Friday, 21 September 2012

अंकल सैम के ये प्रतिनिधि देश बेच देंगे !!!


मित्रों, देश कौन चला रहा है, जरा ध्‍यान से सोचिएगा, क्‍या कहा प्रधानमंत्री !!! थोड़ा और सोचिए, ओहो चेयरपरसन महोदया !!! नहीं, नहीं, और सोचिए न, नहीं समझ आ रहा, चलिए कोई बात नहीं, मैं मदद करता हूं, अच्‍छा कुछ दिनों पहले किसने हमारे देश के प्रधानमंत्री को लताड़ा था, उन्‍हें असरहीन बताया, सोचिए तो, अंकल सैम के देश की एक पत्रिका ने ही न, फिर क्‍या था, अब ये साबित करना आवश्‍यक हो गया कि नहीं नहीं हम बेअसर नहीं, बल्कि काफी असरदार हैं, तो उन्‍होंने कर दिखाया, अब आपको समझ आ गया कि देश को कौन चला रहा है, नहीं !!! अच्‍छा, क्‍या आपको पता है कि अंकल सैम के देश में चुनाव होने जा रहे हैं, और हमारे देश की तरह वहां भी बेरोजगारी बहुतायत में है, अब वहां चुनाव हैं तो अंकल सैम को वहां के लोगों को यह विश्‍वास दिलाना जरूरी हो जाता है, कि वे उनके लिए नौ‍करियों की व्‍यवस्‍था कर सकते हैं, कहां से, नए अवसर पैदा करके, और इसीलिए पिछली बार जब खुदरा व्‍यापार में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश की बात वापस ले ली गई तो अंकल सैम को गुस्‍सा आ गया, और उसने प्रधानमंत्री को असरहीन बता दिया (इसे कहते हैं उकसाना, समझे पोपटलाल), परन्‍तु हमारा देश आज अंकल सैम की नाराजगी मोल नहीं ले सकता, कारण मत पूछो यार, समझा करो, जिगरा चाहिए जिगरा, अब कोई अटल बिहारी जी तो हैं नहीं कि पोखरण में बम फोड़ दिया और कह दिया अंकल सैम से कि जो करना हो कर लो, आज वो जिगरा कहां भाई, आज तो आपके पेट की आंत निकालकर अंकल सैम को व्‍यापार करने के लिए दे दी जा रही है, अब समझ गए न कि देश कौन चला रहा है,  

भई प्रधानमंत्री ने तो आपको बता ही दिया कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते, लेकिन ये नहीं बताया कि आखिर उगते कहां है, और जिस पैसे की उपज होती है, फिर उस फसल का होता क्‍या है, आइये हम आपको बताते है, सच तो यह है कि पैसे लोगो की ही जेबों से निकाले जाते हैं, टैक्‍स की शक्‍ल में, मसलन आयकर, बिक्रीकर, उत्‍पाद कर इत्‍यादि इत्‍यादि और इसका उपयोग होना चाहिए एक तो गरीब तबके को सब्सिडी देने में और दूसरा देश के आधारभूत ढांचे को सुदृढ करने में, परन्‍तु ऐसा हो नहीं रहा तो कारण स्‍पष्‍ट है, एक तो यह कि सरकार को आम जनता से अधिक तेल कम्‍पनियों के घाटे की चिन्‍ता है, (वैसे तेल कम्‍पनियों का घाटा भी एक रहस्‍य है, आप किसी भी तेल कम्‍पनी की बैलेंस शीट देख लीजिएगा, कोई भी तेल कम्‍पनी आपको घाटे में नहीं मिलेगी, फिर भी उनके घाटे की चिन्‍ता प्रधानमंत्री को सोने नहीं देती), तो दूसरी तरफ जनता की गाढ़ी कमाई से चूसा गया टैक्‍स, भ्रष्‍टाचार रूपी दानव चबा जाता है, तो फिर विकास कहां से होगा और गरीबों को सब्सिडी कहां से मिलेगी,

अच्‍छा आपने कभी सोचा कि क्‍या अंकल सैम के देश में सब्सिडी दी जाती होगी कि नहीं, जी हां, उनके देश में अनाज पर लगभग 2841 मिलियन डालर की सब्सिडी दी जाती है (स्रोत विकीपीडिया), अब जरा सोचिए, जब अंकल सैम के विकसित राष्‍ट्र में भी सब्सिडी की आवश्‍यक्‍ता है तो भारत जैसे अल्‍पविकसित राष्‍ट्र में जहां अभी भी 29 फीसदी जनसंख्‍या गरीबी की रेखा के नीचे है, सब्सिडी की आवश्‍यक्‍ता समाप्‍त क्‍यों होती जा रही है,

तो यहां फिर अंकल सैम का दबाव हावी होता है, डब्‍ल्‍यू टी ओ के समझौतों के अनुरूप देश को मुक्‍त व्‍यापार के लिए सब्सिडी को चरणबद्व तरीके से समाप्‍त करना ही होगा, और सरकार उसी दिशा में चल रही है तो हर्ज क्‍या है, तो क्‍या हुआ अगर  देश का नौजवान भूखा मरेगा तो, अंकल सैम के देश की तो समृद्वि कायम रहेगी, तो क्‍या हुआ यदि हमारे देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनेगा तो, अंकल सैम के देश के वर्तमान राष्‍ट्राध्‍यक्ष का तो आगामी चुनावों में पथ प्रशस्‍त होगा, तो क्‍या हुआ अगर हमारे देश का मध्‍यम वर्ग चकनाचूर हो जाएगा, व्‍यापारी सड़क पर आ जाएंगे, अंकल सैम के देश के व्‍यापारी तो समृद्व होते ही जाएंगे, मित्रों, धीरे धीरे अंकल सैम के ये प्रतिनिधि इसी प्रकार से देश को विदेशियों के हाथ बेचते जाएंगे और बेच देंगे, और हम बेसहारा, बस अपने कफन दफन को राजनीतिक तमाशा देखते रह जाएंगे, तो फिर तैयार हो जाएगी एक और गुलामी के लिए, इस यह गुलामी आर्थिक होगी, जो जीने नहीं देगी और मरने को तो आपका अधिकार पहले से ही अंकल सैम के कब्‍जे में है,   


मनोज

Thursday, 13 September 2012

अपनी कुरसी में जड़ोगे, तुम हमारी लाश को



 
मत करो युं दग्‍ध निश दिन
बस कटारी खींच लो
दिख न पाये रक्‍त तुम को
आंखे इस हित मींच लो
बस यही पल चाहिए था
फिर भला अब देर क्‍यूं
आम जन के खून से तुम
अपना दामन सींच लो



 हमने सोचा था तुम्‍हें
रक्षक बनोगे शासकों
तोड़ा तुमने जतन से
लेकिन हमारे आस को
न नहीं नहिं दोष कुछ भी
हमको मालुम, हो विवश
अपनी कुरसी में जड़ोगे
तुम हमारी लाश को



रोज बरछी कोंचते तुम,
मारते नहिं जान से
देखकर के कष्‍टप्रद नर
फूलते हो शान से
भूल मत भगवान बैठा
देखता तुमको भी है
इतनी आहें न मिटेंगी
सौ जनम के दान से 

मनोज

Wednesday, 29 August 2012

कसाब को फांसी क्‍यूं ???


हमारे एक मित्र हैं, रीछपाल जी, देशभक्ति का सम्‍पूर्ण पर्याय, पूर्व फौजी हैं, सन् 1971 की लड़ाई में दुश्‍मन के आठ सिपाहियों को अकेले ही शहीद किया था, मेरी उनसे पुरानी मित्रता है, आज शाम अचानक ही बाजार में मिल गए,
रीछपाल भाई नमस्‍कार,
नमस्‍कार, परन्‍तु उनके चेहरे पर कोई भाव न दिखा,
खुश तो बहुत होगे तुम आंय, मैंने अमिताभ बच्‍चन की शैली में जुमला फेंका,
काहे, घर पर बेटा हुआ है क्‍या ?”, रीछपाल जी झुंझलाकर बोले तो उनके इस चिडचिड़े जवाब को सुनकर मैं सहम गया, सोचा अवश्‍य ही कोई गम्‍भीर बात है, वरना रीछपाल जी तो सदैव ही प्रसन्‍न रहने वाले जिन्‍दादिल आदमी हैं, फिर भी मैंने अपनी बात यह सोचकर कही कि शायद उन्‍हें ताजा समाचार का ज्ञान न हो,
अरे भाई आपको पता नहीं क्‍या, देश के दुश्‍मन कसाब को फांसी हो गई, इसलिए बधाई थी मैंने, लेकिन आप तो……….”
कब हुई फांसी ?”, रीछपाल जी ने टका सा प्रश्‍न किया, तो मैं समझ गया कि मैं गलत बोल गया हूं,
भई, फांसी हुई नहीं, फांसी देने की सजा सुनाई गई है, आज ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई है.”
क्‍यूं सुनाई कसाब को फांसी की सजा ???”, रीछपाल जी ने पुनः प्रश्‍न किया, तो मैं अवाक् रह गया,   
रीछपाल जी क्‍या हो गया है आपको, इतने लोगों को सरेआम कत्‍ल किया था उसने, सबने देखा, सबने उसे अपना अपराध कुबूल करते सुना, और आप कहते हैं कि क्‍यूं फांसी की सजा सुनाई उसे, उसने देश के विरूद्व युद्व छेड़ने की गुस्‍ताखी की थी, और इसके लिए, फांसी से कोई कम सजा उपयुक्‍त थी ही नहीं, उसे तो फांसी होनी ही चाहिए,
तो क्‍या कसाब को सचमुच फांसी हो जाएगी ???”, रीछपाल जी ने अपने सपाट चेहरे से प्रश्‍न किया.
मैं चुप, उनके इस प्रश्‍न का जवाब तो अलादीन के जिन्‍न के पास भी नहीं होगा, मैं सोच में पड़ गया,
अरे बोलो बोलो, बड़े तीसमारखां बने फिरते हो, चिल्‍ला चिल्‍ला के राग भैरवी गा रहे हो कि कसाब को फांसी हो गई, अब का हुआ, चिरैया कंठस्‍वर ले उड़ी क्‍या.”,
नहीं भैया ऐसी बात नहीं है.”, मैंने एक टी.वी. विज्ञापन की तर्ज पर कहा,
लेकिन एक कदम आगे तो बढ़े, सजा देने के लिए सजा सुनाया जाना तो आवश्‍यक ही था न, मैंने अपने शब्‍दों को संयत करने का प्रयास करते हुए कहा,
तो क्‍या हो गया, अरे सबके सामने उसने निर्दोषों को गोलियों से भून दिया, सी.सी.टी.वी. में सारे फुटेज मौजूद थे, चश्‍मदीद गवाहों की फौज थी, उसका स्‍वयं का कुबूलनामा था, फिर भी सजा देने में लगभग चार साल लग गए, और सजा पर अमल होने की कोई तिथि नहीं, ये कैसा न्‍याय हुआ मेरे भाई, उन निर्दोषों की आत्‍मा को क्‍या सचमुच शान्ति मिल रही होगी आज.”, कहते कहते रीछपाल जी का गला भर आया,
सच कहते हैं रीछपाल भाई, वोटों की राजनीति उसे सजा नहीं होने देगी, अभी तो उसका नाम लाइन में सबसे पीछे है, उसके पहले वाले ही सालों से अपने नंबर की प्रतीक्षा कर बुढ़ा रहे हैं, और शायद अपनी नैसर्गिक मृत्‍यु तक प्रतीक्षा करते भी करेंगे, फिर कसाब का नम्‍बर न जाने कब आयेगा, और तब तक कसाई कसाब, कबाब और बिरयानी के मजे लेता रहेगा, वह भी देशवासियों की गाढ़ी मेहनत की कमाई के पैसों से…”,
इसीलिए तो पूछ रहा था भाई कि कसाब को फांसी की सजा क्‍यूं दी, जब अमल में लाना ही नहीं है, क्‍यूं इस देश के लोगों की भावनाओं से खेला जा रहा है, क्‍यूं उन्‍हें शान्ति और सुकून के सब्‍जबाग दिखाए जा रहे हैं, क्‍यूं न्‍याय के नाम पर उनसे ठगी की जा रही है, क्‍यूं आखिर क्‍यूं ………..”,
रीछपाल जी की आंखों से आंसुओ की अविरल गंगा बह निकली थी, मेरे पास उनके प्रश्‍नों का कोई जवाब नहीं था, मैंने अपनी नजरें झुकाए झुकाए ही उनसे अनुमति ली, रीछपाल भाई अभी जल्‍दी में हूं, फिर कभी मिलते हैं,


मनोज  

Wednesday, 8 August 2012

ये बाबा फिर पिटेगा .


वो रात अंधेरे उठ जाते,
कहते कि चल कुछ कर आते,
अंजाम नहीं सुनता दिखता
कुछ भी कहते न हकलाते,
इस सत्‍ता की मरघट चादर पर, 
निश दिन नव आसन दिखेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .


कुछ स्‍वारथ है भारी उसका,
बहुजन हित साध रहा सबका,
सबको खुद से है जोड़ लिया
क्‍या खूब तेज पाया तप का,
कैसा हठयोगी पर कहता,
भू , अम्‍बर से भय मिटेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .




काले धन का साम्राज्‍य बड़ा,
जड़ उसकी खोद रहा है खड़ा,
न होगा समझौता अब तो
अपनी ही बातों पर फिर अड़ा,
कैसा साधू कहता है बैठ,
इतिहास को फिर से लिखेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .


मत रहना तुम निष्‍पक्ष मित्र,
मत उदासीन रहना तुम प्रिय,
इस बार खड़े हो जाना तुम
अपने-अपने भारत के लिए,
वरना तेरे मन-भावों को,
कब तक ये योगी रटेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .



मनोज   
  

Monday, 6 August 2012

अन्‍ना कांग्रेसी हुए, दिग्‍गी राजा आप धन्‍य हैं !!!


राजनीति भी एक खेल है, मानसिक खेल और इसमें शह मात का चक्र भी चलता ही रहता है, अन्‍ना और बाबा के आन्‍दोलन भी कहीं न कहीं इसी राजनीतिक और मानसिक द्वंद के खेल कहे जा सकते हैं, जिसके बारे में सबसे पहले हमें दिग्‍विजय सिंह ने बताया, चौंकिए मत, हमने ही विश्‍वास नहीं किया, उन्‍हें हल्‍के में लिया, परन्‍तु याद कीजिए उन्‍होंने कहा था कि ये तिलंगे बीजेपी और आरएसएस के प्‍लान ए, बी और सी हैं, वह ऐसा नहीं कहते अगर उन्‍हें प्‍लान ए और प्‍लान बी ने परेशान और धराशाई न कर दिया होता, उनके इस बयान का उस वक्‍त मकसद प्‍लान सी को रोकना था, जिसमें वह पूर्णतः सफल भी रहे,

प्रश्‍न उठता है कि आखिर पहले चरण को सफलतापूर्वक निबाहने के बाद चूक कहां हुई ? पहली बार हुए अन्‍ना के अनशन को और बाबा रामदेव के आन्‍दोलन को सरकार ने गम्‍भीरता से लिया, पूरे देश में उठे जनाक्रोश ने कहीं न कहीं उनकी नींद हराम भी कर दी, फलतः अन्‍ना के लिए सदन का सत्र आगे बढाया गया, एक प्रस्‍ताव तक पास किया गया, बाद में लोकपाल बिल लाया गया, उस पर चर्चा भी की गई, परन्‍तु अफसोस बिल राज्‍यसभा में जाकर लटक गया, कारण सरकार के पास बहुमत न होना और विपक्ष की मॉंगों के आगे न झुकना बताया गया, लेकिन यह उतनी सच बात नहीं थी !!

परन्‍तु यह क्‍या !!! अगले कुछ दिनों में फिजां बदली-बदली क्‍यों नजर आने लगी ?? 27 दिसम्‍बर से मुम्‍बई मे तीन दिनों का अन्‍ना का अनशन दो दिन में ही डाक्‍टरी सलाह पर ! या युं कहें की भीड़ न जुटने की हताशा में समाप्‍त हो गई, और उसके पश्‍चात!! उसके पश्‍चात जो हुआ, उसे एक बार फिर से याद कर लीजिए, अन्‍ना दो दिनों के भीतर ही हस्‍पताल पहुंच गए, बीमारी विशेष नहीं थी परन्‍तु फिर भी कई दिन लग गए, इलाज करने वाले डाक्‍टर संचेती को पद्म विभूषण्‍ा से नवाजा गया !!! और इस बीच चार राज्‍यों के चुनाव कब बीत गए, किसी को याद नहीं, अब यहां पर अन्‍ना ने क्‍या किया, यह मत देखिए, यह सोचिए उन्‍होंने क्‍या नहीं किया, जी हां वे चार राज्‍यों में चुनाव प्रचार करने वाले थे, जो उन्‍होंने नहीं किया, कारण बीमारी, क्‍या सचमुच, कहीं ये बीमारी का बहाना तो नहीं था, उस वक्‍त तक मेरा शक आंशिक था, परन्‍तु हाल में घटी घटनाओं ने मेरा शक यकीन में तब्‍दील दिया, कैसे, आइये देखते हैं

सोचिए जरा, यदि अन्‍ना का आन्‍दोलन जारी रहता, तो लाभ किसका था ?? अधिक मंथन की आवश्‍यक्‍ता नहीं, यकीनन प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते लाभ भाजपा के खाते में जाना तय था, अधिक संभावना थी कि आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती, शायद सहजता से सरकार भी बना सकती थी, परन्‍तु नौ दिनों के  नवरात्र व्रत के पश्‍चात और एक राजनीतिक दल बनाने की घोषणा के बाद राजनीतिक गिरगिट किस करवट बैठेगा, अन्‍दाजा लगाना कठिन नहीं है, ऐसे में सरकार विरोधी मतों का बंटवारा होना तय है, अन्‍ना का दल किसी और के नहीं बल्कि भाजपा और एनडीए के मतों में से अपना हिस्‍सा लेगा, और जहां एक फीसदी मतों का अन्‍तर ही राष्‍ट्रीय परिदृश्‍य पर पर्याप्‍त हलचल करने में सक्षम हो, वहॉं ये बंटवारा किसी भी हाल में भाजपा को सत्‍ता में नहीं आने देगा, शायद इस करवट को भाजपा ने पहले ही भांप लिया था, लिहाजा इस बार के आन्‍दोलन में भाजपा के किसी नेता ने चूं तक नहीं किया, और हाल में शायद आडवाणी जी ने इसी के मद्देनजर अपने ब्‍लाग में कांग्रेस और भाजपा किसी के भी सत्‍ता में आने से इन्‍कार किया है,  

तो प्रश्‍न उठता है कि क्‍या अन्‍ना कांग्रेस से मिल चुके हैं ??? स्थितियां, परिस्थितियां तो चीख चीख कर इस ओर इशारा कर रही हैं कि जो अन्‍ना भाजपा और आर.एस.एस के प्‍लान- थे, वे आत्‍मघाती रूप ले चुके हैं, अब वे स्‍वविनाश करने पर आमादा हैं, कांग्रेस की कुटिल नीतियॉं कामयाब रहीं, कल को यदि बाबा भी राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दें तो विस्‍मय की कोई बात नहीं होनी चाहिए, सत्‍ता की गोंद से सभी चिपक कर रहना चाहते हैं वही वो भी कर रहे होंगे, परन्‍तु हां इस सब के बीच फायदे में कोई रहा तो प्‍लान-सी, जिसने दिग्‍विजय के कारण अपनी मिट्टी पलीत होने से बचा ली, तो आज तो कहना ही पड़ेगा, दिग्‍गी राजा, आपकी कूटनीति धन्‍य है, आप श्रेष्‍ठ सिद्व हुए,


मनोज     

Saturday, 28 July 2012

आज के अर्थहीन आन्‍दोलन....


आचार्य चाणक्‍य ने कहा था  यदि एक वर्ष की योजना हो तो धान उगाओ, यदि दस वर्ष की योजना हो तो वृक्ष लगाओ, परन्‍तु यदि योजना जीवन भर की हो तो बच्‍चों को शिक्षित करो

मित्रों, आज देश में शिक्षा का जो स्‍तर है उसके बारे में अधिक कुछ कहने की आवश्‍यक्‍ता नहीं, सरकारी स्‍कूल तो कब के निष्‍प्रभावी हो चुके हैं, वहां के शिक्षक भी शिक्षण के स्‍थान पर व्‍यवसाय (ट्यूशन) को तरजीह देते हुए आसानी से दिख जाएंगे, परीक्षा में वही विद्यार्थी पास होते हैं जो मास्‍टरजी के यहां ट्यूशन पढ़ेगे, जो नही पढेंगे, कभी भी फेल किए जा सकते हैं, तो दूसरी तरफ प्राइवेट स्‍कूलों की हालत तो इससे भी बुरी है, ट्रस्‍ट बनाकर, सस्‍ते मूल्‍यों पर जमीन प्राप्‍त कर, बिना टैक्‍स दिए व्‍यवसाय करना इनका धर्म बन चुका है, आप सब जानते हैं, फिर भी नहीं मानते, तो चलिए, मेरी ही एक आप बीती सुन लीजिए -

कुछ दिनों पूर्व मैंने अपनी सुपुत्री की छठी कक्षा में एडमीशन के लिए कुछ स्‍कूलों के चक्‍कर काटे, मैं इलाके के एक मध्‍यमस्‍तरीय स्‍कूल में एडमीशन के लिए गया, अपना परिचय देनें और काफी मिन्‍नतों के बाद मुझे गेट के भीतर एडमीशन ब्‍लाक में जाने दिया गया, एडमीशन ब्‍लाक में मुझे बताया गया कि एडमीशन हो सकता है, परन्‍तु उसके लिए रजिस्‍ट्रेशन फार्म का मूल्‍य 500 रूपये है, उसके बाद बच्‍चे का टेस्‍ट होगा और टेस्‍ट में बच्‍चे के पास होने पर एडमीशन के टाइम एक लाख रूपये जमा करवाने पड़ेंगे, बाकी एडमीशन फीस अलग से होगी,
एक लाख…….”, मैं अवाक् रह गया, किस बात के..”, मैंने हिम्‍मत कर काऊंटर पर बैठी महिला से पूछा
बिल्डिंग डेवेलवमेंट चार्ज, काऊंटर से बताया गया
क्‍या इसमें कुछ कम नहीं हो सकता ?” , अपने आपको संभालते हुए मैंने याचक दृष्टि से पूछा,
इस पर उस महिला ने अत्‍यंत बुरा मुंह बनाया, ऐसा, मानों उसके चाय के कप से मक्‍खी उसके मुंह में आ गई हो, उसने मुझ पर हेय दृष्टि डालते हुए कहा कि रिसेप्‍शन पर चले जाइये,
जैसे अन्तिम स्‍टेज पर पड़े कैंसर के मरीज को किसी चमत्‍कार की उम्‍मीद होती है, लगभग उसी उम्‍मीद से मैं रिसेप्‍शन पर पहुंचा, जहां अनेक लेपों से स्‍वयं को आकर्षक बनाने का असफल प्रयास कर रही एक महिला ने मुस्‍कुराते हुए मेरा स्‍वागत किया, मेरा हौसला बढ़ा तो मैंने फौरन गुजारशि कर दी -
जी मैडम, एडमीशन ब्‍लाक में मुझे बताया गया है कि एडमीशन के टाइम पर एक लाख रूपये लगेंगे, मेरी एक रिक्‍वेस्‍ट है कि…………..”
जी बिल्डिंग डेवलेपमेंट चार्ज के बारे में कोई बात नहीं कर सकते, कोई और बात हो तो कहिए, महिला ने मेरा पूरा वाक्‍य सुने बिना मेरी बात काटते हुए कहा, उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे,
जी क्‍या मैं प्रधानाचार्य से इस बाबत मिल सकता हूं ?”
जी नहीं …….., अब तक चेहरा सपाट हो चुका था और उस पर तिरस्‍कार के भाव आ चुके थे, उसकी ऑंखों मे स्‍पष्‍ट संदेश था कि आप यहां से जा सकते हैं,
मैंने भी वहां और रूकना उचित नहीं समझा और धीमे कदमों से स्‍कूल से बाहर आ गया, मेरी पुत्री ने मेरी तरफ देखा, शायद उसने मुझे इतना लाचार आज से पहले कभी नहीं देखा होगा,

बाहर आया तो मेरे एक व्‍यापारी मित्र मिल गए, व्‍यक्ति दुखी हो तो रोने का जी करता है, सोचा एक कन्‍धा मिला तो उस पर सर रखकर रोया जाए,
भाई स्‍कूल में बेटी का एडमीशन कराने आया था, (स्‍कूल का नाम मैं जानबूझकर नहीं लिख रहा हूं, क्‍योंकि कमोबेश अधिकतर स्‍कूलों का यही हाल है), औपचारिक दुआ सलाम के बाद उसके पूछने पर मैंने बताया,
अच्‍छा स्‍कूल है, मेरे बच्‍चे भी यहीं पढ़ते हैं, बात बनी ??” , उन्‍होंने उत्‍सुकता से पूछा
कहां यार, बिल्डिंग डेवलेपमेंट चार्ज मांग रहे हैं, मैं मध्‍यमवर्गीय नौकरी पेशा आदमी कहां से लाऊं इतने पैसे, मैंने उनकी सहानुभूति प्राप्‍त करने की गरज से कहा,
हां वो तो है, कितने पैसे मांगे ?”
एक लाख……”,
क्‍या एक लाख !!! ”, मेरे उस व्‍यापारी मित्र की अनायास ही चीख निकल गई.
हां भाई एक लाख, मैंने भी शब्‍दों पर जोर देते हुए कहा
आपसे तो बहुत कम मांगे, मैंने पिछले साल अपने बच्‍चे का एडमीशन दो लाख रूपये डोनेशन देकर करवाया है, साले सुअर बिजनेसमैन देखकर ज्‍यादा पैसे मांगते हैं, मेरे मित्र के चेहरे पर क्रोध और ठगे जाने के भाव स्‍पष्‍ट थे,
अब चौंकने की बारी मेरी थी, अर्थात कोई फिक्‍स रेट नहीं, जैसा आदमी देखा उसी के अनुसार पैसे मांग लिए, एडमीशन ब्‍लाक में बैठी महिला ने मेरा परिचय प्राप्‍त करते ही जान लिया होगा कि इसकी औकात एक लाख से ज्‍यादा देने की नहीं है, लिहाजा उसने इतने ही मांगे, इससे कम इसलिए नहीं किए क्‍योंकि एक मिनिमम बेंचमार्क तो रखना ही होगा, मैंने अपने मित्र को अवाक् और क्रोधित छोड़ा तथा दूसरे स्‍कूल में एडमीशन के प्रयास हेतु आगे बढ़ गया,

मित्रों यह तो हाल है छोटी कक्षाओं का, इंजीनियरिंग और डाक्‍टरी की पढ़ाई का तो भगवान ही मालिक है, अब आप ही कहिए जो छात्र लाखों रूपये खर्च कर डाक्‍टर, इंजीनियर बनेगा, क्‍या वह समाज सेवा करेगा ? अथवा क्‍या उसे समाज सेवा करनी चाहिए ?? , क्‍या वह अपने/ अपने परिवार द्वारा किए गये इन्‍वेस्‍टमेंट को वसूलने का प्रयास नहीं करेगा ?, और फिर उसका ऐसा करना क्‍यों अनुचित होगा ??, जरा सोचिए,            

समस्‍या यह है कि जो बात आचार्य चाणक्‍य ने सदियों पहले ही महसूस कर ली थी आज के कथित महापुरूष नहीं समझ पा रहे, भ्रष्‍टाचार के विरूद्व बिगुल बजा रहे प्रणेता जड़ों को पोषित करने की बजाय फलों और पत्‍तों को दोषी करार दे उनमें सुधार करना और सुधार की अपेक्षा कर रहे हैं, अब आप ही सोचिए यदि वृक्ष की जड़ों में समानुपातिक रूप से सही खाद पानी नहीं दिया जाएगा, तो मीठे फल कहां से निकलेंगे, भ्रष्‍टाचार के जल से सिंचित बचपन से युवा होने पर सदाचारी होने की अपेक्षा मूर्खता के अतिरिक्‍त और क्‍या है,

अभी भी समय नहीं बीता है, पश्चिम का अंधानुगमन राष्‍ट्र को कहीं का नहीं छोड़ेगा,  राष्‍ट्र निर्माण के लिए राष्‍ट्र की जड़ो अर्थात उसके बच्‍चों पर ध्‍यान दीजिए, यदि ऐसा किया गया तो और कुछ करने की जरूरत नहीं होगी, सदाचारी पुरूष राष्‍ट्र को सही दिशा देने में स्‍वयं ही सक्षम और सफल होगा. 

आप पूछ सकते हैं, तो क्‍या वर्तमान को भ्रष्‍ट तंत्र के हवाले ही छोड़ दिया जाए, नहीं ऐसा नहीं है आज को भी भ्रष्‍टाचार मुक्‍त करना होगा, परन्‍तु पहला कदम भविष्‍य को सहेजने का होना चाहिए, हर बीते क्षण वृक्ष पर नए फल निकल रहे हैं, उन फलों को विषाक्‍त होने से बचाना होगा, विषाक्‍त हो चुके फलों का उपचार उसके बाद की कठिन और दुरूह प्रक्रिया हो सकती है,  


मनोज  

Monday, 2 July 2012

मुद्राराक्षस - एक विवेचना


आज मैंने विशाखदत्‍त द्वारा संस्‍कृत में लिखी पुस्‍तक मुद्राराक्षस का हिन्‍दी अनुवाद, जिसे रांगेय राघव ने किया है को पढ़ा,

सच कहूं तो इतनी प्रसिद्व पुस्‍तक (नाटक) से मेरी काफी अधिक अपेक्षाएं थी, अफसोस जो कि पूर्ण न हो सकीं, कथा साधारण है, या युं कहें कि इस पर मुम्‍बइया मसाला फिल्‍म भी बन सकती है, बस एक दो आइटम सोंग्‍स डालने भर की देर है, क्‍योंकि पूरे नाटक में महिला पात्र नहीं है, हां उनकी चर्चा अवश्‍य है,

नाटक चंद्रगुप्‍त द्वारा नन्‍द के वध के पश्‍चात सिंहासन ग्रहण करने और अमात्‍यप्रमुख राक्षस के भाग जाने की घटना के पश्‍चात की है, अमात्‍य राक्षस को नंद के अत्‍यंत विश्‍वासपात्र सेवक के रूप में दिखाया गया है, जोकि किसी भी प्रकार से नंद की मृत्‍यु का बदला लेकर चंद्रगुप्‍त की हत्‍या करवाना चाहता है, वह अपने कई गुप्‍तचर और वधिक इस कार्य हेतु नियुक्‍त करता है, परन्‍तु उन सभी की हत्‍या चाणक्‍य की कुटिल नीतियों के कारण उन्‍हीं के हथियार से कर दी जाती है, मगध (कुसुमपुर) से भागते हुए राक्षस अपने परिवार को चरणदास नामक अपने मित्र के पास छोड़ जाता है, यह बात चाणक्‍य को ज्ञात हो जाती है, फिर क्‍या था, चाणक्‍य, चरणदास को बन्‍दी बना लेता है और राक्षस के परिवार का पता बताने के लिए यातनायें देता है, परन्‍तु चरणदास अपनी मित्रभक्ति के सम्‍मुख विवश है और वह किसी भी प्रकार से यह स्‍वीकार नहीं करता कि राक्षस का परिवार उसके पास है,

राक्षस मलयकेतु की मदद से कुसुमपुर पर आक्रमण की योजना बनाता है, इस हेतु वह कई अन्‍य राजाओं से मित्रता भी कर लेता है, परन्‍तु चाणक्‍य अपनी कुटिल चालों से मलयकेतु के सम्‍मुख यह सिद्व करवा देता है कि उसके पिता पर्वतराज की हत्‍या राक्षस ने करवाई है और वह चन्‍द्रगुप्‍त से मिला हुआ है,, मलयकेतु रूष्‍ट हो जाता है वह सभी मित्र राजाओं की हत्‍या करवा देता है, परन्‍तु राक्षस को छोड़ देता है, सब तरफ अपने प्‍यादे पिटते देख राक्षस भी अपने ऊपर लगे उन आरोपों को स्‍वीकार कर लेता है जोकि वास्‍तव में गलत थे, अब वह अपनी तलवार लेकर कुसुमपुर की ओर निकल पड़ता है और अन्‍ततः चरणदास के जीवन के बदले चन्‍द्रगुप्‍त के अमात्‍य का पद स्‍वीकार कर लेता है, नाटक यहॉं समाप्‍त होता है,

इस पूरे नाटक का अध्‍ययन करने पर सिर्फ चाणक्‍य की कुटिल चालों का ही बोलबाला दिखाई देता है, एक समय तो चन्‍द्रगुप्‍त और चाणक्‍य के मध्‍य नकली वाक युद्व भी दिखाया गया है, राक्षस स्‍वामीभक्‍त है परन्‍तु उसकी कूटनीतियों को अत्‍यन्‍त साधारण दर्शाकर चाणक्‍य को महिमामंडित किया गया है, चाणक्‍य द्वारा राक्षस को ब्‍लैकमेल कर मित्रता प्राप्‍त करना किसी भी दृष्टि में एक अच्‍छा कदम नहीं दिखाई देता, इस तरह मोलभाव के माध्‍यम से क्रय की गई मित्रता किसी भी पल घातक हो सकती है, यह चाणक्‍य को भली भांति ज्ञात रहा होगा, फिर भी वह राक्षस को इस प्रकार स्‍वीकार करे, कुछ पचता नहीं, राक्षस ने अत्‍यन्‍त साधारण चालें चले और वे सारी की सारी हवाई फायर साबित हों, यह भी नहीं जंचता, अनुवाद में अत्‍यंत क्लिस्‍ट भाषा का प्रयोग किया है, जाकि सबके लिए सहजता से बोधगम्‍य नहीं है,

सबसे अधिक आश्‍चर्य तो मुझे पुस्‍तक का पृष्‍ठ भाग देखकर हुआ, यहां यह नाटक गुप्‍तकाल का और चन्‍द्रगुप्‍त द्वितीय के समय का बताया गया है, ऐसे ऐतिहासिक नाटक में ऐसी भूल क्षम्‍य नहीं हो सकती है,

बहरहाल इतने प्रसिद्व नाटक को पढ़ने पर प्रसन्‍नता अवश्‍य हुई इससे इन्‍कार मैं नहीं कर सकता,


मनोज      

Thursday, 21 June 2012

राष्‍ट्रपति के बहाने नी‍तीश-मोदी के निशाने


बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने अचानक ही अरस्‍तू, प्‍लूटो, मैकियाबली इत्‍यादि की भॉंति एक दार्शनिक की राह पकड़ते हुए अपनी ओर से एक आदर्श राज्‍य की अवधारणा प्रस्‍तुत की, वह एक आध्‍यात्मिक संत की तरह से आये और एक अंग्रेजी अखबार को साक्षात्‍कार का माध्‍यम से एक आदर्श राजा के गुण बताये, हालोंकि उन्‍होंने ऐसा कुछ नहीं बताया जो कि नया हो, आपत्तिजनक हो अथवा निंदनीय हो, परन्‍तु जिन्‍हें क्‍लेश करना है, वो तो करेंगे ही, लिहाजा ऐसा ही हुआ, नीतीश का आदर्श राजा धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक मूल्‍यों में विश्‍वास रखने वाला, सभी को साथ लेकर चलने वाला तथा सिर्फ विकसित राष्‍ट्र को विकसित करने का दंभ न भरने वाला होना चाहिए, लोग कहते हैं कि वह परोक्ष रूप से गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी की बात कर रहे थे, जबकि मुझे लगता है कि वह परोक्ष रूप से अपनी बात कह रहे थे, वह अपनी उस छवि को प्रदर्शित करना चाह रहे थे, जैसा कि उन्‍हें लगता है कि उनकी है,

आइये अब जरा नी‍तीश के बयान के निहितार्थ तलाशने का यत्‍न करते हैं, प्रश्‍न उठता है कि अचानक से क्‍या आवश्‍यक्‍ता आन पड़ी कि नीतीश को एक आदर्श राजा की तत्‍काल खोज अपरिहार्य प्रतीत होने लगी, वह भी तब जबकि निकट में प्रधानमंत्री का नहीं वरन राष्‍ट्रपति का चुनाव होना तय है, राजग पहले ही उहापोह में है, कलाम कन्‍नी काट गए और ममता हाथ मलती रह गई, समता ने प्रणव राग अलापा तो शिवसेना ने कोरस गाने में तनिक भी देर न लगाई, थकहार भाजपा ने रस्‍मअदायगी हेतु संगमा संग संगम का मूड बनाया परन्‍तु यहॉं कारण संगमा को राष्‍ट्रपति बनाना कम, जयललिता और पटनायक जैसे पुराने साथियों को एन,डी,ए, से पुनः जोड़ने की कवायद अधिक नजर आई, वह भी उस परिप्रक्ष्‍य में जबकि नीतीश रोज ही आंख तरेरते हुए यह संकेत दे रहे है कि मोदी के प्रधानमंत्री का पद का दावेदार बनने की दशा में वह एन.डी.ए. का त्‍याग कर सकते हैं, तो क्‍या एन.डी.ए. राष्‍ट्रपति चुनाव के बहाने नए साथी तलाश रहा है ? तो क्‍या राष्‍ट्रपति चुनाव के बहाने समता पार्टी एन.डी.ए. से किनारा करना चाह रही है ? शायद इन दोनों ही प्रश्‍नों का जवाब हॉं में ही है,

आइये इससे भी आगे की संभावना पर चलते है, नीतीश और मोदी क्‍या सचमुच के शत्रु हैं, दिखता तो ऐसा ही है, फिर दो श्रेष्‍ठ लोगों के सर्वश्रेष्‍ठ होने की होड़ होने की संभावना से इंकार भी नही किया जा सकता, एक ओर जहां नीतीश ने भोज देने के पश्‍चात थाली खींच ली, मोदी द्वारा दी गई बाढ़ पीडि़तों को मदद वापस भिजवा दी और उन्‍हें बिहार आने से कई बार रोका, तो दूसरी तरफ मोदी ने गुजरात में बिहार दिवस मनाया पर नीतीश को नहीं बुलाया और इसके बाद बिहार के नेताओं पर जातिवाद का आरोप लगा कर कह दिया कि बिहार के पिछड़ने का कारण वे ही हैं, इस पर नी‍तीश का तिलमिलाना स्‍वाभाविक था, लिहाजा उन्‍होंने चुन-चुन कर आदर्श राजा के उन सभी गुणों को रेखांकित किया, जो कि उनके अनुसार मोदी में हैं ही नहीं, इस पर मोदी की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है,

परन्‍तु क्‍या यह खेल इतना ही सरल है जितना दिखता है, राजनीति में कभी दो और दो चार होते ही नहीं है, तो फिर यहॉं कैसे हो सकता है, आखिर लुधियाना में हाथ उठाते और मुख्‍यमंत्रियों के सम्‍मेलन में हाथ मिलाते इन दोनो महारथियों की उन छवियों को कैसे खारिज किया जा सकता है जो इन दोनों के मध्‍य इतना अधिक असहज होने के संकेत नहीं देती, ये दोनों बेशक ढ़ाल से तलवार की तरह ही मिलते हों, पर मिलते अवश्‍य हैं, फिर आज नी‍तीश के बयान का समय और मोहन भागवत का हिन्‍दुत्‍ववादी नेता के पक्ष में दिए गए बयान कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं,

सच तो यह है कि यह सब कवायद 2012 में गुजरात में होने वाले चुनावों की पृष्‍ठभूमि तैयार करती अधिक लगती है, नीतीश का बयान मोदी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण करने में सहायक सिद्व होगा, आपको याद ही होगा, सोनिया गांधी के "मौत के सौदागर" वाले बयान के पश्‍चात बाजी किस तरह पलटी थी, अब नीतीश के आदर्श राजा के बयान ने मोदी को स्‍वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री पद का दावेवाद बना दिया है, गुजरात के लोग निश्चित रूप से नी‍तीश के बयान को अपनी अस्मिता से जोड़कर देखेंगे और मोदी के नाम पर लामबंद होंगे, यही तो नीतीश ने भी पिछले चुनावों में किया था, जब उन्‍होंने मोदी को बिहार न आने देकर अपने पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण कराया था, तो क्‍या नीतीश और मोदी चुनावों के मौसम में एक दूसरे के सहयोग की नीति पर चल रहे हैं, निष्‍कर्ष तो यही निकलता है कि एक बार फिर मोदी गुजरात पर विजय पताका लहराने जा रहे हैं, और यह उसकी प्रस्‍तावना है,

परन्‍तु फिर प्रश्‍न उठता है कि आखिर दिल्‍ली के रण का क्‍या होगा, क्‍या नीतीश के समर्थन से या उनके बिना समर्थन के मोदी प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो उसका भी हल मौजूद है, भाजपा चाहे तो यह घोषणा कर सकती है कि मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार होंगे, अर्थात यदि अकेले भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलता है तो मोदी प्रधानमंत्री होंगे, परन्‍तु यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता और एन.डी.ए. की आवश्‍यक्‍ता पड़ती है तो प्रधानमंत्री चुनावों के बाद एन.डी.ए. की बैठक में तय किया जाएगा, इस प्रकार से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी, अर्थात मतों का ध्रुवीकरण भी हो जाएगा और गठबंधन भी बरकरार रहेगा, परन्‍तु क्‍या आपको ऐसा होता दिख रहा है, मुझे तो नहीं दिखता क्‍योंकि आज भाजपा वह नाव बन गई है जिसमें कई खेवैये एक साथ बैठे हैं और वे सभी नाव को अपने मंतव्‍य के हिसाब से अपने निर्धारित लक्ष्‍यों की प्राप्ति हेतु अपनी अपनी दिशाओं में खे रहे हैं, लिहाजा वे स्थिर हो गये हैं और कदाचित डूबने का खतरा भी उत्‍पन्‍न होता जा रहा है,

बहरहाल राजनीति का शो जारी है, ऊंटों की नहीं, गिरगिटों की करवटों का इन्‍तजार कीजिए,

मनोज        

Saturday, 12 May 2012

रामदेव का (असली चेहरा) मुस्लिम प्रेम


रामदेव को मुसलमानों से प्रेम है तो किसी को भी क्‍यों आपत्ति होनी चाहिए ?? मुझे भी नहीं है ! परन्‍तु इतना तो है कि आज जब रामदेव मुस्लिमों के लिए आरक्षण की बात करते हैं तो उनकी बातों में सदाशयता कम ही नजर आ‍ती है, प्रश्‍न उठता है कि आखिर क्‍या गरज पड़ गई कि उन्‍हें आज मुस्लिम आरक्षण की वकालत करनी पड़ गई ? आखिर क्‍या गरज पड़ गई कि आज उन्‍हें मुस्लिम धर्मगुरूओं के साथ मंच साझा करने की कवायद करनी पड़ गई ? आखिर क्‍या जरूरत पड़ गई उन्‍हें बिस्‍िमिल्‍लाह करने की ? नहीं नहीं !!! कुछ तो मंशा रही ही होगी, क्‍या ये सामाजिक मामला है, जैसा कि दिख रहा है ? जी नहीं ये नितांत राजनीतिक मामला दिखाई देता है !!!

बाबा राम को यदि वास्‍तव में मुस्लिमों के हित की चिन्‍ता थी, तो पहला कार्य जो उनके अख्तियार में था वो वह करते, वह पहले अपने खुद के पतंजलि आश्रम में मुस्लिमों को उतने प्रतिशत आरक्षण प्रदान करते जिसकी उन्‍होंने परिकल्‍पना अपने मन मस्‍ितष्‍क में संजो रखी होगी, वे चाहते तो यह भी कर सकते थे कि उच्‍च कोटि के मदरसे का निर्माण करवाते, जिसमें उच्‍च, आधुनिक एवं तकनीकि शिक्षा का समावेश होता, वे चाहते तो मुस्लिमों के खुद के हित में उनके धर्म में व्‍याप्‍त कुरीतियों का विरोध कर सकते थे, परन्‍तु नहीं !!! उन्‍होंने ऐसा नहीं किया, उन्‍होंने सस्‍ती लोकप्रियता हासिल करने का, मुस्लिमों के मध्‍य घुसपैठ करने का वही रास्‍ता अपनाया, जिसे घुटे हुए राजनीतिज्ञ प्रायः इस्‍तेमाल करते हैं !!! फिर भला क्‍यो अब हम रामदेव को योगगुरू की संज्ञा दें ? क्‍यों न इसकी बजाय हम उन्‍हें राजनीतिज्ञ के रूप में देखना आरम्‍भ कर दें ???

अब आइये रामदेव के मुस्लिम प्रेम के निहितार्थ तलाश करने की चेष्‍टा करते हैंयहां इतना तो सत्‍य है कि रामलीला मैदान में दिखाई गई राम(देव)लीला ने उनकी गरिमा रसातल तक गिराई ! नौ दिनों में पस्‍त होने के कारण लोगों ने उनके योग तक पर ऊंगली उठा दी !! यहॉं मेरी सदैव से ही यह मान्‍यता रही है कि यदि रामदेव, रामलीला मैदान में नग्‍न हो गये होते तो सरकार असहज हो जाती, कदाचित उसका पतन भी हो सकता था !! परन्‍तु नारी वस्‍त्रों के प्रयोग ने रामदेव को शर्मसार कर उन्‍हें नग्‍न कर दिया, वह इस गिरावट में चल ही रहे थे कि इस मघ्‍य उनकी इस गिरी हुई छवि को उनके चेहरे पर पड़ी कालिख ने काफी हद तक पोंछने का काम किया, इस क्रम में सहानुभूति बटोरने में तो वह सफल रहे, परन्‍तु फिर भी वह वहां तक नहीं पहुंच सके, जहॉं से वह चले थे !!!

अब 3 जून को प्रस्‍तावित एकदिवसीय अनशन यदि असफल रहा तो रामदेव के राजनीतिक भविष्‍य पर एक बड़ा प्रश्‍न चिहन लग जाना तय है !!! तो ऐसे में ऐन केन प्रकारेण रामदेव, सभी प्रकार से, सभी तबकों को समर्थन जुटाने की कवायद करते नजर आ रहे हैं, इसी क्रम में रामदेव ने अन्‍ना से गठजोड़ का प्रयास किया, परन्‍तु अन्‍ना टीम को यह बात अधिक रास नहीं आई, उनके अपने स्‍वार्थ हैं, जिसकी चर्चा फिर कभी करेंगे, और इसी क्रम में रामदेव को लगा कि शायद मुस्लिमों को लुभाने रिझाने से कुछ काम बन जाए, और उन्‍होंने झटपट मुस्लिम आरक्षण की वकालत कर डाली, परन्‍तु रामदेव आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै वाली कहावत भूल गये लगते हैं …. शंका यह है कि कहीं उनका हाल, घर और घाट वाली कहावत के अनूरूप न हो जाये,  

सत्‍य तो यह है कि रामदेव का जनाधार पहले ही काफी खिसक चुका है, आज का मुस्लिम भी मूर्ख नहीं है, असली नकली चेहरों को बखूब पहचानता है, यकीन नहीं आता तो उत्‍तर प्रदेश चुनाव के दौरान उन्‍हें आरक्षण दिलवाने का दिवा स्‍वप्‍न दिखाने वालों से जाकर पूछो, आज भी वे लखनऊ की भूलभुलैया में अपना अस्तित्‍व तलाश करते नजर आ जायेंगे, फिर रामदेव इस नए शगूफे से क्‍या हासिल कर पायेंगे सहज अनुमान लगाया जा सकता है, कहीं ऐसा तो नहीं कि रामदेव अपनी राजनीतिक कब्र में प्रवेश कर चुके हैं और अब वे इस पर मिट्टी भी स्‍वयं ही डाल रहे हैं

मनोज

Sunday, 6 May 2012

बुआ जी का निर्मल प्रेम


बुआ जी अधीर हो गई, उनसे ये सब देखा नहीं जा रहा है, तो क्‍या हुआ गर ठग हुआ तो ? है तो हिन्‍दू ही, अरे भई जब ठगी पर कोई रोक टोक है ही नहीं, जब कोई भी धर्म का आसरा लेकर किसी को भी ठगने के लिए स्‍वतंत्र है, और सरकार मौन, तो फिर मल बाबा पर ही उंगली क्‍यो उठाई जाये ?? उठानी है, तो सभी ठगों पर एक साथ उठाओ, यह कौन सी धर्मनिरपेक्षता कि पाल के विरूद्व मीडिया कुछ न कहे और मल के पीछे कसाई की तरह पड़ जाये ….. 

भई वाह, कितनी वाजिब बात कही उन्‍होंने, धर्म तो धर्म है, कोई कितना भी नीच, पापी क्‍यों न हो, पर उसका एक धर्म तो होता ही है, तो उस धर्म के कथित स्‍वयंभू ठेकेदारों का इतना दायित्‍व तो बन ही जाता ही है कि वह उसके बचाव में सामने आयें, बुआ जी ने यही कहा और किया था, तो लोगों की भवें तन गईं, कहने वाले कहने लग गये कि ठगों का कोई धर्म नहीं होता, अब आप ही कहिए भला ऐसा होता है क्‍या ? समाज को धर्म, जाति के आधार पर बॉंटने वालों ने किसी को भी धर्म के दायरे से अलग छोड़ा है क्‍या ?? नहीं न !!! फिर ये क्‍या पोंगापंथी हुई कि फलाना अपराधी, ठग या ढ़ोंगी है, तो उसका धर्म से कोई लेना देना नहीं,  कोई भी व्‍यक्ति पहले उस धर्म का होता है, बाद में कुछ और, इस प्रकार हर व्‍यक्ति को किसी न किसी धर्म के दायरे में तो आना ही पड़ेगा, सो मल इससे विलग कैसे हो सकता है ?

मैं बुआ जी की बातों से पूरी तरह से सहमत हूं, मेरी मांग है कि जेल में बंद सभी कैदियों का आज ही रिहा कर दिया जाये, कारण ?? अरे क्‍या कानून इस बात की गारंटी ले सकता है कि वह सभी दोषियों को सजा देता है और दे रहा है ? यदि नहीं !!! तो फिर जो लोग जेल में बंद हैं, उन्‍हें ही सजा क्‍यों दी जानी चाहिए, उन्‍हें सजा तब तक नहीं मिलनी चाहिए, जब तक सभी गुनहगारों को एक साथ नहीं पकड़ा जाता, ठीक उसी प्रकार जैसे मल बाबा को कोसना है तो पाल को भी कोसना होगा, नहीं तो मल बाबा को भी कोसने का किसी को कोई अधिकार नहीं, कितनी न्‍याय संगत, तार्किक और बौद्विक बात कही है बुआ जी ने ….बुआ जी आप धन्‍य हैं, आपके चरण कहॉं हैं ???

बुआ जी वो तो आपने बता दिया, वरना हम अज्ञानी कहॉं इतनी बड़ी-बड़ी बातें समझ पाते, आप न बताती तो हम जैसे अबोध जान भी नहीं पाते कि पाल नामक भी कोई व्‍यक्ति है जो ठगी में संलिप्‍त है, हम तो इस बात को भी लेकर दिग्‍भ्रमित थे कि मल बाबा का धर्म क्‍या है, हम तो उन्‍हें सिक्‍ख मानते थे, और केश, कड़ा, कच्‍छ, कंघा और कृपाण न धारण करने के कारण विधर्मी तक कह देते थे, हम तो यही जानते थे कि सिक्‍ख धर्म में ग्रंथ साहिब ही गुरू हैं, और व्यक्ति की पूजा सिख धर्म में नहीं है ""मानुख कि टेक बिरथी सब जानत, देने, को एके भगवान"". तमाम अवतार एक निरंकार की शर्त पर पूरे नहीं उतरते कोई भी अजूनी नहीं है | यही कारन है की सिख किसी को परमेशर के रूप में नहीं मानते | (स्रोत गूगल बाबा)

परन्‍तु आपने हमारी ऑंखों की ढि़बरी को जला दिया, हमें बता दिया कि मल बाबा हिन्‍दू धर्म के आध्‍यात्मिक गुरू की श्रेणी में आते हैं, और सिर्फ हिन्‍दुओं पर निशाना साधना किसी भी प्रकार उचित नहीं, बुआ जी मीडिया के दुष्‍प्रचार पर मत जाइयेगा, ये तो सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने के उस्‍ताद हैं, इनके कारण ही कृपा बरसी और कृपा रूक गई, ये किसी धर्म को नहीं मानते और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, आप अपना अभियान जारी रखिए, हम सभी आपके ही तो साथ हैं, आखिर हमारा भी तो कोई धर्म हैं, है ना

                       मनोज कुमार श्रीवास्‍तव