Saturday, 12 May 2012

रामदेव का (असली चेहरा) मुस्लिम प्रेम


रामदेव को मुसलमानों से प्रेम है तो किसी को भी क्‍यों आपत्ति होनी चाहिए ?? मुझे भी नहीं है ! परन्‍तु इतना तो है कि आज जब रामदेव मुस्लिमों के लिए आरक्षण की बात करते हैं तो उनकी बातों में सदाशयता कम ही नजर आ‍ती है, प्रश्‍न उठता है कि आखिर क्‍या गरज पड़ गई कि उन्‍हें आज मुस्लिम आरक्षण की वकालत करनी पड़ गई ? आखिर क्‍या गरज पड़ गई कि आज उन्‍हें मुस्लिम धर्मगुरूओं के साथ मंच साझा करने की कवायद करनी पड़ गई ? आखिर क्‍या जरूरत पड़ गई उन्‍हें बिस्‍िमिल्‍लाह करने की ? नहीं नहीं !!! कुछ तो मंशा रही ही होगी, क्‍या ये सामाजिक मामला है, जैसा कि दिख रहा है ? जी नहीं ये नितांत राजनीतिक मामला दिखाई देता है !!!

बाबा राम को यदि वास्‍तव में मुस्लिमों के हित की चिन्‍ता थी, तो पहला कार्य जो उनके अख्तियार में था वो वह करते, वह पहले अपने खुद के पतंजलि आश्रम में मुस्लिमों को उतने प्रतिशत आरक्षण प्रदान करते जिसकी उन्‍होंने परिकल्‍पना अपने मन मस्‍ितष्‍क में संजो रखी होगी, वे चाहते तो यह भी कर सकते थे कि उच्‍च कोटि के मदरसे का निर्माण करवाते, जिसमें उच्‍च, आधुनिक एवं तकनीकि शिक्षा का समावेश होता, वे चाहते तो मुस्लिमों के खुद के हित में उनके धर्म में व्‍याप्‍त कुरीतियों का विरोध कर सकते थे, परन्‍तु नहीं !!! उन्‍होंने ऐसा नहीं किया, उन्‍होंने सस्‍ती लोकप्रियता हासिल करने का, मुस्लिमों के मध्‍य घुसपैठ करने का वही रास्‍ता अपनाया, जिसे घुटे हुए राजनीतिज्ञ प्रायः इस्‍तेमाल करते हैं !!! फिर भला क्‍यो अब हम रामदेव को योगगुरू की संज्ञा दें ? क्‍यों न इसकी बजाय हम उन्‍हें राजनीतिज्ञ के रूप में देखना आरम्‍भ कर दें ???

अब आइये रामदेव के मुस्लिम प्रेम के निहितार्थ तलाश करने की चेष्‍टा करते हैंयहां इतना तो सत्‍य है कि रामलीला मैदान में दिखाई गई राम(देव)लीला ने उनकी गरिमा रसातल तक गिराई ! नौ दिनों में पस्‍त होने के कारण लोगों ने उनके योग तक पर ऊंगली उठा दी !! यहॉं मेरी सदैव से ही यह मान्‍यता रही है कि यदि रामदेव, रामलीला मैदान में नग्‍न हो गये होते तो सरकार असहज हो जाती, कदाचित उसका पतन भी हो सकता था !! परन्‍तु नारी वस्‍त्रों के प्रयोग ने रामदेव को शर्मसार कर उन्‍हें नग्‍न कर दिया, वह इस गिरावट में चल ही रहे थे कि इस मघ्‍य उनकी इस गिरी हुई छवि को उनके चेहरे पर पड़ी कालिख ने काफी हद तक पोंछने का काम किया, इस क्रम में सहानुभूति बटोरने में तो वह सफल रहे, परन्‍तु फिर भी वह वहां तक नहीं पहुंच सके, जहॉं से वह चले थे !!!

अब 3 जून को प्रस्‍तावित एकदिवसीय अनशन यदि असफल रहा तो रामदेव के राजनीतिक भविष्‍य पर एक बड़ा प्रश्‍न चिहन लग जाना तय है !!! तो ऐसे में ऐन केन प्रकारेण रामदेव, सभी प्रकार से, सभी तबकों को समर्थन जुटाने की कवायद करते नजर आ रहे हैं, इसी क्रम में रामदेव ने अन्‍ना से गठजोड़ का प्रयास किया, परन्‍तु अन्‍ना टीम को यह बात अधिक रास नहीं आई, उनके अपने स्‍वार्थ हैं, जिसकी चर्चा फिर कभी करेंगे, और इसी क्रम में रामदेव को लगा कि शायद मुस्लिमों को लुभाने रिझाने से कुछ काम बन जाए, और उन्‍होंने झटपट मुस्लिम आरक्षण की वकालत कर डाली, परन्‍तु रामदेव आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै वाली कहावत भूल गये लगते हैं …. शंका यह है कि कहीं उनका हाल, घर और घाट वाली कहावत के अनूरूप न हो जाये,  

सत्‍य तो यह है कि रामदेव का जनाधार पहले ही काफी खिसक चुका है, आज का मुस्लिम भी मूर्ख नहीं है, असली नकली चेहरों को बखूब पहचानता है, यकीन नहीं आता तो उत्‍तर प्रदेश चुनाव के दौरान उन्‍हें आरक्षण दिलवाने का दिवा स्‍वप्‍न दिखाने वालों से जाकर पूछो, आज भी वे लखनऊ की भूलभुलैया में अपना अस्तित्‍व तलाश करते नजर आ जायेंगे, फिर रामदेव इस नए शगूफे से क्‍या हासिल कर पायेंगे सहज अनुमान लगाया जा सकता है, कहीं ऐसा तो नहीं कि रामदेव अपनी राजनीतिक कब्र में प्रवेश कर चुके हैं और अब वे इस पर मिट्टी भी स्‍वयं ही डाल रहे हैं

मनोज

Sunday, 6 May 2012

बुआ जी का निर्मल प्रेम


बुआ जी अधीर हो गई, उनसे ये सब देखा नहीं जा रहा है, तो क्‍या हुआ गर ठग हुआ तो ? है तो हिन्‍दू ही, अरे भई जब ठगी पर कोई रोक टोक है ही नहीं, जब कोई भी धर्म का आसरा लेकर किसी को भी ठगने के लिए स्‍वतंत्र है, और सरकार मौन, तो फिर मल बाबा पर ही उंगली क्‍यो उठाई जाये ?? उठानी है, तो सभी ठगों पर एक साथ उठाओ, यह कौन सी धर्मनिरपेक्षता कि पाल के विरूद्व मीडिया कुछ न कहे और मल के पीछे कसाई की तरह पड़ जाये ….. 

भई वाह, कितनी वाजिब बात कही उन्‍होंने, धर्म तो धर्म है, कोई कितना भी नीच, पापी क्‍यों न हो, पर उसका एक धर्म तो होता ही है, तो उस धर्म के कथित स्‍वयंभू ठेकेदारों का इतना दायित्‍व तो बन ही जाता ही है कि वह उसके बचाव में सामने आयें, बुआ जी ने यही कहा और किया था, तो लोगों की भवें तन गईं, कहने वाले कहने लग गये कि ठगों का कोई धर्म नहीं होता, अब आप ही कहिए भला ऐसा होता है क्‍या ? समाज को धर्म, जाति के आधार पर बॉंटने वालों ने किसी को भी धर्म के दायरे से अलग छोड़ा है क्‍या ?? नहीं न !!! फिर ये क्‍या पोंगापंथी हुई कि फलाना अपराधी, ठग या ढ़ोंगी है, तो उसका धर्म से कोई लेना देना नहीं,  कोई भी व्‍यक्ति पहले उस धर्म का होता है, बाद में कुछ और, इस प्रकार हर व्‍यक्ति को किसी न किसी धर्म के दायरे में तो आना ही पड़ेगा, सो मल इससे विलग कैसे हो सकता है ?

मैं बुआ जी की बातों से पूरी तरह से सहमत हूं, मेरी मांग है कि जेल में बंद सभी कैदियों का आज ही रिहा कर दिया जाये, कारण ?? अरे क्‍या कानून इस बात की गारंटी ले सकता है कि वह सभी दोषियों को सजा देता है और दे रहा है ? यदि नहीं !!! तो फिर जो लोग जेल में बंद हैं, उन्‍हें ही सजा क्‍यों दी जानी चाहिए, उन्‍हें सजा तब तक नहीं मिलनी चाहिए, जब तक सभी गुनहगारों को एक साथ नहीं पकड़ा जाता, ठीक उसी प्रकार जैसे मल बाबा को कोसना है तो पाल को भी कोसना होगा, नहीं तो मल बाबा को भी कोसने का किसी को कोई अधिकार नहीं, कितनी न्‍याय संगत, तार्किक और बौद्विक बात कही है बुआ जी ने ….बुआ जी आप धन्‍य हैं, आपके चरण कहॉं हैं ???

बुआ जी वो तो आपने बता दिया, वरना हम अज्ञानी कहॉं इतनी बड़ी-बड़ी बातें समझ पाते, आप न बताती तो हम जैसे अबोध जान भी नहीं पाते कि पाल नामक भी कोई व्‍यक्ति है जो ठगी में संलिप्‍त है, हम तो इस बात को भी लेकर दिग्‍भ्रमित थे कि मल बाबा का धर्म क्‍या है, हम तो उन्‍हें सिक्‍ख मानते थे, और केश, कड़ा, कच्‍छ, कंघा और कृपाण न धारण करने के कारण विधर्मी तक कह देते थे, हम तो यही जानते थे कि सिक्‍ख धर्म में ग्रंथ साहिब ही गुरू हैं, और व्यक्ति की पूजा सिख धर्म में नहीं है ""मानुख कि टेक बिरथी सब जानत, देने, को एके भगवान"". तमाम अवतार एक निरंकार की शर्त पर पूरे नहीं उतरते कोई भी अजूनी नहीं है | यही कारन है की सिख किसी को परमेशर के रूप में नहीं मानते | (स्रोत गूगल बाबा)

परन्‍तु आपने हमारी ऑंखों की ढि़बरी को जला दिया, हमें बता दिया कि मल बाबा हिन्‍दू धर्म के आध्‍यात्मिक गुरू की श्रेणी में आते हैं, और सिर्फ हिन्‍दुओं पर निशाना साधना किसी भी प्रकार उचित नहीं, बुआ जी मीडिया के दुष्‍प्रचार पर मत जाइयेगा, ये तो सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने के उस्‍ताद हैं, इनके कारण ही कृपा बरसी और कृपा रूक गई, ये किसी धर्म को नहीं मानते और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, आप अपना अभियान जारी रखिए, हम सभी आपके ही तो साथ हैं, आखिर हमारा भी तो कोई धर्म हैं, है ना

                       मनोज कुमार श्रीवास्‍तव

Monday, 30 April 2012

नाक कटा दी बाबू जी ने ...

नाक कटा दी बाबू जी ने, सोसायटी में जो थोड़ी बहुत शान और इज्‍जत बची थी, वह भी जाती रही, झुमरी सुबह से ही अपने ससुर को कोसे जा रही थी.
अरी भागवान, काहे सुबह सुबह बाबू जी को कोस रही हो, झुमरू अपनी पत्‍नी पर चिल्‍लाया.
अब कोसने को बचा ही क्‍या है, बुढ़वू लाख टके के लिए जेल भीतर हैं, क्‍या मुंह दिखाऊं दुनिया समाज को
अरी, जरा बाबू जी के बारे में भी सोच, इस बुढ़ौती में सश्रम कारावास हो गया, सश्रम कारावास का मतलब बूझती हो कि बुझायें
अरे काहे का सश्रम, वही काम जो हम रोज घरे भित्‍तर करते हैं, बावू जी कुछ रोज जेल में कर लेंगे तो का बिगड़ जावेगा, वैसे भी घर पर तो जिन्‍दगी में कौनो काम किए नाहीं, पर इज्‍जत तो हमारी गई ना, का मुंह लेके निकले घर के बाहर, और हॉं एक बात कहे देते हैं, कि ई जो सब हो रहा है, उनके अपने करमों का ही फल है.”
काहे का बुरा कर्म कर दिए, लाख रूपैया पार्टी के लिए ही तो ले रहे थे, कौन अपने घरे लादे ला रहे थे .”
यही यही, यही करम है, लिया भी तो फकत लाख रूपैया, ऊ भी अपने खातिर नाहीं, पार्टी खातिर, अरे अब कहां मर गये ऊ पार्टी वाले, अरे हम पूछते हैं, जब लिया ही था, तो तनी ज्‍यादा नाहीं ले सकते थे, औ अपने घरे खातिर काहे नाहीं ले सकते थे, बाकी लोगन का देखो, उनके घर वाले हवेलियों में शान से रहते हैं.”
ई तू का अनाप शनाप बके जा रही है झुमरू भुनभुनाया,
का गलत कह रहे हैं जी, अब करोड़न करोड़ डकारने वाले भी वहीं उनके साथ होंगे, उनके बीच ऊ का मुंह दिखायेंगे, जब ऊ कहेंगे कि लाख टका खातिर हिंया आये है, तो सब उनका मजाक उड़ायेंगे की नाहीं, जैसे हिंया अब सब हमारा मजाक उड़ायेंगे.”
तुम्‍हारा क्‍या मजाक उड़ेगा, अरी बाबू जी वहां जेल में हैं, न जाने ऊ जेल वाले कौन सा काम करायें, सश्रम है तो हम तो सुने है कि चक्‍की पिसवाते हैं, आटा गुंथवाते हैं, भगवान जाने कहीं बाथरूम वाथरूम में ड्यूटी न लगा दें .”
तो किसी की मदद मांगो, पार्टी वालों से मदद लो, नहीं तो जेल वालों तक कुछ घूस घास पहुंचाओ, बाबू जी कितनौ अनरथ किए हों, हमसे उनकी ई दशा देखी न जाएगी.” झुमरी चिन्तित स्‍वर में बोली.
कहां से पहुंचायें, ऊ एक लाख रूपैया तो पुलिस वाले कब का ले गये, घर में पैसा है ही कहां. तुम सही कहती हो, कुछ अधिक लिए होते तो आज साथ देने वालों का भी टोटा नहीं पड़ता, सब लाइन लगा के दुआरे खड़े रहते.” इस बार झुंझलाने की बारी झुमरू की थी,
और कुछ अऊर ज्‍यादा कर दिए होते तो कसाब की तरह अंडा सेल भी मिल सकता था, फिर सुरक्षा के नाम पर वहां मजे से रहते, औ हियां हम भी उनके कमाये धन से राजा बन गये होते.” झुमरी की ऑंखों में सोच के ही चमक आ गई थी,
पर अब का करें, घर में कौड़ी नहीं, साथ देना तो दूर घर आने वाले भी किनारा काट लिए, हाय बाबू जी के लिए हम कुछ नहीं कर सकते.” झुमरू की ऑंखों में आंसू आ गये,
ऐसा काहे कहते हो जी, दहेज में बीस भर सोना लिए थे, ऊ किस दिन काम आयेगा, आजहि बेच के बाबू जी का जमानत कराओ, ऐसे अकेला नाहीं छोड़ सकते हम उन्हें उन कुख्‍यात डकैतों के बीच, हमारे बाबू जी तो मासूम से रिश्‍वतखोर भर हैं .”
तुम सही कहती हो जी, ऊ दहेज का धन भी तो रिश्‍वत ही था, रिश्‍वत में ही चली जाएगी, तो गम नाहीं, हम आज ही हाई कोर्ट में अपील दायर कर देते हैं, और बाबू जी का जमानत करवा लेते हैं .”
हां फिर हाई कोर्ट से ऊपर सुप्रीम कोर्ट भी है, जब तक वहां मामला निपटेगा, बाबू जी खुद ही निपट लेंगे, फिर न रहेगा बांस न बजेगी बेसुरी.” झुमरी चहक के बोली
हां मैं अभी जाता हूं.” कहकर झुमरू जाने लगा.
ऐ जी, बाबू जी की एक अच्‍छी सी तस्‍वीर भी बनवा लीजिएगा, समझ रहे हैं न, न जाने कब काम पड़ जाए.” झुमरी ने पीछे से चेताया.

परदा गिरता है.


मनोज कुमार श्रीवास्‍तव

Thursday, 26 April 2012

तो क्‍या सचिन कांग्रेसी हो गये ?


खुश तो बहुत होगे तुम आंय, अरे भई तुम्हारे भगवान उच्च सदन के सदस्य जो बन गये, राष्ट्रपति ने उन्हें राज्‍य सभा के लिए मनोनीत जो कर लिया है, अब आप पूछेंगे कि मैंने ऐसा क्‍यों पूछा ? क्या मैं खुश नहीं हूं ? अरे भाई मैं खुश होने वाला कौन होता है, भई जब तमाम लेखक, खिलाड़ी, म्‍यूजीशियन, चित्रकार, पत्रकार और फिल्‍मकार राज्‍य सभा जा सकते हैं, तो भला सचिन क्‍यों नहीं, जरूर जरूर, जाना ही चाहिए,

परन्‍तु मेरे मन में कुछ प्रश्‍न अनायास ही उठते हैं, मान लीजिए संसद में किसी महत्‍वपूर्ण बिल पर चर्चा हो रही है, जिसमें वोटिंग के जरिए बिल के भविष्‍य का फैसला होना हो, एक एक वोट स्‍लाग ओवर के एक एक रन की तरह महत्‍वपूर्ण हो, और दूसरी ओर उसी दौरान उनका दक्षिण अफ्रीका में कोई महत्‍वपूर्ण मैच चल रहा हो,  तो ऐसी दशा में क्‍या सचिन दोनों जगहों पर अपनी भूमिका के साथ न्‍याय कर सकेंगे ??? शायद नहीं !!! तो फिर कोई भी कारण क्‍यों न हो, ऐसी जिम्‍मेदारी ओढ़ने का लाभ ही क्‍या जिसका निर्वहन वह न कर सकें ? अब देश्‍ा में योग्‍य लोगों का अकाल तो पड़ नहीं गया, कि तुरत फुरत से सचिन को राज्‍य सभा का सदस्‍य बनाये बगैर काम नहीं चलता, अरे भई उनके सन्‍यास लेने तक की प्रतीक्षा भी कर सकते थे, और यदि 100 शतक व्‍यक्ति को इतनी ही अधिक राजनीतिक योग्‍यता प्रदान करता है, तो फिर उनका नाम राष्‍ट्रपति पद के लिए आगे बढाना चाहिए था, मुझे यकीन है कि इस मसले पर आम-सहमति बनाने में राजनीतिक दलों को तनिक भी माथापच्‍ची नहीं करनी पड़ती,


परन्‍तु फिर आप प्रश्‍न करेंगे कि क्‍या सचिन को यह सम्‍मान स्‍वीकार नहीं करना चाहिए ? यदि राष्‍ट्रपति उन्‍हें राज्‍यसभा के लिए नामित करें तो उन्‍हें इन्‍कार कर देना चाहिए ? नहीं भाई नहीं, मेरे लिहाज से पहले तो राष्‍ट्रपति को स्‍वयं ही उन्‍हें राजनीतिक दलदल में आमंत्रित नहीं करना चाहिए था, परन्‍तु यदि कर भी लिया था, तो सचिन के सम्‍मुख दो विकल्‍प थे, या तो वह विनम्रतापूर्वक इस हेतु मना कर देते, अथवा वह क्रिकेट से सन्‍यास की घोषणा कर देते, ताकि वह अपनी किसी भी एक भूमिका के साथ सम्‍पूर्ण न्‍याय कर सकते,

परन्‍तु नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे, क्‍योंकि उन्‍हें पता है कि देर सवेर उन्‍हें सन्‍यास तो लेना ही है, और कोई भी बुद्विमान व्‍यक्ति वर्तमान में रहते हुए ही अपने भविष्‍य के सुगम मार्ग सुनिश्चित कर लेता है, सो सचिन ने भी ऐसा ही किया, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपनी तरफ से एक मास्‍टर स्‍ट्रोक खेला है, जिस देश में मरी हुई लाशों का भी उपयोग वोट बटोरने के लिए किया जाता रहा हो, जिस देश में जाति, मजहब, बिरादरी के नाम पर वोट पड़ने आम हों, जिस देश में धर्म वोट हासिल करने का जरिया बन गया हो, वहां क्रिकेट रूपी धर्म और उसके भगवान का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया जाएगा, भला ये कैसे सोच लिया था आपने !!!

आपको तो पता ही है कि नामित होने के बाद सचिन किसी भी पार्टी की सदस्‍यता लेने हेतु स्‍वतंत्र हैं, तो आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए यदि वह कुछ दिन बाद कांग्रेस की सदस्‍यता ग्रहण कर लें और 2014 के चुनावों में कांग्रेस का प्रचार करते नजर आंयें, तो प्रश्‍न उठता है कि क्‍या सचिन कांग्रेसी हो गये, क्‍या उन्‍होंने कांग्रेस अध्‍यक्षा की अधीनता स्‍वीकार कर ली, क्‍या क्रिकेट के प्रति अपने समर्पण को उन्‍होंने अपनी राजनीतिक महात्‍वाकांक्षा के साथ विभाजित कर लिया, इन सभी प्रश्‍नों के उत्‍तर भविष्‍य के गर्भ में छुपे हैं, तो मित्रों एक नए अध्‍याय की प्रतीक्षा कीजिए, राजनीति के पटल पर एक नई पारी शुरू हो चुकी है, परन्‍तु इस बार पिच बदली हुई है और बल्‍लेबाज इस पर पर खेलने के अभ्‍यस्‍त नहीं, फिर क्‍या रिकार्डधारी इस बदली हुई परिस्थिति में भी शतक लगा सकेंगे, यकीन करने का दिल तो नहीं करता पर देखते जाइये, 


मनोज कुमार श्रीवास्तव  

Monday, 23 April 2012

बाबा तुम ही कहो – ठग हो या देशद्रोही


भारत देश विविधताओ से भरा देश हैं, इस पुण्‍य पावन धरा पर अनेक महापुरूषों, साधू-सन्‍तों ने जन्‍म लिया है, वेद, शास्‍त्र, पुराण, उपनिषद, ये सभी उनकी गौरवशाली गाथाओं से भरे पड़े हैं, और यह क्रम रूका नहीं बल्कि जारी है, मित्रों मुझे लगता है कि हम सौभाग्‍यशाली हैं कि हम उस युग में जन्‍में जो अनेक महान आत्‍माओं का भी कर्मकाल रहा है, मैं किसी एक का नाम तो नहीं लूंगा परन्‍तु उनमें से कुछ तो निश्चित ही नमन योग्‍य हैं,

परन्‍तु दूसरी ओर, आजकल, एक कथित त्रिकालदर्शी महापुरूष लोगों को दर्शन दे कृपा बरसा रहे हैं, मित्रों ये साहब भी धन्‍य हैं, इन्‍होंने हमारे जीवन काल में धरती पर अवतरित हो हमें कृतार्थ अथवा लज्जित किया है, यह निर्धारण किया जाना अभी शेष है, कहते हैं कि उनके पास वह अलौकिक नेत्र है जो कि महादेव के पास हुआ करती थी, और उसी दिव्‍य नेत्र के कारण अनेकानेक उत्‍सुक-जन, भक्‍त, शंकालु, ईर्ष्‍यालु और झगडालु लोग इस कृपालु की ओर जाने-अनजाने स्‍वतः ही आकृष्‍ट हो रहे हैं,   

यहॉं मेरे मन में छोटी सी बात आती है वह यह कि यदि मुझे यह ज्ञात हो जाए कि कल एक रेल दुर्घटना होने वाली है, जिसमें 100 निर्दोष लोग मर जाएंगे, अथवा यह कि कल किसी असहाय व्‍यक्ति की हत्‍या हो जाएगी और अमुक जगह अमुक तरीके से होगी, तो देश के एक सजग और जिम्‍मेदार नागरिक होने के कारण मुझे क्‍या करना चाहिए ? क्‍या मुझे इस प्रकार की दुर्घटना को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए !!! और यदि मैं ऐसा नहीं करता हूं तो फिर क्‍या यह अपराध नही होगा, क्‍या मेरा जानबूझकर चुप रहना सजा के योग्‍य कार्य नहीं कहा जाएगा ? इससे भी अलग यह कि यदि मौन ही रहना है ऐसी फिर ऐसी अदृश्‍य ऑंख का लाभ ही क्‍या ?? तो इस प्रकार जब राष्‍ट्र के विरूद्व, जन के विरूद्व होने वाले उस अपराध पर भी मैं चुप रहूं जिसका मुझे पूर्वज्ञान हो,  तो मेरी इस चुप्‍पी को क्‍या कहा जाना चाहिए ? क्‍या इसे देशद्रोह की संज्ञा नहीं दी जानी चाहिए !!! इस दशा में भी अदृष्‍य नेत्र से सुसज्जित ये त्रिकालदर्शी महापुरूष यह अवश्‍य ही जान लेते होंगे (जैसा की उनका दावा है) कि भविष्‍य में क्‍या घटित होने वाला है, फिर क्‍या उनका धर्म, उनकी नैतिकता, उनका कर्तव्‍य यह नहीं बनता कि वह राष्‍ट्र को होने वाले अपराधों के बारे में सचेत करें, पूर्व सूचना दें, होने वाले अपराधों को रोकें, और राष्‍ट्रहित में अपना योगदान दें, फिर यदि वे ऐसा नहीं करते, तो उनके मौन को राष्‍ट्रद्रोह क्‍यों नहीं माना जाना चाहिए ?

दूसरी ओर यदि मेरे पास शून्‍य में झांकने जैसी अदृश्‍य शक्ति न हो, परन्‍तु फिर भी मैं यह दावा करूं कि मेरे पास अदृश्‍य अलौकिक शक्तियॉं हैं, इसी दावे के आधार पर लोग मुझे धन दें और उसका मैं स्‍वेच्‍छापूर्वक उपयोग करूं, तो इसे क्‍या कहा जाना चाहिए ? क्‍या आप इसे इसे ठगी नहीं कहेंगे !!!

तो बात स्‍पष्‍ट हुई, उक्‍त अदृश्‍य आंख को या तो ज्ञान है अथवा नहीं, यदि है और वे राष्‍ट्र को भविष्‍य के अपराधों के प्रति सचेत नहीं कर रहे तो उनका मौन राष्ट्रद्रोह होगा, और यदि अदृश्‍य नेत्र नहीं है और फिर भी वह इसका दावा कर लोगों को मूर्ख बना धन संचय करते हैं तो ठगी,

तो अदृश्‍य ऑंख का दावा करने वाले महापुरूष के समक्ष दो ही विकल्‍प मौजूद हैं, या तो वह ठग है या फिर देशद्रोही …….तो क्‍यों न उन्‍हीं से यह सीधा प्रश्‍न किया जाए, बाबा तुम ही कहो ठग हो या देशद्रोही ………..सोचिए तो, बाबा क्‍या जवाब देंगे इसका ? वैसे आप क्‍या सोचते हैं इस बारे में …..



मनोज कुमार श्रीवास्‍तव

Friday, 13 April 2012

जाएँ तो जाएँ कहाँ

आजकल एक भ्रष्‍ट और ठग ने जो खुद को बाबा कहता है, ने दिमाग खराब कर रखा है, लोगो को ठगना ही इसका परम धर्म है, परन्‍तु लोग हैं कि अंधानुगमन जारी है .......मित्रों मुझे विज्ञापन के दम पर प्रसिद्धि प्राप्त इस कथित बाबा के ऊपर गुस्‍सा कम और कमअक्‍ल अवाम् की अन्‍धविश्‍वासी सोच पर गुस्‍सा अधिक आता है, जो किसी भी ऐरे, गैरे, लाखैरे को ईश्‍वर के समकक्ष रखने में तनिक भी देर नहीं लगाती, परन्‍तु क्यों ? यदि र्धर्यपूर्वक सोचा जाए तो वह करे भी तो क्या, सत्य तो यह है कि दुःखों में डूबी हुई प्रजा को जब शासक न्‍याय देने में सक्षम न हो, वह उनके घावों पर मरहम लगाने की बजाय उस पर प्रतिदिन एक नये प्रकार का वह तीक्ष्‍ण रसायन मलने का कार्य करता हो, जो उसे प्रतिपल चीखने पर मजबूर करती हो........ और दूसरी ओर जब देवालयों में स्‍थापित देव और उनके कथित प्रतिनिधि धनसंचय के नए कीर्तिमान बनाने में व्‍यस्‍त हों, तो वह गरीब आखिर जाये भी तो कहॉं, वह जहॉं भी जाता है, उसे मार्ग में मिलते हैं रंगे हुए सियार, जो शक्तिशाली और सामर्थ्‍यवान होने का भ्रम उत्‍पन्‍न करते हैं, वे उसे शरण, संरक्षण और सुरक्षा देने जैसी बातों में उलझाते हैं, और फिर जीवन के कष्‍टों से पहले से ही पीडि़त वह दुर्भाग्‍यशाली व्‍यक्ति अनचाहे, अनजाने ही उस चालाक सियार के चंगुल में स्‍वयं को फंस जाने से बचा नहीं पाता,

प्रश्‍न उठता है कि आखिर इन सियारों का किया क्‍या जाए, कैसे इनके ऊपर के छद्म रंग को हटा इनका वास्‍तविक रूप देखा जाए ? तो मेरी एक सलाह है, वह यह कि तीसरी, चौथी आंख का दावा करने वाले से, अपनी कथित ऑंख से देखकर कोई ऐसा चीज बताने को कहा जाए, जिसकी तत्‍काल पुष्टि हो सके, मसलन उन्‍हें किसी घर में लाया जाए और पूछा जाये कि बाबा अब बताइये कि घर के फ्रीज में कौन सी शब्‍जी पड़ी है ? अथवा ये कि बाबा जरा बताइये तो मैंने किस रंग की चड्ढी पहनी हुई है ? और फिर हाथ कंगन को आरसी क्‍या और पढ़े लिखे को ....... 

परन्‍तु इतना ही क्‍यों जिसके पास अदृश्‍य आंख हैं, वह सहजता से अति गूढ़ प्रश्‍नों के हल तलाशने में मदद भी कर सकता हैं, वह अनेक अपराधों जैसे आरूषि-हेमराज हत्‍या के बारे में सारे सत्‍य व तथ्‍य के साथ अपराधी के बारे में भी बता सकता हैं, साथ ही वह यह भी बता सकता हैं कि किन किन श्रीमानों के धन किन-किन विदेशी बैंकों में जमा हैं और उसके प्रमाण हमें कहां मिलेंगे........फिर न तो देश को अनशनकर्ता महारथियों की आवश्‍यक्‍ता होगी और न ही गैरसरकारी उन संगठनों की जो देश की चिन्‍ता में हलकान हुए जा रहे हैं......अतः मेरी सलाह है कि इससे पहले विदेशी ताकतें इस "कृपा" को पेटेंट कराएं, इस अदृश्‍य आंख का प्रयोग भारत सरकार को तत्काल और आवश्यक रूप से राष्ट्रहित में करना आरम्भ कर देना चाहिए, साथ ही सी.बी.आई जैसी संस्‍था को भी इसकी मदद ले अनेक मसले तुरत फुरत सुलझा लेने चाहिए ....... मुझे समझ नहीं आता की भला अभी तक ऐसा उत्‍तम विचार सरकार को सूझा क्‍यों नहीं, वह भी तब जब उनके पास योग्य (?) मंत्रियों की पूरी फौज मौजूद है..... अतः अब देर न कर भारत सरकार को तुरन्‍त ही इस तीसरी आँख की अलौकिक शक्तियों का प्रयोग देश-हित में करना आरम्भ कर देना चाहिए....

अब आप पूछेंगे कि भाई यदि तीसरी आंख असफल सिद्व हो जाए तो !!! यदि उनके दावे झूठे सिद्व हों तो !!! तो भैया मुझसे क्‍या पूछते हो ? फिर तो ऐसे लोगों का एक ही हल है, किसी बाबा से सलवार ले कर इन्‍हें पहनाओ और फिर उनके हवाले कर दो, जिन्‍होंने पेड़ों में बॉंधकर अनेक दुष्‍टात्‍माओं की शराब की लत छुड़वाई है ........वे अवश्‍य ही इस दुष्‍ट की भी रोग-व्‍याधि दूर करेंगे और लोगों को ठगने की उसकी लत छुड़वा सकेंगे ...... और यदि यह उपाय भी कारगर न सिद्व हो तो इन्‍हें उसी जनता के हवाले कर दो जिसने आज से पहले भी अनेक न्‍याय बिना न्‍यायपालिका के हस्‍तक्षेप के कर डाले हैं .....


© मनोज

Tuesday, 10 April 2012

जय बाबा की

सुबह सुबह उठने की किसकी इच्‍छा होती है, जो सुयश की होती, परन्‍तु परीक्षा थी और पिता जी ने डांट कर उठाया तो भुनभुनाते हुए उठने के अतिरिक्‍त कोई चारा भी न था, उठा तो पहले से ही काफी देर हो चुकी थी, अतः 10 मिनट के अन्‍दर फटाफट तैयार हो वह स्‍कूल की ओर भागा, रोज की तरह आज भी उसकी तैयारी शून्‍य थी और नम्‍बर भी उतने ही आने की सम्‍भावना, लिहाजा जाने से पहले अपने मोजों मे रात्रि में मेहनत कर बनाये गये पुर्जों को रखना नहीं भूला था वह,

सुयश उछलता कूदता तेजी से जा ही रहा था कि उसने देखा कि एक अर्धनग्‍न सा व्‍यक्ति कीचड़ मे गिरा पड़ा है, उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई और बाल अस्‍त व्‍यस्‍त थे, देखने में ही कोई पागल सा नजर आता था, सुयश को ऐसे दृश्‍य अत्‍यन्‍त सुहाते थे, उसने आव देखा न ताव ढ़ेले उठाये और दे दनादन उस व्‍यक्ति पर अपने निशाना लगाने की क्षमता की जांच करने लगा, उसे आश्‍चर्य नहीं हुआ कि उसके अधिकतर निशाने सटीक लगे थे, वह विक्षिप्‍त से व्‍यक्ति आंव बांव बक रहा था, उसने तमाम गालियों के बाद जो अन्तिम बात कही वह यह कि "जा तेरा कोई काम नहीं बनेगा", सुयश ने सर झटका, बहुत देखे ऐसे भविष्‍यवक्‍ता, और स्‍कूल की ओर बढ़ गया……



पहले ही अधिक देर हो चुकी थी लिहाजा सुयश ने और अधिक देर करना उचित नहीं समझा, वह शीघ्र ही स्‍कूल पहुंच गया, परीक्षा शुरू हो चुकी थी, सुयश भी अपने स्‍थान पर बैठ गया, प्रश्‍न पत्र अपेक्षा के अनुरूप उसकी समझ से परे ही था, उसने अपनी चिट निकालनी चाही, परन्‍तु यह क्‍या ? अभी उसने अपने मोजे से पुर्ची निकाली ही थी कि पीछे मास्‍टर खड़ा मिला, और इससे पहले की सुयश संभलता उसके चेहरे पर तड़ाक तड़ाक अनगिनत चांटे पड़ चुके थे, कापी पर टिप्‍पणी मिली, सो अलग, बेचारा सुयश, रूआंसा सा स्‍कूल से निकला, लौटते हुए रास्‍ते में पुनः उसे कीचड़ से सना हुआ वह विक्षिप्‍त दिखाई दिया, अचानक ही उनकी यह बात उसके कानों में गूंज गई कि "जा तेरा कोई काम नहीं बनेगा", सुयश को समझ आ गया था कि उसकी ये दशा अवश्‍य उस व्‍यक्ति के श्रापों का परिणाम है, सुयश का मन भावुक हो उठा, वह अत्‍यन्‍त श्रद्वा से उस व्‍यक्ति के पास पहुंचा, उसे सुझाई नहीं दे रहा था कि वह आखिर उन्‍हें किस नाम से सम्‍बोधित करे, परन्‍तु शीघ्र ही उसे इसकी भी एक उक्ति सूझ गई, कीचड़ अर्थात मल से सने होने के कारण उसने अपनी तरफ से ही उसका नाम रख दिया "मल बाबा"

मल बाबा मुझे क्षमा कर दीजिए, मैंने आपको गलत समझा, आप तो अन्‍तर्यामी हैं, - परन्‍तु सुयश की इस बात पर विक्षिप्‍त ने कोई ध्‍यान न दिया, वह हुंह हुंह कहकर अपना सर झटक रहा था,
सुयश को लगा कि मल बाबा ने उसे माफ नहीं किया है, अतः उसने दौड़कर उनके पैर पकड़ लिए, बोला बाबा क्षमा कीजिए, दोबारा ऐसी भूल न होगी,,,,,, 
अबे पैर छोड़, मल बाबा पैर छुड़ाते हुए बोले
छोड़ दूंगा, पहले यह कहिए कि क्षमा कर दिया, सुयश गिड़गिड़ाया
हां हां कर दिया, पैर छोड़, मल बाबा ने झिटकारा
बाबा कल तो सफल रहूंगा न, सुयश ने याचक दृष्टि से उनकी ओर देखते हुए कहा
रहेगा रहेगा, अब भाग यहां से, कहकर इससे पहले कि सुयश जाता मल बाबा कीचड़ से निकल कर तेजी से भागे
सुयश ने भी आर्शीवाद मिला जान वहां से चले जाने में अपनी भलाई समझी
अगले दिन फिर वही स्‍कूल, वही सुयश, वही पुर्चियां, लेकिन आज किसी मास्‍टर ने उसके कार्य में हस्‍तक्षेप नहीं किया, सुयश ने खूब लिखा और जी भर कर लिखा, बाहर निकलने पर वह मन ही मन बुदबुदाया, जय मल बाबा की,,,,,,,

अब क्‍या था, पूरे गांव में यह बात फैलाने में सुयश ने जरा भी देर ना लगाई कि मल बाबा में अलौकिक शक्तियां विद्यमान हैं, लोगों ने बड़ी श्रद्वा से मल बाबा को पहनने के लिए वस्‍त्र एवं रहने के लिए गांव के उत्‍तरी कोने पर बने हनुमान जी के मंदिर के एक खाली कमरे को दे दिया, मल बाबा के क्‍या कहने, ठाठ हो चुके थे उनके, लोग उनका आर्शीवाद लेने उनके पास आने लगे, मल बाबा पहले तो झिड़कते थे, लेकिन शीघ्र ही उन्‍हे आत्‍मज्ञान हो ही गया, उन्‍हें पता चल चुका था कि लोग कष्‍टों से घिरे हुए हैं और उनके खुद के अन्‍दर हो न हो, कुछ तो है तभी तो लोग उनके पैर छूते हैं ओर उनसे आर्शीवाद की याचना करते हैं, सुयश ने भी अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़ मल बाबा की शरण ली, वह उन्‍हें मिले दान का हिसाब किताब रखने लगा था, आखिर इतना तो बनता ही था उसका, उसी ने तो मल बाबा को प्रसद्वि दिलवाई थी,

इसी प्रकार दिन पर दिन बीतने लगे, मल बाबा की प्रसिद्वि अब दूर दूर के गांवो तक फैल चुकी थी, मल बाबा ने घोषणा करवा दी थी कि जो पूर्ण श्रद्वा से उनके पास आयेगा, सिर्फ उसी की मनोकामना पूर्ण होगी, चूंकि आने वालों की संख्‍या अधिक थी अतः उनमें से स्‍वतः ही कुछ लोगों की समस्‍यायें दूर हो जाती थी, जिन लोगों की समस्‍या दूर नहीं होती थी, उनके लिए सीधा जवाब था, उनकी श्रद्वा में कमी है, अथवा अवश्‍य उन्‍होंने पिछले समय में कोई गहरा पाप किया है, तभी उसका कल्‍याण नहीं हो पा रहा है, अब दूध का धुला कौन है, लिहाजा हर वह व्‍यक्ति जिसकी मनोकामना पूर्ण नहीं होती थी, अपने पूर्व में किए गये किसी अपराध को याद कर संतोष कर लेता था,

साल भीतर ही मल बाबा के पास धन का अंबार लग चुका था, परन्‍तु मल बाबा का पेट इतने से न भरा, उन्‍होंने सुयश के साथ मिलकर अधिक धन कमाने की एक युक्ति निकाली, उन्‍होंने घोषणा करवा दी कि जिन लोगों ने किसी भी प्रकार के पाप कर्म से धन अर्जित किया है यदि वे उसका एक चौथाई मल बाबा के श्री चरणों में अर्पित कर देते हैं तो उसे उस पाप से उसे मुक्ति मिल जायेगी, इस कार्य हेतु एक बड़ा मुक्ति पात्र निर्मित करवाया गया, जिसमें धन अर्पित करने के पश्‍चात उस व्‍यक्ति को बाबा के श्री चरणों पर माथा लगाना था, और फिर वह पाप मुक्‍त,,,

अब क्‍या था, यह युक्ति काम कर गई, मल बाबा की आय दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ने लगी, समय बीतने लगा और अब मल बाबा एक स्‍वर्ण सिंहासन पर बैठ कर लोगों की व्‍यथा कथा सुनने लगे, नेता, अभिनेता सब उनकी चौखट पर चाकरी को आने लगे थे, अब तक उनके अनेक चेले चपाटे हो चुके थे, एक प्रमुख चेली भी थी, जो उसके सदैव समीप रहने लगी थी, वह चेली मल बाबा को किसी भी अवांछित व्‍यक्ति से दूर रखने का काम करती थी, लेकिन इस मध्‍य सुयश की प्रमुखता में जरा भी कमी नहीं आई थी,

अचानक से एक रात्रि पुलिस की पूरी टीम ने बाबा के आवास पर धावा बोला, उन्‍हें सूचना मिली थी कि उमरिया गांव में हुई डकैती में बाबा का भी हाथ है, उल्‍लेखनीय है, कि उमरिया गांव के एक सरकारी बैंक में चार रोज पहले डकैती पड़ी थी, जिसमें 26 लाख रूपये लूटे गये थे और गार्ड को गोली मार दी गई थी, मल बाबा, सुयश और उनके चेली, चेलों ने भागने का प्रयास तो किया पर धरे गये, चूंकि छापा रात में पड़ा था इसलिए बाबा के अंधभक्‍त जन भी मौजूद नहीं थे, जो कार्य में व्‍यवधान डालते, फिर क्‍या था, तलाशी अभियान शुरू हुआ, बाबा के घर की तलाशी में मिले धन ने सभी की आंखे चुंधिया दी, पूरा स्‍वर्ण भंडार था, रूपया तो इतना कि गिनने में पूरी रात बीत गई, इन्‍हीं रूपयों में बैंक लूट में से साढ़े छः लाख रूपये भी थे, जो कि चिन्हित हो गये, पुलिस समझा गई कि जरूर डकैतों ने पाप-मुक्ति के लिए वह धन बाबा के श्रीचरणों में अर्पित किया होगा,,,,  

सुबह सुबह भक्‍त कम और कौतुहल व्‍यक्‍त करती भीड़ अधिक उमड़ी, बाबा की अकूत सम्‍पत्ति उन सबके सामने थी, पुलिस ने जानबूझ कर मल बाबा और उनकी टीम को सुबह गिरफतार करना चाहा था, ताकि लोग भी उसकी ठगी को देख समझा सकें, और उसका चेहरा लोगों के सामने बेनकाब हो सके, परन्‍तु भक्‍तों की बाबा के समर्थन में जोरदार नारेबाजी के सामने उनकी एक न चली और बाबा और उनके साथियों को पिछले दरवाजे से ही ले जाना पड़ा,,,,

पुलिस चौकी के बाहर भीड़ जमा थी तो थाने के भीतर मल बाबा की ठुकाई जारी थी, पुलिस ने उसे उन-उन जगहों पर चुन-चुन कर मारा, जहां का उल्‍लेख करते भी शर्म आती है, परन्‍तु बाबा न फूटे, सुयश के साथ भी यही व्‍यवहार हुआ, लेकिन जब पुलिस अधिकारी का हाथ बाबा की चेली तक पहुंचा तो बाबा टूट गये और उन्‍होंने रोते रोते अपनी कथा कह सुनाई,

बाबा बोले हुजूर माई बाप मैं कोई बाबा वाबा नहीं हूं, न ही मुझे बाबागीरी जैसा कुछ आता जाता है, मैं तो अरडि़या गांव का मजदूर खदेरू हूं और ये जो हमारी चेली बनी है, ये मेरी पत्‍नी संदेशी है, हुजूर आपको तो पता ही है कि मजदूरी में कितना कम मिलता है, अंगूठा एक सौ दस पर लगवा के ठेकेदार महज सत्‍तर रूपये देता है, पर रोजाही पक्‍की होने के कारण मैं वहां जमा था,,, साहब मुझे दारू की बुरी आदत थी, जिसके कारण पत्‍नी से नहीं बनती थी और अक्‍सर ही मारपीट होती रहती थी, उस दिन भी मैं देशी ठर्रे के नशे में धुत्‍त होकर घर पहुंचा था, पैसा न होने के कारण घर में चूल्‍हा नहीं जला था, जिसे लेकर मेरी पत्‍नी पहले से ही खिन्‍न थी, ऊपर से मेरी गाली गलौच,,,, उसने आव देखा न ताव डंडा लेकर मेरे ऊपर पिल पड़ी, साहब, मैं कुत्‍ते की तरह भागा और कब तक भागा मुझे खुद होश नहीं, लेकिन हां होश तब आया जब मेरे शरीर पर इस कमीने सुयश के पत्‍थर पड़े, मुझे याद है, मैंने इसे खूब गाली दी, और फिर काम न बनने की बद्दुआ भी,,,,,, और साहब यही मेरी खता हो गई, न जाने क्‍यों थोड़ी देर बाद ही इसने आकर मेरे पैर पकड़ के माफी मांगी और फिर मुझे बाबा बना दिया,,,,, साहब कुछ दिन मुझे कुछ न समझ आया लेकिन बाद में मन में लालच आ गया,,,,, और इस प्रकार से धंधा चल निकला, हुजूर मेरी कोई खता नहीं, मेरी जान बख्‍शी जाए,,,,,

इसके बाद जब खदेरू से बैंक डकैती के बारे में पूछा गया तो उसने अनभिज्ञता जाहिर की, उसकी फिर से खातिर की गई, लेकिन खदेरू वास्‍तव में उससे अनजान था, लेकिन जब उनसे कुछ फोटो दिखा कर पहचनवाये गये तो उसने झट से अपने एक भक्‍त को पहचान लिया, इस तरह से मल बाबा की शिनाख्‍त पर शीघ्र ही उन भक्‍तों को पहचान कर उन्‍हें मल बाबा के साथ बंद कर दिया गया, जोकि बैंक डकैती में शामिल थे,,,

अदालत में हुई कार्यवाही में मल बाबा को सिर्फ तीन साल की सजा मिली, उन पर लूट के धन को रखने और छुपाने का आरोप लगा था,,,,,,, मल बाबा की पत्‍नी और सुयश को जनता के साथ धोखाधड़ी के लिए छः माह की साधारण कैद हुई, जो कि वह अदालत की कार्यवाही के दौरान ही पूरी हो चुकी थी,,,,,,

मित्रों, सुनने में आया है कि मल बाबा कुछ माह पूर्व जेल से छूट चुके हैं, अपने अगल बगल ध्‍यान से देखिएगा, कहीं वह किसी और नाम से आजकल आपको तो नहीं ठग रहे,,,,,,,,


 मनोज कुमार श्रीवास्‍तव 

Thursday, 15 March 2012

भीख की भेंट

उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री ने राज्य का कार्य भार सँभालते ही युवाओं को तोहफे में भीख दी !!!........ बेरोजगारी भत्ते के रूप में...... उनसे इसकी अपेक्षा थी, क्योंकि उन्होंने ऐसा ही वादा किया था........और उन्होंने अपना वादा पूरा भी किया........ जय हो दानवीर कर्ण की....... .परन्तु मेरे मन में एक प्रश्न उठता है, कि क्या यही उचित है ? ........ एक अन्य युवा राजकुमार ने प्रश्न किया था की.... "कब तक जाकर अन्य प्रदेशों में भीख मांगोगे ?" ......तो क्या उसके प्रत्युत्तर में, नए मुख्यमंत्री द्वारा राज्य में ही भीख उपलब्ध करवाने का यह एक जतन किया गया है ??.......नहीं ऐसा नहीं है.......यह भीख तो इस पार्टी की सरकार अपने पिछले कार्यकाल में भी दे ही रही थी.....लिहाजा यह तोहमत वाजिब नहीं...... 

दोस्तों, अब यह उन बेरोजगारों के लिए तो उचित ही है जो की काम ना मिलने से हताश थे...........अब शायद यह राशि उन्हें भूखों मरने से तो बचा ही लेगी........  परन्तु जरा सोचिये, क्या यह अधिक उचित नहीं होता की सरकार बेरोजगारी भत्ता देने की बजाय उन्हें कोई ऐसा काम देती जिससे उन्हें आंशिक रूप से ही सही, परन्तु रोजगार मिल सकता......... कोई ऐसी योजना लेकर आती जो उन्हें स्वाभिमान के साथ जीवन यापन करने के अवसर प्रदान करती......कुछ ऐसा सोचती, जिससे सभी वाह वाह कर उठते की एक युवा मुख्यमंत्री एक नई सोच लेकर आया है......  क्या ऐसा करना बिलकुल भी संभव नहीं था अथवा इस दिशा में सोचा ही नहीं गया........मेरे समझ से तो सोचा ही नहीं गया........  पर क्यों ??

बिहार के मुख्यमंत्री ने यहाँ की लड़कियों के लिए सीधे धन मुहैया नहीं करवाया, उन्होंने उन्हें साइकिल दी......उन्हें पोशाक प्रदान की........ .उन्होंने इस बात को समझा की शायद धन देकर वह उनकी रोजमर्रा की उस समस्या का समाधान नहीं कर सकते थे......जो उन्हें स्कूल जाने में होती थी....... साइकिल उनकी इस समस्या का सकारात्मक हल निकालती थी.......जबकि दूसरी तरफ पोशाक उन्हें सभी के समकक्ष होने का एहसास दिलाती थी....और सामाजिक समरसता का मार्ग तलाशती थी....  

मुझे एक जापानी कहावत याद आती है की "किसी को रोज एक मछली देने से  अच्छा है की उसे मछली पकड़ना सिखा दो".........मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं की उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री का यह कदम लोक लुभावन तो हो सकता है........तार्किक नहीं....... कहने का सरल तात्पर्य यह की हर माह बेरोजगारी भत्ते को देने से कहीं अच्छा होता अगर सरकार उन्हें पैसे कमाने के अवसर प्रदान करती.....और मुख्यमंत्री ऐसा करने में पर्याप्त रूप से सक्षम भी थे..... परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया......    

परन्तु, चलिए भाई जाने दीजिये .... ...जिस देश में गरीबी की रेखा ३२ रूपये प्रतिदिन पर आकर ठहरती हो......उसी देश के एक राज्य में पढ़े लिखे बेरोजगारों के लिए ३३.३३ रूपये प्रतिदिन की दर से देकर वहां के मुख्यमंत्री ने यह तो  सुनिश्चित कर ही लिया की वहां के पढ़े लिखे गरीबी रेखा से नीचे ना रह जाएँ .....नहीं तो हो सकता था की वह गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालों के समकक्ष अन्य रियायतों की मांग करता......इसी तरह से उन्होंने एक तरह से यह भी इंगित कर दिया की मियां पढ़ लिख तो गए, शादी मत करना......नहीं तो गरीबी रेखा के नीचे चले जाओगे..... और करने की सोचना भी, तो ऐसी लड़की/ लड़के से करना जिसे भी बेरोजगारी भत्ता मिलता हो........ ताकि रोटी चलती रहे.......लेकिन फिर प्रश्न उठता है कि बच्चा हुआ तो ??? 


मनोज   

Wednesday, 7 March 2012

होली आई रे...



शीघ्र ले आओ ..
टेसू रंग गुलाल...
होली आई रे...

सबको ढूंढो.
रंगों में भीगे आज... 
भाभी ताई रे... 

रह शालीन..
ना तू कहना लौट..
लाठी खाई रे..

रंग प्रेम का....
मिटा दे सारे द्वेष..  
मेरे भाई रे...... 

हम बेहोश..
हुस्न ने जबसे ली..
अंगड़ाई रे... 

(नो)