हमारे एक मित्र हैं, रीछपाल जी, देशभक्ति का सम्पूर्ण
पर्याय, पूर्व फौजी हैं, सन् 1971 की लड़ाई में दुश्मन के आठ सिपाहियों को अकेले
ही शहीद किया था, मेरी उनसे पुरानी मित्रता है, आज शाम अचानक ही बाजार में मिल गए,
“रीछपाल भाई नमस्कार”,
”खुश तो बहुत होगे तुम आंय”, मैंने अमिताभ बच्चन की शैली में जुमला फेंका,
”काहे, घर पर बेटा हुआ है क्या ?”, रीछपाल जी झुंझलाकर
बोले तो उनके इस चिडचिड़े जवाब को सुनकर मैं सहम गया, सोचा अवश्य ही कोई गम्भीर
बात है, वरना रीछपाल जी तो सदैव ही प्रसन्न रहने वाले जिन्दादिल आदमी हैं, फिर
भी मैंने अपनी बात यह सोचकर कही कि शायद उन्हें ताजा समाचार का ज्ञान न हो,
“अरे भाई आपको पता नहीं क्या, देश के दुश्मन कसाब को फांसी
हो गई, इसलिए बधाई थी मैंने, लेकिन आप तो……….”
“कब हुई फांसी ?”, रीछपाल जी ने टका सा प्रश्न किया, तो मैं समझ गया कि मैं
गलत बोल गया हूं,
“भई, फांसी हुई नहीं, फांसी देने की सजा सुनाई गई है, आज ही
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई है.”
“क्यूं सुनाई कसाब को फांसी की सजा ???”, रीछपाल जी ने पुनः
प्रश्न किया, तो मैं अवाक् रह गया,
“रीछपाल जी क्या हो गया है आपको, इतने लोगों को सरेआम कत्ल
किया था उसने, सबने देखा, सबने उसे अपना अपराध कुबूल करते सुना, और आप कहते हैं कि
क्यूं फांसी की सजा सुनाई उसे, उसने देश के विरूद्व युद्व छेड़ने की गुस्ताखी की
थी, और इसके लिए, फांसी से कोई कम सजा उपयुक्त थी ही नहीं, उसे तो फांसी होनी ही
चाहिए”,
“तो क्या कसाब को सचमुच फांसी हो जाएगी ???”, रीछपाल जी ने अपने
सपाट चेहरे से प्रश्न किया.
मैं चुप, उनके इस प्रश्न का जवाब तो अलादीन के जिन्न
के पास भी नहीं होगा, मैं सोच में पड़ गया,
“अरे बोलो बोलो, बड़े तीसमारखां बने फिरते हो, चिल्ला चिल्ला
के राग भैरवी गा रहे हो कि कसाब को फांसी हो गई, अब का हुआ, चिरैया कंठस्वर ले
उड़ी क्या.”,
“नहीं भैया ऐसी बात नहीं है.”, मैंने एक टी.वी. विज्ञापन की तर्ज पर कहा,
“लेकिन एक कदम आगे तो बढ़े, सजा देने के लिए सजा सुनाया जाना
तो आवश्यक ही था न”,
मैंने अपने शब्दों को संयत करने का प्रयास करते हुए कहा,
“तो क्या हो गया, अरे सबके सामने उसने निर्दोषों को गोलियों
से भून दिया, सी.सी.टी.वी. में सारे फुटेज मौजूद थे, चश्मदीद गवाहों की फौज थी,
उसका स्वयं का कुबूलनामा था, फिर भी सजा देने में लगभग चार साल लग गए, और सजा पर
अमल होने की कोई तिथि नहीं, ये कैसा न्याय हुआ मेरे भाई, उन निर्दोषों की आत्मा
को क्या सचमुच शान्ति मिल रही होगी आज.”, कहते कहते रीछपाल जी का गला भर आया,
“सच कहते हैं रीछपाल भाई, वोटों की राजनीति उसे सजा नहीं
होने देगी, अभी तो उसका नाम लाइन में सबसे पीछे है, उसके पहले वाले ही सालों से
अपने नंबर की प्रतीक्षा कर बुढ़ा रहे हैं, और शायद अपनी नैसर्गिक मृत्यु तक
प्रतीक्षा करते भी करेंगे, फिर कसाब का नम्बर न जाने कब आयेगा, और तब तक कसाई
कसाब, कबाब और बिरयानी के मजे लेता रहेगा, वह भी देशवासियों की गाढ़ी मेहनत की
कमाई के पैसों से…”,
“इसीलिए तो पूछ रहा था भाई कि कसाब को फांसी की सजा क्यूं
दी, जब अमल में लाना ही नहीं है, क्यूं इस देश के लोगों की भावनाओं से खेला जा
रहा है, क्यूं उन्हें शान्ति और सुकून के सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं, क्यूं न्याय
के नाम पर उनसे ठगी की जा रही है, क्यूं आखिर क्यूं ………..”,
रीछपाल जी की आंखों से आंसुओ की अविरल गंगा बह निकली
थी, मेरे पास उनके प्रश्नों का कोई जवाब नहीं था, मैंने अपनी नजरें झुकाए झुकाए
ही उनसे अनुमति ली, रीछपाल भाई अभी जल्दी में हूं, फिर कभी मिलते हैं,
मनोज