मित्रों, मुझे ज्ञात
है कि मेरी बातें आपको बुरी लग सकती हैं, बहुत बुरी, परन्तु किसी बात को समझने के
लिए उसकी पडताल की तो आवश्यक्ता होती है ना, तो कर लेते हैं, आपको पता ही है ना
कि महाराष्ट्र में गौ-वध पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, और देश के अन्य भागों में
भी इसी प्रकार के प्रतिबंध लगाया जाए, ऐसी मांग कतिपय लोगों तथा संगठनों द्वारा की
जा रही है, ऐसे में उचित क्या है, मुझे गौ-वध पर लगा प्रतिबंध अनुचित नहीं लगता
है, परन्तु समाज के दोहरे मानदंडों पर पीडा अवश्य होती है, एक ओर तो हम अपने
आपको धार्मिक सिद्ध करने हेतु अनेकानेक उपक्रम करते दिखना चाहते हैं, तो दूसरी ओर
स्वयं ही उन उपायों की धज्जियां उडाने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करते, अपने
आपको गोवंश का हितैशी कहलाने में गर्वानुभूति करने वाले लोगों के पैरों की ओर जरा
दृष्टि तो डालिए, आपको उनके पैरों में सजी गाय की चमडी के बने जूते और उनके कमर
संभालते चमडी से बने बेल्ट सरलता से उनकी शोभा बढाते नजर आ जाएंगे, और यदि उनसे
पूछा जाए कि जब आप गोवंश के इतने बडे रक्षक होने का दावा करते हैं, तो आप स्वयं
इन वस्तुओं का उपयोग ही क्यों करते हैं तो उनके तर्क आपको हास्य हेतु विवश कर
देंगे,
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गाय निश्चित रूप से
एक उपयोगी पशु है, उनका दुग्ध सम्पूर्ण मानव जाति हेतु उपयोगी है, परन्तु इसी
प्रकार से तो भैंसों का दुग्ध भी सभी के लिए प्रयुक्त होता है, अनेकानेक स्थलों
पर बकरी और ऊंटनी का दूध भी प्रयोग में लाया जाता है ऐसे में सिर्फ गौ हत्या पर
प्रतिबंध क्यों, सभी दुधारू पशुओं की हत्या पर प्रतिबंध होना चाहिए, परन्तु ऐसे
में एक बात समझने की है, ठीक है मादा पशु के दुग्ध का सेवन किया जाता है और उनका
संरक्षण किया जाना चाहिए परन्तु नर पशु का क्या, आज का समाज तकनीकि आधारित हो
चला है, अब गांवों में भी जुताई हेतु बैलों का प्रयोग नहीं होता, उसका स्थान
आधुनिक यंत्रों ने ले लिया है, ऐसे में प्रलाप करना तो सरल है, परन्तु खुद अर्थ
के गर्त में दबा व्यक्ति जिसने हमेशा ही अपनी पालतू गाय का दूध पिया हो, दूध न
देने की दशा में उसके भोजन का भार उठाने में न ही सक्षम होता है और न ही उठाना
चाहता है, तो ऐसे में कौन महामानव मुफ्तखोर बैलों हेतु भोजन की व्यवस्था करेगा,
और यदि कोई नहीं करेगा तो फिर होगा क्या, गौहत्या पर तो प्रतिबंध लगा दिया है जी
आपने ...
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जी हां फिर होगा यह
कि इन पशुओं को खुला छोड दिया जाएगा, अनुपयोगी पशु का उसका मालिक भी भला क्यों
रखना चाहेगा, और जिस प्रकार से आज आवारा कुत्ते घूमते रहते हैं और गली मुहल्लों
में किसी को भी काट खाते हैं, उसी प्रकार से ये पशु भी सडकों पर निर्बाध भ्रमण
करेंगे, यहां वहां अपने भोजन की व्यवस्था हेतु कूडेदानों में मुंह मारेंगे,
यातायात व्यवस्था को बाधित करेंगे, मनुष्यों पर आक्रमण आरम्भ करेंगे, भूलिए मत
तब आप अपने छोटे बच्चों को पार्क में खेलने न भेज सकेंगे, इसके अलावा भी बहुत कुछ
होगा, चमडे की तस्करी आरम्भ होगी, उसके माफिया बनेंगे, अवैध तरीके से पशुओं की
हत्यायें होंगी और स्मगलिंग भी शुरू होगी, जूतों के दाम जोकि अभी ही बहुत कम
नहीं हैं, वे दस गुना तक बढ जाएंगे, बेल्ट के दाम भी इतने बढ जाएंगे कि कमर में
रस्सी बांधना अधिक उपयुक्त प्रतीत होगा, अब बीफ तो मिलेगा नहीं, लिहाजा न बकरे
की खैर रहेगी न उसकी मां की, उसके भी दाम इतने बढेंगे कि यह एक विलासिता का भोजन
बन कर रह जाएगा, अब लोगों के शौक तो जाने से रहे, लिहाजा आयात बढेगा और व्यापार
असंतुलन की स्थिति भी उत्पन्न होगी..
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बहरहाल इतना होकर भी
एक बात तो बचेगी, धर्म तो बचा रहेगा ना.. आप तैयार हैं ना इस मूल्य पर धर्म की
रक्षा के लिए तो शौक से कीजिए लेकिन क्षमा कीजिए, दोहरे मापदंड अपनाना छोड दीजिए,
अब जब घर में विवाह हो तो कृपया ढोल मत बजाइये, चमडे का बना होता है, शायद गाय के
चमडे का ही हो, धर्म की हानि नहीं होनी चाहिए, धर्म की जय हो ...
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(मनोज)
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