मित्रों, देश कौन चला रहा है, जरा ध्यान से सोचिएगा,
क्या कहा प्रधानमंत्री !!! थोड़ा और सोचिए, ओहो चेयरपरसन महोदया !!! नहीं, नहीं, और सोचिए न, नहीं समझ आ रहा, चलिए
कोई बात नहीं, मैं मदद करता हूं, अच्छा कुछ दिनों पहले किसने हमारे देश के प्रधानमंत्री
को लताड़ा था, उन्हें असरहीन बताया, सोचिए तो, अंकल सैम के देश की एक पत्रिका ने ही
न, फिर क्या था, अब ये साबित करना आवश्यक हो गया कि नहीं नहीं हम बेअसर नहीं, बल्कि
काफी असरदार हैं, तो उन्होंने कर दिखाया, अब आपको समझ आ गया कि देश को कौन चला रहा
है, नहीं !!! अच्छा,
क्या आपको पता है कि अंकल सैम के देश में चुनाव होने जा रहे हैं, और हमारे देश की
तरह वहां भी बेरोजगारी बहुतायत में है, अब वहां चुनाव हैं तो अंकल सैम को वहां के लोगों
को यह विश्वास दिलाना जरूरी हो जाता है, कि वे उनके लिए नौकरियों की व्यवस्था कर
सकते हैं, कहां से, नए अवसर पैदा करके, और इसीलिए पिछली बार जब खुदरा व्यापार में
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात वापस ले ली गई तो अंकल सैम को गुस्सा आ गया, और उसने
प्रधानमंत्री को असरहीन बता दिया (इसे कहते हैं उकसाना, समझे पोपटलाल), परन्तु हमारा
देश आज अंकल सैम की नाराजगी मोल नहीं ले सकता, कारण मत पूछो यार, समझा करो, जिगरा चाहिए
जिगरा, अब कोई अटल बिहारी जी तो हैं नहीं कि पोखरण में बम फोड़ दिया और कह दिया अंकल
सैम से कि जो करना हो कर लो, आज वो जिगरा कहां भाई, आज तो आपके पेट की आंत निकालकर
अंकल सैम को व्यापार करने के लिए दे दी जा रही है, अब समझ गए न कि देश कौन चला रहा
है,
भई प्रधानमंत्री ने तो आपको बता ही दिया कि पैसे पेड़
पर नहीं उगते, लेकिन ये नहीं बताया कि आखिर उगते कहां है, और जिस पैसे की उपज होती
है, फिर उस फसल का होता क्या है, आइये हम आपको बताते है, सच तो यह है कि पैसे लोगो
की ही जेबों से निकाले जाते हैं, टैक्स की शक्ल में, मसलन आयकर, बिक्रीकर, उत्पाद
कर इत्यादि इत्यादि और इसका उपयोग होना चाहिए एक तो गरीब तबके को सब्सिडी देने में
और दूसरा देश के आधारभूत ढांचे को सुदृढ करने में, परन्तु ऐसा हो नहीं रहा तो कारण
स्पष्ट है, एक तो यह कि सरकार को आम जनता से अधिक तेल कम्पनियों के घाटे की चिन्ता
है, (वैसे तेल कम्पनियों का घाटा भी एक रहस्य है, आप किसी भी तेल कम्पनी की बैलेंस
शीट देख लीजिएगा, कोई भी तेल कम्पनी आपको घाटे में नहीं मिलेगी, फिर भी उनके घाटे
की चिन्ता प्रधानमंत्री को सोने नहीं देती), तो दूसरी तरफ जनता की गाढ़ी कमाई से चूसा
गया टैक्स, भ्रष्टाचार रूपी दानव चबा जाता है, तो फिर विकास कहां से होगा और गरीबों
को सब्सिडी कहां से मिलेगी,
अच्छा आपने कभी सोचा कि क्या अंकल सैम के देश में सब्सिडी
दी जाती होगी कि नहीं, जी हां, उनके देश में अनाज पर लगभग 2841 मिलियन डालर की सब्सिडी
दी जाती है (स्रोत विकीपीडिया), अब जरा सोचिए, जब अंकल सैम के विकसित राष्ट्र में
भी सब्सिडी की आवश्यक्ता है तो भारत जैसे अल्पविकसित राष्ट्र में जहां अभी भी 29
फीसदी जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे है, सब्सिडी की आवश्यक्ता समाप्त क्यों
होती जा रही है,
तो यहां फिर अंकल सैम का दबाव हावी होता है, डब्ल्यू
टी ओ के समझौतों के अनुरूप देश को मुक्त व्यापार के लिए सब्सिडी को चरणबद्व तरीके
से समाप्त करना ही होगा, और सरकार उसी दिशा में चल रही है तो हर्ज क्या है, तो क्या
हुआ अगर देश का नौजवान भूखा मरेगा तो, अंकल
सैम के देश की तो समृद्वि कायम रहेगी, तो क्या हुआ यदि हमारे देश में राजनीतिक अस्थिरता
का माहौल बनेगा तो, अंकल सैम के देश के वर्तमान राष्ट्राध्यक्ष का तो आगामी चुनावों
में पथ प्रशस्त होगा, तो क्या हुआ अगर हमारे देश का मध्यम वर्ग चकनाचूर हो जाएगा,
व्यापारी सड़क पर आ जाएंगे, अंकल सैम के देश के व्यापारी तो समृद्व होते ही जाएंगे,
मित्रों, धीरे धीरे अंकल सैम के ये प्रतिनिधि इसी प्रकार से देश को विदेशियों के हाथ
बेचते जाएंगे और बेच देंगे, और हम बेसहारा, बस अपने कफन दफन को राजनीतिक तमाशा देखते
रह जाएंगे, तो फिर तैयार हो जाएगी एक और गुलामी के लिए, इस यह गुलामी आर्थिक होगी,
जो जीने नहीं देगी और मरने को तो आपका अधिकार पहले से ही अंकल सैम के कब्जे में है,
मनोज