मत करो युं दग्ध निश दिन
बस कटारी खींच लो
दिख न पाये रक्त तुम को
आंखे इस हित मींच लो
बस यही पल चाहिए था
फिर भला अब देर क्यूं
आम जन के खून से तुम
अपना दामन सींच लो
हमने सोचा था तुम्हें
रक्षक बनोगे शासकों
तोड़ा तुमने जतन से
लेकिन हमारे आस को
न नहीं नहिं दोष कुछ भी
हमको मालुम, हो विवश
अपनी कुरसी में जड़ोगे
तुम हमारी लाश को
रोज बरछी कोंचते तुम,
मारते नहिं जान से
देखकर के कष्टप्रद नर
फूलते हो शान से
भूल मत भगवान बैठा
देखता तुमको भी है
इतनी आहें न मिटेंगी
सौ जनम के दान से
मनोज
रोज बरछी कोंचते तुम,
ReplyDeleteमारते नहिं जान से
देखकर के कष्टप्रद नर
फूलते हो शान से
बहुत सुन्दर