Tuesday, 10 January 2012

समझा अपना... निकला सपना.


समझा अपना.
निकला सपना.
रे मूरख क्यूँ व्यर्थ बिलखना..


श्वांस हमारी संग तिहारी.
कैसे मोड़ पे आके हारी.
सोचा था है अपनी कुटिया....
यहीं पे रहना, यहीं पनपना..
पर रक्षक ने द्वार पे रोका.
बोला यहाँ नहिं माला जपना...
समझा अपना.
निकला सपना.
रे मूरख क्यूँ व्यर्थ बिलखना..

सोचा मिल बाटेंगे पीड़ा.
साथ समय के करेंगे क्रीडा..
उनकी खातिर खूब हँसेंगे..
उनकी खातिर ही है तड़पना..
सुन्दर बगिया का माली था,
बोला यहाँ नहिं मरना खपना..
समझा अपना 
निकला सपना.
रे मूरख क्यूँ व्यर्थ बिलखना...     

(मनोज)

Sunday, 1 January 2012

किसी भी कोने में भारत के.... हो न कोई बवाल....

शपथ ले सही तरीके से ही मनेगा अब ये साल...
किसी भी कोने में भारत के.
हो न कोई बवाल....

भूकंप से तबाही मची जापान में..
पड़ी सुनामी मार...
रेडियेशन का पड़ा तीव्र प्रहार .....
मिस्र, यमन में क्रांति मची..
और लादेन को दिया मार.....
गद्दाफी ने भी मरके छोड़ी सरकार ....
जब ईश्वर की सत्ता सर्वोच्च, क्यूँ उलटी सीधी चाल...
अब किसी भी कोने में भारत के.
हो न कोई बवाल....

चिकनीचमेली, जलेबीबाई  ..
कुछ भी करने को तैयार....
गन्दी भाषा का खूब किया प्रचार......
डेल्ही बेल्ही, डर्टी पिक्चर
को देख टपकती लार .....
यही अब नैतिकता का सार.......
पिक्चर वालो क्या यही उचित है, खुद से करो सवाल....
फिर किसी भी कोने में भारत के.
हो न कोई बवाल....




राजा, अमर और कलमाड़ी
ने स्वच्छ किया है तिहाड़...
मत करना अब अपराधी पर वार.....
सारी तिकड़म व्यर्थ हुई जब..
की राज्य सभा बेकार....
ममता का भी व्यर्थ गया हथियार....
राजनीति ने धर्मनीति पर उठा दिए क्यूँ सवाल....
अब किसी भी कोने में भारत के
हो न कोई बवाल....

जाये सुधर सब अब नर नारी
करें ना भ्रस्टाचार .....
क्यूँ पड़े जरुरत अन्ना को अनशन की यार..
लाकर बाहर से अपना काला धन सारा...
चल करें वैध व्यापार ...
फिर क्यूँ पहने कोई बाबा सलवार...
शपथ ले सही तरीके से ही मनेगा अब ये साल...
किसी भी कोने में भारत के.
हो न कोई बवाल....



 (मनोज)