर दी है, नरेंद्र मोदी !!! अब सोचिए मोदी जी हमारी परेशानी कैसे समझ सकते हैं, सुना है वो चाय बेचा करते थे, तो हां होगी न गरीबी के बारे में जानकारी, होगी न उनकी चिन्‍ता, लेकिन हमारा क्‍या, वैसे वह गुजरात के बारह साल से अधिक से मुख्‍यमंत्री हैं, परन्‍तु उनका चिंतन बिल्‍कुल उनकी तरह का ही है, बोलते हैं कि पूरे देश को गुजरात बना देंगे, बोले तो कहीं दारू नहीं मिलेगी, अमा लानत है आने वाली ऐसी सरकार पर, जो गम गलत करने पर भी पाबंदी लगाती हो, तो फिर वे हमारा दुःख समझ ही नहीं सकते हैं तो दूर करने की तो बात ही दूर !!


तो दूसरी तरफ राहुल गांधी, आजकल जहां जाते हैं आक्रोश जाहिर करते नहीं अघाते, व्‍यवस्‍था बदल देंगे ! अला कर देंगे ! फलां कर देंगे ! मिंया हम तो सुन के ही घबरा जाते हैं, पहले ही हमारी व्‍यवस्‍था के चीथडे हो चुके हैं, अब हमारे ऊ चीथडे भी छीन लेंगे का, भैय्या कौन सी व्‍यवस्‍था बदलेंगे, वैसे तो शाही खानदान से ताल्‍लुक रखते हैं, त हम गरीबों को तो नहीं ही जानते होंगे, हां समझने की कोशिश सुना है कर रहे हैं, सुनते हैं गरीबों के घर जाके खाना खाते हैं, एक तो पहले ही राशन की किल्‍लत ऊपर से ये वी.आई.पी. मेहमान, तो  लाख कोशिश कर लो, मिंया हमारा दुखडा तो आप भी न जान पाओगे, आप भी न समझ पाओगे क्‍योंकि आपका मिजाज ही कुछ ऐसा है हम का करें,

अब हम परेशान हो रिए हैं, हलकान हुए जाते हैं, अपना वोट दें तो किसको दें, नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी तो हमारा दुख समझ नहीं सकते, बाकी पार्टियां तो हैं नहीं लेकिन हां यहां वहां सभी जगह मायावती जी ही अपने उम्‍मीदवार खडे करती हैं, लेकिन महिलाओं से तो हमारी रूह कांपती है, लिहाजा हमारा दुखडा उनसे भी अछूता ही है, वे भी नहीं समझ सकती कि आखिर हमारी समस्‍याओं से हमें निजात कैसे मिलेगी, फिर तो यही गाना याद आता है कि ...... जाएं तो जाएं कहां, समझेगा कौन यहां दर्द भरे दिल की जुबां, जाएं तो जाएं कहां ....

ओ तेरी, ये तो बताया ही नहीं कि हमारा दुखडा है का, तो भैय्या आप खुद ही समझ लीजिए कि किसी भी पुरूष या महापुरूष के समस्‍त कष्‍टों की जननी आखिर है कौन ? दिन भर दफ्तर में, खेत में, फैक्‍ट्री में खट के शाम को घर आने के बाद तकलीफ को बढा देने का काम भला कौन करती है ? कौन है जो वक्‍त बेवक्‍त आपको बाजार के चक्‍कर कटवाती है ? कौन है जो आपके हर काम में पलीता लगा देने पर आमादा रहती है ? कौन है जो दो प्रहर आपको चैन से जीने मरने नहीं देती ? अच्‍छा बताइए तो कि आखिर कौन है जो सुबह सबेरे आपसे घर में झाडू, फटका और बर्तन करवाती है ? कौन है जो आपके बटुए की सेंधमारी करती है और आप अगले दिन आटो वाले के सामने शर्मिंदा होने के बावजूद भी मन मसोस के रह जाते हैं !!! कौन है जो आपके बास से ज्‍यादा आप पर हावी होने का हुनर रखती है ? कौन है जो आपको तो छोडो, आपकी दो घूंट दारू भी बर्दाश्‍त नहीं कर पाती है ? मिंया, अब हमारी तो डर के मारे घिग्‍घी बंधी रहती है, इसलिए सीधे सीधे नाम भी नहीं ले सकते !! लिहाजा इशारों में ही बता रहे हैं, ई शादी जो है न भैय्या, अच्‍छे अच्‍छों की जन्‍नत को जलालत में तब्‍दील कर देती है, नहीं मानते तो अपने वर्तमान प्रधानमंत्री को ही देख लीजिए, शादी शुदा हैं, मुख श्री से वैसे तो कुछ बोलते नहीं और कभी कुछ बोलते भी हैं तो कैसे और कितना !!! बूझ रहे हैं ना, इनसे निराश थे इसीलिए चाह रहे थे कि कोई बेहतर आए जिसमें थोडी तो हिम्‍मत हो, और पतियों का पक्ष ले सके,   

लेकिन अब आप ही कहिए, जब मोदी जी ने, राहुल जी ने शादी की ही नहीं तो वे भला हमारे कष्‍टों कों कैसे समझ सकते हैं ? हमारी समस्‍याओं के बारे में ये न तो कोई कानून पास करवा सकते हैं और न ही कोई अध्‍यादेश ला सकते हैं !! हमारी हालत तो जस की तस बनी रहेगी, और फिर जो व्‍यक्ति देश की 90 फीसदी मतदाताओं की दुःख तकलीफें नहीं समझ सकता, उसे कहिए भला कैसे वोट मांगने का अधिकार है और क्‍यू सरकार बनाने दिया जाना चाहिए ???

लिहाजा हम तो अन्‍न ना बाबा की तरह अनशन करेंगे, कि भैय्या किसी शादीशुदा इंसान को प्रधानमंत्री बनाया जाए, ताकि वह हमारी दुःख तकलीफें समझ सके और उसे दूर करने की दिशा में कुछ काम कर सके, तो हम ना जाने वाले किसी को वोट देने, ऐसे लोगों को वोट दे के का फायदा अउर का कायदा जो हमारी भावनाएं ही ना समझता हो,

हुत्‍त त हम नहीं जाएंगे वोट डारने....


जय हो

    मनोज

3 comments:

  1. सुने हैं अन्ना भी शादी नहीं किये हैं । बहुते मुश्किल होता है मनोज बाबू शादी शुदा का अनशन करना । केजरीवाल को देखा के नहीं चार दिन में ही तशरीफ फटकर हाथ में आ गई थी ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (16-11-2013) को "जीवन नहीं मरा करता है" : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1431 पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    मुहर्रम की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (16-11-2013) को "जीवन नहीं मरा करता है" : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1431 पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    मुहर्रम की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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