वो रात अंधेरे उठ जाते,
कहते कि चल कुछ कर आते,
अंजाम नहीं सुनता दिखता
कुछ भी कहते न हकलाते,
इस सत्ता की मरघट चादर पर,
निश दिन नव आसन दिखेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .
बहुजन हित साध रहा सबका,
सबको खुद से है जोड़ लिया
क्या खूब तेज पाया तप का,
कैसा हठयोगी पर कहता,
भू , अम्बर से भय मिटेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .
काले धन का साम्राज्य बड़ा,
जड़ उसकी खोद रहा है खड़ा,
न होगा समझौता अब तो
अपनी ही बातों पर फिर अड़ा,
कैसा साधू कहता है बैठ,
इतिहास को फिर से लिखेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .
मत रहना तुम निष्पक्ष मित्र,
मत उदासीन रहना तुम प्रिय,
इस बार खड़े हो जाना तुम
अपने-अपने भारत के लिए,
वरना तेरे मन-भावों को,
कब तक ये योगी रटेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .
मनोज
हा हा हा हा , बुत बढ़िया ....
ReplyDeletemaza aa gaya, keep it up sir
ReplyDeleteVery good expression. Your prediction is likely to come true in past is any indication.
ReplyDeletePeople taking about abolition of corruption could not explain the source of their own funds including his most favoured deciple, Balkrishan, who secured Passport on fake documents/ degrees.
P C Sood