Saturday 28 July 2012

आज के अर्थहीन आन्‍दोलन....


आचार्य चाणक्‍य ने कहा था  यदि एक वर्ष की योजना हो तो धान उगाओ, यदि दस वर्ष की योजना हो तो वृक्ष लगाओ, परन्‍तु यदि योजना जीवन भर की हो तो बच्‍चों को शिक्षित करो

मित्रों, आज देश में शिक्षा का जो स्‍तर है उसके बारे में अधिक कुछ कहने की आवश्‍यक्‍ता नहीं, सरकारी स्‍कूल तो कब के निष्‍प्रभावी हो चुके हैं, वहां के शिक्षक भी शिक्षण के स्‍थान पर व्‍यवसाय (ट्यूशन) को तरजीह देते हुए आसानी से दिख जाएंगे, परीक्षा में वही विद्यार्थी पास होते हैं जो मास्‍टरजी के यहां ट्यूशन पढ़ेगे, जो नही पढेंगे, कभी भी फेल किए जा सकते हैं, तो दूसरी तरफ प्राइवेट स्‍कूलों की हालत तो इससे भी बुरी है, ट्रस्‍ट बनाकर, सस्‍ते मूल्‍यों पर जमीन प्राप्‍त कर, बिना टैक्‍स दिए व्‍यवसाय करना इनका धर्म बन चुका है, आप सब जानते हैं, फिर भी नहीं मानते, तो चलिए, मेरी ही एक आप बीती सुन लीजिए -

कुछ दिनों पूर्व मैंने अपनी सुपुत्री की छठी कक्षा में एडमीशन के लिए कुछ स्‍कूलों के चक्‍कर काटे, मैं इलाके के एक मध्‍यमस्‍तरीय स्‍कूल में एडमीशन के लिए गया, अपना परिचय देनें और काफी मिन्‍नतों के बाद मुझे गेट के भीतर एडमीशन ब्‍लाक में जाने दिया गया, एडमीशन ब्‍लाक में मुझे बताया गया कि एडमीशन हो सकता है, परन्‍तु उसके लिए रजिस्‍ट्रेशन फार्म का मूल्‍य 500 रूपये है, उसके बाद बच्‍चे का टेस्‍ट होगा और टेस्‍ट में बच्‍चे के पास होने पर एडमीशन के टाइम एक लाख रूपये जमा करवाने पड़ेंगे, बाकी एडमीशन फीस अलग से होगी,
एक लाख…….”, मैं अवाक् रह गया, किस बात के..”, मैंने हिम्‍मत कर काऊंटर पर बैठी महिला से पूछा
बिल्डिंग डेवेलवमेंट चार्ज, काऊंटर से बताया गया
क्‍या इसमें कुछ कम नहीं हो सकता ?” , अपने आपको संभालते हुए मैंने याचक दृष्टि से पूछा,
इस पर उस महिला ने अत्‍यंत बुरा मुंह बनाया, ऐसा, मानों उसके चाय के कप से मक्‍खी उसके मुंह में आ गई हो, उसने मुझ पर हेय दृष्टि डालते हुए कहा कि रिसेप्‍शन पर चले जाइये,
जैसे अन्तिम स्‍टेज पर पड़े कैंसर के मरीज को किसी चमत्‍कार की उम्‍मीद होती है, लगभग उसी उम्‍मीद से मैं रिसेप्‍शन पर पहुंचा, जहां अनेक लेपों से स्‍वयं को आकर्षक बनाने का असफल प्रयास कर रही एक महिला ने मुस्‍कुराते हुए मेरा स्‍वागत किया, मेरा हौसला बढ़ा तो मैंने फौरन गुजारशि कर दी -
जी मैडम, एडमीशन ब्‍लाक में मुझे बताया गया है कि एडमीशन के टाइम पर एक लाख रूपये लगेंगे, मेरी एक रिक्‍वेस्‍ट है कि…………..”
जी बिल्डिंग डेवलेपमेंट चार्ज के बारे में कोई बात नहीं कर सकते, कोई और बात हो तो कहिए, महिला ने मेरा पूरा वाक्‍य सुने बिना मेरी बात काटते हुए कहा, उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे,
जी क्‍या मैं प्रधानाचार्य से इस बाबत मिल सकता हूं ?”
जी नहीं …….., अब तक चेहरा सपाट हो चुका था और उस पर तिरस्‍कार के भाव आ चुके थे, उसकी ऑंखों मे स्‍पष्‍ट संदेश था कि आप यहां से जा सकते हैं,
मैंने भी वहां और रूकना उचित नहीं समझा और धीमे कदमों से स्‍कूल से बाहर आ गया, मेरी पुत्री ने मेरी तरफ देखा, शायद उसने मुझे इतना लाचार आज से पहले कभी नहीं देखा होगा,

बाहर आया तो मेरे एक व्‍यापारी मित्र मिल गए, व्‍यक्ति दुखी हो तो रोने का जी करता है, सोचा एक कन्‍धा मिला तो उस पर सर रखकर रोया जाए,
भाई स्‍कूल में बेटी का एडमीशन कराने आया था, (स्‍कूल का नाम मैं जानबूझकर नहीं लिख रहा हूं, क्‍योंकि कमोबेश अधिकतर स्‍कूलों का यही हाल है), औपचारिक दुआ सलाम के बाद उसके पूछने पर मैंने बताया,
अच्‍छा स्‍कूल है, मेरे बच्‍चे भी यहीं पढ़ते हैं, बात बनी ??” , उन्‍होंने उत्‍सुकता से पूछा
कहां यार, बिल्डिंग डेवलेपमेंट चार्ज मांग रहे हैं, मैं मध्‍यमवर्गीय नौकरी पेशा आदमी कहां से लाऊं इतने पैसे, मैंने उनकी सहानुभूति प्राप्‍त करने की गरज से कहा,
हां वो तो है, कितने पैसे मांगे ?”
एक लाख……”,
क्‍या एक लाख !!! ”, मेरे उस व्‍यापारी मित्र की अनायास ही चीख निकल गई.
हां भाई एक लाख, मैंने भी शब्‍दों पर जोर देते हुए कहा
आपसे तो बहुत कम मांगे, मैंने पिछले साल अपने बच्‍चे का एडमीशन दो लाख रूपये डोनेशन देकर करवाया है, साले सुअर बिजनेसमैन देखकर ज्‍यादा पैसे मांगते हैं, मेरे मित्र के चेहरे पर क्रोध और ठगे जाने के भाव स्‍पष्‍ट थे,
अब चौंकने की बारी मेरी थी, अर्थात कोई फिक्‍स रेट नहीं, जैसा आदमी देखा उसी के अनुसार पैसे मांग लिए, एडमीशन ब्‍लाक में बैठी महिला ने मेरा परिचय प्राप्‍त करते ही जान लिया होगा कि इसकी औकात एक लाख से ज्‍यादा देने की नहीं है, लिहाजा उसने इतने ही मांगे, इससे कम इसलिए नहीं किए क्‍योंकि एक मिनिमम बेंचमार्क तो रखना ही होगा, मैंने अपने मित्र को अवाक् और क्रोधित छोड़ा तथा दूसरे स्‍कूल में एडमीशन के प्रयास हेतु आगे बढ़ गया,

मित्रों यह तो हाल है छोटी कक्षाओं का, इंजीनियरिंग और डाक्‍टरी की पढ़ाई का तो भगवान ही मालिक है, अब आप ही कहिए जो छात्र लाखों रूपये खर्च कर डाक्‍टर, इंजीनियर बनेगा, क्‍या वह समाज सेवा करेगा ? अथवा क्‍या उसे समाज सेवा करनी चाहिए ?? , क्‍या वह अपने/ अपने परिवार द्वारा किए गये इन्‍वेस्‍टमेंट को वसूलने का प्रयास नहीं करेगा ?, और फिर उसका ऐसा करना क्‍यों अनुचित होगा ??, जरा सोचिए,            

समस्‍या यह है कि जो बात आचार्य चाणक्‍य ने सदियों पहले ही महसूस कर ली थी आज के कथित महापुरूष नहीं समझ पा रहे, भ्रष्‍टाचार के विरूद्व बिगुल बजा रहे प्रणेता जड़ों को पोषित करने की बजाय फलों और पत्‍तों को दोषी करार दे उनमें सुधार करना और सुधार की अपेक्षा कर रहे हैं, अब आप ही सोचिए यदि वृक्ष की जड़ों में समानुपातिक रूप से सही खाद पानी नहीं दिया जाएगा, तो मीठे फल कहां से निकलेंगे, भ्रष्‍टाचार के जल से सिंचित बचपन से युवा होने पर सदाचारी होने की अपेक्षा मूर्खता के अतिरिक्‍त और क्‍या है,

अभी भी समय नहीं बीता है, पश्चिम का अंधानुगमन राष्‍ट्र को कहीं का नहीं छोड़ेगा,  राष्‍ट्र निर्माण के लिए राष्‍ट्र की जड़ो अर्थात उसके बच्‍चों पर ध्‍यान दीजिए, यदि ऐसा किया गया तो और कुछ करने की जरूरत नहीं होगी, सदाचारी पुरूष राष्‍ट्र को सही दिशा देने में स्‍वयं ही सक्षम और सफल होगा. 

आप पूछ सकते हैं, तो क्‍या वर्तमान को भ्रष्‍ट तंत्र के हवाले ही छोड़ दिया जाए, नहीं ऐसा नहीं है आज को भी भ्रष्‍टाचार मुक्‍त करना होगा, परन्‍तु पहला कदम भविष्‍य को सहेजने का होना चाहिए, हर बीते क्षण वृक्ष पर नए फल निकल रहे हैं, उन फलों को विषाक्‍त होने से बचाना होगा, विषाक्‍त हो चुके फलों का उपचार उसके बाद की कठिन और दुरूह प्रक्रिया हो सकती है,  


मनोज  

3 comments:

  1. हर तरफ बाजारीकरण की हवा है...शिक्षा अब विद्या न होकर व्यापार हो गई है...सिर्फ यही नही हर क्षेत्र जो दिखता है वोही बिकता की होड़ में है...हाँ इस होड़ में आम इन्सान जरूर पिस रहा है..उसे सीमित संसाधन में अपने जीवन यापन भी करना है साथ ही सामाजिक सम्मान पाने के लिए भी प्रयासरत रहना है...
    वर्तमान व्यवस्था को देख कर तो एक शायर की पंक्तियाँ बिलकुल सटीक लगती है कि " बस कि दुश्वार है हर काम का आसान होना ,
    आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना "

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    1. धन्‍यवाद मधुलिका जी, सत्‍य ही कहा आपने आज हर चीज बिकाऊ है, तो फिर शिक्षा क्‍यों नहीं, बाजारवाद ने नैतिक मूल्‍यों को पति‍त कर दिया है, परन्‍तु अफसोस फिर भी हम उसी नैतिकता को ढूंढना चाहते हैं जिसे हम स्‍वयं प्रतिपल नकारते रहते हैं, और इस बीच हमारे बीच से आचरण, सदविचार, सदाचार कहां गए किसी को कुछ पता नहीं, सच ही कहा शायर ने, आदमी को भी मयस्‍सर नहीं इंसान होना

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    2. is desh may bharstachar ko khatm karne ke liy kai anna hazaray ko janm lena padega.
      hamara desh may angrego ko bhagane key leay 1857 kranti arambh hokar 90 saal lage wo bhi jab is desh may bharat key logo ney angrego ki madad ki.
      lekin abh desh may bhrastachar mitani key leay wo saheed bhagat singh, chandrashekar, sukhdev gandhiji subhash chand bose nahi hai . hamare pass devide and rule karne wale rajniti party jo hamco castism may fansha chuki hai. jane kitne saal hamara bhartiyo ka khoon thanda ko garm karne may lagega. aao yeh pran ley ki rajniti may daily prabhat prahari nikale, rishwat na dey aur na ley, group banai and rti may soochna ikatha karey, transperency key liy kam kare, bahut lambi ladai hai ---------next manoj tyagi ghaziabad

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