Friday, 6 September 2013

सबके जुदा हैं राम ....








 

सच्‍चाई मुंह पे मारो, तो सबको है दुश्‍वारी
सबका मिजाज अपना, सबके जुदा हैं राम



चारो तरफ हैं किस्‍से, बदकारी के बस यारों
बस सांप और संपोले, दिखते हैं सुबहो-शाम


हमको नहीं है गफलत, ईमान पे अब उनकी
वो लाख दें सफाई, या धर्म का लें नाम


 जिनको बनाना है सदर, उनका नहीं ये ख्‍वाब
जो ख्‍वाब बेचते पर, उन्‍हें ख्‍वाब है हराम


उनका शफाखाना खुला, परदेस में है यारों
तकदीर जिनके जिल्‍लत, उनका लगाया दाम 


हाकिम की जहानियत पे, मैं मर मिटा हूं यारों
कुछ कहते भी नहीं पर, किस्‍से कई तमाम


मजलिस लगा के बैठूं, ऐसा नहीं है शौक
हां होंगे वो निठल्‍ले,  हमको बड़े हैं काम


जिनके ख्‍याल मिलते हैं, उनको मेरा सलाम
 है बेइत्‍तेफाकी जिनको, उनको भी राम राम


मनोज