सरकार का अनर्थकारी अर्थशास्त्र जारी है ...... जारी है मंहगाई बढाने वाली सरकारी नीतियां, और जारी है सरकार का अहंकार....... वह अहंकार जिसके अधीन होकर सरकार को लोगों के कष्ट, उनके दुःख और उनकी पीडाएं न तो समझ आती हैं और न ही दिखाई देती हैं ...... देश में चौतरफा चीज़ों के दाम बढ़ रहे हैं........और यदि सरकार के जिम्मेदार लोगों से पूछो तो वो या तो ये कहते हैं की उनके पास जादुई छड़ी नहीं है ......अथवा ये की लोगो की आमदनी बढ़ रही है....... लिहाजा वे खर्च ज्यादा कर रहे हैं..... हंसी आती है आपको..... मत हंसिये क्योंकि सरकार को यही ज्ञात सच्चाई है......परन्तु सत्य क्या है ?? सत्य यह है की सरकार दिशाहीन हो चुकी है .......और उसकी नीतियाँ विफल........ मंहगाई को रोकने के उसके सभी प्रयास निरर्थक और निष्परिणाम रहे........ क्योंकि संभवतः उसे लगता ही नहीं की मूल्य वृद्धि है भी......और यदि है तो उसे रोका कैसे जाए.......आइये देखते हैं.......
१. मूल्य वृद्धि को कम करने के नाम पर सरकार रिज़र्व बैंक के माध्यम से आये दिन ब्याज दरें बढ़ा रही है...... दरअसल सरकार की नीति है कि ब्याज दर बढ़ने से, ऋणों पर भी ब्याज दर बढ़ेगी, फलतः लोगों के ऋण की किश्त भी बढ़ जाएगी..... जैसा की मैंने पहले ही कहा की सरकार मानती है की लोगों के पास खर्च करने के लिए अधिक धन है और मंहगाई इसीलिए बढ़ रही है क्योंकि वे अधिक क्रय कर रहे हैं, मतलब उनके द्वारा वस्तुओं कि मांग अधिक है........... ऋणों की किश्त बढ़ने से उसके पास खर्च करने के लिए धन में कमी आएगी और वह कम खरीदेगा, परिणाम मंहगाई कम होगी....... हंसियेगा मत.....
२. सरकार ने बचत खातों में भी बैंकों को स्वायतत्ता दी है की वह ब्याज दर स्वतः तय कर सके...... परिणाम यह कि सरकार कि सोच के अनुसार बचत खातों पर भी ब्याज दर बढ़ेगी, और इसके आगे सरकार की सोच है कि लोगों के पास जो अधिक धन है उसे वह खर्च करने की बजाय अधिक ब्याज दर के लालच में बैंकों में रखना अधिक पसंद करेंगे रखेंगे और फिर वस्तुओ की मांग कम होगी......अर्थात मंहगाई घटेगी.....
३. सरकार ने अभी हाल में खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति दे है .... उनका कहना है की उच्च कोटि के विविध सामान एक ही छत के नीचे कम मूल्य पर उपलब्ध होंगे ...... विदेशी कम्पनियाँ एक निश्चित प्रतिशत कच्चा माल सीधे किसानों से खरीदेंगी...... सरकार के अनुसार इससे किसानो को लाभ पहुंचेगा और उपभोक्ता को भी कम मूल्य पर सामान उपलब्ध हो सकेगा ....
४. सरकार ने पेट्रोल का मूल्य बाजार के अनुसार तय करने की छूट पेट्रोलियम कंपनियों को दे दी है..... डीजल और गैस के दाम भी इसी के अनुसार तय करने के छूट देने पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है.... सरकार का कहना है की पेट्रोलियम कंपनियां घाटे में चल रही हैं...... और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे पेट्रोलियम के मूल्य के अनुरूप, मूल्य वृद्धि उनकी मजबूरी....
मित्रों गंभीरता से विचार करे तो सरकार की ये नीतियां देश के लिए अल्पकालिक ही नहीं वरन दीर्घकालिक रूप से भी घातक हैं.....कैसे जरा सोचिये .....
१. जब सरकार ब्याज दर बढ़ाती है तो बैंकों के पास ऋण वितरण योग्य धन में कमी आती है, फलतः ऋणों पर ब्याज दर भी बढ़ जाती है......... छोटे और मध्यम व्यापारी, जोकि बैंकों से ऋण लेकर अपना व्ययसाय चलाते हैं, इस ब्याज वृद्धि को अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं कर सकते ..... वस्तुओं के मूल्य वे तुलनात्मक रूप से बढ़ा नहीं सकते क्योंकि उन्हें बड़ी कंपनियों के साथ भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है...... इसका परिणाम यह होगा कि छोटे, मझौले और कुटीर उद्योग अधिक समय तक खड़े नहीं रह पाएंगे और धीरे धीरे समाप्त हो जायेंगे..... सत्य तो यह है कि सरकार को ब्याज दर बढाने की जगह उसे कम करने की आवश्यकता है ताकि लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण मिल सके, छोटे छोटे उद्योग धंधे पनप सकें और रोजगार के अवसर विकसित हो सकें......
२. सरकार की नीतियाँ, लोगों के जेब पर प्रहार कर रही हैं....... वे मांग को कम करना चाहते हैं, परन्तु आपूर्ति बढाने की दिशा में कोई भी कदम उठाने में विफल रहे है..... सरकार को ये समझना होगा की जब तक आपूर्ति नहीं बढ़ेगी, मंहगाई किसी भी दशा में कम हो ही नहीं सकती.......... सरकार के पास कोई स्पस्ट और घोषित खाद्य नीति नहीं है....... किसान ऋण जाल में फंसे हुए है और कई तो उसे ना चुका पाने के कारण आत्मघाती कदम तक उठा रहे हैं..... परन्तु सरकार निष्क्रिय है....... अभी तक सरकार किसानो की मदद के नाम पर समर्थन मूल्य बढ़ा दिया करती थी..... परन्तु खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश और सीधे किसानो से खरीद सम्बन्धी प्रस्ताव, सरकार द्वारा समर्थन मूल्य प्रणाली समाप्त करने की दिशा में ही उठाया गया सोचा समझा कदम है...... सरकार को धरा की उर्वरा शक्ति विकसित करने, उत्तम बीजों हेतु अनुसंधान करने तथा सिंचाई सुविधा हेतु नदियों को जोड़ने जैसी दीर्घकालिक योजनाओं को अपनाने की आवश्यकता है....
३. खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति से निश्चित रूप से एक छत के नीचे समस्त वस्तुए उपलब्ध हो सकेंगी, मूल्य भी अपेक्षाकृत कम होने की सम्भावना है..... परन्तु बदले में स्थानीय व्यवसाय को गहरा धक्का पहुंचेगा....... उनका व्यापार समाप्त होना तय है .......और वे छोटे व्यापारी जो अभी अपने व्यवसाय के मालिक हुआ करते हैं...... कुछ काल उपरांत इन विदेशी कंपनियों हेतु काम करते नजर आयेंगे....... ये खुदरा व्यावसायिक कंपनियां अंतरास्ट्रीय स्तर पर कार्य करती हैं, वे कच्चा माल वहां से उठाती हैं, जहा वो सस्ता हो और अपने कारखाने वहां लगाती हैं जहाँ उन्हें टैक्स इत्यादि में राहत हो अर्थात वो सुगम हो...... फलतः पुनः वही प्रणाली स्थापित हो जायेगी कि विदेशी कंपनियां कच्चा माल हिन्दुस्तान से लेंगी......उन्हें प्रोसेस बाहर करेंगी और फिर अपना उत्पाद ऊँचे दाम पर पुनः हमारे देश में बेचने का काम करेंगी...... क्या हम इसके लिए तैयार हैं...... शायद नहीं.....क्या यह गुलामी कि दिशा में उठाया गया कदम नहीं लगता ? .......शायद हाँ ..
४. सरकार पेट्रोलियम कंपनियों के घाटे के नाम पर डीजल और रसोई गैस के मूल्य को भी विनियंत्रित करना चाह रही है....... एक तो कोई भी पेट्रोलियम कंपनी घाटे में चल नहीं रही......सभी अच्छा खासा मुनाफा कमा रही हैं..... दूसरे, कहने की आवश्यकता नहीं की पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने से चहुँ ओर मंहगाई स्वतः ही बढती है........ सभी उत्पादों, वस्तुओं और कच्चे माल की ढुलाई लागत बढ़ जाती, यातायात मंहगा हो जाता है.......जो अंततोगत्वा मंहगाई बढाने का ही काम करता है.........सरकार को चाहिए की पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य को सरकारी नियंत्रण में रखे....... यदि सरकार सब्सिडी दे भी रही है तो यह कोई एहसान नहीं...... टैक्स द्वारा अर्जित धन से ही सब्सिडी दिया जा रहा है...... फिर इतनी हाय तोबा क्यों.......
५. सरकार का ना तो भ्रस्टाचार पर नियंत्रण है और ना ही जमाखोरी और कालाबाजारी जैसे रोग पर...... भ्रस्टाचार एक कोढ़ कि तरह है, जो देश को किसी दीमक कि तरह चट कर जाने पर आमादा है ......क्योंकि टैक्स द्वारा अर्जित धन का पर्याप्त दुरूपयोग हो रहा है......वह धन जोकि देश के ढांचागत विकास, गरीबो के उत्त्थान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों और गरीबों को सब्सिडी देने में किया जा सकता था, वह विदेशी बैंकों कि शोभा बढ़ा रहा है..........अतः एक ओर जहाँ खासतौर से उच्च स्तर पर भ्रस्टाचार रोकने के लिए कठोर कदम उठाये जाने कि आवश्यकता है ........ तो दूसरी ओर उत्पादन बढाने हेतु विशेष प्रयास किये जाने की भी... क्योंकि यदि आपूर्ति पर्याप्त होगी तो जमाखोरी और कालाबाजारी जैसी बुराइयां अपने आप दूर हो जाएँगी.....और मंहगाई कम हो सकेगी.....
परन्तु सरकार को उपर्युक्त बातों से कोई सरोकार नहीं....... उसे तो वही करना है जो उसका मन करेगा....... ३२ रूपये और २६ रूपये गरीबी का मापदंड रखने वाली सरकार अभी भी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में ८१ देशों में ६७ वे नंबर पर है......... तो क्या हुआ अगर पाकिस्तान, नेपाल, सूडान और रवांडा जैसे देशों में खाद्य आपूर्ति अथवा यू कहें की भूख और भूखों की स्थिति हमारे देश से बेहतर है.......परन्तु सरकार को चलाने वाले तथाकथित अर्थशास्त्री अपनी नीतियों की परख करते रहेंगे...... वे इतनी उंचाई पर पहुँच चुके हैं, जहाँ से ना तो जमीन नजर आती है और न ही जमीन पर खड़ा गरीब, फिर उसकी चिंता वे करेंगे, इसकी अपेक्षा ही मूढ़ता है....... परन्तु वे भूल चुके हैं........की व्यक्ति जितनी ऊंचाई पर होता है........गिरने पर उसे क्षति पहुँचने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है.......कुछ आवाजें तो सुनाई देनी शुरू हो गई हैं.......परन्तु ना जाने कितने अनुगूँज अभी भविष्य हेतु करवटे ले रहे हैं..........चेत जाइये ......समय थोड़ा ही बचा है....
मनोज