Tuesday, 22 April 2014

चलो चर्चाया जाए - 2

मित्रों, चुनाव अपने चरम पर है, लिहाजा उसके सतरंगी रूप भी रोज दिखाई दे रहे हैं, कुछ चेहरे जो कि अभी तक अस्‍पष्‍ट थे, अब थोडे स्‍पस्‍ट से दिखने लगे हैं, साथ ही प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर चल रहे कदम कुछ तेजी से बढने लगे हैं, मसला है कि चर्चा करें तो किस पर करें और किस पर न करें, चलिए आज चुनाव प्रचार के एक नए ढंग की चर्चा कर लेते है, वह जोकि मीडिया के माध्‍यम से होता है - 


मित्रों, पिछले कुछ दिनों में भाजपा का मीडिया में प्रचार के प्रारूप को देखिए, पहले 12 अप्रैल को आप की अदालत में मोदी आते हैं, यह था मोदी का चुनावों के मध्‍य दिया गया पहला इंटरव्‍यू, सटीक समय पर, खूब चर्चा हुई, इलेक्‍ट्रानिक व प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक, फिर उसके बाद मोदी के समर्थन में उतरे राज ठाकरे, पहले अर्णव गोस्‍वामी के साथ और फिर पूरे मीडिया पर छा गए, ध्‍यान दीजिएगा 17 अप्रैल और 24 अप्रैल को महाराष्‍ट्र की 19, 19  सीटों पर मतदान था/है. अतः इन इंटरव्‍यूज का सीधा अभिप्राय चुनाव प्रचार और मोदी जी को महाराष्‍ट्र में लाभ पहुचाना ही था,
इस बात को भी ध्‍यान में रखना होगा कि भाजपा का महाराष्‍ट्र में गठबंधन शिवसेना के साथ है, मनसे के साथ नहीं, चुनाव से पहले, मोदीगान, भाजपा की गडकरी नीति है, जिन्‍होंने मनसे को चुनाव में साथ देने के लिए मनाया हुआ है,


अब सोचिए कि मोदी जी का नामांकन 24 अप्रैल को ही क्‍यों रखा गया है, जबकि पंडित गण भी तिथि के सम्‍बंध में भ्रमित हैं, तो भाइयों भूल गए क्‍या 24 अप्रैल को छठे चरण में 117 सीटों पर मतदान होना है, और इस दिन सारा मोदी का नामांकन होने से सारा मीडिया मोदीमय होगा, लोग टी.वी. देखे बिना तो रह नहीं सकते लिहाजा, नामांकन तो करना ही था, और प्रचार मुफ्त........ तो इसे कहते हैं, प्रचार की सही तकनीकि, अभी मोदी के इंटरव्‍यू हर चैनल पर छाए हुए हैं, कारण प्रचार, अब सोचिए वे इतने दिनों से प्रचार कर रहे हैं, पहले इंटरव्‍यू क्‍यों नहीं दिया था, डरते थे क्‍या, नहीं भाई, इसका तो सरल सा जवाब है, अापकी प्‍यास बढा रहे थे, ताकि अब जब ऐन मतदान के समय इंटरव्‍यू आए तो वह ताजातरीन हो और आप उसे देखने को विवश हों ......... अब आप कहेंगे कि यह विचार कुछ नया है क्‍या. तो मैं कहूंगा नहीं .... श्रीमान आधुनिक गांधी के प्रमुख क्षेत्र का चुनाव पहले था, लिहाजा वे बाजी मार चुके हैं, याद नहीं आ रहा ....तो हम याद दिलाए देते हैं ... 


याद कीजिए, दिल्‍ली में मतदान के दो दिनों पूर्व कैसा स्‍वांग रचाया गया था, वह टैक्‍सी वाला भी भूल गया आप को, वह राजघाट पर बैठे आधुनिक गांधी .... याद आया ना......आ ही गया होगा, तो मित्रों, सत्‍य तो यह है कि वह प्रचार का ही एक जरिया था, चुनाव प्रचार रूक जाने के पश्‍चात मीडिया में किया जाने वाला प्रचार, उन्‍हें मीडिया स्‍पेस मिला भी, परन्‍तु चूंकि वे पहले ही अनेक बार इस तरह के नाटक कर चुके हैं, लिहाजा मतदाताओं ने उन्‍हें कितनी गम्‍भीरता से लिया होगा, वह तो 16 दिसम्‍बर को ही पता चलेगा,
       
अब देखिए, हम गिरिराज के फिसलने पर ही अटके हैं, और जोशी जैसे विद्वान की असंयतता, उनकी प्रतिस्‍पर्धा, उनकी प्रतिद्वंदिता जो वैमनस्‍यता पर जाकर ठहरती लगती है, अभी तक उसी पर टिके पडे हैं, जी न्‍यूज से इंटरव्‍यू डिलीट तो किया पर प्रोफेसर साहेब यह भूल गए कि कैमरे दो थे, बहरहाल चुनाव है, चलता रहता है, आधुनिक गांधी को क्‍या बुरा मानना अगर मोहतरमा शाजिया जी की कम्‍यूनल जुबान भी थोडी फिसल ही गई तो ....
                                                                                                                                                         मनोज

Friday, 11 April 2014

चलो चर्चाया जाए - 1

मित्रों, आज टी.वी. पर चर्चा के एक दो ही विषय है, लगता है देश के सभी मुद्दे आज गौण हो चले हैं, एक तरफ सिर्फ और सिर्फ श्रीमान मोदी जी की पत्‍नी की चर्चा है, तो दूसरी तरफ एक चर्चा और चल रही है, वह यह कि एक श्रीमान सेकुलर और एक श्रीमान कम्‍युनल दोनों पर एक साथ रैली, भाषण और रोड शो पर रोक लगा दी गई है, आइए इसके निहितार्थ तलाशने का यत्‍न करते हैं,

मित्रों, जहां तक चुनावी प्रचार व भाषणों पर प्रतिबंध का प्रश्‍न है, मेरे विचार से यह उचित ही है, अनुचित प्रलाप करने वाले भाषणकर्ता पर रोक उचित है, परन्‍तु यह रोक चयनित है, मसलन सहारनपुर के कांग्रेस प्रत्‍याशी पर प्रतिबंध क्‍यों नहीं लगाया गया था, अनर्गल प्रलाप रोज ही करने वाले महान बेनी बाबू पर क्‍यों नहीं लगाया गया, मुलायम सिंह पर क्‍यों नहीं लगाया गया, और तो और अपनी बेतुकी बातों से जायका बिगाडने वाले, ओसामा जी के प्रिय दिग्विजय सिंह पर क्‍यों नहीं लगाया गया, कारण राजनीतिक दिखते हैं, अब देखिए, श्रीमान आजम खान का बयान घोर निंदनीय था, किसी भी सभ्‍य समाज में सैन्‍य बलों को धार्मिक आधार पर देखा समझाा जाना अकल्‍पनीय व आत्‍मघाती है, परन्‍तु ऐसे में चुनाव आयोग निष्‍पक्ष दिख सके इसलिए अमित शाह पर भी प्रतिबंध लगाना आवश्‍यक था, भाई समन्‍वय भी भला कोई चीज होती है, और निष्‍पक्ष दिखना भी चुनावों में उतना ही जरूरी होता है, जैसा कि चुनाव आयोग ने दिखाया, तो उचित है,
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मित्रों, अब एक दूसरी बात, श्रीमान ए.के.49 ने कहा कि वे मोदी और राहुल को हराने के लिए किसी का भी समर्थन लेने को तैयार है, ध्‍यान देने योग्‍य बात यह कि अभी तक श्रीमान अंसारी ने अपना समर्थन दिल्‍ली के पूर्व मुख्‍यमंत्री को देने की बात की नहीं है, तो इस उतावलेपन को क्‍या कहा जाना चाहिए, क्‍या इससे भ्रष्‍टाचार के विरूद्ध आप की लडाई को बल मिलेगा, परन्‍तु गंभीर अपराध के आरोपियों का सहयोग लेकर वे किस पर विजय प्राप्‍त करना चाहते हैं, कौन से भ्रष्‍टाचार का आरोप है मोदी जी पर, यह तो पता नहीं, परन्‍तु सत्‍य यह है कि ये श्रीमन अपनी कुठित इच्‍छाओं की तुष्टि चाहते हैं, भले ही उसकी कीमत कुछ भी देनी पडे, किसी को भी देनी पडे, जन को अथवा जनतंत्र को .... बहरहाल, वे अपनी दुर्भावना में सफल होंगे, इसकी संभावना नहीं दिख रही,
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और अब सबसे अहम् बात, मित्रों, प्रेम एक छोटा सा शब्‍द है, परन्‍तु इसका विस्‍तार अनन्‍त है, प्रेम में सदैव ही कुछ प्राप्‍त होगा, ऐसा नहीं होता, प्रेम तो एक समर्पण है, विश्‍वास है, निष्‍ठा है, हृदय में प्रवाह होता एक अनन्‍य भाव है, प्रेम के कई रूप है, मीरा का प्रेम है, तो सीता का भी प्रेम है, उर्मिला का प्रेम है तो भरत का भी प्रेम है, और यह अनन्‍त गाथा है, इसी गााथा में जसोदा बेन भी आती है, प्रेम का यह एक असाधाराण रूप है, जो व्‍यक्ति को दिव्‍य बनाता है, तेजवंत करता है और उसे इतिहास के पन्‍नों में सदैव के लिए जीवंत कर देता है, मित्रों, बिरले लोग ही ऐसे सौभाग्‍यशाली होते हैं, जिन्‍हें जीवन में इस वास्‍तविक प्रेम की प्राप्ति होती है, प्रेम के इस रूप की भी स्‍तुति होनी चाहिए, न की आलोचना और उपेक्षा ..... बहरहाल, टी.वी स्‍टूडियों में वोट तलाशते लोग इसे समझने का क्‍यों यत्‍न करने लगे, उन्‍हें जो रस चाहिए वह यहां नहीं, यह वह प्रेम नहीं, जो उन्‍हें तुष्‍ट करता है, वे अपने भावार्थ समझने में व्‍य‍स्‍त हैं,
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वैसे आपको क्‍या, आप तो अपने राष्‍ट्र प्रेम की बात करिए, और यही कहिए .........
अबकी बार .....................


(मनोज)