Sunday 6 May 2012

बुआ जी का निर्मल प्रेम


बुआ जी अधीर हो गई, उनसे ये सब देखा नहीं जा रहा है, तो क्‍या हुआ गर ठग हुआ तो ? है तो हिन्‍दू ही, अरे भई जब ठगी पर कोई रोक टोक है ही नहीं, जब कोई भी धर्म का आसरा लेकर किसी को भी ठगने के लिए स्‍वतंत्र है, और सरकार मौन, तो फिर मल बाबा पर ही उंगली क्‍यो उठाई जाये ?? उठानी है, तो सभी ठगों पर एक साथ उठाओ, यह कौन सी धर्मनिरपेक्षता कि पाल के विरूद्व मीडिया कुछ न कहे और मल के पीछे कसाई की तरह पड़ जाये ….. 

भई वाह, कितनी वाजिब बात कही उन्‍होंने, धर्म तो धर्म है, कोई कितना भी नीच, पापी क्‍यों न हो, पर उसका एक धर्म तो होता ही है, तो उस धर्म के कथित स्‍वयंभू ठेकेदारों का इतना दायित्‍व तो बन ही जाता ही है कि वह उसके बचाव में सामने आयें, बुआ जी ने यही कहा और किया था, तो लोगों की भवें तन गईं, कहने वाले कहने लग गये कि ठगों का कोई धर्म नहीं होता, अब आप ही कहिए भला ऐसा होता है क्‍या ? समाज को धर्म, जाति के आधार पर बॉंटने वालों ने किसी को भी धर्म के दायरे से अलग छोड़ा है क्‍या ?? नहीं न !!! फिर ये क्‍या पोंगापंथी हुई कि फलाना अपराधी, ठग या ढ़ोंगी है, तो उसका धर्म से कोई लेना देना नहीं,  कोई भी व्‍यक्ति पहले उस धर्म का होता है, बाद में कुछ और, इस प्रकार हर व्‍यक्ति को किसी न किसी धर्म के दायरे में तो आना ही पड़ेगा, सो मल इससे विलग कैसे हो सकता है ?

मैं बुआ जी की बातों से पूरी तरह से सहमत हूं, मेरी मांग है कि जेल में बंद सभी कैदियों का आज ही रिहा कर दिया जाये, कारण ?? अरे क्‍या कानून इस बात की गारंटी ले सकता है कि वह सभी दोषियों को सजा देता है और दे रहा है ? यदि नहीं !!! तो फिर जो लोग जेल में बंद हैं, उन्‍हें ही सजा क्‍यों दी जानी चाहिए, उन्‍हें सजा तब तक नहीं मिलनी चाहिए, जब तक सभी गुनहगारों को एक साथ नहीं पकड़ा जाता, ठीक उसी प्रकार जैसे मल बाबा को कोसना है तो पाल को भी कोसना होगा, नहीं तो मल बाबा को भी कोसने का किसी को कोई अधिकार नहीं, कितनी न्‍याय संगत, तार्किक और बौद्विक बात कही है बुआ जी ने ….बुआ जी आप धन्‍य हैं, आपके चरण कहॉं हैं ???

बुआ जी वो तो आपने बता दिया, वरना हम अज्ञानी कहॉं इतनी बड़ी-बड़ी बातें समझ पाते, आप न बताती तो हम जैसे अबोध जान भी नहीं पाते कि पाल नामक भी कोई व्‍यक्ति है जो ठगी में संलिप्‍त है, हम तो इस बात को भी लेकर दिग्‍भ्रमित थे कि मल बाबा का धर्म क्‍या है, हम तो उन्‍हें सिक्‍ख मानते थे, और केश, कड़ा, कच्‍छ, कंघा और कृपाण न धारण करने के कारण विधर्मी तक कह देते थे, हम तो यही जानते थे कि सिक्‍ख धर्म में ग्रंथ साहिब ही गुरू हैं, और व्यक्ति की पूजा सिख धर्म में नहीं है ""मानुख कि टेक बिरथी सब जानत, देने, को एके भगवान"". तमाम अवतार एक निरंकार की शर्त पर पूरे नहीं उतरते कोई भी अजूनी नहीं है | यही कारन है की सिख किसी को परमेशर के रूप में नहीं मानते | (स्रोत गूगल बाबा)

परन्‍तु आपने हमारी ऑंखों की ढि़बरी को जला दिया, हमें बता दिया कि मल बाबा हिन्‍दू धर्म के आध्‍यात्मिक गुरू की श्रेणी में आते हैं, और सिर्फ हिन्‍दुओं पर निशाना साधना किसी भी प्रकार उचित नहीं, बुआ जी मीडिया के दुष्‍प्रचार पर मत जाइयेगा, ये तो सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने के उस्‍ताद हैं, इनके कारण ही कृपा बरसी और कृपा रूक गई, ये किसी धर्म को नहीं मानते और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, आप अपना अभियान जारी रखिए, हम सभी आपके ही तो साथ हैं, आखिर हमारा भी तो कोई धर्म हैं, है ना

                       मनोज कुमार श्रीवास्‍तव

4 comments:

  1. मनोज जी , यहाँ मै आपसे थोडा सा असहमत होने का रिश्क उठा हूँ लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि इश्क खत्म हो गया :) , बुआ ने कहा निर्मल ठग है , लेकिन उसके साथ साथ बाकी लोगो के कि भी पोल खुलनी चाहिए .... न कि किसी एक कि , न तो उन्होंने कहा कि निर्मल पे बयां बाजी बंद करो और न ही कहा कि उनके बारे में नहीं दिखाया जाना चाहिए .

    ReplyDelete
    Replies
    1. कमल भाई, आपके असहमत होने में जरा भी हर्ज नहीं, आवश्‍यक नहीं कि हर बिन्‍दु हमारी सोच मिले ही,
      परन्‍तु अच्‍छा होता अगर बुआ जी ने वो ही कहा होता जो कि आपने कहा – कि निर्मल ठग है , लेकिन उसके साथ साथ बाकी लोगो के कि भी पोल खुलनी चाहिए, लेकिन उन्‍होंने कहा "Why are spiritual leaders from other religions such as Paul Dhinakaran not being targeted," "I am not defending nor opposing Nirmal Baba, but attempts are being made to defame Nirmal Baba. It is wrong to do anything that will dent people's faith in spiritual healers."

      कमल भाई, यहॉं वे निर्मल बाबा को आध्‍यात्मिक गुरू कहना चाह रही हैं, वे यह निर्णय लेने में भी असहज है कि मल बाबा ठग है, यहीं मुझे आपत्ति है,

      Delete
  2. सटीख लिखा है आपने मल बाबा की बजये निर्मल करने मे और बुआ जी का नाम उमा करने मे हर्ज नही है व्यंग्य मे बाकी विधाओ की अपेक्षा ज्यादा छूट होती है

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्‍यवाद दवे जी, भविष्‍य में आपकी सलाह का ध्‍यान रखूंगा

      Delete