सर्दियों ने अपनी
आहट दे अवश्य दी थी, परन्तु वह अपने चरम पर ना थी, ठंडी हवा के झोंके सिर्फ सुबह
शाम ही दस्तक देते थे, जबकि दिन अपेक्षाकृत बेहद गर्म थे, कश्मीर धरती का स्वर्ग
है, बचपन से ही सुनते सुनते मन कब से अधीर था कि वहां चला जाए और उसे देखा समझा
जाए, कार्यक्रम भी कई बार बने बिगडे, अभी अधिक दिन नहीं हुए थे, नियंत्रण रेखा पर भयानक
गोलाबारी हो रही थी और अभी वह शोर पूर्णतः थमा भी नहीं था और उस पर श्रीनगर में आई
भीषण बाढ, परन्तु इस बार न तो सीमा पर हो रही गोलाबारी ही और न श्रीनगर में आया
सैलाब ही हमें वहां जाने से रोकने में कामयाब हो पाया, लोग कहते हैं न कि जो लिखा
है वही होता है (यह बात और है कि मैं कहता हूं कि जो हो जाता है, लोग कहते हैं कि
वही लिखा था), लिहाजा इस बार ऐसा ही कुछ हुआ, और इस प्रकार से हम दो परिवार एक
नवंबर को श्रीनगर के लिए रवाना हो गए, वायुयान का समय तथा मार्ग एक बार परिवर्तित
होने के पश्चात हम लोग दोपहर लगभग 12 बजे श्रीनगर पहुंच ही गए,
श्रीनगर एअरपोर्ट को
देखकर मुझे अत्यंत सुखद अनुभूति न हुई, मेरी कल्पना थी कि चूंकि यह देश का
सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है और फिर सरकार भी समय-समय पर हजारो करोड
रूपयों की मदद कश्मीर सरकार को देती जा
रही है अतः वहां का आधारभूत ढांचा तो अत्यंत सुदृढ होगा ही, परन्तु ऐसा यहां कुछ
नहीं था, यह एक साधारण एअरपोर्ट था, हां सुरक्षा के इंतजामात सामान्य से अधिक अवश्य
थे, टैक्सी लेकर होटल की ओर बढा तो लगा कि शायद गलत समय पर आ गया हूं, झेलम में
आई बाढ ने हालात को काफी हद तक बिगाड के रख दिया था, रास्ते में बाजार बन्द थे, खुलते
भी कैसे सैलाब के कारण जलस्तर 10 से 15 फुट तक ऊपर आ गया था, लोगों के विक्रय
योग्य समस्त वस्तुओं ने जलसमाधि ले ली थी, अधिकतर मकान भी टूटे और बुरी तरह से
क्षतिग्रस्त थे, जगह जगह लोग उसे दुरूस्त करते नजर आए, यह बात तब की है, जबकि
सैलाब को आए लगभग तीन महीनें बीत चुके थे, अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि
तबाही के दिन क्या हालात रहे होंगे, बाढ ने एक भरे पूरे शहर को तहस-नहस सा करके
रख दिया है, अच्छी बात यह जरूर थी कि लोग अब उबर रहे हैं और जीवन पुनः पटरी पर
लौट रहा है, हमारे ड्राइवर तारिक ने बताया कि शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे
नुकसान न पहुंचा हो, काफी लोगों के जीवन को भी यह सैलाब लील गया था, रही बात सरकारी
मदद की तो वह थी तो जरूर पर न के बराबर और नाकाफी, फलतः लोग स्वयं से ही इस
कठिनाई से बाहर निकल रहे हैं,
बहरहाल हम होटल
पहुंचे और बिना समय नष्ट किए शहर के प्रमुख स्थलों को देखने के लिए निकल पडे, हम
सबसे पहले शंकराचार्य मठ गए, ऊंचे स्थान पर स्थित यह एक पुरातन शिव मंदिर है जहां
लगभग 250 सीढियां चढकर जाना पडता है, इस मंदिर में एक बडा शिवलिंग है, दर्शन करने
का स्थान बहुत ही छोटा है और भीड कम होने के बावजूद मंदिर के भीतर आवागमन में असुविधा
प्रतीत हो रही थी, यह एक पुरातात्विक महत्व का स्थल है और संरक्षित है, यहां
से कश्मीर शहर की सुन्दरता को जी भर के निहारा जा सकता है,
यहां से निकलकर हम
चश्मेशाही नामक स्थल पर गए, मुख्यतः यह एक बागीचा है जिसके बीच में एक चश्मा
(जल स्रोत) है, उद्यान में भांति भांति के पुष्प एवं लताएं अपनी मनोहर छटा बिखेर
रही थी, मध्य के सोते के बारे में हमें बताया गया कि मुगलकाल में पीने के लिए जल
आगरा यहीं से भेजा जाता था, यहां का बागीचा बेहद सुन्दर है,
इसके बाद हम मुगल
गार्डन पहुंचे, जैसा कि नाम से स्वतः ही स्पष्ट है कि यह मुगलकालीन एक बडा बाग
है, कमोबेश चश्मेशाही की ही भांति परन्तु आकार में उससे कहीं बडा, रंग बिरंगे
पुष्पों से यह सज्जित अवश्य था, परन्तु कुछ पुष्पों के लिए यह मौसम उनके पल्लवित-
पुष्पित होने के अनुकुल नहीं था, यहां बच्चे खूब घूमे, साथ ही कश्मीरी ड्रेस पहन
के फोटो भी खिंचवाई, समय तेजी से बीत रहा था, सूर्यदेवता अस्ताचल की ओर जा रहे
थे, हमने यहां से डल झील में जाते सूर्यास्त को निहारने का निश्चय किया, सूर्यास्त
के समय डल झील में सूर्य का प्रतिबिम्ब मनोरम दृश्य उत्पन्न करता है, और हम
काफी समय इस दृश्य का आनन्द लेते रहे,
होटल लौटते समय हम लोग
हजरतबल दरगाह गए, यहां मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक मुहम्मद साहेब की दाढी का एक बाल
संरक्षित करके रखा गया है, यहां के मौलवी साहेब ने मुझे बताया कि यह बाल औरंगजेब सत्रहवीं
सदी में भारत लेकर आया था, और तभी से यह यहां पर संरक्षित है, इसे वर्ष में दस
विभिन्न अवसरों पर जनता के दर्शनार्थ बाहर निकाला जाता है, बताया गया कि यह बाल
एक पारदर्शी शीशे के जार में रखा गया है और मौलवी साहेब के अनुसार यह स्वयं की
शक्ति से सीधा खडा है, यह बाल नीचे से घुंघराला बताया जाता है, हजरतबल दरगाह एक
खूबसूरत एवं दर्शनीय स्थल है, इसका आहाता काफी बडा है और मस्जिद बेहद खूबसूरत,
चन्द्रमा रात्रि में जब इसके निकट आता है, तब तो यह देखते ही बनता है,
आज एक नवंबर था और
हमारे प्रिय मित्र श्रीमान विनय जी का जन्म दिन भी आज ही था, हमारा कार्यक्रम तो
वायुयान के अन्दर ही केक काटने का था, परन्तु फिर यह सोचकर कि कहीं कोई आपत्ति न
कर बैठे, हमने कार्यक्रम को होटल में मनाने का निश्चय किया था, शाम के समय यहां
के मशहूर मुगल रेस्टारेंट में केक काटा गया और दावत की गई, भोजन में खासतौर पर
कश्मीरी पकवान का आर्डर किया गया, जिसमें खास तौर से दही में पकाया जाने वाला
पकवान गुस्ताबा और कश्मीरी चिकेन करी शामिल थे, विनय जी के जन्मोत्सव ने आज के
दिन श्रीनगर आना सार्थक कर दिया था,
शाम को हमें होटल
में साहिल नामक एक युवक मिला, मैंने उससे यहां के बारे में जानकारी हासिल करने कि
नियत से पूछा कि क्या बाढ में उसकी भी क्षति हुई थी, तो उसने कहा – साहब सभी का
नुकसान हुआ है, मैं कहां से अलग हूं, मैंने प्रतिप्रश्न किया कि सरकार से कितनी
मदद मिली तो साहिल ने बताया कि उसका घर काफी क्षतिग्रस्त हो गया और सामान को भी
काफी नुकसान पहुंचा है, परन्तु मदद में उसे महज दो हजार रूपये मिले हैं, मैंने कहा
कि सरकार ने तो छः माह तक मुफ्त राशन की भी बात की थी, तो उसने बताया कि हां 35
किलो राशन प्रतिमाह उसे मिल रहा है, मैंने सुकून की सांस ली कि चलो गनीमत है, ना
से हां भली,
2 नवंबर, दूसरा दिन,
हमें गुलमर्ग के लिए जाना था, परन्तु गाडी के निकलने के सारे रास्ते बंद थे, कारण
यह कि शहर के कुछ भागों में कर्फ्यू लगा था, जिसके कारण जगह-जगह नाकेबंदी की गई
है, कर्फ्यू के दो कारण थे, एक यह कि 4 तारीख को मोहर्रम था, और शिया लोगों के
जुलूस पर पथराव का अंदेशा था, दूसरा यह कि एक स्थानीय नेता ने जुलूस निकाला था और
वह निर्धारित अनुमति दिए गए स्थल से उसे आगे ले जाना चाहता था, लिहाजा उसकी पुलिस
ने उसकी पिटाई कर दी थी, तो यह कर्फ्यू, कहना आवश्यक है कि श्रीनगर एक सुन्नी
बहुल क्षेत्र है और शिया सुन्नी विवाद भी यहां की एक हकीकत है, जो कि यदा कदा शहर
में तनाव का कारण बनता है, बहरहाल कई चौराहों से वापस लौटने के बाद एक संकरी गली
के रास्ते हम लोग शहर से बाहर निकलने में कामयाब हुए और श्रीनगर से लगभग 40 किमी
दूर गुलमर्ग पहुंचे,
गुलमर्ग एक निहायत
ही खूबसूरत कस्बा है, यहां कुदरत ने अपनी छटा जम के बिखेरी है, यहां का मुख्य
आकर्षण गंडोला है, गंडोला एक रोप वे है, जो कि ऊपर पर्वत शिखर तक ले जाता है,
उपयुक्त समय में यदि यहां आया जाए तो काफी नीचे तक न केवल बर्फ को देखा जा सकता
है, वरन बर्फ पर खेले जाने वाले खेलों यथा स्कीइंग, स्नो बाइकिंग, स्लेजिंग इत्यादि
का आनन्द भी लिया जा सकता है, पूर्व में यहां पर विन्टर गेम्स भी आयोजित होते
रहे हैं, परन्तु इस समय पर वहां सिर्फ पर्वत चोटियों पर ही बर्फ थी, अन्यत्र
नहीं, यहां एक मंदिर भी है, जहां कुछ फिल्मों की शूटिंग भी हुई है, साथ ही कुछ और
प्वाइंट्स भी यहां बनाए गए हैं, परन्तु वे कुछ खास नहीं है, लौटते हुए भी रास्ते
मे रुककर हमने कुछ स्थलों पर प्रकृति के मनोरम रूप को अपने हृदय में अंकित किया,
साथ ही मार्ग में स्थित दुकानों पर शोपिंग भी की, दुकानदारों ने हमें यहां का
प्रमुख पेय कहवा पिलाया, बावजूद इसके कि हमने उनसे कुछ नहीं खरीदा, लौटते हुए भी
कर्फ्यू के कारण श्रीनगर शहर में थोडी असुवधिा तो हुई, परन्तु वह अधिक न थी,
खाना खाने के लिए एक
जगह रूके तो वहां पर मुझे शौकत नामक एक युवक दिखा, दुआ सलाम के बाद मैंने उससे भी
हालात के बारे में जानने की कोशिश की, उसने बताया कि उसका पूरा मकान ढह गया है, और
सरकारी इमदाद के नाम पर उसे महज 75000 रूपये मिले हैं, इस छोटी राशि की मदद से वह
अत्यंत ही क्षुब्ध था, उसने हमसे पूछा कि क्या इतने में मकान बन सकता है, परन्तु
हां उसने इस बात पर सहमति अवश्य जताई कि देर से ही सही परन्तु सेना ने मदद की है
लेकिन वह यह जोडना नहीं भूला कि सेना से लोग दहशतजदा है, सेना को उसकी सही जगह अर्थात
सीमा पर होना चाहिए न कि शहरों में, शहर की कानून व्यवस्था स्थानीय पुलिस के
हवाले कर देनी चाहिए, शौकत ने इस बात को लेकर संतोष जाहिर किया कि उसे 35 किलो
राशन मिल रहा है, जिसने उसकी थोडी मदद अवश्य की है, हांलांकि उसका कहना था कि 35
किलो राशन प्रति कार्ड की बजाय परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर दिया
जाना चाहिए,
अगले दिन हमें
सोनमर्ग जाना था, सुबह एक बार फिर हम लोग जल्दी उठे, सौभाग्य से आज हमें उस
इलाके से होकर नहीं जाना था, जहां पर कर्फ्यू लगा हुआ था, लिहाजा आज कोई तकलीफ नहीं
हुई, सोनमर्ग में हमारी टैक्सी ने स्टैंड तक छोडा, उसके आगे भ्रमण के लिए हमें
घोडों से जाना था, इस स्टैंड से ही देखने पर सुदूर पर्वत की चोटियों पर बिखरी
बर्फ उसे मनमोहक बना रही थी, तो आसमान से उस पर गिर रही सूर्य की सुनहली किरणे उसे
एक नई आभा देने को तत्पर दिख रही थी, हम लोगों ने घोडे वालों से बात की और आगे बढ
चले, रास्ता कुछ दूर तक तो ठीक था, उसके बाद पहाडो पर चढाई का रास्ता संकरा हो
चला था, घोडो की एक आदत होती है कि वे खाई की तरफ के पतले रास्ते पर चलना अधिक
पसंद करते हैं, लिहाजा रह रह कर लोगों की चीखें निकल रही थी, रास्ते में घोडे का
मालिक हमें उन स्थलो के बारे में जानकारी दे रहा था, जहां विभिन्न फिल्मों की
शूटिंग हुई थी, रोमांच से भरा यह रास्ता लगभग डेढ घंटे की चढाई के पश्चात जब
समाप्त हुआ तो हमें कोई खास खुशी नहीं हुई, दरअसल हमें बताया गया था कि हमें ग्लेशियर
के पास ले जाया जा रहा है, साथ में दो स्लेजिंग कराने वाले भी चल रहे थे, हम
पहुंचे भी ग्लेशियर पर, परन्तु यह काफी गंदा और धूल से नहाया हुआ था, जिस पर
खेलना तो दूर, छायाचित्र लेने का भी मन नहीं हो रहा था, हां थोडी ही दूर पर खडे
पहाड पर बर्फ की धवल चादर अवश्य लिपटी हुई थी, उस पर वह बर्फ थी, जो अभी महज आठ
दस दिन पहले गिरी थी और बिल्कुल ताजातरीन थी, जिस तक अभी तक कोई नहीं पहुंचा था, परन्तु
उस तक जाने का रास्ता न केवल कठिन था वरन
छोटे-बडे पत्थरों से आच्छादित भी था, यहां से लौट जाने पर कुछ भी हासिल नहीं
होता, लिहाजा हम लोगों ने पहाड पर चढकर उस ताजा बर्फ तक जाने का निर्णय लिया,
निर्णय सरल था परन्तु
उस पर अमल कठिन, थोडी दूर चलने पर ही लोगों के पसीने छूटने लगे, याद रखें कि साथ
में चार बच्चे भी थे, फिर पहाड की चोटी जितनी निकट लगती थी उतनी थी नहीं, उस पर
उसके ऊपर पडी पत्थरों के छोटे बडे टुकडे, जिन्में से सभी स्थिर न थे, जरा सा भी
असंतुलन होने पर नीचे टपक आने का खतरा मौजूद था, परन्तु बच्चों ने खासतौर से
अधिक हिम्मत का काम किया और हम लोग अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब रहे, यह
लगभग ढाई से तीन किलोमीटर की ट्रैकिंग थी, जोकि पहाडी पर आसान न थी, यहां खूबसूरती
से सजे अनछुए बर्फ थे, वहां से निकलने वाले झरने थे, नीचे गहरी घाटी थी, यहां से
देखने पर लगता था, मानो किसी चित्रकार ने कोई खूबसूरत चित्र बनाया हो, हमने वहां
खूब मस्ती की, खूब खेले और तस्वीरे खिंचवाई, इधर घोडे वाला हलकान हुआ जा रहा था,
क्योंकि अंधेरा छाने को था और रास्ता पूरी तरह से सूनसान, इस बात का आभास होते
ही हमने भी तत्परता से नीचे उतरने का निर्णय लिया, पहाडी से उतरते हुए ही हमें
जाकर आभास हुआ कि हम कितनी दूर तक ऊपर आ चुके थे, उतरते हुए और अधिक सावधानी की
आवश्यक्ता थी, परन्तु थोडी चोटों के
पश्चात हम लोग सहजता से नीचे आ गए और घोडो पर बैठ वापस टैक्सी स्टैंड की ओर चल
पडे, ग्लेशियर के पास खाने पीने को कुछ भी नहीं था, एक लडकी कहवा अवश्य बेच रही
थी, पर इसके अतिरिक्त कुछ नहीं, वापस लौटते हुए हम सबके शरीर दुख रहे थे, हम सोच
रहे थे कि हमने दुस्साहस तो किया, परन्तु क्या यह उचित था, लेकिन चूंकि सब सही
रहा इसलिए कष्ट से अधिक दिन का रोमांच सुख प्रदान कर रहा था,
इससे पहले कि हम
होटल वापस लौटते हमारे ड्राइवर तारिक ने हमें बताया कि कल मोहर्रम है और अधिक
संभावना है कि दिन में लगभग पूरे शहर में कर्फ्यू रहेगा, इसलिए पहलगाम के लिए हमें
सुबह जितनी जल्दी हो सके निकल जाना चाहिए, हमें क्या था हमने कहा कि भाई हम तो
घूमने आए हैं, सुबह साढे छः बजे ही चले चलते हैं, लेकिन अगले दिन तारिक लगभग सात
बजे आया और फिर हम वहां से पहलगाम के लिए निकल पडे, रास्तें में नाश्ता करके आगे
बढे तो हमें केसर के खेत दिखाई दिए, केसर एक विशेष फूल से निकाला जाता है और यह
दुनिया का सबसे मंहगा मसाला माना जाता है, एक ग्राम केसर का मूल्य लगभग 250 रूपये
तक होता है, हम किसान केसर नामक दुकान पर
रूके और केसर, अखरोट तथा अन्य मसाले खरीदे, तारिक ने हमें बताया कि केसर
में मिलावट आम है, मक्के के रेशों को केसर के जल में भिगो कर सुगंधित किया जाता
है, फिर एक खास रसायन मिलाकर नकली केसर तैयार किया जाता है और बाजार में सस्ते
दामों पर भी बेच दिया जाता है,
अभी थोडा ही आगे बढे
थे कि तारिक ने एक दुखद सूचना दी, तारिक ने बताया कि बडगाम नामक जगह पर सेना के
जवानों ने दो निर्दोष लोगों की हत्या कर दी है, हमें यकीन नहीं हुआ कि ऐसा कुछ हो
सकता है, हमें लगा कि वे आतंकवादी रहे होंगे जिन्हें यह सामान्य नागरिक बता रहा
है, परन्तु फिर उसने आगे बताया कि वे लोग, जिनमें से एक की उम्र महज सत्रह साल
थी, कार से कहीं जा रहे थे, और हेडफोन पहना हुआ था, शायद गाना सुन रहे होंगे, सेना
के जवानों के रोकने पर भी वे नहीं रूके तो गोलियां चला दी गई, जिसमें दो लोगों की
मौत हो गई, मुझे अजीब सा लगा, सेना ऐसे तो नहीं कर सकती है, फिर मैंने सोचा कि
शायद यह कुछ मनगढंत बता रहा हो, थोडा आगे बढे तो मुझे एक अखबार वाला दिखा, मैंने टैक्सी
रोककर अखबार खरीदा, जिसमें पहली ही खबर थी कि सेना ने दो निर्दोष नागरिकों की हत्या
कर दी है, मेरे लिए यह सूचना विस्मयजनक थी,
कुछ और शापिंग करते
हुए हम लोग लगभग ग्यारह बजे पहलगाम पहुंचे, पहलगाम में दो स्टैंड हैं एक घोडों
का स्टैंड तथा एक टैक्सी स्टैंड, दोनों अगल बगल ही हैं, बस बीच में एक सडक है, पहले
हम घोडो के स्टैंड पर पहुंचे, एक बार फिर से घोडों पर बैठने की बारी थी, इस बार
हमें कश्मीर वैली और बैसरान नामक स्थलों को देखने के लिए जाना था, कश्मीर वैली
तो एक स्थल विशेष से पहलगाम कस्बे को निहारने भर का नाम है, परन्तु बैसरान एक
खास जगह है, एक बडे से मैदान के चारो तरफ वृक्ष और पर्वत इस अनुक्रम में अवस्थित
हैं कि ऐसा लगता है कि मानो ईश्वर ने स्वयं आकर यहां चित्रकारी की हो, अद्भुत
दृश्य था, इस जगह को कश्मीर का स्विटजरलैंड भी कहा जाता है, यहां अनेक प्रकार के
खेल है, एक बडे बैलून में बैठाकर घुमाया भी जाता है, एक दो रेस्टारेंट हैं और साथ
में प्रकृति का भरपूर सौन्दर्य, जिसे घंटों बैठ कर निहारा जा सकता है, परन्तु
समय की अपनी सीमाएं है, लिहाजा थोडा समय बिताने के पश्चात हम यहां से लौट लिए,
बैसरान तक पहुंचने का रास्ता अधिक दुष्कर है, रास्ते में कई जगह ऐसा लगता है
मानों घोडे न अब गिराया कि तब, परन्तु ये घोडे प्रवीण होते हैं, पहलगाम ही वह स्थल
है जहां से अमरनाथ के लिए घोडों से लगभग दो दिनों की यात्रा आरम्भ की जाती है, और
उस समय यात्रा में प्रयोग होने वाले घोडे यही होते हैं, कहने की आवश्यक्ता नहीं
कि वह यात्रा कही अधिक दुर्गम होती है, अतः यहां अधिक चिन्ता की आवश्यक्ता नहीं
होती, परन्तु भय तो भय है, वह तर्कों को कहां सुनता है,
पहलगाम के टैक्सी
स्टैंड की व्यवस्था मुझे काफी अच्छा लगी, यहां पर सभी स्थलों (प्वाइंट्स) के
नाम, गाडी का प्रकार और उसका रेट लिखा हुआ है, जहां एक ओर घोडे वालों से खूब
मोलभाव हो सकता है, वहीं टैक्सी स्टैंड पर इसकी कोई संभावना नहीं, यहां से टैक्सी
लेकर हम लोग बेताब वैली नामक जगह पर घूमने गए, रास्ता छोटा है, परन्तु है बेहद
ही खूबसूरत, पहाड और नदी के संगम के अतिरिक्त यह स्थल चिनार के खूबसूरत वृक्षों
से भी सज्जित होता है, रास्ते में कई जगह हमें लगा कि यही उतरकर नयनाभिराम करना
चाहिए, परन्तु ड्राइवर ने कहा कि वहीं चलिए, बेताब वैली पहुंचकर लगा कि मानों हम
किसी और लोक में आ गए हो, ऐसे खूबसूरत दृश्य हमने अपने जीवन में पहले कभी नही
देखे थे, देखे भी होंगे तो सिर्फ फिल्मों में, बेताब पिक्चर के कुछ दृश्यों की
शूटिंग होने के कारण इस स्थल का नाम बेताब वैली पड गया है, दृश्य ऐसे कि वर्णन
को शब्द नहीं, पर्वत, जंगल, नदी, मकान सभी का बेहतरीन समन्वय, साथ में चिनार के
पेडो के सुनहले रंग, सौन्दर्य के क्या कहने, यहां से जाने का मन तो नहीं हो रहा
था, परन्तु दूसरा कोई चुनाव नहीं था, यहां से आगे बढे तो एक क्लब था, वहां से
निकले तो एक पार्क था, भीतर गए तो यह भी अद्भुत, तरह तरह के झूलों को अपने आंगन
में समाए प्रकृति की यह नैसर्गिक गोद, जिसमें खेलकर खासतौर से बच्चे तो अत्यधिक
प्रसन्न थे, पहलगाम में हमारा स्थानीय टैक्सी ट्राइवर नौशाद था, उसने बताया कि
उसका नम्बर तीन दिनों के बाद आया है और हमारी इस यात्रा से उसे कुल सात सौ रूपये
मिलेंगे, जिसमें से सौ रूपये टैक्सी स्टैंड पर देने पडेगे, बेताब वैली और आर ओ
वैली जाने का कुल किराया 1450 रूपये था, हमने उससे कहा कि वह हमें आर ओ वैली भी ले
चले, इस पर उसने जो कहा, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है, उसने कहा कि साहब मैं
तो ले चलूंगा, मुझे छः सात सौ रूपये और भी मिल जाएंगे, परन्तु मेरा सुझाव है कि
आप न जाएं, क्योंकि जहां मैं आपको छोडूंगा वहां से आपको पैदल या घोडे से ऊपर जाना
पडेगा, चूंकि हल्की बारिश हो गर्इ है, इसलिए रास्ता फिसलन भरा हो गया है, अतः
वहां जाना उपयोगी न होगा, हमने उसके सुझाव को मान लिया और आर ओ वैली नहीं गए, परन्तु
जरा सोचिए जिसका नम्बर तीन दिन बाद आया हो और शायद तीन चार दिन बाद ही पुनः आए,
उसने पर्यटक के बारे में सोचा, स्वयं के आर्थिक लाभ के बारे में नहीं, वह निश्चित
रूप से साधुवाद का पात्र है, अब शाम हो रही थी, लौटना भी था, तो लौटे भी, परन्तु
मार्ग में एक बुरी खबर प्रतीक्षा कर रही थी,
लौटते समय तारिक ने
बताया कि दो निर्दोष लोगों की हत्या के विरोध में कल हडताल की घोषणा की गई है,
फलतः कल सारे बाजार बंद रहेंगे, इस खबर से हमें बडा दुख हुआ क्योंकि अगले ही दिन
हमने बाजार तथा श्रीनगर शहर के कुछ अन्य स्थलों को घूमने का कार्यक्रम रखा हुआ
था, तारिक ने कहा कि यदि बाजार खुले हुए तो वह हमें फोन करेगा, हम खा पी के होटल
पहुंचे, चूंकि दिन भर के थके हुए थे, लिहाजा सबको शीघ्र ही नींद आ गई, अगले दिन हम
लोगों को हाउसबोट पर जाना था, अचानक से रात के ग्यारह बजे मुझे याद आया कि कैमरे
की बैटरी तो चार्ज् कर ली जाए, परन्तु ढूंढने पर पता चला कि कैमरे का कवर तो है,
परन्तु कैमरा कहीं नहीं है, काफी ढूंढने पर भी कैमरे का कुछ पता नहीं चला, कैमरे
से अधिक उसमें खींची गई तस्वीरों की चिंता थी जोकि अमूल्य थी, तय हुआ कि सुबह
तारिक से पूछा जाएगा शायद उसकी गाडी में रह गया हो, करवटें बदलते किसी तरह से सुबह
हुई, तारिक को फोन किया तो उसने देखकर बताया कि हां कैमरा उसकी गाडी में ही है,
जानकर दिल को सुकून मिला, यहां तारिक के लिए यह कह देना अत्यंत ही आसान था कि
कैमरा वहां नहीं है, परन्तु उसकी इमानदारी अत्यंत ही प्रशंसनीय रही, और एक दिन
के बाद उसने वह कैमरा हमें लौटा दिया,
अगले दिन हमें शेख
पैलेस नामक हाउसबोट में ठहरना था, श्रीनगर के हाउसबोट एक स्थान पर स्थिर रहते
हैं, जबकि केरल के बैकवाटर में हाउसबोट अपेक्षाकृत छोटे होते है और वे तैरते हैं,
हाउसबोट में जाने के लिए शिकारा (नाव) की आवश्यक्ता पडती है क्योंकि हाउसबोट
जमीन से जुडे नहीं होते हैं, हम भी इसी प्रकार से वहां पहुंचे, हाउसबोट के भीतर घुसते ही
उसकी खूबसूरती ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया, पूरी तरह लकडी से बने और खूबसूरत
नक्काशी से सजे हाउसबोट के भीतर वह सबकुछ था, जोकि किसी भी आदर्श घर में होना
चाहिए, बेहतरीन ढंग से सजे ड्राइंग रूम, डाइनिंग रूम, खूबसूरत स्नानागार और किचेन
और उस पर हाउसबोट के बालकनी से डल झील का नजारा, सचमुच अद्भुत, अविस्मरणीय.
हाउसबोट में चाय पीने के पश्चात, बिना अधिक समय नष्ट किए हम लोग शिकारा से डल
झील की सैर के लिए निकल पडे,
डल झील एक बहुत बडी
झील है, लिहाजा पूरे डल झील की सैर तो नहीं ही की जा सकती थी, परन्तु फिर भी
शिकारा से हम कुछ स्थलों पर गए, जैसे कि वेजीटेबल मार्केट, जहां पानी के ऊपर
शब्जियां उगाई जाती है, मीना बाजार – जहां पर झील की सतह के ऊपर ही दुकानें बनाई
गई हैं, चार चिनार, जहां चिनार के चार वृक्ष खूबसूरती से जमें हुए है, एक स्पोर्ट्स
सेन्टर भी और तरह तरह के फव्वारे आदि आदि, परन्तु इसमें जो सबसे अच्छी बात
मुझे लगी वह यह कि शिकारे पर सैर करते हुए कई व्यापारी/दुकानदार अपनी नाव पर आपको
सामान बेचने आ जाते हैं, कोई चिप्स, कुरकुरे बेचने आ रहा है, तो कोई आर्टिफिशियल
ज्वेलरी, कोई तन्दूरी टिक्का बेच रहा है तो कोई केसर और अखरोट, बेहद ही दिलचस्प,
ऐसा तो हमने कभी सोचा भी न था, बहरहाल लगभग तीन घंटे की सैर के पश्चात हम लोग
वापस हाउसबोट पर लौट आए, शाम को हाउसबोट के मालिक श्री आजाद मोहम्मद चानू से
मुलाकात हुई, श्री आजाद एक पढे लिखे व्यक्ति हैं, वे दिल्ली में भी रहे चुके है,
उनसे कश्मीर के हालात पर विस्तार से चर्चा हुई,
बकौल आजाद, कश्मीर
में निर्दोष नागरिकों की हुई हत्या कोई पहली वारदात नहीं है, ऐसा यहां अक्सर ही
होता रहता है, सेना कुछ भी कर सकती है, उन्हें हत्या करने की आजादी है, उसकी कोई
जांच नहीं होती और न ही उसके विरूद्ध कोई शिकायत कर सकता है, आजाद के अनुसार तो
लगभग दो लाख कश्मीरी अब तक मारे जा चुके हैं, काफी लापता भी हैं,
हमने कहा कि बाढ में
तो सेना ने काफी मदद की है तो इस पर उन्होने बताया कि शुरूआत के चार दिन तो सेना
कहीं थी ही नहीं, तत्पश्चात जब वे आए तो उन्होंने बाहरी लोगों और पर्यटकों को बचाने
में अधिक रूचि ली और स्थानीय नागरिकों को बचाने का कोई उपक्रम नहीं किया, मैंने
कहा कि हेलीकाप्टर से सामान गिराते तो हम सबने टीवी पर देखा है, इस पर आजाद का
कहना था कि हां उन्होंने गिराए, परन्तु एक तो सामान की मात्रा कम थी, दूसरे अधिक
ऊंचाई से गिरने के कारण वे खराब हो जाते थे, उन्होंने पूछा कि आप ही बताइये कि
ऊंचाई से पानी की बोतल गिराने पर उसका क्या होगा, उन्होंने बताया कि यहां
हाउसबोट पर उन्होंने काफी दिनों के बाद सामान गिराना शुरू किया, वह भी डल झील में
अधिक गिरा, हाउसबोट्स पर कम, हमने पूछा कि आखिर उनकी निगाह में कश्मीर समस्या का
हल क्या है तो उनका कहना था कि सरहदें खोल देनी चाहिए, जब यहां के लोग पाक अधिकृत
कश्मीर में जाएंगे और वहां के हालात से रूबरू होगे तभी वे समझ सकेंगे कि यहां के
हालात वहां से कितने बेहतर हैं, हमने हालात पर और कुरेदा कि यहां तो आधारभूत ढांचे
की बेहद कमी है, यहां एक सिनेमाहाल तक नहीं है, एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल होने
के बावजूद शराब की महज दो दुकाने हैं, सडकें बेहतर नहीं, और न ही कोई बहुमंजिला
इमारत ही नजर आती है, रोजगार के लिए सिर्फ पर्यटन है, शहर में या इसके आस पास कोई
फैक्ट्री, कोई उद्योग धंधा नहीं है,
इस पर आजाद का कहना
था कि यदि हम आपको वही माहौल दे देंगे जोकि दिल्ली में है तो यहां कि नैसर्गिकता
का क्या होगा, कश्मीर अपने नैसर्गिक रूप में ही सही है, और वही उसकी मौलिकता है,
उन्होंने एक उदाहरण देकर समझाया, कहा कि पहले अमरनाथ यात्रा में यात्रियों की
संख्या सीमित थी, चंद साधू ही आते थे, अब इसका पर्याप्य व्यावसायीकरण हो गया
है, फलतः अमरनाथ में एक हैलीपैड बना दिया गया, अब इस हैलीपैड और अधिक संख्या में
लोगों के जाने के कारण शिवलिंग अधिक तेजी से पिघल जाता है, उन्होंने बताया कि वे स्वयं
पांच बार अमरनाथ की यात्रा कर चुके हैं और अन्तर स्वयं देख और महसूस कर रहे हैं,
मुझे उनके इन तर्को में पर्याप्त दम लगा, प्रकृति से अधिक खिलवाड निश्चित रूप से
घातक है और उसे ही क्षति पहुंचाता है, बहरहाल आजाद का हमने धन्यवाद किया उनसे
विदा ली और तत्पश्चात सोने के लिए चले गए,
अगले दिन हमें वापस
दिल्ली लौटना था, मन नहीं हो रहा था फिर भी, सुबह तैयार होकर लगभग ग्यारह बजे हम
लोग निशात बाग घूमने के लिए गए, मुगल गार्डेन की भांति यह भी अत्यंत ही खूबसूरत
बाग है, तरह तरह के पुष्प, चिनार के खूबसूरत वृक्ष और अनेक प्रकार के फौव्वारे
इसे और भी खूबसूरत बना रहे थे, हमने यहां लगभग एक घंटे का समय व्यतीत किया और
वापस एअरपोर्ट की ओर चल पडे, श्रीनगर एअरपोर्ट पर द्विस्तरीय सुरक्षा जांच है अतः
समय थोडा अधिक लग जाता है, परन्तु वहां के हालात देखते हुए यह उचित ही है,
लौटते हुए हम अपनी
खूबसूरत स्मृतियों में खोए हुए थे, परन्तु इतने पर विराम कहां जैसे चिनार के
वृक्ष के पत्ते अपने अन्त समय में भी सौन्दर्य बिखेरते रहते हैं, उसी प्रकार
यात्रा के अन्त में वायुयान से बाहर का दृश्य अत्यंत ही रोचक और रमणीय था,
पर्वत श्रंखलाएं, बादलों से मिलकर एक परीलोक सा निर्मित कर रही थी, और हम उसमें
खोए ही चले जा रहे थे,
अन्ततः दिल्ली लौट
कर मैंने अखबारों को टटोला, बडगाम की घटना चौथे पांचवे पन्ने के कोने में मिली,
वित्त मंत्री ने कहा था कि निष्पक्ष जांच की जाएगी, जिसे कश्मीर में किसी ने न
ही सुना, समझा या पढा, आने के दो दिन बाद पता चला कि सेना ने अपनी गलती मान ली है
और निर्दोष मृतकों के परिजनों को दस दस लाख रूपये मुआवजा देने की बात कही है, जिसे
उन्होंने ठुकरा दिया है,
कश्मीर से लौटने के
बाद मैं इस निष्कर्ष पर अवश्य पहुंचा कि वहां के लोग बुरे नहीं जैसा कि यहां
समझा जाता है बल्कि वे तो हमसे भी अधिक सरल है, छल-कपट ने वहां तक अभी पूर्णतः
प्रवेश नहीं किया है, हां यह अवश्य है कि कश्मीर के लोगों में सेना के प्रति अविश्वास है, और इस प्रकार की घटनाएं
उसे और बल प्रदान करती हैं, साथ ही सेना की बात, देश के सरकार की बात वहां के
अखबारों में प्रमुखता से नहीं छपती, कश्मीर के आम लोग शांतिप्रिय और ईश्वर से
डरने वाले हैं, जरूरत है कि उनके भीतर विश्वास पैदा करने की, अपनापन पैदा करने
की, उन्हें समझाने की और बताने की कि वे इसी देश के नागरिक हैं और उनका हक भी देश
के किसी अन्य भाग के नागरिकों के समान ही है, ताकि वे इस देश को अपना समझ सकें और
हम सभी मिलकर रह सकें,
(मनोज)