Wednesday, 29 August 2012

कसाब को फांसी क्‍यूं ???


हमारे एक मित्र हैं, रीछपाल जी, देशभक्ति का सम्‍पूर्ण पर्याय, पूर्व फौजी हैं, सन् 1971 की लड़ाई में दुश्‍मन के आठ सिपाहियों को अकेले ही शहीद किया था, मेरी उनसे पुरानी मित्रता है, आज शाम अचानक ही बाजार में मिल गए,
रीछपाल भाई नमस्‍कार,
नमस्‍कार, परन्‍तु उनके चेहरे पर कोई भाव न दिखा,
खुश तो बहुत होगे तुम आंय, मैंने अमिताभ बच्‍चन की शैली में जुमला फेंका,
काहे, घर पर बेटा हुआ है क्‍या ?”, रीछपाल जी झुंझलाकर बोले तो उनके इस चिडचिड़े जवाब को सुनकर मैं सहम गया, सोचा अवश्‍य ही कोई गम्‍भीर बात है, वरना रीछपाल जी तो सदैव ही प्रसन्‍न रहने वाले जिन्‍दादिल आदमी हैं, फिर भी मैंने अपनी बात यह सोचकर कही कि शायद उन्‍हें ताजा समाचार का ज्ञान न हो,
अरे भाई आपको पता नहीं क्‍या, देश के दुश्‍मन कसाब को फांसी हो गई, इसलिए बधाई थी मैंने, लेकिन आप तो……….”
कब हुई फांसी ?”, रीछपाल जी ने टका सा प्रश्‍न किया, तो मैं समझ गया कि मैं गलत बोल गया हूं,
भई, फांसी हुई नहीं, फांसी देने की सजा सुनाई गई है, आज ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई है.”
क्‍यूं सुनाई कसाब को फांसी की सजा ???”, रीछपाल जी ने पुनः प्रश्‍न किया, तो मैं अवाक् रह गया,   
रीछपाल जी क्‍या हो गया है आपको, इतने लोगों को सरेआम कत्‍ल किया था उसने, सबने देखा, सबने उसे अपना अपराध कुबूल करते सुना, और आप कहते हैं कि क्‍यूं फांसी की सजा सुनाई उसे, उसने देश के विरूद्व युद्व छेड़ने की गुस्‍ताखी की थी, और इसके लिए, फांसी से कोई कम सजा उपयुक्‍त थी ही नहीं, उसे तो फांसी होनी ही चाहिए,
तो क्‍या कसाब को सचमुच फांसी हो जाएगी ???”, रीछपाल जी ने अपने सपाट चेहरे से प्रश्‍न किया.
मैं चुप, उनके इस प्रश्‍न का जवाब तो अलादीन के जिन्‍न के पास भी नहीं होगा, मैं सोच में पड़ गया,
अरे बोलो बोलो, बड़े तीसमारखां बने फिरते हो, चिल्‍ला चिल्‍ला के राग भैरवी गा रहे हो कि कसाब को फांसी हो गई, अब का हुआ, चिरैया कंठस्‍वर ले उड़ी क्‍या.”,
नहीं भैया ऐसी बात नहीं है.”, मैंने एक टी.वी. विज्ञापन की तर्ज पर कहा,
लेकिन एक कदम आगे तो बढ़े, सजा देने के लिए सजा सुनाया जाना तो आवश्‍यक ही था न, मैंने अपने शब्‍दों को संयत करने का प्रयास करते हुए कहा,
तो क्‍या हो गया, अरे सबके सामने उसने निर्दोषों को गोलियों से भून दिया, सी.सी.टी.वी. में सारे फुटेज मौजूद थे, चश्‍मदीद गवाहों की फौज थी, उसका स्‍वयं का कुबूलनामा था, फिर भी सजा देने में लगभग चार साल लग गए, और सजा पर अमल होने की कोई तिथि नहीं, ये कैसा न्‍याय हुआ मेरे भाई, उन निर्दोषों की आत्‍मा को क्‍या सचमुच शान्ति मिल रही होगी आज.”, कहते कहते रीछपाल जी का गला भर आया,
सच कहते हैं रीछपाल भाई, वोटों की राजनीति उसे सजा नहीं होने देगी, अभी तो उसका नाम लाइन में सबसे पीछे है, उसके पहले वाले ही सालों से अपने नंबर की प्रतीक्षा कर बुढ़ा रहे हैं, और शायद अपनी नैसर्गिक मृत्‍यु तक प्रतीक्षा करते भी करेंगे, फिर कसाब का नम्‍बर न जाने कब आयेगा, और तब तक कसाई कसाब, कबाब और बिरयानी के मजे लेता रहेगा, वह भी देशवासियों की गाढ़ी मेहनत की कमाई के पैसों से…”,
इसीलिए तो पूछ रहा था भाई कि कसाब को फांसी की सजा क्‍यूं दी, जब अमल में लाना ही नहीं है, क्‍यूं इस देश के लोगों की भावनाओं से खेला जा रहा है, क्‍यूं उन्‍हें शान्ति और सुकून के सब्‍जबाग दिखाए जा रहे हैं, क्‍यूं न्‍याय के नाम पर उनसे ठगी की जा रही है, क्‍यूं आखिर क्‍यूं ………..”,
रीछपाल जी की आंखों से आंसुओ की अविरल गंगा बह निकली थी, मेरे पास उनके प्रश्‍नों का कोई जवाब नहीं था, मैंने अपनी नजरें झुकाए झुकाए ही उनसे अनुमति ली, रीछपाल भाई अभी जल्‍दी में हूं, फिर कभी मिलते हैं,


मनोज  

Wednesday, 8 August 2012

ये बाबा फिर पिटेगा .


वो रात अंधेरे उठ जाते,
कहते कि चल कुछ कर आते,
अंजाम नहीं सुनता दिखता
कुछ भी कहते न हकलाते,
इस सत्‍ता की मरघट चादर पर, 
निश दिन नव आसन दिखेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .


कुछ स्‍वारथ है भारी उसका,
बहुजन हित साध रहा सबका,
सबको खुद से है जोड़ लिया
क्‍या खूब तेज पाया तप का,
कैसा हठयोगी पर कहता,
भू , अम्‍बर से भय मिटेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .




काले धन का साम्राज्‍य बड़ा,
जड़ उसकी खोद रहा है खड़ा,
न होगा समझौता अब तो
अपनी ही बातों पर फिर अड़ा,
कैसा साधू कहता है बैठ,
इतिहास को फिर से लिखेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .


मत रहना तुम निष्‍पक्ष मित्र,
मत उदासीन रहना तुम प्रिय,
इस बार खड़े हो जाना तुम
अपने-अपने भारत के लिए,
वरना तेरे मन-भावों को,
कब तक ये योगी रटेगा
ये बाबा फिर पिटेगा .



मनोज   
  

Monday, 6 August 2012

अन्‍ना कांग्रेसी हुए, दिग्‍गी राजा आप धन्‍य हैं !!!


राजनीति भी एक खेल है, मानसिक खेल और इसमें शह मात का चक्र भी चलता ही रहता है, अन्‍ना और बाबा के आन्‍दोलन भी कहीं न कहीं इसी राजनीतिक और मानसिक द्वंद के खेल कहे जा सकते हैं, जिसके बारे में सबसे पहले हमें दिग्‍विजय सिंह ने बताया, चौंकिए मत, हमने ही विश्‍वास नहीं किया, उन्‍हें हल्‍के में लिया, परन्‍तु याद कीजिए उन्‍होंने कहा था कि ये तिलंगे बीजेपी और आरएसएस के प्‍लान ए, बी और सी हैं, वह ऐसा नहीं कहते अगर उन्‍हें प्‍लान ए और प्‍लान बी ने परेशान और धराशाई न कर दिया होता, उनके इस बयान का उस वक्‍त मकसद प्‍लान सी को रोकना था, जिसमें वह पूर्णतः सफल भी रहे,

प्रश्‍न उठता है कि आखिर पहले चरण को सफलतापूर्वक निबाहने के बाद चूक कहां हुई ? पहली बार हुए अन्‍ना के अनशन को और बाबा रामदेव के आन्‍दोलन को सरकार ने गम्‍भीरता से लिया, पूरे देश में उठे जनाक्रोश ने कहीं न कहीं उनकी नींद हराम भी कर दी, फलतः अन्‍ना के लिए सदन का सत्र आगे बढाया गया, एक प्रस्‍ताव तक पास किया गया, बाद में लोकपाल बिल लाया गया, उस पर चर्चा भी की गई, परन्‍तु अफसोस बिल राज्‍यसभा में जाकर लटक गया, कारण सरकार के पास बहुमत न होना और विपक्ष की मॉंगों के आगे न झुकना बताया गया, लेकिन यह उतनी सच बात नहीं थी !!

परन्‍तु यह क्‍या !!! अगले कुछ दिनों में फिजां बदली-बदली क्‍यों नजर आने लगी ?? 27 दिसम्‍बर से मुम्‍बई मे तीन दिनों का अन्‍ना का अनशन दो दिन में ही डाक्‍टरी सलाह पर ! या युं कहें की भीड़ न जुटने की हताशा में समाप्‍त हो गई, और उसके पश्‍चात!! उसके पश्‍चात जो हुआ, उसे एक बार फिर से याद कर लीजिए, अन्‍ना दो दिनों के भीतर ही हस्‍पताल पहुंच गए, बीमारी विशेष नहीं थी परन्‍तु फिर भी कई दिन लग गए, इलाज करने वाले डाक्‍टर संचेती को पद्म विभूषण्‍ा से नवाजा गया !!! और इस बीच चार राज्‍यों के चुनाव कब बीत गए, किसी को याद नहीं, अब यहां पर अन्‍ना ने क्‍या किया, यह मत देखिए, यह सोचिए उन्‍होंने क्‍या नहीं किया, जी हां वे चार राज्‍यों में चुनाव प्रचार करने वाले थे, जो उन्‍होंने नहीं किया, कारण बीमारी, क्‍या सचमुच, कहीं ये बीमारी का बहाना तो नहीं था, उस वक्‍त तक मेरा शक आंशिक था, परन्‍तु हाल में घटी घटनाओं ने मेरा शक यकीन में तब्‍दील दिया, कैसे, आइये देखते हैं

सोचिए जरा, यदि अन्‍ना का आन्‍दोलन जारी रहता, तो लाभ किसका था ?? अधिक मंथन की आवश्‍यक्‍ता नहीं, यकीनन प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते लाभ भाजपा के खाते में जाना तय था, अधिक संभावना थी कि आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती, शायद सहजता से सरकार भी बना सकती थी, परन्‍तु नौ दिनों के  नवरात्र व्रत के पश्‍चात और एक राजनीतिक दल बनाने की घोषणा के बाद राजनीतिक गिरगिट किस करवट बैठेगा, अन्‍दाजा लगाना कठिन नहीं है, ऐसे में सरकार विरोधी मतों का बंटवारा होना तय है, अन्‍ना का दल किसी और के नहीं बल्कि भाजपा और एनडीए के मतों में से अपना हिस्‍सा लेगा, और जहां एक फीसदी मतों का अन्‍तर ही राष्‍ट्रीय परिदृश्‍य पर पर्याप्‍त हलचल करने में सक्षम हो, वहॉं ये बंटवारा किसी भी हाल में भाजपा को सत्‍ता में नहीं आने देगा, शायद इस करवट को भाजपा ने पहले ही भांप लिया था, लिहाजा इस बार के आन्‍दोलन में भाजपा के किसी नेता ने चूं तक नहीं किया, और हाल में शायद आडवाणी जी ने इसी के मद्देनजर अपने ब्‍लाग में कांग्रेस और भाजपा किसी के भी सत्‍ता में आने से इन्‍कार किया है,  

तो प्रश्‍न उठता है कि क्‍या अन्‍ना कांग्रेस से मिल चुके हैं ??? स्थितियां, परिस्थितियां तो चीख चीख कर इस ओर इशारा कर रही हैं कि जो अन्‍ना भाजपा और आर.एस.एस के प्‍लान- थे, वे आत्‍मघाती रूप ले चुके हैं, अब वे स्‍वविनाश करने पर आमादा हैं, कांग्रेस की कुटिल नीतियॉं कामयाब रहीं, कल को यदि बाबा भी राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दें तो विस्‍मय की कोई बात नहीं होनी चाहिए, सत्‍ता की गोंद से सभी चिपक कर रहना चाहते हैं वही वो भी कर रहे होंगे, परन्‍तु हां इस सब के बीच फायदे में कोई रहा तो प्‍लान-सी, जिसने दिग्‍विजय के कारण अपनी मिट्टी पलीत होने से बचा ली, तो आज तो कहना ही पड़ेगा, दिग्‍गी राजा, आपकी कूटनीति धन्‍य है, आप श्रेष्‍ठ सिद्व हुए,


मनोज