Saturday 30 August 2014

मेरा खाता - भाग्‍य विधाता

मित्रों, कभी कभी मेरे मन में एक प्रश्न उठता है कि क्या एक बैंक खाता किसी गरीब की समस्यााओं को सुलझा सकता है ? और जवाब ढूंढने पर मेरे मन में ही जो जवाब सूझता है, वह है नहीं !!! संभवतः एक बैंक खाता किसी गरीब का कुछ खास भला नहीं कर सकता,

परन्तु क्या एक बैंक खाता किसी व्‍यक्ति को कुछ आत्मविश्वास प्रदान कर सकता है ? क्या‍ एक बैंक खाता किसी व्‍यक्ति को कुछ वित्ती‍य समझ प्रदान कर सकता है ? क्या वह किसी व्‍यक्त्‍िा में बचत की उन आदतो को बढावा दे सकता है ? जो उसके वक्त जरूरत काम आ सके, तो जवाब यकीनन हॉ ही होगा.

अब यदि इस खाते के माध्यम से आवश्यक्ता पडने पर एक छोटी राशि ही सही, परन्तु कुछ अधिविकर्ष (ओवरड्राफ्ट) की सुविधा मिल जाए तो, और उसके बाद फिर यदि इसमें दुर्घटना बीमा जैसे शब्द जोड दिए जाएं, जिससे कि किसी परिवार के किसी सदस्य की यदि अकस्मात मृत्यु हो जाए अथवा वह किसी दुर्घटना का शिकार हो जाए तो पीडित परिवार को एक लाख रूपये मिल सकें, तो कैसा होगा ? मित्रों, वह एक लाख रूपये घर के मृत सदस्य को तो वापस नहीं ला सकते, परन्तु उस परिवार को एक आर्थिक पुर्नजीवन प्रदान करने में यह एक लाख रूपये अवश्य सक्षम हो सकते हैं, जिसके लिए आप भागीदार होने जा रहेे हैं, मित्रों, कदाचित उस एक लाख रूपये का मूल्य वह गरीब ही बेहतर समझ सकता है, जिसके ऊपर वह विपत्ति आन पडी हो, और यदि इतना कुछ होता हो तो यही खाता किसी गरीब के लिए एक सार्थक सम्बल बन कर खडा हो जाता है, अतः आज जबकि देश के प्रधानमंत्री ने धन जन योजना के माध्यम से देश के सभी गरीबों को इससे जोडने की योजना बनाई है, तो यह हम सभी का दायित्व बन जाता है कि हम उस आह्वान को सकारात्मक ढंग से लें और अधिक से अधिक लोगों को अपने साथ इस खाते के माध्यम से जोडें,

हां मैं मानता हूं कि समस्याएं हैं, बैंको के भीतर स्वतः कई प्रकार की समस्याएं विद्यमान हैं, शाखाओं में कर्मचारियों की संख्या कम है, कई जगहों पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, बैंक के कार्यकाल के अतिरिक्त भी समय निवेशित करना पड रहा है, परन्तु यकीन जानिए यह सब कुछ किसी गरीब की तकलीफों से अधिक कुछ भी नहीं है, जब किसी पीडित परिवार को एक लाख रूपये का चेक प्राप्‍त होगा तब आज की ये सभी तकलीफें आपको गर्व करने का अवसर प्रदान करेंगी,

मित्रों, जब श्रीमति गांधी ने देश के बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, तो उसके पीछे की मूल भावना भी लाभप्रदता नहीं, सामाजिक कल्याण की ही थी और यदि आज उस भावना को वर्तमान प्रधानमंत्री ने बल प्रदान किया है, तो यह हम सभी का नैतिक दायित्व् भी बन जाता है कि उस भाव को जीवंत कर सार्थकता प्रदान करें,
.


(मनोज)